बैड़िया का भूजल हो रहा प्रदूषित

शौचालय के नजदीक हैण्डपम्प
शौचालय के नजदीक हैण्डपम्प


देश की दूसरी सबसे बड़ी मिर्च मंडी के रूप में अपनी पहचान कायम कर चुका बैड़िया का भूजल इन दिनों बुरी तरह प्रदूषित हो रहा है। कभी यहाँ का पर्यावरण सुखद और स्वच्छ हुआ करता था लेकिन मंडी के विस्तार के साथ ही इस छोटे से गाँव में पर्यावरण बिगड़ने लगा है। इसका सबसे बुरा असर यहाँ के पेयजल स्रोतों पर पड़ रहा है। लोगों के लिये पीने का साफ पानी मुहाल हो गया है। गाँव के पर्यावरण को सुधारने में स्थानीय पंचायत या प्रशासन की फिलहाल कोई दिलचस्पी नजर नहीं आती है।

मध्य प्रदेश के सबसे बड़े रकबे में लाल मिर्ची का उत्पादन करने वाले इलाके निमाड़ के खरगोन जिले में एक छोटा-सा गाँव है-बैड़िया। यह गाँव भले ही महज नौ हजार की आबादी वाला है लेकिन निमाड़ में इसका अपना रुतबा है। दरअसल यह छोटा-सा गाँव ही आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी लाल मिर्ची की मंडी है।

यहाँ सालाना करीब एक हजार करोड़ का व्यापार होता है। इन्दौर से करीब सवा सौ किमी खंडवा रोड पर सनावद से 15 किमी दूर नर्मदा नदी से थोड़ी दूरी पर यह गाँव स्थित है। यहाँ पूरे रकबे में ज्यादातर मिर्ची की खेती होती है। वैसे तो पूरे निमाड़ में ही मिर्ची की खेती होती है लेकिन बैड़िया इसका सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है और यहीं प्रदेश की सबसे बड़ी मिर्ची मंडी भी है।

इस मंडी में हर दिन हजारों बाहरी मजदूर काम करते हैं और ये यहाँ झोपड़ियाँ बनाकर रहते हैं। इनके पास शौचालय की व्यवस्था नहीं होने से ये गाँव के आसपास ही खुले में शौच करते हैं। भू वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे भूजल पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे बड़ा झूठ क्या होगा कि सरकारी रिकॉर्ड में इसे खुले में शौच से मुक्त गाँव घोषित कर दिया गया है।

बैड़िया का मिर्ची मंडीनिमाड़ की जलवायु मिर्च उत्पादन के लिये उपयुक्त है। 15 से 35 डिग्री सेल्शियस तापमान मिर्च की खेती के लिये उपयुक्त माना गया है। 40 डिग्री सेल्शियस से अधिक तापमान होने पर इसके फूल एवं फल गिरने लगते हैं। खरगोन जिले में औसतन 835 मिली मीटर वार्षिक वर्षा होती है जो कि मिर्च उत्पादन के लिये उपयुक्त है। निमाड़ में काली मृदा, मिश्रित काली एवं लाल मिट्टी पाई जाती है जो कि मिर्च उत्पादन के लिये उपयुक्त हैं। भारी मिट्टी में हल्की मिट्टी की अपेक्षा पौधों की बढ़वार एवं उत्पादन अधिक होता है, किन्तु हल्की भूमि में भारी भूमि की अपेक्षा उच्च गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते हैं।

अब लौटते हैं प्रदूषण के मुद्दे पर। तो दरअसल भूजल में प्रदूषण का बड़ा कारण यही मिर्ची की बड़ी मंडी है। इस गाँव का वरदान ही इसका सबसे बड़ा अभिशाप बन चुका है। यहाँ करीब दो वर्ग किमी क्षेत्रफल में लाल मिर्ची के पहाड़-ही-पहाड़ नजर आते हैं। इस मंडी में काम करने के लिये मिर्ची के मौसम में करीब दस से बारह हजार और सामान्य दिनों में भी चार से पाँच हजार मजदूर लगते हैं। इनमें स्थानीय मजदूर बहुत कम हैं। ज्यादातर बाहरी हैं और आसपास के खुले खेतों के किनारे अपनी झोपड़ियाँ बनाकर रहते हैं।

गाँव के आसपास इनकी हजारों झोपड़ियाँ तनी हुई नजर आती हैं। इन लोगों की झोपड़ियों में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं होती है। देर रात से लेकर सुबह तक ये लोग गाँव के आसपास ही शौच के लिये जाते रहते हैं। इतनी बड़ी तादाद में लोगों के लगातार हर दिन गाँव के आसपास शौच करने से बारिश के पानी के साथ मल की आंशिक मात्रा जमीन में रिसकर वहाँ स्थित पानी के भण्डार को दूषित कर रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ मानते हैं कि एक ग्राम में दस लाख जीवाणु (बैक्टीरिया) लगभग एक करोड़ से ज्यादा विषाणु (वायरस) हो सकते हैं। इनमें सबसे खतरनाक कॉली बैक्टीरिया का जीवन चक्र पाँच से दस दिन तक चलता है। अध्ययन बताते हैं कि ये शौचालय के गड्ढे से पाँच दिन बाद भी पाँच मीटर दूर तक भी पाये जा सकते हैं। सूखे मौसम में यह और भी तेजी से दूर तक पहुँच सकता है। यही वजह है कि पेयजल के लिये हैण्डपम्प या कुआँ आदि इनसे दस मीटर यानी लगभग 30 फीट दूर होने चाहिए। लेकिन बैड़िया में ऐसा नहीं है। कई हैण्डपम्प खुले में शौच वाले स्थानों के नजदीक ही हैं। इतना ही नहीं गाँव को खुले में शौच से मुक्त कराने की हड़बड़ी में कई जगह हैण्डपम्प के नजदीक ही शौचालय बना दिये गए हैं।

भू वैज्ञानिक और पानी के मुद्दे पर प्रदेश में काम करने वाले सुनील चतुर्वेदी भी मानते हैं कि यह बहुत घातक है। वे कहते हैं- 'खुले में शौच से रोकने के लिये जतन किये जाने चाहिए। यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया तो भूजल में खतरनाक तत्व मिलकर यह पानी इस्तेमाल करने वाले लोगों को गम्भीर बीमारियाँ दे सकते हैं। प्रशासन के इस महत्त्वाकांक्षी पहल में भी अधिकारी ज्यादा-से-ज्यादा गाँवों को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) करने की हड़बड़ी में गड़बड़ कर रहे हैं। प्रदेश में ऐसा कई जगह हो रहा है।'

मिर्ची मंडी के मजदूरों की झुग्गियाँमजे की बात तो यह है कि जिस बैड़िया गाँव में हर दिन पाँच से सात हजार लोग खुले में बेखौफ शौच करते हैं, उसी गाँव को बडवाह विकासखण्ड के अन्य 114 गाँवों के साथ खुले में शौच से शत-प्रतिशत मुक्त कर दिया गया है। क्या अधिकारियों से ये तस्वीर छुपी रही होगी। स्वच्छ भारत अभियान के ऐसे हालात से साफ है कि अंजाम क्या होगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि यहाँ का मंडी बोर्ड हर साल किसानों और व्यापारियों से पाँच से छह करोड़ रुपए का मंडी शुल्क वसूल करता है लेकिन मंडी बोर्ड ने भी कभी इसकी फिक्र नहीं की। मंडी बोर्ड ने अब तक मजदूरों के लिये यहाँ एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं बनाया है।

अब इस बारे में खरगोन कलेक्टर अशोक वर्मा से बात की तो उन्होंने कहा- 'हमने इसके लिये खेत मालिकों से आग्रह किया है कि वे मजदूरों के शौचालय की व्यवस्था करें। मंडी परिसर के आसपास भी एनटीपीसी और लोक निर्माण अमले को शौचालय बनाने को कहा है। यदि कहीं हैण्डपम्प के पास शौचालय बने हैं तो उन्हें ठीक करवा लिया जाएगा। लाखों कामों के एक साथ होने से कुछ ऐसे हो जाते हैं। अब सुधार कर लिया जाएगा।'
 

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Post By: RuralWater
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