बुंदेलखंड : पैकेज के बावजूद बदहाली बरकरार

देश के बीमारू राज्यों में शुमार उत्तर प्रदेश के सात ज़िलों में फैला बुंदेलखंड आज भी जल, ज़मीन और जीने के लिए तड़पते लोगों का केंद्र बना हुआ है। रोज़ी-रोटी और पानी की विकट समस्या से त्रस्त लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का आठवां हिस्सा खुद में समेटे यह समूचा अंचल भूमि के उपयोग-वितरण, सिंचाई, उत्पादन, सूखा, बाढ़ और आजीविका जैसे तमाम मामलों में बहुत पीछे है। झांसी और चित्रकूट मंडलों में विभाजित बुंदेलखंड में प्रदेश की कुल आबादी की लगभग पांच प्रतिशत जनसंख्या है। औसत से कम बरसात के कारण प्रत्येक दो-तीन वर्ष बाद बुंदेलखंड सूखे की चपेट में आ जाता है। कभी खरी़फ तो कभी रबी और कभी दोनों फसलें चौपट हो जाती हैं। लगभग सोलह प्रतिशत ज़मीन बंजर अथवा गैर कृषि कार्यों से संबद्ध है। बेसिक एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या नगण्य है और जो हैं, उनकी हालत बदतर है। विकास के तमाम कार्यों के बावजूद ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत है। चित्रकूट मंडल में हालात और भी बदतर है। यहां लोग चार दशकों से पट्टे की ज़मीन पर क़ब्ज़े के लिए भटकते नज़र आते हैं। महिलाओं और ग़रीबों की हालत ग़ुलामों जैसी है। अनेक तरह की खनिज संपदाओं पर दबंगों का अवैध क़ब्ज़ा है। एक ही ज़मीन को वन विभाग और राजस्व विभाग अपनी बताते हुए आदिवासियों को खदेड़ देते हैं।

ज़मीन नीलाम होने के भय से बुंदेलखंड के स्वाभिमानी किसान खुदकुशी के लिए मजबूर हो जाते हैं। कांग्रेस के झांसी जिलाध्यक्ष सुधांशु त्रिपाठी कहते हैं कि बुंदेलखंड में धन की लूट न हो, इसके लिए निगरानी ज़रूरी है। डॉ. आशीष पटैरिया कहते हैं कि निर्माण कार्य शुरू होने से पहले केंद्र सरकार यहां के 13 ज़िलों में पहले से मौजूद तालाबों और चेकडैमों आदि का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करा ले, ताकि इनके नाम पर पैकेज का पैसा डकारा न जा सके।

ललितपुर का दर्द बहुत गहरा है। बांधों और उद्योगों के नाम पर ज़मीन की लूट, वनों एवं पहाड़ों का विनाश, नदी तटों की कटान, स्टोन क्रेसर, ग्रेनाइट आदि कार्यों का अनियमित विस्तार, वनीकरण के नाम पर यूकेलिप्टस एवं विलायती बबूल का रोपण, जड़ी-बूटियों और अन्य वन उपजों के क्षरण, प्राकृतिक असंतुलन और निष्प्रभावी प्रशासन तंत्र जैसी तमाम समस्याओं से घिरी यह धरती वेदना के अथाह सागर में डूबी है। चित्रकूट मंडल के पाठा क्षेत्र में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। जबकि इसके भूगर्भ में 12 किलोमीटर चौड़ी और 110 किलोमीटर लंबी नदी बहती है, जहां से तीस से चालीस हज़ार गैलन प्रति घंटे के हिसाब से पानी निकाला जा सकता है। यह सब एक भगीरथ प्रयास से ही संभव है। यदि कोई भगीरथ ऐसा ठान ले तो हर साल बुंदेलखंड में साठ से सत्तर करोड़ रुपये का बजट केवल पानी के लिए बनाने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी। सूखे से बेहाल बुंदेलखंड में किसानों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री मायावती ने यहां की हालत को देखते हुए बुंदेलखंड पैकेज के कार्य मानसून के पहले पूरा कराने का निर्णय करके मानवीय संवेदना का परिचय भले ही दिया हो, लेकिन व्यवस्था में पर्याप्त परिवर्तन के बिना ऐसा संभव नहीं लगता। जल संकट के चलते हालात लगातार बद से बदतर हो रहे हैं। गंगा, यमुना, गोमती और बेतवा की भूमि उत्तर प्रदेश भीषण जल संकट के मुहाने पर खड़ा है। गंगा और यमुना प्रदूषण के चलते गंदे नाले में तब्दील होने को विवश हैं। बुंदेलखंड समाज सेवा संस्थान के वासुदेव कहते हैं कि असीमित संसाधनों पर सीमित लोगों ने अवैध और अनैतिक अधिकार जमा रखा है। समाजसेवी गोपाल भाई कहते हैं कि लोकमत मारा-मारा भटक रहा है। यदि जिलाधिकारी ने कह दिया, लिख दिया कि भूख से कोई नहीं मर रहा, कहीं कोई अकाल या सूखा नहीं है तो फिर मुख्यमंत्री के लिए यही अंतिम सत्य बन जाता है।

पानी की कमी के चलते कृषि कार्यों और पशुपालन में का़फी दिक्क़तें आ रही हैं। खेत सूखे पड़े हैं, ग़रीबों का गांवों से पलायन जारी है, तालाबों में पानी नहीं है, किसानों की ज़मीनें बिक रही हैं, नीलाम हो रही हैं, लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की हवाई घोषणाओं के बीच बुंदेलखंड में पिछले पांच महीनों के दौरान 519 किसान काल का ग्रास बन चुके हैं। किसानों की मौत पर केंद्र और राज्य से जवाब तलब कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जता दिया है कि बुंदेलखंड में सब कुछ ठीक नहीं है। न्यायालय ने किसानों से कृषि ॠण वसूली के मामले में उत्पीड़नात्मक कार्यवाही करने पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे उसे बुंदेलखंड में लागू कल्याण योजनाओं, पीडीएस एवं सिंचाई सुविधाओं के बाबत उठाए गए क़दमों की जानकारी से अवगत कराएं। साथ ही राज्य सरकार द्वारा किसानों की ॠण मा़फी के संबंध में उठाए गए क़दमों की जानकारी भी मांगी गई है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को प्रत्येक किसान की मौत के बारे में अस्पतालों, ब्लॉकों एवं पुलिस थानों से ब्योरा एकत्रित कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने मुख्य सचिव से कहा कि वह सभी बैंकों द्वारा दिए गए कृषि ॠण के ब्योरे के साथ अपनी रिपोर्ट पेश करें। न्यायालय ने राष्ट्रीय एवं निजी बैंकों, वित्तीय संस्थानों, सहकारी बैंकों, खादी ग्रामोद्योग एवं विकास बोर्ड से कहा है कि वे ॠण वसूली के दौरान किसानों पर उत्पीड़नात्मक कार्यवाही न करें।

हाईकोर्ट ने यह आदेश अ़खबारों में छपी खबरों के आधार पर दिया है, जिनके अनुसार बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, महोबा, चित्रकूट एवं जालौन ज़िलों में वर्ष 2009 में 568, वर्ष 2010 में 583 और वर्ष 2011 के पांच महीनों में 519 किसानों ने सूखे और ग़रीबी से आज़िज़ आकर आत्महत्या कर ली। किसानों पर इस समय 4370.32 करोड़ रुपये का ॠण बक़ाया है। केंद्र सरकार ने सात सौ करोड़ रुपये की सहायता दी है। ॠण अदायगी न कर पाने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। स़िर्फ किसान ही नहीं, अपितु बेरोज़गार युवा भी आत्महत्या को मुक्ति का मार्ग समझ बैठे हैं। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत ॠण लेकर शुरू किए गए उद्योग पूरी तरह चौपट हो गए हैं। बसपा सरकार के वरिष्ठतम मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी, दद्दू प्रसाद, बादशाह सिंह, रतन लाल अहिरवार, हरिओम एवं बाबू सिंह कुशवाहा जैसे क़द्दावर लोगों की मौजूदगी के बावजूद बुंदेलखंड में भुखमरी के हालात कई सवाल खड़े करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र ने सूखा प्रभावित बुंदेलखंड का दौरा करने के बाद किसानों और लघु उद्योग संचालित करने वाले युवाओं के सभी क़र्ज़ तत्काल मा़फ किए जाने की वकालत की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि बुंदेलखंड की भलाई के लिए कोर्ट का हस्तक्षेप ज़रूरी हो गया था, क्योंकि मौजूदा बसपा और पूर्ववर्ती सपा सरकार तो वहां भूख एवं क़र्ज़ से मौत होने की बात स्वीकार ही नहीं करती। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विशंभर प्रसाद निषाद का कहना है कि जन समस्याओं के समाधान की ओर बसपा सरकार और उसके मंत्रियों का ध्यान कम है। मंत्री अपना भविष्य बनाने में जुटे हुए हैं। जिस बसपाई के पास कभी टूटी साइकिल नहीं होती थी, वह आज अरबों रुपये का मालिक कैसे बन गया। गरौठा से सपा विधायक दीप नारायन सिंह यादव कहते हैं कि किसानों की क़र्ज़ा मा़फी, पानी का बंदोबस्त और रोज़गार के साधन मुहैया कराने के साथ-साथ युवाओं के लघु उद्योगों में विशेष छूट दी जाए।

सूखे और क़र्ज़ में डूबे बुंदेलखंड के किसानों की तबाही भले ही दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारें अपने पुराने ढर्रे पर हैं। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी सक्रिय हुए तो बुंदेलखंड को केंद्र ने पैकेज तो दे दिया, लेकिन अब इस धन के खर्च पर ही सवाल उठने लगे हैं। बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के राजा बुंदेला कहते हैं कि कमीशनबाज़ी के चक्कर में बजट वापस हो जाता है। ऐसे में बुंदेलखंड को बचाने के लिए एकमात्र उपाय बुंदेलखंड राज्य का गठन है। कांग्रेस के पूर्व मंत्री बिहारी लाल आर्य कहते हैं कि जब हम यहां हो रहे घोटालों की शिकायत करते हैं तो उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव का मानना है कि बुंदेलखंड में पैकेज के तहत चलने वाले पुनर्वास अभियान को संचालित करने के लिए विपक्ष और सत्ता पक्ष के लोगों को शामिल करके कार्यक्रम क्रियान्वयन देखरेख समिति का गठन हो, जिसे भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करने का अधिकार हो। दिल्ली में अभी हाल में हुई एक बैठक में केंद्रीय योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार ने भी कहा कि अतिरिक्त केंद्रीय सहायता के मद में बुंदेलखंड को दिए गए 800 करोड़ रुपये में से उत्तर प्रदेश सरकार बीते 31 मार्च तक महज़ 73 करोड़ रुपये (लगभग नौ प्रतिशत) का ही उपयोग प्रमाणपत्र दे पाई है। बैठक में शामिल बांदा के सपा सांसद आर के पटेल ने कहा कि बुंदेलखंड पैकेज को अधिकारियों ने खाने-कमाने का धंधा बना लिया है। सूखे से बचाव के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी। पुराने बांधों की मरम्मत में करोड़ों रुपये डकार लिए गए। लिहाज़ा जो भी धन खर्च हुआ है, उसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए. सपा सांसद घनश्याम अनुरागी ने भी पैकेज के धन में बंदरबांट होने की बात कही। केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री एवं झांसी के सांसद प्रदीप जैन आदित्य ने कहा कि बुंदेलखंड पैकेज के धन को खर्च करने के मामले में प्रदेश सरकार लापरवाही बरत रही है। दरअसल प्रदेश सरकार का बुंदेलखंड पर कोई फोकस नहीं है। उसे डर है कि कहीं वहां के विकास का श्रेय कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को न मिल जाए। जैन ने कहा कि बुंदेलखंड के किसानों के क़र्ज़ के एकमुश्त समाधान की व्यवस्था की जानी चाहिए। हमीरपुर के बसपा सांसद विजय बहादुर सिंह ने कहा कि बुंदेलखंड पैकेज के तहत केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं में भी धन मिलना था। कई मंत्रालयों ने अतिरिक्त धन देने में असमर्थता जता दी है। लिहाज़ा 3508 करोड़ रुपये का पैकेज 1598 करोड़ रुपये पर सिमट गया है। मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बुंदेलखंड के किसानों को ॠण मा़फी देने के लिए विशेष योजना लागू किए जाने की मांग की है। मायावती ने कहा कि विशेष योजना में किसानों को इस वर्ष 31 मार्च तक दिए गए ॠण भी शामिल किए जाएं।

अकेले बांदा जनपद में पिछले आठ सालों के दौरान बदहाली और भुखमरी से तक़रीबन ढाई हज़ार लोगों की जानें जा चुकी हैं। वर्ष 2002 में 310, 2003 में 240, 2004 में 280, 2005 में 285, 2006 में 278, 2007 में 215, 2008 में 314, 2009 में 278 और 2010 में 143 लोगों ने क़र्ज़, ग़रीबी, बदहाली और उनसे उपजे विभिन्न कारणों से मौत का वरण किया। बुंदेलखंड के जालौन जनपद में 2007 तक के बक़ाएदारों के लिए क़र्ज़ मा़फी की घोषणा करके केंद्र सरकार मानो अपनी ज़िम्मेदारी से बरी हो गई है। दूसरी ओर बुंदेलखंड में सूखे का प्रकोप अभी तक नहीं टला है, जिससे इस अंचल के किसानों का क़र्ज़ के दलदल में धंसना जारी है। वर्तमान में 5,123 किसान डिफाल्टर की श्रेणी में हैं, जिनके ऊपर 45 करोड़ 35 लाख रुपये की बक़ाएदारी है। 1986 किसानों के विरुद्ध 14 करोड़ 36 लाख रुपये के बक़ाए की वसूली के लिए आरसी जारी की गई है। ज़मीन नीलाम होने के भय से बुंदेलखंड के स्वाभिमानी किसान खुदकुशी के लिए मजबूर हो जाते हैं। कांग्रेस के झांसी जिलाध्यक्ष सुधांशु त्रिपाठी कहते हैं कि बुंदेलखंड में धन की लूट न हो, इसके लिए निगरानी ज़रूरी है। डॉ. आशीष पटैरिया कहते हैं कि निर्माण कार्य शुरू होने से पहले केंद्र सरकार यहां के 13 ज़िलों में पहले से मौजूद तालाबों और चेकडैमों आदि का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करा ले, ताकि इनके नाम पर पैकेज का पैसा डकारा न जा सके।

जून से 27 अगस्त तक वर्षा कि स्थिति ( मिमी में )

ज़िला

सामान्य वर्षा

2008

2009

2010

झांसी

612.4

1039.7

263.1

70.33

ललितपुर

612.4

463.6

281.0

525.0

जालौन

532.2

591.5

213.7

441.4

हमीरपुर

587

952.5

306.7

262.3

महोबा

587

341.4

192.9

295.6

बांदा

642.4

925.4

248.3

370

चित्रकूट

642.4

313.6

226.6

241.5

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