भारतीय जल दर्शन में मेघ गर्भधारण का विज्ञान

 

मेघ गर्भ लक्षण


वराह मिहिर रचित ‘बृहत संहिता’ में मेघ गर्भ धारण का उल्लेख है; तद्नुसार मेघ गर्भ धारण के समय ग्रहों बिम्बों के आकार बड़े, ग्रहों की किरणें कोमल व उत्पात रहित, नक्षत्रों के गमन मार्ग की दिशा उत्तर, पेड़-पौधों में अंकुरण तथा जीवों में प्रसन्नता का भाव होता है। उत्तरी, ईशान अथवा पूर्वी हवा मध्यम व कोमल गति से चलती है। आसमान साफ रहता है। सूर्य व चन्द्रमा की चमक अधिक रहती है। चन्द्रमा या सूर्य के चारों ओर बादलों का गोलाकार वलय बनता है। शेष आकाश में बादल विशाल व घने होते हैं। उनका आकार सूई के समान नुकीला अथवा खुरपे, उस्तरे या फावड़े के समान होता है। मेघों का रंग कौए के अंडे के समान काला होता है, किन्तु आकाश में तारों की चमक बरकरार रहती है। संध्या समय इन्द्रधनुष दिखता है। मधुर गर्जन होती है। बिजली कड़कती है। प्रति-सूर्य दिखाई देता है। पक्षी व जंगली पशु ईशान दिशा की ओर मुँह करके खड़े होते हैं अथवा भागते हैं। वे सूर्य की ओर नहीं देखते। हाँ, गर्भधारण के इस काल में पशु-पक्षी मधुर स्वर निकालते हैं। माघ शुक्ल पक्ष के ऐसे लक्षणों का परिणाम बैसाख में दिखाई देता है।

 

अतिवृष्टि पूर्वानुमान


गर्भकाल में मोती व चाँदी के समान चमकीले अथवा ढाके के पत्ते के समान काले व जन्तु के आकार के बादल वर्षाऋतु आने पर अच्छी वर्षा करते हैं। गर्भकाल में बादल भी हों, सूर्य की चमकीली धूप भी हो और मामूली हवा भी, तो समझिये कि प्रसवकाल आने पर अतिवृष्टि होगी।

 

गर्भपात के लक्षण


लाल बादलों की लपटें, धूल भरी हवा, स्वरयुक्त हवा, बिजली गिरना, उल्कापात, धूमकेतु का दिखना, भूकम्प का आना, ग्रह युद्ध, तामसकीलकादि सूर्यात्पात: इन सभी को गर्भपात का लक्षण बताया गया है।

 

गर्भ धारणानुसार प्रसूत समय


अथ माघेन श्रावणं फाल्गुनेन भाद्रपदं चैत्रेणाश्वपुंज वैशाखने तु कार्तिकं शुक्लेन कृष्ण कृष्णेन शुक्लं दिवसने रात्रि रात्र्यो दिवसं गर्भाः प्रवर्षन्ति।

पाराशर जी के अनुसार, शुक्ल पक्ष में गर्भ हो, तो 195 दिन बाद कृष्ण पक्ष में प्रसव होता है। इसी तरह कृष्ण पक्ष में गर्भ हो, तो प्रसव शुक्ल पक्ष में होता है। दिन के मेघ गर्भ, रात में व रात के मेघ गर्भ, दिन में प्रसूत होते हैं। इसी तरह संध्या काल का मेघ गर्भ, प्रातः और प्रातःकाल का मेघ गर्भ, संध्या समय प्रसूत होता है। गर्भ के समय बादल पूर्व दिशा में उठें, तो निश्चित जानिये कि वे प्रसव समय पश्चिम में बरसेंगे और पश्चिम में उठें, तो उनका प्रसव पूर्व दिशा में होगा।

माघ शुक्ल में मेघ गर्भ धारण करें, तो कम वर्षा होती है। पौष कृष्ण में मेघ गर्भ धारण करें, तो वे सावन शुक्ल पक्ष में बरसेंगे। माघ शुक्ल के गर्भ सावन मेें, माघ कृष्ण पक्ष के गर्भ भादों शुक्ल पक्ष में, फागुन शुक्ल पक्ष के गर्भ भादों कृष्ण पक्ष में और फागुन कृष्ण पक्ष के आश्विन शुक्ल पक्ष में बरसते हैं। चैत्र शुक्ल के गर्भ, आश्विन कृष्ण पक्ष में बरसते हैं।

 

नक्षत्रानुसार आकलन


मार्ग-शीर्ष शुक्ल पक्ष में जब प्रतिपदा आगे चन्द्रमा पूर्वाषाढ़ नक्षत्र (देवतनक्षत्र) में आये, तब से शुरु करके मेघ गर्भ लक्षण का विचार करना चाहिए। जिस नक्षत्र में चन्द्रमा के रहने पर गर्भधारण के लक्षण मिलें, उस दिन से गिनकर पूरे 195 दिनों बाद यानी साढ़े छह माह बाद उसी नक्षत्र में चन्द्रमा रहने पर वर्षा आरम्भ होती है। यहाँ 195 दिनों की गणना, सावन मान (सूर्योदय से सूर्योदय एक दिन) से रहनी चाहिए, न कि चन्द्रतिथि से।

पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वाषाढ़ तथा रोहिणी नक्षत्र में गर्भ लक्षण अथवा पुष्टि होने पर वर्षाऋतु आने पर खूब वर्षा होती है। शतभिषा, आद्र्रा, स्वाति, मघा, श्लेषा नक्षत्र में गर्भ लक्षण होने पर बहुत दिनों तक वर्षा होगी। किन्तु यदि इन लक्षणों के बाद दिव्य अंतरिक्ष या भूतलीय उत्पाद हो, तो गर्भ नष्ट होने की सम्भावना हो सकती है। इन पाँच नक्षत्रों में किसी एक में यदि माघ माह में गर्भ लक्षण हों, तो 195 दिन होने पर आठ दिन तक, यदि पौष में इन नक्षत्रों में मेघगर्भ हो तो 24 दिनों तक, चैत्र में हो तो 20 दिनों तक और बैशाख में हो तो तीन दिनों तक वर्षा होती है।

 

अन्य लक्षण


माघ या पौष में शाम को आकाश में लाली तथा बदली हो, माघ में अधिक ठंड न पड़े, पौष में पाला या बर्फ कम गिरे तो समझिए कि आगे वर्षा अच्छी होगी। माघ में हवा तेज चले, सूर्य-चन्द्र की रोशनी में गर्द, कोहरे या हिम से दबी दिखे, चाँद धुँधला दिखे, सूर्यास्त के समय सूर्य के निकट बादल दिखें तो ये सभी भावी वर्षाऋतु में उत्तम वर्षा के लक्षण हैं। चैत्र मास में खूब बादल छायें, बिजली-बादल गरजें और बूँदा-बाँदी भी हो, तो भी समझिए कि आगामी वर्षा ऋतु में अच्छी वर्षा होगी। इसी प्रकार गर्भ नक्षत्र की गृह स्थिति, गर्भ की पुष्टि, गर्भपात की पुष्टि, तद्नुसार वर्षा के पानी की मात्रा, प्रथम वर्षा का लक्षण, जल मापने की विधि, वायुधारण आदि का विवरण बृहत संहिता में है।

 

वायुधारण विज्ञान


यदि मेघ गर्भ धारण के समय वायु पूर्व की है, तो प्रसव समय पश्चिम की होगी। इसी तरह पूर्व की पश्चिम में, उत्तर की दक्षिण में और दक्षिण की उत्तर में होगी।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी, नवमी, दशमी और एकादशी - ये चार तिथियाँ वायु धारण करने की तिथियाँ हैं। ज्येष्ठ मास में जब भी स्वाति नक्षत्र दिखे, तब से गिनकर स्वाति, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र की स्थिति देखें। यदि ज्येष्ठ मास में इन चारों नक्षत्रों में वर्षा हो जाये, तो जानिये कि श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक में वर्षा नहीं होगी। स्वाति में वर्षा हो तो आगे श्रावण में, विशाखा में वर्षा हो तो आगे भाद्रपद में, अनुराधा में वर्षा हो जाये तो आगे आश्विन में और यदि ज्येष्ठ नक्षत्र भीग जाये तो अगले कार्तिक में वर्षा की सम्भावना शून्य हो जाती है।

यदि वायु धारण करने के उक्त चारों दिवसों में एक जैसा मौसम हो, तो यह कल्याण का सूचक है। यदि इनमें सूखा, वर्षा, धूप, छाँह यानी अलग-अलग स्थितियाँ हों तो समझिए कि अकाल पड़ेगा और चोरी-बेईमानी बढ़ेगी।

 

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