बाढ़ रोकने की कहानी

पृष्ठभूमि


बरसात के मौसम में नदी में ज्यादा पानी आ जाने के कारण वह अपने किनारे तोड़ कर बहती है और उसका पानी एक बड़े इलाके पर फैल जाता है। इस पानी से बचाव का सबसे आसान तरीका है कि नदी और बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी जाये। यह काम व्यक्तिगत तौर पर शुरू-शुरू में नदी के किनारों पर बसे लोग अपने घरों के चारों ओर घेरे की शक्ल में बांध बना कर करते रहे होंगे। मगर सभी लोग ऐसा ही करने लगें तब क्या होगा? वह तो अपनी समस्या का समाधान शायद जरूर कर लेंगे पर पड़ोसी की समस्या को गंभीर बना देंगे क्योंकि अब उसे पहले से ज़्यादा पानी से निबटना पड़ेगा।

वह अपने घर के इर्द-गिर्द बने घेरे को ज्यादा ऊँचा और ज्यादा मजबूत बनाने के लिए मजबूर होगा। यह एक कभी न रुकने वाला सिलसिला। आखिरकार एक न एक दिन सारे लोग यह विचार करने के लिए एक साथ बैठेंगे कि अकेले-अकेले बाढ़ से नहीं लड़ा जा सकता और इसके लिए कुछ सामूहिक प्रयास करना पड़ेगा। उस समय घरों को घेरने वाले बांध गिराये गये होंगे और गाँवों के चारों ओर घेरा बांध बनाया गया होगा। यह कोशिश निश्चित रूप से एक नई समस्या को जन्म देने वाली थी। अब तक जो परेशानियाँ अलग-अलग घरों के बीच थीं वह गाँवों के बीच में पैदा होने लगेंगी।

इस तरह से बाढ़ की समस्या का समाधान खोजते हुये आदमी अपने घर से गाँव तक, फिर गाँव से गाँवों के समूह तक और उसके बाद फरियाद लेकर अपने सरदार या राज-सत्ता तक पहुँचा होगा ताकि उसकी तकलीफें कम हो सकें। इस तरह की घटना की पुष्टि संयुक्त राज्य अमेरिका में मिस्सिसिप्पी घाटी में उपनिवेश स्थापित होने के बाद की बस्तियों के विस्तार के समय होती है। तब गाँवों और घरों के किनारे बने रिंग बाँधों के बीच इतनी कम जगह बची थी कि उनके बीच से गुजरने वाला नदी की बाढ़ का पानी काफी तेज रफ्तार से बहता था और भारी तबाही मचाता था। वहाँ की सरकार को मजबूर होकर इस तरह के रिंग बाँधों के बीच के गैप को भरना पड़ा और इस तरह जाने अनजाने नदी के किनारे अपने आप तटबन्ध बन गये।

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Post By: tridmin
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