सन् 2005 में बेनीपट्टी के बी.डी.ओ. ने ग्रामीण रोज़गार गारन्टी स्कीम के अन्तर्गत इस जमींदारी बांध BA की मरम्मत करनी चाही और उसमें 2004 में पड़ी एक दरार को भी पाट देने का उपक्रम किया। कुछ गाँव वालों को लगा कि सरकार 1983 वाली तकनीकी समिति की HAE वाले मार्ग से बांध बनाने वाली सिफारिश का उल्लंघन कर रही है और वह इस काम को रुकवाने के उद्देश्य से उच्च न्यायालय की शरण में चले गए। उस समय 130 चेन से लेकर 165 चेन तक का काम अधूरा छूट गया था और अस्थाई तौर पर AB वाला जमींदारी बांध ही रिंग का हिस्सा बना हुआ था और चानपुरा को सुरक्षा प्रदान करता था। वादियों का मानना था कि अगर AB वाला जमींदारी बांध बन कर तैयार हो गया तो फिर EAH वाले रास्ते का बांध कभी बनेगा ही नहीं और सरकार इस AB वाले रेखांकन को ही अंतिम रूप दे देगी और संस्कृत कॉलेज भी रिंग बांध के बाहर ही छूट जायेगा। उनकी यह भी मांग थी कि इस जमींदारी बांध (AB) की मरम्मत के लिए उनकी जमीन से मिट्टी न ली जाए।
चानपुरा रिंग बांध के इस AB हिस्से की मरम्मत काम के बदले अनाज स्कीम के तहत बेनीपट्टी प्रखंड कार्यालय द्वारा 6 लाख रुपये की लागत पर चलायी जाने वाली थी। इस काम का, जो कि 1983 की तकनीकी समिति की सिफारिशों के विपरीत था, कम से कम दो परिवारों पर बुरा असर पड़ने वाला था। कई लोगों की उपजाऊ भूमि नष्ट होने वाली थी और किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला था। वादियों का यह भी कहना था कि अगर रिंग बांध की AE वाली दूरी पर काम लग जाता है, जिसकी निकट भविष्य में आशा थी, तो प्रखंड कार्यालय द्वारा शुरू किये गए इस काम का कोई औचित्य ही नहीं बचता है।
यह मामला अभी भी तकनीकी ही था और उच्च न्यायालय ने इसकी तहकीकात करके अपनी सिफारशें देने के लिए एक विशेष वर्किंग ग्रुप का गठन करवाया (जल संसाधन विभाग-बिहार, प्रस्ताव संख्या 1383 दिनांक 12.5.05, उच्च न्यायालय केस संख्या 5427/2005)। इस समिति के भी तीन सदस्य थे - श्री बृज नन्दन प्रसाद, भूतपूर्व अभियंता प्रमुख (अध्यक्ष), जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार, समस्तीपुर के मुख्य अभियंता-श्री गौरांग लाल बसाक और बाढ़ नियंत्रण अंचल दरभंगा के अधीक्षण अभियंता श्री एच. एन. झा।
इस समिति की रिपोर्ट (दिनांक 25.6.2006) में कहा गया है कि (क) जमींदारी बांध जिला प्रशासन के अधीन आता है और यह उसका अधिकार बनता है कि वह लोकहित को ध्यान में रखते हुए इस पर कोई भी काम कर सकता है। निरीक्षण के समय समिति ने पाया कि इस बांध पर मिट्टी डाली गयी है लेकिन इसमें पड़ी दरार को अभी तक पाटा नहीं गया है। इस काम को आने वाली अगली बाढ़ के पहले पूरा कर लेना चाहिये वरना सुरक्षित किये गए क्षेत्र में पानी भर जायेगा। (ख) दरार को तुरन्त पाट देना चाहिये और इस पूरे जमींदारी बांध की मरम्मत बाकी के बाढ़ सुरक्षा बांध के समकक्ष कर देनी चाहिये। यह जमींदारी बांध दूसरी रक्षा पंक्ति के तौर पर काम करेगा। (ग) 130 चेन से 165 चेन के बीच के काम को छोड़ कर चानपुरा रिंग बांध का काम पूरा हो गया है। इस दूरी में बांध का काम पूरा न होने के कारण यह जमींदारी बांध ही सुरक्षा कवच का काम करता है। बांध के इस हिस्से की लम्बाई प्रायः 700 फीट है और यह गाँव की सड़क से जुड़ा हुआ है लेकिन गाँव की सड़क इस बांध के लेवेल से काफी नीची है। समिति ने भविष्य के लिए निम्न काम सुझाये-
(i) A से E को जोड़ते हुए जब यह बांध संस्कृत कॉलेज के पास पहुँचता है तो उसे पश्चिम की ओर इस तरह से घुमाया जाए कि संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के अंदर सुरक्षित क्षेत्र में आ जाए।
(ii) इस नये बांध को अब जमींदारी बांध से स्लुइस गेट के पहले जोड़ दिया जाय। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो एक नया स्लुइस गेट बनाना पड़ जायेगा।
(iii) संस्कृत कॉलेज के पास में भुड़का नाले के बायें किनारे पर कुछ अतिक्रमण होगा। यहाँ नाले का विस्तार अपने प्रति प्रवाह और अनुप्रवाह दोनों से ज्यादा है अतः इस अतिक्रमण का नाले के प्रवाह पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(iv) संस्कृत कॉलेज से लेकर जमींदारी बांध को जोड़ने वाली दूरी में बांध की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए।
(v) जमींदारी बांध में पड़ी मौजूदा दरार को पाट दिया जाए और पूरे जमींदारी बांध के सेक्शन को इस तरह सुधारा जाए कि वह द्वितीय रक्षा पंक्ति का काम कर सके।
(vi) बांध के भुड़का नाले की तरफ पड़ने वाले ढलान की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए।
यह रिपोर्ट 2006 में आयी। निषेधाज्ञा लग जाने से 2009 तक जमींदारी तटबंध पर कोई काम नहीं हुआ। इस बीच 2006 में ही बिहार सरकार ने सारे जमींदारी/महाराजी तटबन्धों को कानून बनाकर जल-संसाधन विभाग के हवाले कर दिया। जल-संसाधन विभाग ने टेण्डर निकाल कर 2010 के पूर्वार्द्ध में AB के बीच जमींदारी बांध की मरम्मत करवा दी और 2004 में पड़ी दरार को भी पाट दिया। पूरे रिंग बांध का उच्चीकरण तथा सुदृढ़ीकरण भी कर दिया गया है। गाँव की सड़क BE पर भी मिट्टी डाली जा रही थी (जून 2010) मगर AEH के जिस बांध के निर्माण की सिफारिश दोनों विशेषज्ञ समितियों (1983 तथा 2006) ने की थी उस पर अभी तक हाथ नहीं लगा है। ABE वाला जमींदारी बांध/सड़क के निर्माण हो जाने की वजह से यह आशंका जरूर होती है कि अब सरकार शायद EAH वाले रूपांकित बांध का निर्माण ही न करवाये। उधर BE वाली जो सड़क है वह, बताते हैं कि, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की है जिस पर जल-संसाधन विभाग मिट्टी डाल कर उसे बाकी बांध की ऊँचाई के बराबर ले आना चाहता था। इसके लिए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की अनुमति नहीं मिली मगर मिट्टी फिर भी डाली गयी जिसके लिए गतिरोध बना हुआ है। A-B वाला बांध भी जमीन्दारी बांध था जो कि कम ऊँचा और कम चौड़ा था मगर जब इसकी मरम्मत हुई तो वह ऊँचा और आधार पर चौड़ा हो गया जिसमें रैयत की कुछ जमीन भी चली गयी जिसका विक्षोभ उन लोगों में है। अब अगर EAH वाला बांध बनता भी है तो EBA वाली जमीन हर तरफ से बांध से घिर जायेगी। इसके पानी की निकासी का क्या होगा, इस पर अभी तक कोई दृष्टि नहीं बन पायी है। इन सारी समस्याओं का हल अभी खोजा जाना बाकी है। फिलहाल जो निर्मित बांध की रूप रेखा है उसे चित्र में दिखाया गया है। यह पूरा मसला अभी उच्च न्यायालय के विचाराधीन है और जो भी निर्णय होगा वह अब न्यायालय ही करेगा।
पूरे मसले को लेकर गाँव में विचारधाराएं आज भी बटी हैं। जहाँ एक ओर पूवारी टोल के नरेन्द्र चौधरी का कहना है, ‘‘...स्वामी जी जैसा महान् आदमी इस चानपुरा में न तो हुआ और न होगा। उनका कार्यक्रम था गाँव को चारों तरफ से घेरने का, चारों तरफ सड़क बनाने का और हेलिपैड बनवाने का। 100 बेड का अस्पताल बनवाना चाहते थे। यह सब यहाँ के लोगों ने होने ही नहीं दिया कि यह मेरी जमीन है, यह उनकी ज़मीन है। अब सड़क अगर बन रही है तो सबका दरवाजा खोद कर ही सरकार बना रही है न? उतने महान आदमी को प्रपंच में घसीटा गया, उनकी बात किसी ने सुनी ही नहीं। स्वामी जी ने अपना आदमी भेजा था दिल्ली से कि वह यहाँ 100 बेड का अस्पताल बनाना चाहते हैं यह बात गाँव वालों को समझायें। यहाँ के कुछ लोगों ने उनकी जमीन पर कब्जा करवा दिया। स्वामी जी के अपर्णा आश्रम की जमीन पर लोगों की नजरें गड़ी हैं। उनकी जमीन के परचे कटवा कर बटवा दिये गए। स्वामी जी क्या सोचते थे और यहाँ के लोग क्या सोचते हैं? पछुआरी टोल के कुछ लोगों ने मिल कर टंटा खड़ा किया एक आदमी के कहने पर। स्वामी जी को पाली से मकिया वाले महाराजी तटबंध के बारे में किसी ने बताया ही नहीं कि सारी परेशानी उस बांध की वजह से है। यह बांध पाली से लेकर मकिया तक बना है, थोड़ा उसके आगे भी गया है। यह बांध खिरोई और सोइली के पानी को सीधा रोक रहा है। यही अगर स्वामी जी को कहा गया होता कि इस महाराजी बांध को हटा दीजिये तो सारी समस्या का समाधान हो जाता। यह बांध अगर टूटता है तो दरभंगा में एक मंजिल के मकान 24 घंटे में पानी में चले जाते हैं। हमारे पूर्वज बताते हैं कि पहले इतना पानी नहीं आता था। यह बांध हट गया होता तो चानपुरा रिंग बांध की जरूरत ही नहीं पड़ती। अगर पछुआरी टोल को विरोध करना ही था तो इस बांध का विरोध करते। स्वामी जी तो पूरा क्षेत्र घेरना चाहते थे। विरोध हुआ तो कहा कि चलो पूवारी टोल को घिरवा देते हैं। 7 किलोमीटर घेरे के अंदर कुछ तो उपजता है, कुछ तो समृद्धि है। विरोध करना है तो पाली-मकिया वाले बांध को तुड़वा दीजिये। अब सोइली वाला पुल 50 फुट का है और इतना ही ऐग्रोपट्टी में खिरोई का पुल है-इससे क्या पाली-मकिया वाला पानी निकल पायेगा? यह सब ब्रह्मचारी जी को बदनाम करने के लिए किया गया।’’
उधर पछुआरी टोल के बृजेश चौधरी की व्यथा दूसरे किस्म की है। वह कहते हैं, ‘‘...अभी बाढ़ का जो पानी आता है वह अगर थोड़ी मात्रा में आता है तो धीरे-धीरे बह कर निकल जाता है मगर हर दूसरे तीसरे साल बड़ी भयंकर और विनाशकारी बाढ़ आती है। यह पानी ऊपर उठता है और जब उठते-उठते हम लोगों के घर में घुसने लगता है तब सारे लोग किसी ऊँचे स्थान की तलाश कर के वहाँ चले जाते हैं। उस समय हमारी एक ही प्रार्थना ईश्वर से होती है कि पाली-मकिया वाला महाराजी बांध टूट जाए। ईश्वर अगर सुन लेता है तो यह बांध टूट जाता है और हम लोगों को राहत हो जाती है। वैसे भी अगर बड़ी बाढ़ आ गई तो यह महाराजी बांध एक नहीं कई जगह टूटता है और जहाँ टूटता है वहाँ पानी बड़े-बड़े गड्ढ़े बना कर आगे बढ़ता है। बाढ़ के समय माल-जाल का नुकसान तो होता ही है, हर साल सर्पदंश से दो-चार आदमी मर ही जाते हैं। डॉक्टरी सहायता 20 किलोमीटर दूर बेनीपट्टी से पहले मिलती नहीं है। खाने-पीने का सामान भी बह जाता है। इस गाँव में एक भी सरकारी नाव नहीं है। जो भी बसैठ जायेगा वह जान जोखिम में डाल कर ही जायेगा। हमारे गाँव में दो पंचायतें हैं-करहारा और शाहपुर। दोनों के मुखिया दस किलोमीटर से ज्यादा दूर रहते हैं। न वो लोग कभी यहाँ आते हैं और न हम उनके यहाँ, कम से कम बरसात के मौसम में, जा पाते हैं। विधायक भी केवल वोट मांगने आते हैं। पछुआरी टोल की 5000 आबादी होगी। आस-पास के धनुखी, नवगाछी, रजवाटोल, हथियरवा, त्रिमुहान, करहारा, सिमरटोल, रानीपुर, विमोचनपुर आदि सभी गाँवों की यही हालत रहती है। यहाँ गेहूँ के अलावा कुछ पैदा नहीं होता। महाराजी बांध न रहे तो रिंग बांध बन जाने और बरसात के मौसम की सारी दिक्कतें उठा लेने के बावजूद तीन फसल हम लोग भी उगा लेंगे।’’
उपसंहार- चानपुरा रिंग बांध के निर्माण को लेकर अनेक विवाद हुए और अभी भी उच्च न्यायालय में पूरा मामला लम्बित है। संस्कृत कॉलेज आज भी असुरक्षित है और वही हाल पछुआरी टोल का भी है। रिंग बांध दो बार टूट कर अंदर के टोले को डुबा चुका है और अब बांध ऊँचा और तथाकथित रूप से मजबूत कर दिये जाने के बाद इस तरह की घटनाओं की तीव्रता और बारम्बारता बढ़ेगी। बसैठ-मधवापुर सड़क, जिसके बारे में कहा गया था कि यह बाढ़ के लेवेल से 2 फुट नीचे है और उसमें बने हुए पुल पूरे प्रवाह को ठीक से बहाने में सक्षम है, उसका पुनर्निमाण हो रहा है और अब वह अपने पुराने लेवेल से 3 से 4 फुट ऊपर बन रही है। इलाके के सारे बांधों को ऊँचा और मजबूत किया जा रहा है और अब इस क्षेत्र की जल-निकासी का क्या होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा। इतना जरूर लगता है कि राज्य के जल-संसाधन विभाग की बाढ़ के पानी की शीघ्र निकासी में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह पानी के प्रवाह को यथा-संभव रोक देने में ही रुचि रखता है। उसे सारी संरचनाएं ऊँची और मजबूत चाहिये। वह यह भूल जाता है कि ऐसी संरचनाओं की मजबूती से डटे रहने पर एक तरफ के लोगों को निश्चित रूप से नुकसान पहुँचता है तो उनके टूट जाने पर दूसरी तरफ के लोग दुःख भोगते हैं। इन संरचनाओं की न तो तीसरी कोई गति है और न ही बाढ़ पीडि़त जनता के पास कोई तीसरा विकल्प है।
इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के अंदर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहाँ आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीनें रहता है और अक्टूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।
1. झा, कामेश्वर; व्यक्तिगत संपर्क
2. चौधरी, देवचन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
3. झा, प्रो. सतीश चन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
4. मिश्र, डॉ. जगन्नाथ; व्यक्तिगत संपर्क
5. चौधरी, द्वारका नाथ; व्यक्तिगत संपर्क
6. आर्यावर्त-पटना; 3 जून 1982, पृष्ठ-5; चानपुरा रिंग बांध पर प्रतिदिन सैकड़ों लोगों द्वारा धरना।
7. पाठक, कृपानाथ; बिहार विधान परिषद, वादवृत्त, 7 जुलाई 1982, ध्यानाकर्षण, प्रस्ताव, पृ. 34
8. सिंह, त्रिपुरारी प्रसाद; बिहार विधान परिषद वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 93
9. शर्मा, पद्मदेव नारायण; बिहार विधान परिषद, वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 98
10. सभापति, बिहार विधान परिषद वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 98
11. नामधारी, इन्दर सिंह; बिहार विधान सभा वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 32
12. आर्यावर्त्त-पटना; 30 जुलाई 1982, पृ. 5
13. झा, ताराकांत; व्यक्तिगत संपर्क
14. Report of the Expert Committee Constituted by the Honorable High Court wide order No. 10 dated 27.7 1982 in CWJC 194182, p.5
15. चानपुरा रिंग बांध का नक्शा-सौजन्य नरेन्द्र चौधरी जिसे उन्हीं ने लेखक को समझाया।
16. Report of the Special working Group, Water Resources Department, Bihar, Resolution No. 1383 dated 12.5.2005 High Court Case No. 5427/2005
17. चौधरी, नरेन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
18. चौधरी, बृजेश; व्यक्तिगत संपर्क
चानपुरा रिंग बांध के इस AB हिस्से की मरम्मत काम के बदले अनाज स्कीम के तहत बेनीपट्टी प्रखंड कार्यालय द्वारा 6 लाख रुपये की लागत पर चलायी जाने वाली थी। इस काम का, जो कि 1983 की तकनीकी समिति की सिफारिशों के विपरीत था, कम से कम दो परिवारों पर बुरा असर पड़ने वाला था। कई लोगों की उपजाऊ भूमि नष्ट होने वाली थी और किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला था। वादियों का यह भी कहना था कि अगर रिंग बांध की AE वाली दूरी पर काम लग जाता है, जिसकी निकट भविष्य में आशा थी, तो प्रखंड कार्यालय द्वारा शुरू किये गए इस काम का कोई औचित्य ही नहीं बचता है।
यह मामला अभी भी तकनीकी ही था और उच्च न्यायालय ने इसकी तहकीकात करके अपनी सिफारशें देने के लिए एक विशेष वर्किंग ग्रुप का गठन करवाया (जल संसाधन विभाग-बिहार, प्रस्ताव संख्या 1383 दिनांक 12.5.05, उच्च न्यायालय केस संख्या 5427/2005)। इस समिति के भी तीन सदस्य थे - श्री बृज नन्दन प्रसाद, भूतपूर्व अभियंता प्रमुख (अध्यक्ष), जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार, समस्तीपुर के मुख्य अभियंता-श्री गौरांग लाल बसाक और बाढ़ नियंत्रण अंचल दरभंगा के अधीक्षण अभियंता श्री एच. एन. झा।
इस समिति की रिपोर्ट (दिनांक 25.6.2006) में कहा गया है कि (क) जमींदारी बांध जिला प्रशासन के अधीन आता है और यह उसका अधिकार बनता है कि वह लोकहित को ध्यान में रखते हुए इस पर कोई भी काम कर सकता है। निरीक्षण के समय समिति ने पाया कि इस बांध पर मिट्टी डाली गयी है लेकिन इसमें पड़ी दरार को अभी तक पाटा नहीं गया है। इस काम को आने वाली अगली बाढ़ के पहले पूरा कर लेना चाहिये वरना सुरक्षित किये गए क्षेत्र में पानी भर जायेगा। (ख) दरार को तुरन्त पाट देना चाहिये और इस पूरे जमींदारी बांध की मरम्मत बाकी के बाढ़ सुरक्षा बांध के समकक्ष कर देनी चाहिये। यह जमींदारी बांध दूसरी रक्षा पंक्ति के तौर पर काम करेगा। (ग) 130 चेन से 165 चेन के बीच के काम को छोड़ कर चानपुरा रिंग बांध का काम पूरा हो गया है। इस दूरी में बांध का काम पूरा न होने के कारण यह जमींदारी बांध ही सुरक्षा कवच का काम करता है। बांध के इस हिस्से की लम्बाई प्रायः 700 फीट है और यह गाँव की सड़क से जुड़ा हुआ है लेकिन गाँव की सड़क इस बांध के लेवेल से काफी नीची है। समिति ने भविष्य के लिए निम्न काम सुझाये-
(i) A से E को जोड़ते हुए जब यह बांध संस्कृत कॉलेज के पास पहुँचता है तो उसे पश्चिम की ओर इस तरह से घुमाया जाए कि संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के अंदर सुरक्षित क्षेत्र में आ जाए।
(ii) इस नये बांध को अब जमींदारी बांध से स्लुइस गेट के पहले जोड़ दिया जाय। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो एक नया स्लुइस गेट बनाना पड़ जायेगा।
(iii) संस्कृत कॉलेज के पास में भुड़का नाले के बायें किनारे पर कुछ अतिक्रमण होगा। यहाँ नाले का विस्तार अपने प्रति प्रवाह और अनुप्रवाह दोनों से ज्यादा है अतः इस अतिक्रमण का नाले के प्रवाह पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(iv) संस्कृत कॉलेज से लेकर जमींदारी बांध को जोड़ने वाली दूरी में बांध की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए।
(v) जमींदारी बांध में पड़ी मौजूदा दरार को पाट दिया जाए और पूरे जमींदारी बांध के सेक्शन को इस तरह सुधारा जाए कि वह द्वितीय रक्षा पंक्ति का काम कर सके।
(vi) बांध के भुड़का नाले की तरफ पड़ने वाले ढलान की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए।
यह रिपोर्ट 2006 में आयी। निषेधाज्ञा लग जाने से 2009 तक जमींदारी तटबंध पर कोई काम नहीं हुआ। इस बीच 2006 में ही बिहार सरकार ने सारे जमींदारी/महाराजी तटबन्धों को कानून बनाकर जल-संसाधन विभाग के हवाले कर दिया। जल-संसाधन विभाग ने टेण्डर निकाल कर 2010 के पूर्वार्द्ध में AB के बीच जमींदारी बांध की मरम्मत करवा दी और 2004 में पड़ी दरार को भी पाट दिया। पूरे रिंग बांध का उच्चीकरण तथा सुदृढ़ीकरण भी कर दिया गया है। गाँव की सड़क BE पर भी मिट्टी डाली जा रही थी (जून 2010) मगर AEH के जिस बांध के निर्माण की सिफारिश दोनों विशेषज्ञ समितियों (1983 तथा 2006) ने की थी उस पर अभी तक हाथ नहीं लगा है। ABE वाला जमींदारी बांध/सड़क के निर्माण हो जाने की वजह से यह आशंका जरूर होती है कि अब सरकार शायद EAH वाले रूपांकित बांध का निर्माण ही न करवाये। उधर BE वाली जो सड़क है वह, बताते हैं कि, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की है जिस पर जल-संसाधन विभाग मिट्टी डाल कर उसे बाकी बांध की ऊँचाई के बराबर ले आना चाहता था। इसके लिए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की अनुमति नहीं मिली मगर मिट्टी फिर भी डाली गयी जिसके लिए गतिरोध बना हुआ है। A-B वाला बांध भी जमीन्दारी बांध था जो कि कम ऊँचा और कम चौड़ा था मगर जब इसकी मरम्मत हुई तो वह ऊँचा और आधार पर चौड़ा हो गया जिसमें रैयत की कुछ जमीन भी चली गयी जिसका विक्षोभ उन लोगों में है। अब अगर EAH वाला बांध बनता भी है तो EBA वाली जमीन हर तरफ से बांध से घिर जायेगी। इसके पानी की निकासी का क्या होगा, इस पर अभी तक कोई दृष्टि नहीं बन पायी है। इन सारी समस्याओं का हल अभी खोजा जाना बाकी है। फिलहाल जो निर्मित बांध की रूप रेखा है उसे चित्र में दिखाया गया है। यह पूरा मसला अभी उच्च न्यायालय के विचाराधीन है और जो भी निर्णय होगा वह अब न्यायालय ही करेगा।
पूरे मसले को लेकर गाँव में विचारधाराएं आज भी बटी हैं। जहाँ एक ओर पूवारी टोल के नरेन्द्र चौधरी का कहना है, ‘‘...स्वामी जी जैसा महान् आदमी इस चानपुरा में न तो हुआ और न होगा। उनका कार्यक्रम था गाँव को चारों तरफ से घेरने का, चारों तरफ सड़क बनाने का और हेलिपैड बनवाने का। 100 बेड का अस्पताल बनवाना चाहते थे। यह सब यहाँ के लोगों ने होने ही नहीं दिया कि यह मेरी जमीन है, यह उनकी ज़मीन है। अब सड़क अगर बन रही है तो सबका दरवाजा खोद कर ही सरकार बना रही है न? उतने महान आदमी को प्रपंच में घसीटा गया, उनकी बात किसी ने सुनी ही नहीं। स्वामी जी ने अपना आदमी भेजा था दिल्ली से कि वह यहाँ 100 बेड का अस्पताल बनाना चाहते हैं यह बात गाँव वालों को समझायें। यहाँ के कुछ लोगों ने उनकी जमीन पर कब्जा करवा दिया। स्वामी जी के अपर्णा आश्रम की जमीन पर लोगों की नजरें गड़ी हैं। उनकी जमीन के परचे कटवा कर बटवा दिये गए। स्वामी जी क्या सोचते थे और यहाँ के लोग क्या सोचते हैं? पछुआरी टोल के कुछ लोगों ने मिल कर टंटा खड़ा किया एक आदमी के कहने पर। स्वामी जी को पाली से मकिया वाले महाराजी तटबंध के बारे में किसी ने बताया ही नहीं कि सारी परेशानी उस बांध की वजह से है। यह बांध पाली से लेकर मकिया तक बना है, थोड़ा उसके आगे भी गया है। यह बांध खिरोई और सोइली के पानी को सीधा रोक रहा है। यही अगर स्वामी जी को कहा गया होता कि इस महाराजी बांध को हटा दीजिये तो सारी समस्या का समाधान हो जाता। यह बांध अगर टूटता है तो दरभंगा में एक मंजिल के मकान 24 घंटे में पानी में चले जाते हैं। हमारे पूर्वज बताते हैं कि पहले इतना पानी नहीं आता था। यह बांध हट गया होता तो चानपुरा रिंग बांध की जरूरत ही नहीं पड़ती। अगर पछुआरी टोल को विरोध करना ही था तो इस बांध का विरोध करते। स्वामी जी तो पूरा क्षेत्र घेरना चाहते थे। विरोध हुआ तो कहा कि चलो पूवारी टोल को घिरवा देते हैं। 7 किलोमीटर घेरे के अंदर कुछ तो उपजता है, कुछ तो समृद्धि है। विरोध करना है तो पाली-मकिया वाले बांध को तुड़वा दीजिये। अब सोइली वाला पुल 50 फुट का है और इतना ही ऐग्रोपट्टी में खिरोई का पुल है-इससे क्या पाली-मकिया वाला पानी निकल पायेगा? यह सब ब्रह्मचारी जी को बदनाम करने के लिए किया गया।’’
उधर पछुआरी टोल के बृजेश चौधरी की व्यथा दूसरे किस्म की है। वह कहते हैं, ‘‘...अभी बाढ़ का जो पानी आता है वह अगर थोड़ी मात्रा में आता है तो धीरे-धीरे बह कर निकल जाता है मगर हर दूसरे तीसरे साल बड़ी भयंकर और विनाशकारी बाढ़ आती है। यह पानी ऊपर उठता है और जब उठते-उठते हम लोगों के घर में घुसने लगता है तब सारे लोग किसी ऊँचे स्थान की तलाश कर के वहाँ चले जाते हैं। उस समय हमारी एक ही प्रार्थना ईश्वर से होती है कि पाली-मकिया वाला महाराजी बांध टूट जाए। ईश्वर अगर सुन लेता है तो यह बांध टूट जाता है और हम लोगों को राहत हो जाती है। वैसे भी अगर बड़ी बाढ़ आ गई तो यह महाराजी बांध एक नहीं कई जगह टूटता है और जहाँ टूटता है वहाँ पानी बड़े-बड़े गड्ढ़े बना कर आगे बढ़ता है। बाढ़ के समय माल-जाल का नुकसान तो होता ही है, हर साल सर्पदंश से दो-चार आदमी मर ही जाते हैं। डॉक्टरी सहायता 20 किलोमीटर दूर बेनीपट्टी से पहले मिलती नहीं है। खाने-पीने का सामान भी बह जाता है। इस गाँव में एक भी सरकारी नाव नहीं है। जो भी बसैठ जायेगा वह जान जोखिम में डाल कर ही जायेगा। हमारे गाँव में दो पंचायतें हैं-करहारा और शाहपुर। दोनों के मुखिया दस किलोमीटर से ज्यादा दूर रहते हैं। न वो लोग कभी यहाँ आते हैं और न हम उनके यहाँ, कम से कम बरसात के मौसम में, जा पाते हैं। विधायक भी केवल वोट मांगने आते हैं। पछुआरी टोल की 5000 आबादी होगी। आस-पास के धनुखी, नवगाछी, रजवाटोल, हथियरवा, त्रिमुहान, करहारा, सिमरटोल, रानीपुर, विमोचनपुर आदि सभी गाँवों की यही हालत रहती है। यहाँ गेहूँ के अलावा कुछ पैदा नहीं होता। महाराजी बांध न रहे तो रिंग बांध बन जाने और बरसात के मौसम की सारी दिक्कतें उठा लेने के बावजूद तीन फसल हम लोग भी उगा लेंगे।’’
उपसंहार- चानपुरा रिंग बांध के निर्माण को लेकर अनेक विवाद हुए और अभी भी उच्च न्यायालय में पूरा मामला लम्बित है। संस्कृत कॉलेज आज भी असुरक्षित है और वही हाल पछुआरी टोल का भी है। रिंग बांध दो बार टूट कर अंदर के टोले को डुबा चुका है और अब बांध ऊँचा और तथाकथित रूप से मजबूत कर दिये जाने के बाद इस तरह की घटनाओं की तीव्रता और बारम्बारता बढ़ेगी। बसैठ-मधवापुर सड़क, जिसके बारे में कहा गया था कि यह बाढ़ के लेवेल से 2 फुट नीचे है और उसमें बने हुए पुल पूरे प्रवाह को ठीक से बहाने में सक्षम है, उसका पुनर्निमाण हो रहा है और अब वह अपने पुराने लेवेल से 3 से 4 फुट ऊपर बन रही है। इलाके के सारे बांधों को ऊँचा और मजबूत किया जा रहा है और अब इस क्षेत्र की जल-निकासी का क्या होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा। इतना जरूर लगता है कि राज्य के जल-संसाधन विभाग की बाढ़ के पानी की शीघ्र निकासी में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह पानी के प्रवाह को यथा-संभव रोक देने में ही रुचि रखता है। उसे सारी संरचनाएं ऊँची और मजबूत चाहिये। वह यह भूल जाता है कि ऐसी संरचनाओं की मजबूती से डटे रहने पर एक तरफ के लोगों को निश्चित रूप से नुकसान पहुँचता है तो उनके टूट जाने पर दूसरी तरफ के लोग दुःख भोगते हैं। इन संरचनाओं की न तो तीसरी कोई गति है और न ही बाढ़ पीडि़त जनता के पास कोई तीसरा विकल्प है।
इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के अंदर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहाँ आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीनें रहता है और अक्टूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।
संदर्भ:
1. झा, कामेश्वर; व्यक्तिगत संपर्क
2. चौधरी, देवचन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
3. झा, प्रो. सतीश चन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
4. मिश्र, डॉ. जगन्नाथ; व्यक्तिगत संपर्क
5. चौधरी, द्वारका नाथ; व्यक्तिगत संपर्क
6. आर्यावर्त-पटना; 3 जून 1982, पृष्ठ-5; चानपुरा रिंग बांध पर प्रतिदिन सैकड़ों लोगों द्वारा धरना।
7. पाठक, कृपानाथ; बिहार विधान परिषद, वादवृत्त, 7 जुलाई 1982, ध्यानाकर्षण, प्रस्ताव, पृ. 34
8. सिंह, त्रिपुरारी प्रसाद; बिहार विधान परिषद वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 93
9. शर्मा, पद्मदेव नारायण; बिहार विधान परिषद, वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 98
10. सभापति, बिहार विधान परिषद वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 98
11. नामधारी, इन्दर सिंह; बिहार विधान सभा वादवृत्त, 26 जुलाई 1982, पृ. 32
12. आर्यावर्त्त-पटना; 30 जुलाई 1982, पृ. 5
13. झा, ताराकांत; व्यक्तिगत संपर्क
14. Report of the Expert Committee Constituted by the Honorable High Court wide order No. 10 dated 27.7 1982 in CWJC 194182, p.5
15. चानपुरा रिंग बांध का नक्शा-सौजन्य नरेन्द्र चौधरी जिसे उन्हीं ने लेखक को समझाया।
16. Report of the Special working Group, Water Resources Department, Bihar, Resolution No. 1383 dated 12.5.2005 High Court Case No. 5427/2005
17. चौधरी, नरेन्द्र; व्यक्तिगत संपर्क
18. चौधरी, बृजेश; व्यक्तिगत संपर्क
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