विकास के लिये ऊर्जा बहुत जरूरी होती है। किसी राष्ट्र के समग्र विकास तथा वहाँ के प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत में सीधा संबंध पाया जाता है। सभ्यता के उषाकाल से आज तक प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत बढ़ती गयी है। भारत एक विकासशील देश है जो तेजी से तरक्की के रास्ते पर अग्रसर है। अतः ऊर्जा हमारे लिये बहुत जरूरी है। ऊर्जा के विभिन्न स्रोत हैं, जिनमें पारंपरिक तथा गैरपारंपरिक स्रोत दोनों शामिल हैं। जैसा कि हम जानते हैं, पूरी दुनिया में जीवाष्म ईंधन के भंडार सीमित हैं। ऐसा माना जाता है कि अगले कुछ दशकों में ये भंडार समाप्त हो जाने वाले हैं। ऐसे में हमें ऊर्जा के नए-नए स्रोत अभी से तलाशने होंगे। अन्यथा विकास का पहिया ठहर जाएगा। सौर ऊर्जा इसी तरह की एक वैकल्पिक ऊर्जा है जिस पर आजकल बहुत ध्यान दिया जा रहा है। भारत के लिये सौर ऊर्जा बहुत बड़ा स्रोत बनने का सामर्थ्य रखती है। ऐसा इसलिये क्योंकि हमारा देश गर्म देश है जहाँ सूरज की किरणें तकरीबन पूरे साल उपलब्ध रहती हैं।
सौर ऊर्जा वह ऊर्जा है जो सीधे सूर्य की रोशनी से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही धरती पर मौसम एवं जलवायु की गतिशीलता का संचालन करती है। पृथ्वी पर मौजूद तमाम तरह के ऊर्जा स्रोतों का मूल सूर्य है। जीवन की समस्त गतिविधियाँ सूर्य से संचालित होती हैं। वनस्पतियाँ तथा जीव-जंतु अपनी जैविक क्रियाकलापों के संचालन में प्रकारांतर से सौर ऊर्जा का ही प्रयोग करते हैं। पेड़-पौधे स्वपोषी कहे जाते हैं क्योंकि प्रकाश संश्लेषण के जरिए वे अपना आहार स्वयं तैयार कर लेते हैं। इस प्रक्रिया में हरित लवक यानी क्लोरोफिल की उपस्थिति में वातावरणीय जलवाष्प तथा कार्बन डाइऑक्साइड के संयोग से वे कार्बोहाइड्रेट (प्रायः ग्लुकोज) का निर्माण करते हैं। इस रासायनिक प्रक्रिया में सौर विकिरण की अहम भूमिका होती है। ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती है बल्कि उसका रुपांतरण होता है। प्रकाश संश्लेषण में विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा पेड़-पौधों में रासायनिक ऊर्जा (ग्लुकोज) में बदल जाती है। जीव-जंतु प्रायः परपोषी होते हैं जो अपने आहार के लिये इन वनस्पतियों पर आश्रित होते हैं। धरती पर मौजूद कोयला, पेट्रोलियम वगैरह जीवाष्म ईंधन सजीवों से निर्मित हैं, जिन्होंने सौर विकिरण का इस्तेमाल करते हुए रासायनिक ऊर्जा तैयार की थी।
भारत में पारंपरिक तौर पर सौर ऊर्जा का प्रयोग घरेलू तथा कृषि कार्यों में सदियों से होता रहा है। सूरज की धूप का प्रयोग खाद्यानों, वस्त्रों को सुखाने तथा संरक्षित करने एवं घरेलू सामानों और कृषि उपकरणों के उपचार के लिये होता रहा है। इनमें सौर ऊष्मा का उपयोग किया जाता है। लेकिन अब वैज्ञानिक तरक्की से सौर विकिरण को विद्युत में बदलने की तकनीक विकसित हो चुकी है। यह तकनीक अभी महँगी है। लेकिन निरंतर शोध तथा विकास से आने वाले दिनों में सौर ऊर्जा अन्य स्रोतों से मिलने वाली बिजली के बराबर हो जाएगी ऐसा विश्वास है। सोलर पैनल द्वारा सौर ऊर्जा को बिजली में बदल दिया जाता है। इसके लिये पैनल को घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की छतों पर रखा जाता है जहाँ उस पर सूरज की किरणें खूब आती हों। सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने के लिये फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। फोटोवोल्टेइक सेल सूरज से प्राप्त होने वाली किरणों को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देता है।
सौर ऊर्जा के उपयोग
आज अनेक तरह के सौर ऊर्जा उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं जो गार्डन व स्ट्रीट लाइट के रूप में बहुत उपयोगी हैं। अगर घर के बाहर गार्डन है तो आप सौर ऊर्जा से चलित गार्डन लाइट का प्रयोग कर सकते हैं। यह किफायती होने के साथ-साथ उपयोग में बहुत आसान है। यह लाइट दिन भर चार्ज होने के बाद रात को 5-6 घंटे जलती है। इसके अलावा बाजार में सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली स्ट्रीट लाइटें भी उपलब्ध हैं जो दिन भर चार्ज होने के बाद शाम को स्वतः जल जाती हैं और सुबह तक जलती रहती हैं। गार्डन लाइट 2 साल तक चल जाती है जबकि स्ट्रीट लाइट की अवधि 10 से 15 साल होती है।
खाना पकाने के लिये सोलर कुकर बहुत उपयोगी हैं। इनका इस्तेमाल आसान और सुविधाजनक होता है। ये दो तरह के होते हैं - बॉक्स टाइप और डिश टाइप। इसमें आप तलने का काम भी कर सकते हैं। इसमें दालों, चावल, राजमा व सब्जियों आदि को उबाला जा सकता है। मूंगफली और पॉपकॉर्न भूने जा सकते हैं। इसमें आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। बस जो चीज पकानी है, उसे धूप में रख दीजिए। यह कामकाजी लोगों के लिये भी काफी उपयोगी है। सोलर कुकर से 3-4 घंटे में खाना बन जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें पका खाना पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। यह कीमत में भी किफायती है तथा 20 से 25 साल चल जाता है।
सोलर वाटर हीटर, सोलर उत्पादों में सबसे पुराना है। घरेलू इस्तेमाल के लिये 100 से 300 लीटर का सोलर हीटर काफी रहता है। इससे ज्यादा क्षमता वाले हीटर होटल, गेस्टहाउस, अस्पताल आदि में लगाए जा सकते हैं। इस हीटर की खासियत यह है कि इसे एक बार खरीद लेने के बाद फिर इस पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता। आजकल ऐसे सोलर हीटर भी आ रहे हैं जिन्हें सोलर एनर्जी उपलब्ध न होने पर ग्रिड एनर्जी से भी उपयोग में ला सकते हैं। 100 लीटर के वॉटर हीटर से सालाना करीब 1500 यूनिट तक बिजली बचाई जा सकती है। इसके अलावा यह हर साल डेढ़ टन कार्बन उत्सर्जन रोकता है। सोलर वाटर हीटर 20 से 25 साल तक चलता है।
भारत में बिजली की कमी है क्योंकि मांग की तुलना में उत्पादन कम है। सोलर इन्वर्टर ऐसे में बहुत उपयोगी हैं। आमतौर पर घरों में लगभग 1 किलोवाट के इन्वर्टर का इस्तेमाल किया जाता है जिससे 6 लाइट, 4 पंखे, 1 कंप्यूटर और 1 टीवी को 8 घंटों तक चलाया जा सकता है। सोलर इन्वर्टर के सोलर मॉड्यूल की लाइफ तो लंबी होती है लेकिन इसकी बैटरी को 4-5 साल में बदलना पड़ता है। सोलर मॉड्यूल की लाइफ 20-25 साल होती है।
सौर ऊर्जा पर्यावरण के लिये निरापद मानी जाती है। इसे अक्षय ऊर्जा भी माना जाता है। इससे प्राकृतिक स्रोतों को क्षति नहीं पहुँचती है। सौर ऊर्जा के उत्पादन में गुजरात अग्रणी है जिसने 600 मेगावॉट क्षमता की स्थापना की है। इस वक्त देश में सौर ऊर्जा का कुल उत्पादन करीब 950 मेगावॉट है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ऊसर और बंजर जमीन का भूमि बैंक बना कर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की पहल की है। मध्य प्रदेश तथा राजस्थान की सरकारों ने भी बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने को लेकर पहल की है। ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति को सौर ऊर्जा के जरिये बेहतर किया जा सकता है। सौर ऊर्जा का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें तापीय ऊर्जा की तरह कोयले, गैस या नेफ्था का इस्तेमाल नहीं होता। जिससे गैसीय विसर्जन नहीं होता तथा पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।
भारत में सौर ऊर्जा की संभावनाएं
भारत में सौर ऊर्जा के विकास की काफी संभावनाएं हैं क्योंकि देश के अधिकतर हिस्सों में साल भर में 250 से 300 दिन तक सूरज चमकता रहता है। प्रतिवर्ष करीब 50,000 खरब किलोवाट घंटा सौर ऊर्जा भारतीय भूक्षेत्र पर पड़ती है। देश के अधिकांश भागों में 4-7 किलोवाट घंटे प्रति वर्गमीटर प्रतिदिन क्षमता की सौर किरणें धरती पर पड़ती हैं। अतः सौर विकिरण को ताप और विद्युत, दोनों में रूपांतरित करके शहरों तथा गाँवों में हर जगह इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
हालाँकि देश में पिछले दो तीन दशकों से सौर ऊर्जा पर काम हो रहा है लेकिन पिछले कुछ बरसों में इसमें बहुत गति आई है। सरकार ने वर्ष 2009 में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन का गठन किया था। इसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक ग्रिड विद्युत शुल्क दरों के साथ समानता लाने के लिये देश में सौर ऊर्जा तकनीकों का विकास और संस्थापन करना है। सरकार की इस भागीदारी से लोग सौर ऊर्जा के महत्त्व को समझने लगे हैं। सौर विद्युत ऊर्जा अभी महँगी पड़ रही है। इस पर प्रति यूनिट उत्पादन खर्च, ग्रिड विद्युत की तुलना में बहुत ज्यादा है। लेकिन पिछले तीन-चार साल में शोध तथा विकास से लागत दर में काफी कमी आयी है। सौर मिशन का उद्देश्य क्षमता में तीव्र गति से विस्तार और तकनीकी नवाचार से लागत में कमी लाकर उसे ग्रिड के स्तर पर लाना है। मिशन को आशा है कि 2022 तक ग्रिड समानता हासिल हो जाएगी। तब सौर ऊर्जा तथा दूसरे पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा की कीमत समतुल्य हो जाएगी।
सौर विद्युत ऊर्जा हमारे गाँवों के लिये बहुत उपयोगी होगी क्योंकि वहाँ पैनल वगैरह लगाने के लिये स्थान की कमी नहीं है। इसलिये आने वाले दिनों में सौर संयंत्रों का विकास तथा विस्तार होने से देश में ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति हो सकेगी तथा राष्ट्र ऊर्जा जरूरतों के लिये आत्मनिर्भर हो सकेगा। इससे प्रत्येक देशवासी को स्वच्छ तथा भरोसेमंद ऊर्जा उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल हो सकेगा।
सम्पर्क
डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र
होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र, टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, मानखुर्द, मुंबई-400088, ई-मेल : kkm@hbese.tifer.res.in
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