बिजली परियोजनाओं के फ्लाई एश की कांक्रीट से सड़क बनाने की कारगर तकनीक की खोज कर ली गई है. यह सड़क बारिश का पानी सोखेगी. कार्बन को कम करेगी और भूगर्भ का जलस्तर भी बढ़ाएगी.
नीरी के प्रधान वैज्ञानिक तथा इस परियोजना के संयोजक डॉ. अवनीश अंशुल ने यह जानकारी दी. उन्होंने 'फ्लाय एस बेस्ड हाई स्ट्रेंथ परवियस कांक्रीट' के बारे में बताते हुए कहा कि नीरी में अलग-अलग वस्तुओं का उपयोग कर स्मार्ट जीयो पॉलिमर तकनीकी के जरिये इससे बेहतरीन क्षमता का पोरस कांक्रीट बनाया गया है. नीरी में इस फ्लाई एस की पोरस कांक्रीट का उपयोग कर एक बड़ा निर्माण किया गया है. यह कामयाब हो गया है. वह सीमेंट से ज्यादा गुणवत्तापूर्ण है.
फ्लाईएश के पोरस कांक्रीट से बनी सड़क पर पानी डालने की जरूरत नहीं पड़ती है और 7 दिनों में सड़क बनकर तैयार हो जाती है. उन्होंने बताया कि इस पोरस कॉक्रीट की सड़क की उम्र सीमेंट सड़क के बराबर रहेंगी. इसकी क्षमता संबंधित प्रदेश की जमीन के स्तर और वातावरण पर निर्भर रहेगा. बारिश का पानी सोखकर जमीन में रिसाव के जरिये पहुंचने से जलस्तर बढ़ जाता है. इसके जरिये रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का उद्देश्य भी सफल होता है. फ्लाई एश कॉक्रीट की सड़कों से कार्बन का प्रदूषण कम करने में भी कारगर साबित होने का दावा डॉ. अंशुल ने किया है.
फलाय एश की सड़क को प्रत्यक्ष में साकार करने के लिए एनटीपीसी, अन्य शासकीय एजेंसी और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा जारी है. उन्होंने बताया कि केंद्रीय महामार्ग परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मिलकर यह परियोजना उनके समक्ष प्रस्तुत की जाएगी. डॉ. अंशुल का कहना है कि फ्लाई कांक्रीट सीमेंट की तरह मजबूत है, लेकिन उसकी तरह ठोस नहीं है. इसलिए दुर्घटना होने पर जनहानि का खतरा नहीं होगा.
इसी प्रकार पानी सोख लेने की क्षमता होने से बारिश में वाहनों के फिसल कर गिरने का खतरा भी कम हो जाएगा. इससे दुर्घटनाओं की संख्या कम होगी, वाहनों के टायर का घर्षण कम होने से उसकी आय बढ़ेगी. उन्होंने साफ किया कि इन सभी संभावनाओं को परखने के लिए एक चरण का परीक्षण किया जाना है. इसी कड़ी में अनुसंधान की प्रक्रिया अभी भी जारी होने की जानकारी डॉ. अंशुल ने दी.
डॉ. अंशुल ने कहा कि देशभर की बिजली परियोजनाओं के पास लाखों ट फ्लाई ऐश जमा है. इसलिए सड़को के निर्माण के लिए इसको कमी होना समय नहीं है. कम से कम परियोजना परिसर के आसपास के क्षेत्रों में पोरस काक्रोट की सड़कों का निर्माण किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पलाई पेल काकोट सोनेट के सबसे बड़े पांच के तौर पर सामने आया उनके अनुसार समेट और डामर की सड़कों को तुलना में फ्लाई ऐश को सड़को को लागत बहुत कम है.
फ्लाई ऐश के प्रदूषण से राहत
बिजली परियोजनाओं से निकलने वाली राख उनके आसपास के नागरिक और खेती के लिए जानलेवा समस्या बनी है. यह राख फसलों के लिए भी घातक है. इसके अलावा हवा में उड़ने वाली धूल के कणों के घातक घटक लंग केसर, अस्थमा और एलजी आदि बीमारियों का कारण बनते है. इस राख को नियंत्रित करना एक समस्या है. उसको डिस्पोज करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं.
/articles/baaraisa-kaa-paanai-saokha-laegai-phalaai-esa-kaankaraita-kai-sadaka