इस गाँव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के रेवेन्यू विभाग के हाथ में चला गया। यह खस्ता हालत में था। तय हुआ कि इस जमींदारी बांध को (जो कि चित्र में BA और H होता हुआ MN तक जाता था उसे) बढ़ा कर D C G होते हुए B में वापस मिला दिया जाय। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पूवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षित हो जाता था। यह एक अलग बात है भविष्य में सुरक्षा मिलने के बावजूद जिन लोगों की जमीन से यह बांध गुजरना था वे खुश नहीं रहते हुए भी खामोश थे क्योंकि ब्रह्मचारी जी की सामर्थ्य और इच्छा के सामने उनकी इच्छाएं बौनी पड़ती थीं। इस रिंग बांध का निर्माण इस खुशी और कशमकश के बीच लगभग पूरा हो चला था कि गाँव के कुछ लोगों ने ब्रह्मचारी जी के यहाँ गुहार लगायी कि अगर बांध का काम यथावत् पूरा कर लिया गया तो पूवारी टोल के दक्षिण में न सिर्फ भुड़का नाले के किनारे बन रहा संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के बाहर पड़ जाने के कारण असुरक्षित हो जायेगा वरन पूवारी टोल के पश्चिम और उत्तर में स्थित जमीन भी असुरक्षित रह जायेगी।
अतः रिंग बांध का निर्माण इस तरह से किया जाए कि संस्कृत कॉलेज भी रिंग के अन्दर हो जाए और बकिया जमीन की भी रक्षा हो जाए। ब्रह्मचारी जी इस बात को मान गए और तब रिंग बांध की तीसरी डिजाइन बनी जिसे चित्र में A H M N D F E A से दिखाया गया है। इस बांध की लम्बाई प्रायः 7 किलोमीटर थी। यह बांध पहले वाले बांध से काफी हट कर बनाया जाने वाला था। इसकी वजह से नये रिंग बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला कम हो रहा था और उस गैप से होकर पानी की निकासी में बाधा पड़ने वाली थी तथा पश्चिम में रजवा नाला और नये बांध के बीच की दूरी कम पड़ने के कारण पछुआरी टोल की दुर्गति का अंदेशा वहाँ के बाशिन्दों को होने लगा था।
अब जो नया और तीसरा अलाइनमेन्ट बना उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जायेंगे। इन लोगों ने इस नये अलाइनमेन्ट का विरोध करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह विरोध उग्र होना शुरू हुआ। हालत यह थी कि एक ओर से रिंग बांध के निर्माण के लिए डिवीज़न के इंजीनियरों की तरफ से बाँस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे। जिस जगह से बांध गांव को छूने लगता है वहाँ से अगर पूरब और पश्चिम के दोनों टोलों को घेर दिया जाता तो झगड़ा ही खत्म था। मगर इस बांध को लेकर रिंग बांध के अन्दर और उसके बाहर पड़ने वालों के खेमें अलग हो गए और दोनों पक्ष कई बार शक्ति प्रदर्शन के लिए आमने-सामने आये मगर कभी आपस में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई यद्यपि किसी भी परिस्थिति से निबटने की तैयारी दोनों तरफ से थी।
अतः रिंग बांध का निर्माण इस तरह से किया जाए कि संस्कृत कॉलेज भी रिंग के अन्दर हो जाए और बकिया जमीन की भी रक्षा हो जाए। ब्रह्मचारी जी इस बात को मान गए और तब रिंग बांध की तीसरी डिजाइन बनी जिसे चित्र में A H M N D F E A से दिखाया गया है। इस बांध की लम्बाई प्रायः 7 किलोमीटर थी। यह बांध पहले वाले बांध से काफी हट कर बनाया जाने वाला था। इसकी वजह से नये रिंग बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला कम हो रहा था और उस गैप से होकर पानी की निकासी में बाधा पड़ने वाली थी तथा पश्चिम में रजवा नाला और नये बांध के बीच की दूरी कम पड़ने के कारण पछुआरी टोल की दुर्गति का अंदेशा वहाँ के बाशिन्दों को होने लगा था।
अब जो नया और तीसरा अलाइनमेन्ट बना उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जायेंगे। इन लोगों ने इस नये अलाइनमेन्ट का विरोध करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह विरोध उग्र होना शुरू हुआ। हालत यह थी कि एक ओर से रिंग बांध के निर्माण के लिए डिवीज़न के इंजीनियरों की तरफ से बाँस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे। जिस जगह से बांध गांव को छूने लगता है वहाँ से अगर पूरब और पश्चिम के दोनों टोलों को घेर दिया जाता तो झगड़ा ही खत्म था। मगर इस बांध को लेकर रिंग बांध के अन्दर और उसके बाहर पड़ने वालों के खेमें अलग हो गए और दोनों पक्ष कई बार शक्ति प्रदर्शन के लिए आमने-सामने आये मगर कभी आपस में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई यद्यपि किसी भी परिस्थिति से निबटने की तैयारी दोनों तरफ से थी।
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