बागमती की 2004 की बाढ़

बहुत सी नदियों ने अपने पहले के सर्वाधिक बाढ़ लेवल का अतिक्रमण किया जिससे 54 स्थानों पर तटबन्धों में दरार पड़ी। इन दरारों की वजह से घनी आबादी वाले बहुत से इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया यहाँ तक कि 1987 वाली भयंकर बाढ़ से भी ज्यादा असर इस वर्ष महसूस किया गया। सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, खगड़िया, पूर्वी चम्पारण, किशनगंज, समस्तीपुर, मधेपुरा, अररिया तथा सहरसा जिले इस बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हुए। इस रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष बाढ़ में कुल मिलाकर (तब तक) 7036 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ जिसके लिए केन्द्र से सहायता की मांग की गयी थी।

2004 में बागमती घाटी में बाढ़ की शुरुआत कुछ जल्दी हो गयी और एक दिल दहला देने वाली दुर्घटना में 7 जून को भनसपट्टी के पास बारातियों से भरी एक बस ऊनती बागमती की चपेट में आ गयी। इस बस में 32 बाराती सवार थे जिनमें से सरकारी सूत्रों के अनुसार 6 लोगों को बचाया जा सका। बाकी सब असमय में आयी इस बाढ़ की भेंट चढ़ गए। उसी दिन शिवहर को सीतामढ़ी से जोड़ने वाले राष्ट्रीय उच्च पथ 104 पर डुब्बा पुल के समीप एक नाव दुर्घटना में 24 लोगों के मारे जाने की खबर है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस नाव पर सवारियों की 5 मोटर साइकिलें और 10 साइकिलों के साथ लगभग 60 लोग सवार थे। जिला प्रशासन ने केवल 10 व्यक्तियों के मारे जाने की पुष्टि की। आंकड़ों की बात न भी करें तो भी इस वर्ष बाढ़ की शुरुआत बहुत ही भयानक तरीके से हुई। इन दोनों घटनाओं के संदर्भ में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का एक बयान ‘‘नेपाल से पानी छोड़े जाने से बाढ़ आई।’’ शीर्षक से दैनिक हिन्दुस्तान-पटना संस्करण, 9 जून 2004 में छपा।

अखबार ने लिखा, ‘‘यहाँ जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक मुख्यमंत्री ने कहा है कि नेपाल से बिना सूचना दिये अधिक पानी छोड़ दिये जाने के कारण असामयिक बाढ़ आ गयी है। सीमातढ़ी के जिलाधिकारी ने मुख्यमंत्री को सूचित किया है कि असामयिक बाढ़ के कारण यह दुर्घटना हुई है।’’ मुख्यमंत्री के इस बयान को लेकर बिहार विधान सभा और विधान परिषद में तीखी बयानबाजी हुई। उस समय इन दोनों संस्थाओं का वर्षा कालीन सत्र चल रहा था। जल-संसाधन विभाग के 2004-05 के बजट पर चल रही बहस के दौरान विधायक राम प्रवेश राय ने कहा, ‘‘...कांग्रेसी राज्यों में नहरों से सिंचाई की सुविधा प्रदान करने की योजना बनी थी, लेकिन आज भी पूरे बिहार में माननीय मंत्री जी के इलाके को छोड़ कर कहीं कोई सुविधा नहीं है। ...महोदय, यह जल प्रबन्धन की बात कहते हैं। यह कल परसों ही कहा जा रहा था कि नेपाल पानी छोड़ देता है। महोदय, मैं भी कभी कभी इनके पास बैठता हूँ, ये यह भी कहते हैं कि नेपाल पानी नहीं छोड़ता है, हम लोग नेपाल पर झूठ मूठ इल्जाम लगाते हैं। जब पानी क्षमता से अधिक हो जाता है तो वह पानी बाढ़ के रूप में आता है और उससे बिहार का नुकसान होता है। महोदय, अभी अभी बाढ़ का पानी आने से अनेकों लोग लापता हैं। नेपाल से पानी आने के कारण आज सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर का राज मार्ग बन्द है और हम आरोप लगाते हैं कि नेपाल पानी छोड़ देता है, इस कारण से यह हो रहा है।’’

अनेक राजनेताओं की गलत जानकारी या फिर उनके द्वारा जानबूझ कर गलतबयानी करने और नेपाल द्वारा पानी छोड़ने के झूठ को बार बार दुहराने से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के जन-मानस में यह बात पूरी तरह बैठ गयी है कि इस क्षेत्र में बाढ़ से तबाही के पीछे नेपाल का हाथ है। जानकारी के अभाव की वजह से इस दुष्प्रचार में मीडिया भी जोर-शोर से भाग लेता है। यह बात जहाँ राजनीतिज्ञों, प्रशासकों और इंजीनियरों के अनुकूल पड़ती है वहीं दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों में खराश पैदा करती है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं है अगर नेपाल में आम लोग इस मानसिकता से ग्रस्त हों कि जल-संसाधन के विकास की साझा योजनाओं का सारा लाभ केवल भारत को मिलता है और उनके हिस्से केवल तबाही आती है।

नेपाल के ख्यातिलब्ध इंजीनियर और समाजकर्मी अजय दीक्षित कहते हैं, ‘‘...नेपाल में कोई संचयन जलाशय है ही नहीं जिससे पानी छोड़ा जा सके अतः जो कुछ भी बाढ़ आती है, उसके पीछे क्षेत्र की जलीय-परिस्थिति का एक दूसरे से जुड़ा होना है। नेपाल में कुछ वीयर और बराज बने हुए हैं जिनमें कोई खास पानी जमा रखने की क्षमता नहीं है। केवल एक बांध कुलेखानी नदी पर बना हुआ है जिसमें मामूली मात्रा में बरसात का पानी इकट्ठा होता है। मगर जो आम समझदारी है उसमें पारम्परिक प्रतिक्रिया झलकती है जिसमें समस्या और उसका समाधान, दोनों ही स्थान और समय को देखते हुए बाहरी स्रोतों पर केन्द्रित है और उन्हें बाढ़ समस्या का समाधान पारम्परिक लकीर पीटने में ही दिखायी पड़ता है। हिमालयी पानी के विकास और प्रबंधन की दिशा में इन बातों से गंभीर सच्चाई का सामना होता है और इसके साथ ही इस दिशा में जो फायदे या खतरे है उनका भी अन्दाजा लगता है।’’

इन घटनाओं के बारे में बिहार सरकार की तरफ से विधान सभा में एक बयान 24 जून 2004 को दिया गया था जिसे हम यहाँ उद्धृत कर रहे हैं ‘‘लगभग सौ वर्षों के इतिहास में सर्वप्रथम इस वर्ष दिनांक 7-6-2004 को ही बागमती नदी के जलस्तर में आयी अचानक वृद्धि शिवहर एवं सीतामढ़ी जिले में कुल तीन घटनाओं का कारण बनी। जिला पदाधिकारी, शिवहर के प्रतिवेदन के अनुसार बागमती नदी में उक्त तिथि को आयी अचानक बाढ़ के कारण कुल 8 व्यक्तियों के डुब्बाघाट पर नाव पलट जाने से डूबकर लापता होने की सूचना दी गयी है। जिलाधिकारी, शिवहर को मृतकों की पहचान हो जाने पर तत्काल मृतकों के आश्रितों को 50 हजार रुपये प्रति मृतक की दर से अनुग्रह अनुदान भुगतान हेतु 4 लाख रुपये का आवंटन उपलब्ध करा दिया गया है। दिनांक 7-6-2004 को ही बागमती नदी के जलस्तर में हुई अचानक वृद्धि के कारण सीतामढ़ी के रुन्नी सैदपुर प्रखण्ड के भनसपट्टी के नजदीक राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या-77 पर बने कॉज-वे के ऊपर करीब 2.5 फीट पानी बह रहा था जो कुल दो घटनाओं का कारण बना। दिनांक 7-6-2004 को ही संध्या 7 बजे के आसपास मुजफ्फरपुर की ओर से एक जीप पर सवार 11 व्यक्ति नदी की धारा में गिर गए जिसमें से 9 व्यक्तियों को बचा लिया गया परन्तु 2 व्यक्ति अभी तक लापता बताये गए हैं।

उसी दिन रात्रि लगभग 9 बजे अमर ज्योति नामक बस जो मुजफ्फरपुर से बारात लेकर सीतामढ़ी जा रही थी, पानी की तेज धार में बहकर नदी में गिर गयी। उस बस में सवार कुल 26 व्यक्तियों में से 7 व्यक्ति सुरक्षित निकल आये। परन्तु शेष 19 व्यक्ति के डूबने या लापता होने की सूचना प्राप्त हुई है। जिला प्रशासन के अथक प्रयास से क्रेन एवं गोताखोरों की मदद से कुल 11 शव बरामद किये गए। जिलाधिकारी, सीतामढ़ी को तत्काल 11 लाख रुपये अनुग्रह अनुदान के मद में आवंटन उपलब्ध करा दिया गया है ताकि मृतकों की पहचान होते ही उनके परिजनों को अनुग्रह अनुदान की राशि का भुगतान कर दें।’’ बाढ़ के समय भारत सरकार की जो केन्द्रीय टीम बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने और बाढ़ से हुए नुकसान का जायजा लेने आयी थी उसको बिहार सरकार के आपदा प्रबन्धन विभाग ने सहायतार्थ एक मेमोरण्डम दिया था। इस मेमोरण्डम के अनुसार बागमती, कमला-बलान, बूढ़ी गंडक, अधवारा समूह की नदियों, कोसी तथा महानन्दा के जलग्रहण क्षेत्रों में जुलाई के प्रथम सप्ताह में हुई भीषण वर्षा के कारण उत्तर बिहार के 20 जिलों में अभूतपूर्व बाढ़ आ गयी थी।

बहुत सी नदियों ने अपने पहले के सर्वाधिक बाढ़ लेवल का अतिक्रमण किया जिससे 54 स्थानों पर तटबन्धों में दरार पड़ी। इन दरारों की वजह से घनी आबादी वाले बहुत से इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया यहाँ तक कि 1987 वाली भयंकर बाढ़ से भी ज्यादा असर इस वर्ष महसूस किया गया। सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, खगड़िया, पूर्वी चम्पारण, किशनगंज, समस्तीपुर, मधेपुरा, अररिया तथा सहरसा जिले इस बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हुए। इस रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष बाढ़ में कुल मिलाकर (तब तक) 7036 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ जिसके लिए केन्द्र से सहायता की मांग की गयी थी। अंतिम रिपोर्ट मिलने तक इस वर्ष की बाढ़ में राज्य के 20 जिलों के 211 प्रखंडों के 9344 गाँवों में बाढ़ का असर देखा गया जिससे 212.99 लाख लोग प्रभावित हुए। बाढ़ का पानी 27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर फैला जिसमें 13.99 लाख हेक्टेयर पर फसल लगी हुई थी। इस बाढ़ में 885 आदमियों और 3272 जानवरों की बाढ़ से मौत हुई। इस बाढ़ में अंतिम रिपोर्ट के अनुसार कुल मिलाकर 59 जगहों पर तटबन्धों में दरार पड़ी जिसमें से 17 जगह दरारें अकेले बागमती/करेह के तटबन्धों में पड़ी थीं।

पूर्वोत्तर भारत में 2004 की बाढ़ की समीक्षा करने और हालात को बेहतर बनाने के लिए जल-संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार ने प्रधानमंत्री के निर्देश पर एक टास्कफोर्स का गठन किया। केन्द्रीय जल आयोग के अध्यक्ष इस टास्क फोर्स के भी अध्यक्ष थे। जैसा कि सभी समितियों और टास्क फोर्स के गठन से आशा की जाती है, इस टास्क फोर्स से भी आशा की गयी थी कि वह असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हमेशा से आने वाली बाढ़ों के कारणों का पता लगायेगा, बाढ़ नियंत्रण के लिए अब तक के किये गए कार्यों की समीक्षा करेगा, बाढ़ और कटाव से बचने के लिए अल्पावधि और दीर्घावधि उपायों को सुझायेगा, संबंधित अंतर्राष्ट्रीय आयामों का अध्ययन करेगा और भविष्य में इस संदर्भ में क्या करना है उसके उपाय सुझायेगा, इन सब सुझावों को अमली जामा पहनाने के लिए किस तरह की संस्थागत व्यवस्था तैयार करनी होगी, उस पर अपने सुझाव देगा और इसके लिए संसाधन जुटाने के लिए क्या व्यवस्था करनी होगी, उस पर भी अपनी राय देगा।

इन बिन्दुओं पर किसी समिति या टास्क फोर्स की क्या राय हो सकती है वह उनकी रिपोर्टों को पढ़े बिना ही बताया जा सकता है। फिर भी, टास्क फोर्स इस बात से आश्वस्त है कि नेपाल में बागमती के तटबन्धों के विस्तार से उसके पानी के मनुस्मारा में जाने के सारे खतरे टल गए हैं। नेपाल में इस तटबन्ध के बन जाने से बेलवा-मीनापुर लिंक की डिजाइन में परिवर्तन करना होगा और करेह नदी के तटबन्धों पर भी ऊपरी इलाकों में बागमती के तटबन्धों के विस्तार का असर पड़ेगा। इसका असर हायाघाट में पुल नं. 17 पर भी पड़ेगा जो कि काफी पुरानी समस्या है जिसके कारण बागमती के तटबन्ध अक्सर टूटा करते हैं। इसके समाधान के रूप में करेह के तटबन्धों को हायाघाट से करांची, बदलाघाट होते हुए नगरपाड़ा तक ऊँचा और मजबूत करने का सुझाव टास्क फोर्स ने दिया है। यहाँ तक नया कुछ भी नहीं है और इसके बाद टास्क फोर्स की रिपोर्ट अधवारा समूह की नदियों पर तीन फेज की उसी योजना की चर्चा करता है जिसका वर्णन हम अध्याय-2 में कर चुके हैं।

इतना कह लेने के बाद यह रिपोर्ट तटबन्धों से जुड़ी उन सभी समस्याओं का जिक्र करती है जिन्हें हमने अध्याय-1 के खण्ड 1.6 से 1.8 के बीच में बताया है। रिपोर्ट जब बाढ़ नियंत्रण संबंधी नीतियों की चर्चा करती है तब बात कुछ खुलती है। रिपोर्ट में एक जगह लिखा है, ‘‘आइ.आइ.टी. दिल्ली ने कोसी का जो अध्ययन किया है उसके अनुसार नदी की कुछ लम्बाई में तो उसका तल ऊपर उठा है मगर कुछ लम्बाई में यह नीचे भी गया है। इसलिए निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि समग्रता में नदी की तलहटी का लेवल ऊपर उठ रहा है।’’ आइ.आइ.टी दिल्ली की जिस रिपोर्ट के हवाले से यह बात कही गयी है उसमें चतरा से लेकर कोपड़िया तक की नदी की 167 किलोमीटर लम्बाई में अलग-अलग स्थानों पर नदी का क्रॉस सेक्शन (अनुप्रस्थ काट) की नाप 1962 और 1974 में ली गई थी जिसका विवरण नीचे तालिका 3.1 में दिया जा रहा है।

इस तालिका पर एक नजर डालने पर यह साफ हो जाता है कि 167 किलोमीटर की लम्बाई में मात्र भीमनगर से डगमारा के बीच की 26 किलोमीटर की दूरी में 8.3 मिलीमीटर का वार्षिक कटाव है जब कि नदी की बाकी पूरी लम्बाई में 141 किलोमीटर में नदी का तल ऊपर उठ रहा है और कई स्थानों पर यह भीमनगर से डगमारा के बीच के कटाव से 12 से 15 गुना ज्यादा है। यह कटाव इसलिए है कि बराज भीमनगर में अवस्थित है और उसके फाटकों के संचालन की वजह से भीमनगर और डगमारा के बीच नदी की तलहटी में कटाव होता है। इतनी सी बात समझने के लिए इंजीनियरिंग की डिग्री की जरूरत नहीं होती। फिर भी टास्क फोर्स को यह लगता है कि समग्रता में नदी की पेंदी का लेवल ऊपर नहीं उठ रहा है तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि टास्क फोर्स के किसी भी सम्मानित सदस्य ने न तो यह रिपोर्ट देखी है और न ही कोसी के तटबन्धों को देखा है। उस स्थिति में रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर ही संदेह होता है। इतना कह लेने के बाद इस रिपोर्ट और उसके अध्ययन या अनुशंसा के बारे में कहने को कुछ भी नहीं बचता।

तालिका-3.1


1962 में कोसी के तटबंध निर्माण के बाद तथा 1947 में कोसी नदी के तल की स्थिति

क्र.सं.

नदी क्षेत्र

दूरी कि.मी.

बराज/तटबंध पूर्व की स्थिति

बराज/तटबंध निर्माण के बाद की स्थिति

तल कटाव मिमी. प्रतिवर्ष

बालू जमाव मिमी. प्रतिवर्ष

तल कटाव मिमी. प्रतिवर्ष

बालू जमाव मिमी. प्रतिवर्ष

1.

चतरा से जलपापुर

27

17.6

-

-

12.4

2.

जलपापुर से भीमनगर बराज

15

165.6

-

-

107.0

3.

भीमनगर से डगमारा

26

35.6

-

8.3

-

4.

डगमारा से सुपौल

34

3.8

-

-

18.6

5.

सुपौल से महिषी

40

-

95.6

-

63.5

6.

महिषी से कोपड़िया

25

अप्राप्य

-

-

120.3



स्रोतः- Sanyal, Nilendu; Chairman-Ganga Flood Control Commission, Seminar on Embankment And Flood Control, Bihar College of Engineering, Patna-1983.

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Post By: tridmin
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