बागमती और बाढ़
कुँओं, तालाबों और हैन्डपम्पों में पानी की सुलभ उपलब्धता बने रहना भी इस जबर-दखल में कम महत्वपूर्ण नहीं होता। सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर जिले के जिस हिस्से से होकर बागमती नदी गुजरती है वह उसकी बाढ़ के पानी में आयी हुई गाद के कारण बहुत ही उपजाऊ जमीन का क्षेत्र है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि बागमती के मैदानी क्षेत्र जैसा उर्वर इलाका दुनियाँ में दूसरा कहीं नहीं है। जहाँ भी बाढ़ के मौसम में बागमती नदी का पानी किसी कारणवश जाना बन्द हुआ वहाँ की जमीन की उर्वराशक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जाती है।
बागमती और उसके मैदानी इलाकों का बाढ़ के साथ चोली-दामन का रिश्ता रहा है और यह अभी तक टूटा नहीं है। बिहार की नदियों में बाढ़ की खबरें बागमती से ही शुरू होती हैं और कभी-कभी तो ऐन गरमी के समय मई के महीने में ही नदी में बाढ़ आ जाती है। धारा का बदलना, किनारों का कटाव, कगारों को तोड़ते हुए नदी के पानी का बड़े इलाके पर फैल जाना और इन सारी घटनाओं की एक ही वर्ष में सहज पुनरावृत्ति नदी का स्वाभाविक गुण रहा है जिससे एक ओर तबाहियों की दास्तान लिखी जाती रही तो दूसरी ओर नदी के पानी की उर्वरक क्षमता पर गर्व भी किया जाता रहा। इस खंड में हम नदी की उन बाढ़ों की जानकारी लेंगे जब नदी अपनी मर्जी से बहने के लिए आजाद थी, जब उसके उन्मुक्त स्वरूप से छेड़-छाड़ का दौर चला और जब नदी पूरी तरह शिकारियों के चंगुल में फंस गयी।उत्तर बिहार की अधिकांश नदियों का जल-ग्रहण क्षेत्र हिमालय में लगभग 250 किलोमीटर उत्तर तक फैला हुआ है। ऐसे में अगर नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश हो जाए तो नेपाल के तराई वाले हिस्से और उसके नीचे भारतीय भाग में नदी का पानी किनारे तोड़कर एक बड़े क्षेत्र पर फैल जाता है। ऐसा होने पर जान-माल, सम्पत्ति और कृषि को स्वाभाविक रूप से नुकसान पहुँचता है। यह पानी जब नीचे की ओर का रुख करता है तो उसमें दूसरे नदी-नाले और वर्षा का पानी मिलने से स्थिति कभी-कभी बेकाबू तक हो जाती है क्योंकि यह सारे नदी-नाले पानी की निकासी की कोशिश में अपने सुविधाजनक रास्ते से प्रायः एक ही दिशा में चल पड़ते हैं। नदियों की पेटी और आस-पास के क्षेत्रों में गाद के जमाव से अगली बारिश में पानी के प्रवाह में रुकावटें आती हैं और तब इन रुकावटों से बचता हुआ या उनको हटाता हुआ पानी अपनी मर्जी की राह चुनता है और नदियों की धारा में परिवर्तन तक हो जाता है।
गाँवों, शहरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए बनाये गए रिंग बांध और तटबन्ध न केवल इस पानी को अनचाही दिशा में फैलाकर निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति को गंभीर बनाते हैं वरन् वह अक्सर टूट कर अपने द्वारा बाढ़ से सुरक्षित क्षेत्रों की बदहाली का सामान भी बनते हैं। पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था किये बगैर बनाई गयी नहरें, सड़कें तथा रेल लाइनें भी बाढ़ की स्थिति को बदतर बनाने में मदद करती हैं। इस तरह की संरचनाएं बाढ़ का पानी उतरने के बाद भी पानी की निकासी में बाधा पहुँचाती हैं और बाढ़ को स्थायित्व प्रदान करती हैं। बागमती घाटी के भारतीय भाग के सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर और खगड़िया जिलों में स्थानीय टोपोग्राफी और बाढ़ सुरक्षा तथा परिवहन व्यवस्था को पटरी पर रखने के लिए किये गए प्रयासों ने घाटी में नदी की बाढ़ को दिनों-दिन गंभीर बनाने और उसे स्थायित्व प्रदान करने में ही हमेशा मदद की है।
बाढ़ के पानी से सिर्फ नुकसान ही होता है ऐसा सोचना भी शायद गलत है। बाढ़ के एक बड़े इलाके पर फैलने के कारण जमीन पर नई मिट्टी पड़ती है जिससे उसकी उर्वराशक्ति बढ़ती है और भूमिगत जल की सतह अपनी जगह बनी रहती है। ऐसी जमीन पर आने वाले कृषि मौसम में बीज डालने से बिना मेहनत के अच्छी पैदावार हो जाती है। बाढ़ों से परेशानी तो जरूर होती है और वह इसलिए होती है कि मनुष्यों ने नदी के उन हिस्सों पर कब्जा जमाया है जो पारम्परिक रूप से उसका क्रीड़ा क्षेत्र होता है मगर जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ना, रबी के मौसम तक मिट्टी में नमी का बने रहना और कुँओं, तालाबों और हैन्डपम्पों में पानी की सुलभ उपलब्धता बने रहना भी इस जबर-दखल में कम महत्वपूर्ण नहीं होता। सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर जिले के जिस हिस्से से होकर बागमती नदी गुजरती है वह उसकी बाढ़ के पानी में आयी हुई गाद के कारण बहुत ही उपजाऊ जमीन का क्षेत्र है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि बागमती के मैदानी क्षेत्र जैसा उर्वर इलाका दुनियाँ में दूसरा कहीं नहीं है। जहाँ भी बाढ़ के मौसम में बागमती नदी का पानी किसी कारणवश जाना बन्द हुआ वहाँ की जमीन की उर्वराशक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जाती है। यह पूरा इलाका बाढ़ के अभाव में रेगिस्तान की शक्ल अख्तियार कर लेता है।
यहाँ हम बागमती की बाढ़ की कुछ घटनाओं को ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखने का प्रयास करेंगे। अंग्रेजों द्वारा इन बाढ़ों के जबसे रिकार्ड रखे जाने लगे तब से उन्हें देखने से पता लगता है कि अट्टारहवीं शताब्दी में 1785, 1787, 1788, 1793 में बागमती नदी में भीषण बाढ़ें आईं। उन्नीसवीं शताब्दी में 1806, 1867, 1871, 1883, 1893, 1896 तथा 1898 में बाढ़ की स्थिति खराब रही। 1806 और 1867 के बीच के वर्षों के रिकार्ड उपलब्ध नहीं है पर इसका यह मतलब नहीं होता कि इस दौरान घाटी में बाढ़ नहीं रही होगी। बीसवीं शताब्दी में 1902, 1906, 1910, 1916 से लेकर 1919 तक हर साल बाढ़ों का हवाला मिलता है। 1928, 1936, 1944, 1950, 1952, 1953, 1954, 1955 में भी घाटी में अच्छी खासी बाढ़ों के संकेत मिलते हैं।1 मुजफ्फरपुर डिस्ट्रिक्ट गजैटियर (1958) के अनुसार सीतामढ़ी में 31 जुलाई 1905 को एक दिन में 11.65 इंच तथा 30 सितम्बर 1905 को 10.65 इंच बारिश हुई थी।
18 सितम्बर 1924 के दिन शिवहर में 12.50 इंच और बेलसंड में इसी दिन 15.30 इंच बारिश का हवाला मिलता है। इसी तरह 18 सितम्बर 1935 के दिन सीतामढ़ी में 12.63 इंच, 28 जून 1938 के दिन शिवहर में 15.57 इंच तथा बेलसंड में इसी दिन 10.40 इंच बारिश की बात कही जाती है। बैरगनियाँ में भी 16 अगस्त 1950 के दिन 10.50 इंच बारिश रिकार्ड की गयी थी। दुर्भाग्यवश, इन बारिशों के बाद आयी बाढ़ के विवरण उपलब्ध नहीं हैं। 1934 के बिहार भूकम्प के बाद, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव मुजफ्फरपुर जिले में था, बागमती घाटी की टोपोग्राफी पर बहुत बुरा असर पड़ा और यहाँ की जल-निकासी की व्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी थी। उस समय नदी से छोटे-बड़े नालों की शक्ल में कितनी ही धाराएं फूट कर निकल पड़ी थीं और न जाने कितने नदी-नालों के मुहाने बन्द हो गए। यहाँ हम बागमती में आयी कुछ बाढ़ों के बारे में जानकारी लेंगे।
बागमती की बाढ़ (1893 और 1898)-इस वर्ष
मुजफ्फरपुर जिले में जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों में भारी बारिश की वजह से कुल मिलाकर तीन बार बाढ़ आयी। पहली बाढ़ से खेती को तो कोई नुकसान नहीं पहुँचा मगर जब अगस्त और सितम्बर महीने में दूसरी और तीसरी बार बाढ़ आयी तब जमीन पहले से ही नम थी और चारों ओर जल-जमाव भी कम नहीं था। इन बाढ़ों से फसल, घरों और सड़कों को बेतरह नुकसान पहुँचा। समस्तीपुर-सीतामढ़ी रेल लाइन को भी भारी क्षति उठानी पड़ी। उफनती हुई बागमती और छोटी (बूढ़ी) गंडक नदियों के किनारे तोड़कर बहने के कारण तिरहुत स्टेट रेलवे लाइन के उत्तरी भाग में भारी तबाही हुई थी और लगभग 800 से 900 वर्ग मील (2050 से 2300 वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र पर पानी की चादर बिछ गयी। हजारों की तादाद में मिट्टी से बने घर धराशायी हो गए और ऐसा अनुमान किया गया कि बाढ़ क्षेत्र में फँसे 1,412 गाँवों में से 1,144 गाँवों की भदई की फसल या तो पूरी तरह धुल गयी या आधे से ज्यादा बरबाद हो गयी और 995 गाँवों में धान की खेती के साथ भी ऐसा ही हुआ। करीब 12,000 घर इस बाढ़ में तबाह हो गए थे।
उधर दरभंगा में 1893 में जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीने में अलग-अलग बाढ़ आयी। एक ओर बागमती और बूढ़ी गण्डक के पानी की मुजफ्फरपुर, बरौनी, कटिहार वाली रेल लाइन से निकासी नहीं हो पा रही थी, ऊपर से कमला का पानी बार-बार दरभंगा शहर पर हमला करता था। इसकी वजह से जिले के उत्तर-पश्चिम भाग से लेकर दक्षिण-पूर्व तक लगभग एक मीटर गहरा पानी गुजरा जिसकी वजह से फसलों, घरों, सड़कों और रेल लाइनों को बहुत नुकसान पहुँचा। जिले का तकरीबन आधा हिस्सा टापू जैसा बन गया और लोगों ने ऊँची सड़कों पर, रेलवे लाइनों पर तथा गाँवों में डीहों पर शरण ली। ‘‘...सौभाग्यवश पानी धीरे-धीरे चढ़ा और जहाँ तक सूचना मिल पायी कोई मरा नहीं और लोगों को अपने अन्न के संचित भण्डार को हटाने का मौका मिल गया तथा उन्होंने अपने जानवरों को भी सुरक्षित बचा लिया। लोग जिस तरह नुकसानों से पस्त होने के बावजूद सम्भल गए वह आश्चर्यजनक रहा।’’
इसी तरह 1898 की बाढ़ भी कमला, दरभंगा-बागमती, करेह और बूढ़ी गण्डक की वजह से आयी। बेनीपट्टी, दरभंगा, लहेरियासराय, दलसिंहसराय तथा वारिसनगर थानों पर बाढ़ का बुरा असर पड़ा था। बरैला चैर का पानी फैल जाने से दलसिंहसराय में बाढ़ की स्थिति पैदा हुई। इस बाढ़ में जानवर तो नहीं मरे पर 164 लोगों की जल-समाधि हुई और करीब 88,000 घर गिरे। दूसरी तरफ नई मिट्टी पड़ने से उस साल रबी की जबर्दस्त फसल हुई। किसी को अगर काम की जरूरत पड़ी तो वह कटिहार जाने वाली रेल लाइन की मरम्मत में लग गया और सरकारी ऋण के लिये एक भी अर्जी नहीं दी गई। चीजों के दाम नहीं बढ़े और कलक्टर का कहना था कि यदि पूरे जिले को देख कर बात की जाए तो बाढ़ से फायदा ही हुआ।’’
बागमती की 1902 तथा 1906 की बाढ़
अगस्त 1902 में भी मुजफ्फरपुर के सीतामढ़ी सब-डिवीजन में 1893 की घटना एक बार फिर दुहराई गयी जब बागमती, पुरानीधार-बागमती, लखनदेई और अधवारा में एक साथ भीषण बाढ़ आयी। बाढ़ के पानी की एक बहुत बड़ी मात्रा सीतामढ़ी सब-डिवीजन की रेल लाइन के उत्तर से बहती हुई पुरानी धार के ऊनते पानी से जा मिली। इस रेल लाइन में पानी की निकासी का जो भी रास्ता उपलब्ध था वह जरूरत से बहुत कम था। नतीजा यह हुआ कि बाढ़ के पानी ने पहले तो रीगा स्टेशन तक पहुँच कर तबाही मचायी और फिर लखनदेई में घुस कर सीतामढ़ी शहर में फैल गया। जिले के इस हिस्से में रेलवे बांध के उत्तर में तो तबाही हुई ही मगर जब पानी रेल लाइन के ऊपर से बह निकला और उसने बहुत से रेल पुलों को ध्वंस कर दिया तब वही तबाही दक्षिण दिशा में भी फैल गयी। जिस तरह की बाढ़ इस साल देखने में आयी थी उसके हिसाब से मरने वालों की तादाद काफी ज्यादा होनी चाहिये थी मगर यह 60 तक ही सीमित रही। लगभग 800 जानवर इस बाढ़ में बह/मारे गए और कोई 14,000 घर या तो बह गए या पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। सीतामढ़ी शहर में तो इस साल सबसे ज्यादा बर्बादी हुई।
बागमती, अधवारा समूह तथा बूढ़ी गंडक में 1902 में आयी इस बाढ़ ने काफी तबाही मचायी पर इन नदियों के निचले क्षेत्र में तत्कालीन दरभंगा जिले की 1906 वाली बाढ़ एक इतिहास रच गयी। आमतौर पर मान्यता यह रहती है कि बाढ़ के बाद अकाल नहीं पड़ता पर 1906 की बाढ़ ने बहुत से पुलों, सड़कों और बाँधों के साथ-साथ इस मान्यता को भी ध्वस्त कर दिया। इस साल पहली बार जुलाई में बाढ़ आयी फिर उसके बाद 6 अगस्त से जो पानी बरसना शुरू हुआ वह सिलसिला 24 अगस्त तक चलता रहा। जिले के अधिकांश भाग में पानी फैल गया जिससे यह जगहें कोई 16 दिन तक पानी में डूबी रहीं। लहेरियासराय में कचहरी वाला हिस्सा तथा दरभंगा में बड़ा बाजार वाला हिस्सा छोड़कर लगभग पूरे इलाके में पानी ही पानी था। शहर में तो पानी एकाएक ऐसी तेजी से घुसा था कि लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला और हजारों लोग देखते-देखते बेघर हो गए और उन्हें कचहरी के पास शरण लेनी पड़ी थी।
एक हफ्ते के बाद शहर से पानी घटना शुरू हुआ पर गाँव के इलाकों से पानी निकलने में तो प्रायः दो महीने का समय लग गया था। फसल की काफी बर्बादी हुई और क्योंकि वर्ष 1905-06 में भी फसल ठीक नहीं हुई थी तो इस बाढ़ ने और फिर महँगाई ने लोगों की कमर ही तोड़ दी। रोसड़ा और बेहरा में तो अकाल की घोषणा करनी पड़ गयी थी और अक्टूबर, नवम्बर तथा दिसम्बर महीनों में क्रमशः 45,000, 19,000 और 15,800 लोगों को मुफ्त राशन बांटना पड़ा था। अगर स्थानीय अफसरों और निलहे गोरों ने मुफ्त भोजन न बांटा होता तो इस बार करीब-करीब भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी होती। बाढ़ के बावजूद इस बार टेस्ट रिलीफ का काम खोलना पड़ा जिसमें एक समय तो पूरे जिले में 32,000 से ऊपर लोगों ने काम किया था। अब तक आयी इस सबसे बड़ी बाढ़ में दरभंगा अनुमण्डल में 2,714 वर्ग किलोमीटर, मधुबनी अनुमण्डल में 1,510 वर्ग किलोमीटर और समस्तीपुर में 1,075 वर्ग किलोमीटर (कुल 5,299 वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र पर बाढ़ का आतंक अनुभव किया गया।
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