बागमती की 1966 की बाढ़

1966 तो जैसे तैसे बीता मगर बाढ़ों ने सीतामढ़ी का पीछा नहीं छोड़ा। 1968 में देश के प्रायः समूचे उत्तरी भाग में जबर्दस्त बाढ़ आयी। यह वही साल था जिसमें कोसी नदी में अब तक का 9,13,000 क्यूसेक का सर्वाधिक प्रवाह देखा गया था। बागमती की पैदा की गई तबाहियाँ बदस्तूर जारी थीं मगर उसने इतिहास रचा 1969 में, जब उसकी धारा में एक बार फिर परिवर्तन हुआ। 1971 में बागमती पर ऊपरी हिस्से में ढेंग से लेकर रुन्नी सैदपुर तक तटबन्धों के निर्माण कार्य में हाथ लगा।

इन्हीं सब क्रिया-कलापों के बीच 1966 में बागमती नदी एक बार फिर जोर से उफान में आयी जिसमें बूढ़ी गंडक ने भी अपनी सामर्थ्य भर उसका सहयोग किया जिससे सीतामढ़ी तथा मुजफ्फरपुर में भीषण बाढ़ का कहर बरपा। प्रसंगवश उस बाढ़ के बारे में कुछ जानकारी हम यहाँ दे रहे हैं। 12 सितम्बर 1966 के दिन बिहार सरकार की तरफ से विधान सभा में इस बाढ़ का जो ब्यौरा दिया गया था वह कुछ इस तरह का था-

‘‘... 3 तथा 5 जुलाई को सीतामढ़ी में बाढ़ आयी। 173 वर्ग मील भूमि और 544 घर आक्रान्त हुए। भदई की फसल 770 एकड़ पूरी और 473 एकड़ आंशिक रूप से, अगहनी की फसल पूरी 3,424 एकड़ तथा आंशिक रूप से 1,600 एकड़ तथा 300 एकड़ ईख नष्ट हुई। इसके अलावा 192 घर नष्ट हुए थे।’’ पूरा नुकसान करीब साढ़े छः लाख रुपये से ऊपर हुआ था। किन्तु 23-24 अगस्त को जो बाढ़ आई उसमें जिले के 20 अंचलों के 1,163 वर्ग मील भूमि, 1,275 गाँव तथा लगभग 15 लाख लोग आक्रान्त हुए हैं। 4 आदमी तथा 6 मवेशियों के भी डूब मरने की खबर है। 7,000 घर नष्ट-भ्रष्ट हुए हैं तथा 19,84,762 एकड़ में लगने वाली फसलों में से 59,569 एकड़ की फसलें जिनका अनुमानित मूल्य साढ़े नौ करोड़ के लगभग है, नष्ट हुईं हैं। लोगों को राहत पहुँचाने के लिए 119 साहाय्य केन्द्र तथा 880 सस्ते गल्ले की दुकानें चल रही हैं। ... 816 नावें चल रही हैं। 9 सुरक्षा दल कार्य कर रहे हैं जिन्होंने 1508 व्यक्तियों को सुरक्षित जगहों में पहुँचाये हैं। ... 87 चिकित्सा केन्द्र, 3 भ्रमणशील चिकित्सालय चालू हैं... 19 कठिन श्रम योजना द्वारा लोगों को काम दिया जा रहा है। सम्पूर्ण सीतामढ़ी अनुमंडल जलमग्न है तथा बाढ़ का पानी कहीं से हट नहीं रहा है कि लोग खेती-बाड़ी प्रारंभ करें।

1966 की इस बाढ़ पर विधान सभा में बहुत रोषपूर्ण बहस हुई और उस का विश्लेषण बहुत से विधायकों ने अपने-अपने तरीके से किया। उनमें से दो सदस्यों के वक्तव्य को हम यहाँ दे रहे हैं। बहस में भाग लेते हुए बूढ़ी गंडक नदी की बाढ़ का हवाला देते हुए पीताम्बर सिंह ने कहा, ‘‘... इसी तरह से मुजफ्फरपुर में जब 26 तारीख को बाढ़ का खतरा आया तो डॉ. लोक नाथ शर्मा के लड़के डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने इसकी खबर अधिकारियों को दी। इसके बाद बाबा हरिदास ने भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को खबर दी, फिर सिंचाई विभाग को भी खबर दी गयी, लेकिन 26 तारीख की रात में बाढ़ के खतरे को टालने के लिए कोई प्रबन्ध नहीं किया गया। 27 तारीख को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गए और इनके पहुँचने पर एक्जीक्यूटिव इंजीनियर वहाँ पहुँचे और 27 की रात की खबर है कि पेट्रोमैक्स जला कर इंजीनियर लोग ताश खेलते रहे और नदी अपना काम करती रही, बांध के किनारे को काटती रही। यह आपके सिंचाई विभाग का काम है। इससे बढ़कर अक्षमता-अकर्मण्यता और अपराध की कहानी सिंचाई विभाग की और क्या हो सकती है? जिसकी जिम्मेवारी थी कि बांध को बचाये, मुहल्ले को बचाये, शहर को बचाये लेकिन ऐसा न कर के सरकारी कर्मचारी रात भर ताश खेलते रहे और अपनी गैर-जिम्मेवारी का सबूत देते रहे जिसके चलते इतनी बड़ीक्षति हुई।’’

उधर रामानन्द सिंह का कहना था, ‘...मैं निवेदन करूँगा कि इस संबन्ध में जाँच करायी जाय। आप जाँच करेंगे तो पता लगेगा कि एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, सुपरवाइजर, एस.डी.ओ., ठेकेदार आदि जितने हैं, कौन-कौन उन लोगों के सगे सम्बन्धी हैं या नहीं हैं। उन लोगों ने मिल कर बांध कटवा दिया। इस साल जब यहाँ कहा गया तो मुख्यमंत्री वहाँ गए लेकिन इरिगेशन डिपार्टमेन्ट के जो चीफ इंजीनियर हैं वे शीर्षासन करते हैं या क्या करते हैं, उनको अकल से भी सम्पर्क है या नहीं कि बाढ़ आने के पहले काम नहीं करके बाढ़ के समय 70 हजार रुपये का काम शुरू करवा दिया 350 मील में। यह बांध पहले बंधता तो यह दुर्दशा नहीं होती। मैं तो कहूँगा कि उन्हें पेड़ों में लटका कर हैंग कर देना चाहिये।’ इस साल फिर 27 अगस्त को आई बाढ़ में खिरोई और दरभंगा-बागमती नदी में आई बाढ़ की वजह से बिसफी, केवटी, सिंघवारा तथा बेनीपट्टी के सैकड़ों गाँव जलमग्न हो गए तथा हजारों मकान धराशायी हुए। इन चारों प्रखण्डों के लिए सरकार की तरफ से मात्र 10 नावों की व्यवस्था हुई जिससे बाढ़ पीड़ितों के अनाज उनके घर में ही पड़े रह गए। खाद्यान्न का अभाव हो गया और लोग सुरक्षित स्थानों पर नहीं जा सके। सरकारी राहत को इन क्षेत्रों में पहुँचने के लिए एक सप्ताह से ज्यादा का समय लग गया था।

1966 तो जैसे तैसे बीता मगर बाढ़ों ने सीतामढ़ी का पीछा नहीं छोड़ा। 1968 में देश के प्रायः समूचे उत्तरी भाग में जबर्दस्त बाढ़ आयी। यह वही साल था जिसमें कोसी नदी में अब तक का 9,13,000 क्यूसेक का सर्वाधिक प्रवाह देखा गया था। बागमती की पैदा की गई तबाहियाँ बदस्तूर जारी थीं मगर उसने इतिहास रचा 1969 में, जब उसकी धारा में एक बार फिर परिवर्तन हुआ। 1971 में बागमती पर ऊपरी हिस्से में ढेंग से लेकर रुन्नी सैदपुर तक तटबन्धों के निर्माण कार्य में हाथ लगा। 1971 और 1974 भी बाढ़ की दृष्टि से घाटी में बुरे वर्ष थे मगर तब तक बागमती नदी के तटबन्धों का काम आधा-अधूरा ही था और उनके होने या न होने से स्थानीय जनता को कोई खास फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उनमें बहुत से गैप खुले हुए थे।

मुसाफिर! जायेगा कहाँ?मुसाफिर! जायेगा कहाँ?1974 में इतना फर्क जरूर पड़ा था कि अपने किनारे पर नारायणपुर गाँव के पास बागमती नदी की धारा से पानी ने छलक कर मधकौल होते हुए कन्सार गाँव के पास अपनी पुरानी धार में जाना शुरू दिया। 1976 आते-आते यह परिवर्तन पूरा हो गया। इस धारा परिवर्तन को अगर न रोका जाता तो बागमती पर तटबन्ध बनाने की वर्तमान योजना भी बेकार हो जाती क्योंकि 1969 में हुए परिवर्तन की वजह से नदी को बांधने का कार्यक्रम एक बार पहले ही बदला जा चुका था। नारायणपुर में नदी को अपनी जगह पर बनाये रखने के लिए सरकार को काफी मशक्कत उठानी पड़ गयी थी। इस विषय पर रघुनाथ झा के एक सवाल के जवाब में राज्य के सिंचाई मंत्री ने विधान सभा को बताया (1977), ‘‘...नारायणपुर नाला को बांधने के सम्बन्ध में 4-2-1976 को अभियंता प्रमुख सह विशेष सचिव तथा श्री गर्ग, सदस्य, गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग ने स्थल का निरीक्षण किया और उन्होंने सुझाव दिया कि नारायणपुर धार में परमीयेबल डाइक, स्क्रीन, बांस के स्पर आदि बांध में बनाये जाएं जिससे धार में सिल्ट जमा होने की संभावना होगी और धार स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे बन्द हो जाएगी।

इसी प्रयोजन के साथ कार्य कराये गए। जिसमें काफी सफलता मिली और सिल्ट डिपाजिट भी हुआ। 1976 में 12-5-76 को नदी में अचानक पानी आ जाने के कारण इन कार्यों का आउट फ्लैंकिग हो गया और इन कार्यों की क्षति हुई। लेकिन फिर भी स्क्रीन तथा बांस के स्पर आदि लगाने की कार्रवाई की जाती रही। इस पर गत वर्ष 5.34 लाख रुपया का व्यय किया गया था। बागमती की छिछली नदी होने के कारण नये-नये चैनेल के बनने तथा अन्य चैनेलों में सिल्टेशन होने की समस्या बराबर बनी रहती है। अतः इस सुझाव देने के लिये श्री ए. एन. हरकौली, केन्द्रीय जल आयोग, नई दिल्ली को अनुरोध किया गया। उन्होंने स्थल का निरीक्षण 17.2.77 से 19.2.77 के बीच किया। उन्होंने सुझाव दिया कि इस नारायणपुर चैनेल को बन्द कर दिया जा सकता है। लेकिन, कई अन्य बिन्दुओं पर विचार करते हुए विभाग ने श्री हरकौली, सदस्य, केन्द्रीय जल आयोग को पुनः विचार करने तथा सुझाव देने का अनुरोध किया है। इस वर्ष दो क्रियाशील बागमती की धारा-बेलवा धार तथा नारायणपुर धार में परमिएबल स्क्रीन देने का निर्देश क्षेत्रीय पदाधिकारियों को दिया गया है ताकि इस धाराओं में सिल्ट जमा हो जाए और इन धारों की स्वाभाविक मृत्यु हो जाय।’’

मगर इसके पहले कि नारायणपुर धार पर काबू पाया जाता 1975 में बिहार में एक भयंकर बाढ़ आयी। इस साल अगस्त के अंत में पटना शहर में सोन और गंगा नदियों का पानी घुस गया था जिसे निकलने में हफ्तों का समय लग गया था। इस वर्ष बागमती घाटी में जो कुछ भी घटित हुआ, उस पर एक नजर डालने की कोशिश करते हैं।

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Post By: tridmin
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