मध्य प्रदेश के छतरपुर, दमोह, दतिया, पन्ना, सागर, टीकमगढ़ एवं उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, झांसी, जालौन, ललितपुर महोबा जिलों को बुंदेलखंड में गिना जाता है। यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में से एक है। काफी अरसे से बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाए जाने की मांग उठाई जाती रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस क्षेत्र को मिले प्रतिनिधित्व ने इस संभावना को और ज्यादा बल दिया है।
प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से संपन्न बुंदेलखंड आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। रोजगार के साधनों के अभाव तथा कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण यहां के लोग पलायन को मजबूर हैं। यहां औसतन एक लाख की आबादी पर एक फैक्टरी है। कृषि उत्पादकता भी अन्य राज्यों की अपेक्षा यहां कम है।
हाल ही में विश्व बैंक ने एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिसका उद्देश्य गरीबी के कारकों का पता लगाना था। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम तथा पश्चिम बंगाल के 300 गांवों के सर्वेक्षण के बाद इस रिपोर्ट में गरीबी के तीन प्रमुख कारण बताए गए, विवाह, बीमारी और बंटवारा। यही बुंदेलखंड की गरीबी के लिए भी जिम्मेदार कारक हैं। यहां विवाह को आज भी व्यापार की दृष्टि से देखा जाता है। कम पढ़े-लिखे लड़कों का भी ज्यादा दहेज बेटियों के पिताओं को जमीन बेचने को मजबूर करता है। बीमारी के कारण खर्चों की पूर्ति न कर पाने के कारण लोग गरीबी के दुश्चक्र में फंसते हैं। इसी तरह बंटवारे के कारण किसी समय के जमींदार आज छोटे-छोटे काश्तकारों के रूप में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। चूंकि छोटी काश्तों की उत्पादकता कम होती है, इसलिए छोटे-छोटे किसान कृषि के बजाय मजदूरी को आजीविका का साधन चुन लेते हैं, जिसके लिए उन्हें दूसरे प्रांतों में जाना होता है।
उपरोक्त तीनों कारकों में एक बात समान है। वह है मानवीय विकास का अभाव। मानवीय विकास का तात्पर्य शिक्षा, सामाजिक संरचना, सुरक्षा, अपराधमुक्त वातावरण तथा विकासपरक दृष्टिकोण से है। दक्षिण भारत के राज्यों की अप्रत्याशित विकास दर का प्रमुख कारण यही मानवीय विकास है। चर्चित अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक डेवलपमेंट ऐंड फ्रीडम में समाज के सर्वांगीण विकास के पांच तत्वों को आवश्यक माना है-राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक साधन, सामाजिक अवसर, पारदर्शिता और सुरक्षा। निस्संदेह बुंदेलखंड की वर्तमान स्थिति बताती है कि उसे इन सभी तत्वों की जरूरत है।
राजनीतिक स्वतंत्रता का उद्देश्य ऐसे राजनीतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना है, जो विकासोन्मुखी हो और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की कार्ययोजना रखता हो। दुर्भाग्य से बुंदेलखंड की पहचान जाति आधारित राजनीति के गढ़ के रूप में है। यहां ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनने की आवश्यकता है, जो क्षेत्र में आर्थिक साधनों के साथ-साथ सामाजिक अवसरों का विकास कर सके। सर्वाधिक ध्यान शिक्षा व्यवस्था पर देने की जरूरत है। आज बुंदेलखंड के शिक्षित व्यक्त को अन्य प्रदेशों में हीन दृष्टि से देखा जाता है, जिसका कारण शैक्षणिक गुणवत्ता का अभाव तथा शैक्षणिक संस्थानों में पारदर्शिता का न होना है। सामाजिक अवसरों तथा आर्थिक साधनों की उपलब्धता से क्षेत्र में व्याप्त असुरक्षा का वातावरण समाप्त हो सकता है। संक्षेप में कहें, तो बुंदेलखंड की बदहाली से निपटने के लिए योजनाबद्ध तथा दूरगामी प्रयासों की आवश्यकता है, जिसका आधार मानवीय विकास हो।
(लेखक निरमा विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं)
प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से संपन्न बुंदेलखंड आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। रोजगार के साधनों के अभाव तथा कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण यहां के लोग पलायन को मजबूर हैं। यहां औसतन एक लाख की आबादी पर एक फैक्टरी है। कृषि उत्पादकता भी अन्य राज्यों की अपेक्षा यहां कम है।
हाल ही में विश्व बैंक ने एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिसका उद्देश्य गरीबी के कारकों का पता लगाना था। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम तथा पश्चिम बंगाल के 300 गांवों के सर्वेक्षण के बाद इस रिपोर्ट में गरीबी के तीन प्रमुख कारण बताए गए, विवाह, बीमारी और बंटवारा। यही बुंदेलखंड की गरीबी के लिए भी जिम्मेदार कारक हैं। यहां विवाह को आज भी व्यापार की दृष्टि से देखा जाता है। कम पढ़े-लिखे लड़कों का भी ज्यादा दहेज बेटियों के पिताओं को जमीन बेचने को मजबूर करता है। बीमारी के कारण खर्चों की पूर्ति न कर पाने के कारण लोग गरीबी के दुश्चक्र में फंसते हैं। इसी तरह बंटवारे के कारण किसी समय के जमींदार आज छोटे-छोटे काश्तकारों के रूप में जीवन यापन करने को मजबूर हैं। चूंकि छोटी काश्तों की उत्पादकता कम होती है, इसलिए छोटे-छोटे किसान कृषि के बजाय मजदूरी को आजीविका का साधन चुन लेते हैं, जिसके लिए उन्हें दूसरे प्रांतों में जाना होता है।
उपरोक्त तीनों कारकों में एक बात समान है। वह है मानवीय विकास का अभाव। मानवीय विकास का तात्पर्य शिक्षा, सामाजिक संरचना, सुरक्षा, अपराधमुक्त वातावरण तथा विकासपरक दृष्टिकोण से है। दक्षिण भारत के राज्यों की अप्रत्याशित विकास दर का प्रमुख कारण यही मानवीय विकास है। चर्चित अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक डेवलपमेंट ऐंड फ्रीडम में समाज के सर्वांगीण विकास के पांच तत्वों को आवश्यक माना है-राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक साधन, सामाजिक अवसर, पारदर्शिता और सुरक्षा। निस्संदेह बुंदेलखंड की वर्तमान स्थिति बताती है कि उसे इन सभी तत्वों की जरूरत है।
राजनीतिक स्वतंत्रता का उद्देश्य ऐसे राजनीतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना है, जो विकासोन्मुखी हो और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की कार्ययोजना रखता हो। दुर्भाग्य से बुंदेलखंड की पहचान जाति आधारित राजनीति के गढ़ के रूप में है। यहां ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनने की आवश्यकता है, जो क्षेत्र में आर्थिक साधनों के साथ-साथ सामाजिक अवसरों का विकास कर सके। सर्वाधिक ध्यान शिक्षा व्यवस्था पर देने की जरूरत है। आज बुंदेलखंड के शिक्षित व्यक्त को अन्य प्रदेशों में हीन दृष्टि से देखा जाता है, जिसका कारण शैक्षणिक गुणवत्ता का अभाव तथा शैक्षणिक संस्थानों में पारदर्शिता का न होना है। सामाजिक अवसरों तथा आर्थिक साधनों की उपलब्धता से क्षेत्र में व्याप्त असुरक्षा का वातावरण समाप्त हो सकता है। संक्षेप में कहें, तो बुंदेलखंड की बदहाली से निपटने के लिए योजनाबद्ध तथा दूरगामी प्रयासों की आवश्यकता है, जिसका आधार मानवीय विकास हो।
(लेखक निरमा विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं)
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