जब कोसी पर तटबंध बनाने की बात जोरों पर थी उस समय बांधों पर भूकम्प के प्रभाव का एक अध्ययन हुआ था। उस समय नेपाल में प्रस्तावित बराहक्षेत्र बांध के तीव्र भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में अवस्थित होने पर उसकी सुरक्षा के प्रति भू-वैज्ञानिकों द्वारा गंभीर चिन्ता व्यक्त की गई थी और “डैम के नजदीक नेपाल-बिहार के 1934 वाले भूकम्प जैसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था।” यह भूकम्प 15 जनवरी 1934 को आया था। रिक्टर पैमाने पर 8.3 तीव्रता वाले इस भूकम्प के कारण मुजफ्फरपुर और मुंगेर में सबसे ज्यादा तबाही हुई थी और पूरे बिहार में लगभग 10,000 से ज्यादा लोग मारे गये थे। इस भूकम्प की वजह से उत्तर बिहार की टोपोग्राफी में भी भारी परिवर्तन आया था। उधर बिहार विधान सभा में तत्कालीन वित्त मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह ने बिहार एप्रोप्रिएशन बिल पर बहस (22 सितम्बर 1954) में भाग लेते हुए कहा कि “अभी दो-तीन वर्षों से इसकी जांच हो रही थी कि कोसी नदी पर एक बांध बांधा जाये जो कि 700 फुट ऊँचा हो और इस जांच पर बहुत सा रुपया खर्च हुआ। तब मालूम हुआ कि इसमें 26 मील (42 किलोमीटर) की एक झील बनेगी जिसमें कोसी का पानी जमा होगा और पानी के जमा होने से बाढ़ नहीं आयेगी।
इसके अलावा भी कई छोटी-छोटी झीलें होगी और उनमें पानी जमा किया जायेगा। लेकिन पीछे इस बात पर विचार किया गया कि अगर वह 700 फीट का बांध फट जाय तो जो पानी उसमें जमा है उससे सारा बिहार और बंगाल बह जायेगा और सारा इलाका तबाह और बर्बाद हो जायगा।” कुछ इसी तरह की बात लोकसभा में एन. वी. गाडगिल ने कही थी (11 सितम्बर 1954)। उनका कहना था कि, “...एक समय मुझे भी कोसी प्रोजेक्ट का काम-धाम देखना पड़ा था। वहाँ जब जमीन के अन्दर छेद करने के प्रयोग किये गये तब पता लगा कि वह पूरा का पूरा इलाका ऐसा है जिस पर भूकम्प के झटके लगते हैं। तब हम लोगों को सोचना पड़ा कि वहाँ जलाशय बने या दूसरी कोई व्यवस्था की जाय। या फिर जैसा कि पिछले हफ्ते अल्जीयर्स में हुआ, वैसा दुबारा भी होगा। वहाँ भूकम्प की वजह से या तो बांधों में दरार पड़ गई या वह ढह गये और कई बांधों का तो नामोनिशन ही मिट गया।”
इन दोनों विचारधाराओं ने उस समय बहस को बराहक्षेत्र बांध से हटा कर तटबंधों के हक में मोड़ दिया।
कोसी तटबंधों के निर्माण में और कोई विघ्न न पड़े यह सुनिश्चित करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कोसी क्षेत्र का एक सप्ताह भर का दौरा (अक्टूबर 17 से अक्टूबर 22, 1954) करवाया गया जिसमें उन्होंने दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और सहरसा आदि जाकर राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में भाग लेने के लिए सभी का आह्नान किया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने यह दौरा और यह अपील किस दबाव में की होगी यह तो वही समझे होंगे मगर इतना जरूर है कि पटना बाढ़ सम्मेलन (1937) में उनके द्वारा रखे गये विचार उन्हें अशान्त जरूर करते रहे होंगे।
इसके अलावा भी कई छोटी-छोटी झीलें होगी और उनमें पानी जमा किया जायेगा। लेकिन पीछे इस बात पर विचार किया गया कि अगर वह 700 फीट का बांध फट जाय तो जो पानी उसमें जमा है उससे सारा बिहार और बंगाल बह जायेगा और सारा इलाका तबाह और बर्बाद हो जायगा।” कुछ इसी तरह की बात लोकसभा में एन. वी. गाडगिल ने कही थी (11 सितम्बर 1954)। उनका कहना था कि, “...एक समय मुझे भी कोसी प्रोजेक्ट का काम-धाम देखना पड़ा था। वहाँ जब जमीन के अन्दर छेद करने के प्रयोग किये गये तब पता लगा कि वह पूरा का पूरा इलाका ऐसा है जिस पर भूकम्प के झटके लगते हैं। तब हम लोगों को सोचना पड़ा कि वहाँ जलाशय बने या दूसरी कोई व्यवस्था की जाय। या फिर जैसा कि पिछले हफ्ते अल्जीयर्स में हुआ, वैसा दुबारा भी होगा। वहाँ भूकम्प की वजह से या तो बांधों में दरार पड़ गई या वह ढह गये और कई बांधों का तो नामोनिशन ही मिट गया।”
इन दोनों विचारधाराओं ने उस समय बहस को बराहक्षेत्र बांध से हटा कर तटबंधों के हक में मोड़ दिया।
कोसी तटबंधों के निर्माण में और कोई विघ्न न पड़े यह सुनिश्चित करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का कोसी क्षेत्र का एक सप्ताह भर का दौरा (अक्टूबर 17 से अक्टूबर 22, 1954) करवाया गया जिसमें उन्होंने दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और सहरसा आदि जाकर राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में भाग लेने के लिए सभी का आह्नान किया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने यह दौरा और यह अपील किस दबाव में की होगी यह तो वही समझे होंगे मगर इतना जरूर है कि पटना बाढ़ सम्मेलन (1937) में उनके द्वारा रखे गये विचार उन्हें अशान्त जरूर करते रहे होंगे।
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