बोतलबन्द, पाउचों में बिक रहा दूषित पानी

भारत में अब तक करीब दो सौ से ज्यादा ब्रांड का पानी बाज़ार में उपलब्ध है। इतना ही नहीं है हर क्षेत्र में इसमें से करीब 80 फीसदी ब्रांड स्थानीय होती है। इनके पानी की नियमित जाँच नहीं हो पाती है इससे यह पानी दूषित होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। नामी कम्पनियों की बोतलों में भी जरूरी नहीं कि पानी साफ़ ही होगा। कई बार इनमें संक्रमण की शिकायतें भी मिलती रहती हैं। ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में कुछ व्यवसायी सैकड़ों लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। इनके खिलाफ कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने से इनका यह गोरखधन्धा बड़ी तेजी से फल–फूल रहा है। लोग यह सोचकर बोतलबन्द पानी पीते हैं कि इससे उन्हें साफ़ और शुद्ध पानी मिलेगा लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं है, बल्कि यही महंगे भाव में खरीदा हुआ पानी भी दूषित होता है, जो उल्टा स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने लगता है। इन दिनों बाज़ार में बड़ी तादाद में धड़ल्ले से ऐसा दूषित पानी सरेआम बिक रहा है।

खासतौर पर रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड के आसपास की होटलों तथा अन्य स्थानों पर छोटी–छोटी होटलों, रेस्त्राओं में अमानक स्तर का यह पानी खूब बिक रहा है।

फिलहाल हमारे देश में बोतलबन्द पानी का व्यापार करीब एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चुका है और दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। यह पढ़कर तो आप चौंक ही जाएँगे कि यह बाज़ार में 55 फ़ीसदी प्रतिवर्ष की दर से लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

एक अनुमान के अनुसार देश में अब तक करीब दो सौ से ज्यादा ब्रांड का पानी बाज़ार में उपलब्ध है। इतना ही नहीं है हर क्षेत्र में इसमें से करीब 80 फीसदी ब्रांड स्थानीय होती है। इनके पानी की नियमित जाँच नहीं हो पाती है इससे यह पानी दूषित होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। नामी कम्पनियों की बोतलों में भी जरूरी नहीं कि पानी साफ़ ही होगा।

कई बार इनमें संक्रमण की शिकायतें भी मिलती रहती हैं। ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में कुछ व्यवसायी सैकड़ों लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। इनके खिलाफ कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने से इनका यह गोरखधन्धा बड़ी तेजी से फल–फूल रहा है।

कई व्यवसायी पानी के इस कारोबार में कुछ ही महीनों में अरबपति बन चुके हैं। कई इलाकों में रिपैकिंग का काम भी बिना किसी सरकारी औपचरिकताओं को पूरा किये बिना हो रहा है। ये लोग खाली बोतलों में अमानक और दूषित पानी की रिपैकिंग कर उसे फिर से बाज़ार में उतार देते हैं। इसके लिये महज उनके पास बोतल को सील करने वाली मशीन भर ही होती है।

पानी को साफ़-सुथरा बनाने के लिये कोई ख़ास जतन नहीं किया जाता और न ही ऐसे पानी की कोई प्रामाणिक जाँच ही की जाती है। इन्दौर इलाके में ही करीब 50 से ज्यादा ऐसी इकाइयाँ हैं जिनमें अवैधानिक तरीके से पानी को रिपैकिंग किया जाता है।

इतना ही नहीं कई व्यापारी तो अपने नलकूप का सामान्य पानी या कभी–कभी आरओ का पानी ही बिना किसी नाम या ब्रांड के बोतलों और पाउचों में पैककर बाज़ार में ऊँचे दामों पर बेच देते हैं। यात्रा करने वाले लोगों को मजबूरियों में इन्हें खरीदना पड़ता है।

जल्दबाजी की वजह से वे दुकानदारों से ना तो पर्याप्त पूछताछ कर पाते हैं और न ही उसकी ब्रांडिंग या बहुत हल्के और बारीक़ अक्षरों में छपी पैकिंग आदि की तारीखें। जहाँ भी गाड़ी खड़ी हो जाती है, वहीं से पानी खरीदना उनकी मजबूरी में शामिल होता है।

बीते दिनों मुम्बई के भाभा रिसर्च सेंटर में यह खुलासा हुआ है कि सामान्य पानी से बोतलबन्द पानी कहीं ज्यादा नुकसान देता है और कई मामलों में यह कैंसर जैसी घातक बीमारियों का भी कारण बन सकता है।

पानी को पूरी तरह साफ़ करने के प्रक्रम में कई बार ऐसे रसायनों से भी गुजारा जाता है जो स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक होते हैं। 35 नामी कम्पनियों के पानी के सैम्पल पर हुई जाँच में यह बात सामने आई है कि इसमें 27 गुना तक ज्यादा घातक रसायन मिले होते हैं।

यह बात महज हवा में ही नहीं है, मध्य प्रदेश विधानसभा में इस बार बाक़ायदा यह मुद्दा शून्यकाल के दौरान सत्तारुढ़ भाजपा के मंदसौर से विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने उठाया। उन्होंने विधानसभा में कहा कि बोतलबन्द और पाउच के नाम पर धड़ल्ले से दूषित पानी बेचा जा रहा है।

उन्होंने बताया कि इन्दौर–उज्जैन सम्भाग में अमानक स्तर के बोतलबन्द पानी के साथ–साथ छोटे–छोटे पाउचों में भी दूषित पानी सरेआम बेचा जा रहा है। कई बार एक से दो साल पुराना पैकिंग पानी भी बेच दिया जाता है। अब तो हालत यह हो गई है कि छोटे–छोटे कस्बों– गाँवों से लगाकर शहरों तक में चौराहे–चौराहे इनका कारोबार सजा हुआ है। उन्होंने इन पर सख्त कार्रवाई की भी माँग की है।

श्री सिसौदिया ने विधानसभा में अपनी बात रखते हुए बताया कि कई बार तो बोतल और पाउचों पर नाम या ब्रांड भी अंकित नहीं होती है। न ही इन पर पैकिंग तिथि और न ही कीमत लिखी होती है। उन्होंने इसे रोकने की माँग करते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में इस तरह की अनियमितताएँ चल रही हैं, जिन्हें जल्दी ही सुधारा नहीं गया तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

यही नहीं कई दुकानदार तो ठंडे पानी के नाम पर अलग से पैसा भी वसूल करते हैं। इसके लिये अलग से पाँच से दस रुपए तक वसूले जाते हैं।

उन्होंने इसके लिये जिम्मेदार अधिकारियों को भी कटघरे में खड़े करते हुए आरोप लगाया कि प्रदेश में अधिकारी अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं कर रहे हैं। यदि अधिकारी अपने–अपने इलाकों में इस पर नियंत्रण करें तो स्थिति जल्दी ही सुधारी जा सकती है पर विडम्बना यह है कि इस धंधे को फलने–फूलने में क्षेत्रीय अधिकारियों की लापरवाही ही नजर आती है। ज्यादा कीमत देने के बाद भी लोगों के स्वास्थ्य और उनकी जान से खिलवाड़ किया जा रहा है।

पानी के दूषित होने से इससे जल जनित बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। पानी के दूषित होने पर स्वस्थ व्यक्ति कई गम्भीर बीमारियों का शिकार हो सकता है। चिकित्सक बताते हैं कि पानी का संक्रमण सबसे बुरा और घातक होता है। यह सीधे तौर पर शरीर के अन्दरुनी हिस्सों को संक्रमित कर देता है।

देवास में एक ऐसे ही कारोबारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस कारोबार में ख़ासा मुनाफ़ा होता है। एक बोतल पानी करीब 13 से 20 रुपए तक बिकती है जबकि पाउच दो से पाँच रुपए तक। अभी इस धंधे में कोई पकड़ा भी नहीं गया है।

वैसे तो आजकल पूरे साल ही इसकी माँग बनी रहती है पर गर्मियों के मौसम में इसकी माँग बढ़ जाती है। आजकल शादी ब्याह और अन्य प्रसंगों पर भी बोतलबन्द और पाउच के पानी का प्रचलन बढ़ गया है।

अधिकांश रेलवे स्टेशनों पर रेल नीर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इस वजह से लोग अन्य ब्रांड का बोतलबन्द पानी खरीदने को मजबूर हैं।

रेल बोर्ड ने एक आदेश दिया है जिसके मुताबिक़ आईआरसीटीसी रेल नीर की प्रति बोतल साढ़े दस रुपए में निजी वितरकों को देते हैं और वे इसे 15 रुपए में यात्रियों को बेचते हैं। पर निजी वितरकों को प्रति बोतल 5 रुपए का मुनाफ़ा भी कम लगता है, इसीलिये वे बाहर की कम्पनियों का अमानक बोतलबन्द पानी सस्ते दाम यानी करीब 6 से 7 रुपए प्रति बोतल में खरीदकर अपना मुनाफ़ा तो बढ़ा लेते हैं पर लाखों यात्रियों की जान से खिलवाड़ भी। बाहरी पानी की शुद्धता का कोई मानक नहीं जबकि रेल नीर अपेक्षाकृत साफ़ माना जाता है।

बुजुर्ग बताते हैं कि बीते 15 – 20 सालों में ही बोतलबन्द पानी का प्रचलन हमारे यहाँ बढ़ा है। इससे पहले पानी कभी बेचा नहीं गया। हमारी संस्कृति में तो पानी पिलाना सबसे पुण्य का काम समझा जाता था। यहाँ तक कि अपरिचित लोगों को भी सबसे पहले पानी पिलाने का रिवाज हमारे यहाँ हुआ करता था।

हमारे यहाँ गर्मी के मौसम में हर कस्बे, शहर के चौराहों तथा बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों पर भी प्याऊ लगाकर लोगों को साफ़ और ठंडा पानी पिलाया जाना हमारी जिम्मेवारी समझी जाती रही। पर अब बदले समय ने पानी को ही बाज़ार बना डाला है। यह बेहद चिन्ताजनक तथ्य है और समय रहते यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पानी हमारे हाथों से निकल कर हमेशा के लिये इन मुनाफाखोरों के हाथ में चला जाएगा।

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Post By: RuralWater
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