बातें बांधों की और निर्माण तटबन्धों का

नेपाल में इन नदियों पर तटबन्धों के विस्तार और निर्माण के बाद यह जरूरी हो गया कि इन नदियों के भारतीय भाग में वर्तमान तटबन्धों को उसी अनुपात में ऊँचा और मजबूत किया जाय। इसलिए लगभग इसी समय लालबकेया और बागमती नदियों के भारतीय भाग में भी तटबन्धों को ऊँचा और मजबूत करने के कुछ कामों पर भारत सरकार ने अपनी स्वीकृति दी थी और तब यह उम्मीद की गयी थी कि लालबकेया तटबन्धों के उच्चीकरण और मजबूतीकरण का काम सन् 2000 तक पूरा कर लिया जायेगा।

इस समझौते के बहुत पहले 1991 में ही भारत और नेपाल के तकनीकी विशेषज्ञों की एक संयुक्त समिति (Joint committee of Experts) का गठन हुआ था जिससे आशा की गयी थी कि वह बराहक्षेत्र में सप्तकोसी बांध और सुन-कोसी डाइवर्शन की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाये जाने के विचार बिन्दुओं को स्थिर करेगी। इसी के आधार पर भविष्य में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाये जाने का कार्यक्रम था। समिति की पहली मीटिंग फरवरी 1992 में हुई थी और सरसरी तौर पर यह अनुमान किया गया था कि यह अध्ययन जल-विद्युत उत्पादन, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण तथा प्रबन्धन और नौ-परिवहन जैसे विषयों पर केन्द्रित होगा। मोटे तौर पर प्रस्तावित सप्तकोसी बांध 269 मीटर ऊँचा होगा और इससे 3000 मेगावाट तक का विद्युत उत्पादन संभव हो सकेगा। इस बांध के आठ किलोमीटर नीचे चतरा में बांध से छोड़े गए पानी के पुर्ननियत्रंण के लिए एक बराज के निर्माण का प्रस्ताव है। इस बराज के दोनों किनारों पर से नहरें निकाल कर भारत और नेपाल में सिंचाई की जा सकेगी तथा बराज स्थल से कोसी के गंगा से संगम तक नौ-परिवहन की व्यवस्था करना भी इस योजना का उद्देश्य होगा।

चतरा बराज के पूरब से एक पॉवर कैनाल निकाल कर कुछ पानी भीमनगर-हनुमान नगर बराज में लाया जायेगा जिससे निचले क्षेत्रों की सिंचाई और कुरसेला तक की नौ-परिवहन की जरूरतें पूरी होंगी। इस बांध में बाढ़ नियंत्रण के लिए समुचित क्षमता रखे जाने का भी प्रावधान किया जायेगा, ऐसा प्रस्ताव किया गया है। उस समय (1991-92) बागमती नदी पर नुनथर बांध और कमला नदी पर शीसापानी बांध के निर्माण या उसकी परियोजना रिपोर्ट तैयार किये जाने के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया था। 1991 में ही भारत और नेपाल ने आपस में मिलकर ज्वाइन्ट कमेटी फॉर एम्बैन्कमेन्ट कन्सट्रक्शन गठित की जिसका काम बागमती, कमला, लालबकेया और खांड़ो नदियों पर प्रस्तावित तटबन्धों के निर्माण और विस्तार की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाना था। गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग ने इस प्रस्ताव का अध्ययन किया और नेपाल द्वारा इनके निर्माण के ठेके दिये जाने की प्रक्रिया तक अपनी राय दी।

इन परियोजनाओं के अध्ययन, सर्वेक्षण, डिजाइन, परियोजना रिपोर्ट के काम से लेकर इनका टेण्डर निकालने तक में लगभग आठ वर्ष का समय बीत गया जबकि यह काम केवल तटबन्धों से संबंधित था। ज्वाइन्ट कमेटी फॉर एबैन्कमेन्ट कन्सट्रक्शन ने 8 से 10 फरवरी 1999 के बीच काठमाण्डू में संपन्न हुई चौथी मीटिंग में इन ठेकों पर अपनी सहमति की मुहर लगायी और उसके बाद नेपाल में इन तटबन्धों के निर्माण कार्य में हाथ लगा। नेपाल में इन नदियों पर तटबन्धों के विस्तार और निर्माण के बाद यह जरूरी हो गया कि इन नदियों के भारतीय भाग में वर्तमान तटबन्धों को उसी अनुपात में ऊँचा और मजबूत किया जाय। इसलिए लगभग इसी समय लालबकेया और बागमती नदियों के भारतीय भाग में भी तटबन्धों को ऊँचा और मजबूत करने के कुछ कामों पर भारत सरकार ने अपनी स्वीकृति दी थी और तब यह उम्मीद की गयी थी कि लालबकेया तटबन्धों के उच्चीकरण और मजबूतीकरण का काम सन् 2000 तक पूरा कर लिया जायेगा। नेपाल में इन तटबन्धों के निर्माण के लिए वित्तीय साधन भारत के विदेश मंत्रालय से उपलब्ध करवाया गया था जबकि भारतीय भाग के तटबन्धों के निर्माण/उच्चीकरण और मजबूतीकरण के लिए केन्द्रीय सहायता उपलब्ध थी।

भारत सरकार नेपाल को बागमती, कमला और लालबकेया तटबन्धों के मजबूतीकरण और विस्तार के लिए आर्थिक मदद करती रही है और अब तक (जून 2010) इस मद में उसने नेपाल को 147.799 करोड़ रुपयों (नेपाली) की सहायता की है। इसमें से 53.15 करोड़ रुपये (नेपाली) 2009 में तथा 59.978 करोड़ रुपये (नेपाली) अभी तक (जून 2010) दिये गए हैं। इसके अलावा भारत ने गगन, तिलयुगा, लखनदेई, सुनसरी और कन्कई नदियों की ट्रेनिंग वर्क्स के लिए भी 19.521 करोड़ रुपयों (नेपाली) की सहायता की है। वर्ष 2000 में जुलाई 31 से 6 अगस्त तक नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री का भारत का दौरा हुआ था। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की सहमति से जल-संसाधन विषयक भारत-नेपाल संयुक्त समिति का गठन हुआ जिसकी पहली मीटिंग 1-3 अक्टूबर 2000 के बीच काठमाण्डू में हुई थी। इस संयुक्त समिति से अपेक्षा की गयी थी कि,

(1) यह समिति दोनों देशों के बीच जल-संसाधन से संबंधित सभी सहयोग के आयामों पर वार्ता करेगी और निर्णय लेगी तथा उसके कार्य क्षेत्र में सभी वर्तमान समझौते और रजामन्दियाँ आयेंगी,
(2) यह समिति अपनी-अपनी सरकारों को रिपोर्ट करेगी तथा जहाँ भी वांछित हो, अपनी सरकारों से लिये गए निर्णयों का अनुमोदन करवायेगी,
(3) यह समिति जल-संसाधन संबंधी सभी तकनीकी और विशेषज्ञ समितियों और समूहों के क्रिया कलाप का अनुश्रवण करेगी,
(4) यह समिति, जहाँ भी आवश्यक होगा, तकनीकी विशेषज्ञों या उनके ग्रुपों की नियुक्ति करेगी जिनकी जल-संसाधन के विकास में आवश्यकता होगी,
(5) यह समिति उन सभी निर्णयों, रज़ामन्दियों और कामों को आगे बढ़ायेगी जिनके बारे में दोनों देशों के जल-संसाधन सचिवों या जल-संसाधन के उप-आयोगों में सहमति बनी हो।

अप्रैल 2004 में भारत तथा नेपाल सरकार के बीच बराहक्षेत्र बांध तथा सुन-कोसी डाइवर्शन की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक समझौता हुआ जिसके लिए दोनों देशों की एक साझा टीम काम करने वाली थी। इस काम के लिए भारत सरकार ने 29.34 करोड़ रुपये की स्वीकृति प्रदान की और बिराटनगर (नेपाल) में 17 अगस्त 2004 में एक संयुक्त दफ्तर खोला गया। इसके दो डिवीजन क्रमशः धरान और जनकपुर में भी खोले गए। धरान के अंतर्गत दो सब-डिवीजन चतरा में और जनकपुर के अंतर्गत दो सब-डिवीजन लहान और कटारी में खोले गए। उस समय यह अनुमान किया गया था कि आने वाले 30 महीनों के अन्दर, यानी दिसम्बर 2006 तक, इस काम को पूरा कर लिया जायेगा। यह रिपोर्ट ही भविष्य में कोसी नदी पर किसी भी संरचनात्मक योजना का आधार बनने वाली थी और इसके तैयार हो जाने के बाद भारत और नेपाल के बीच में निर्माण कार्यों तथा अन्य किसी पुख्ता समझौते के लिए रास्ता खुलता। अगर इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन होगा तो दोनों सरकारों द्वारा यह आशा की गयी है कि लगभग 3300 मेगावाट बिजली पैदा होने के साथ-साथ उत्तर बिहार की बाढ़ की विभीषिका में काफी कमी आयेगी। नेपाल को कोसी-गंगा के संगम कुरसेला से लेकर चतरा तक नौ-परिवहन का लाभ भी इस योजना से मिलेगा।

7-8 अक्टूबर 2004 को भारत-नेपाल की जल-संसाधन विषयक संयुक्त समिति की दूसरी बैठक हुई और उसमें इस बात की सिफारिश की गयी कि बिराटनगर में बराहक्षेत्र बांध और सुन-कोसी डाइवर्शन के अध्ययन के लिए जो संयुक्त परियोजना कार्यालय खोला गया है वह बागमती तथा कमला बहुद्देशीय परियोजनाओं के निर्माण में आने वाली संभावित बाधाओं का भी अध्ययन करे और कमला बहुद्देशीय परियोजना की भी संभावना रिपोर्ट तैयार करे। इस कार्यालय से यह भी अपेक्षा की गयी थी कि वह बागमती बहुद्देशीय परियोजना की संभावना-पूर्व रिपोर्ट तैयार करेगा। मार्च 2006 में दोनों देशों के विशेषज्ञों की एक संयुक्त समिति ने इस पूरे प्रयास की समीक्षा की और काम में तेजी लाने पर बल दिया। दुर्भाग्यवश, नेपाल में इस समय राजनैतिक अस्थिरता का दौर चल रहा था और शायद यह एक वजह रही होगी कि 2004 के बाद जल-संसाधन विषयक संयुक्त समिति की बैठकें होना बन्द हो गयीं और वार्ताएं औपचारिकता बन कर रह गयीं।

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Post By: tridmin
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