बाल अधिकारों की उपेक्षा

मध्यप्रदेश में बाल अधिकारों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है, जबकि बाल अधिकारों की उपेक्षा से पैदा होने वाली समस्याओं के कारण न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मध्य प्रदेश की बदनामी हो रही है। मध्य प्रदेश उन राज्यों में से एक है, जहां सबसे ज्यादा बच्चों के खिलाफ हिंसा होती है, सबसे ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं, सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती हैं। कुपोषण, डायरिया एवं पानी के कारण होने वाली बीमारियों के चलते हो रहे बाल अधिकारों के हनन को देखें, तो पता चलता है कि इस ओर समग्रता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बच्चों के अधिकारों पर कार्यरत चाइल्ड राइट्स ऑब्जर्वेट्री जैसी संस्थाओं का भी मानना है कि बाल स्वच्छता बच्चों का अधिकार है एवं इसे सुनिश्चित कर बच्चों के जीने के अधिकार एवं विकास के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सकता है।

देश में इन दिनों निर्मल भारत यात्रा चल रही है। इसमें शालाओं में भी आयोजन किया जा रहा है, जिसमें बाल स्वच्छता अधिकार के तहत जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसी तरह से इन दिनों विश्व हाथ धुलाई दिवस के उपलक्ष्य में साबुन से हाथ धोने को बढ़ावा देने के लिए गुना, शिवपुरी एवं टीकमगढ़ की शालाओं में 21 दिनों का अभियान चलाया जा रहा है, जो मध्य प्रदेश शासन, यूनिसेफ एवं हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। इस तरह के अभियानों से पता चलता है कि बच्चे इनके केंद्र में हैं एवं बच्चों के माध्यम से वे व्यापक समाज का व्यवहार परिवर्तन करना चाहते हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का अभाव एवं गरीबी दो ऐसे कारक हैं, जिनके कारण बाल स्वच्छता को सुनिश्चित करना मुश्किल है।

बाल स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल एवं पानी की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही गांव या कलस्टर स्तर पर युवाओं एवं किशोरियों के समूह बनाकर स्वच्छता से जुड़ी वस्तुओं जैसे - हाथ धोने के लिए साबुन, सैनेटरी नैपकिन आदि का उत्पादन कम लागत में करना चाहिए, इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन भी होगा एवं कम लागत के कारण लोगों पर आर्थिक भार भी नहीं पड़ेगा।

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