बेरी के सामाजिक कार्यकर्ता पीतांबर मुलाकात के तुरंत बाद बेरी के एकदम प्रवेश के निकट स्थित तालाब की बात शुरू होते ही कहते हैं, भाई साहब पहले गंगासर से घांघसर और इब गंदासर बणा दिया हमनै। बेरी में प्रवेश करते ही गऊशाला के साथ स्थित है ऐतिहासिक पौराणिक मंदिरों से घिरा गंगासर तालाब। लोग अब इसे घांघसर कहने लगे हैं।
यहां के तालाबों में इस तालाब का अपने तरह का अलग महत्व था। और वह इसलिए कि इस तालाब का गऊघाट गऊशाला में खुलता था। 75 साल की मूर्ति देवी बताती हैं, सैकड़ों की संख्या में गऊएं जब एक साथ तालाब पर आती थीं तो अद्भुत दृश्य होता था और लगता था कि गंगासर गायों के चरण धो रहा है।
फटवाड़िया मोहल्ले के विजय कुमार के मुताबिक, इस सरोवर का गंगाजल सा पानी औषधीय दृष्टि से बहुत उपयोगी था। लोग यहां अपने रोग और पाप दोनों धोते थे। घरों में पूजा के समय जब गंगाजल नहीं मिलता था तो हम गंगासर का जल छिड़ककर शुद्धि करते थे। जब कोई भूल हो जाती थी या कोई रोग हो जाता था तो मेरी मां कहती थी, जा गंगासर म्ह नहा कै पतासे बांट आइए (यानी गंगासर में स्नान करके प्रसाद बांट देना।)।
अब यह तालाब अपना स्वरूप पूरी तरह खो चुका है। हालत यह है कि गऊ घाट पर भी अब लोगों का कब्जा हो गया है। तालाब दो ओर पाटा जा रहा है। इस पर भूखंड काट दिए गए हैं। परिणामत: मिट्टी से पाटने के बाद तालाब बहुत अधिक सिकुड़ गया है और इसने अपना मूल स्वरूप भी खो दिया है। तालाब के नैसर्गिक चरित्र का तो लोगों ने कई वर्ष पहले हनन कर लिया था। इस पर बने पांच बहुत खूबसूरत कुंओं के केवल अवशेष बचे हैं।
गांव के सेठों ने भी कई कुंएं बनवाए। सारे छाज्याणों ने मिलकर तालाब के किनारे 10 भौंण का कुआं खुदवाया। तकरीबन 166 साल पहले भिवानी जिले के तिगड़ाना गांव के सेठ सरिया बेरी आए। कुछ समय बाद ही सरिया बेरी के नामी सेठ हो गए। उनके बेटों ने गंगासर पर उनकी स्मृति में एक मंदिर बनवाया। तालाब का एक घाट इसी मंदिर पर स्थित है और लोग इसे तिगड़ाना वालों का घाट बोलते हैं।
इसी तरह पंचमुखी मंदिर वाला घाट, इमली वाले हनुमान जी का घाट अब निशान के तौर पर बचे हैं। प्रत्येक घाट की पौड़ियां तकरीबन पौना फट ऊंची और तीन फुट चौड़ी थीं। अब तालाब में जलघास उग आई है। वह जलधास का सा तालाब लगता है और गांव के गंदे पानी का गटर है। पीतांबर कहते हैं, इब इसका रुखाला तो राम भी नहीं रह्या। (अब इस तालाब का भगवान भी रखवाला नहीं है।)
गंगासर तालाब न केवल गऊशाला की गायों की प्यास बुझाता था बल्कि गांव में भूजल स्तर को भी ऊंचा रखता था। बुजुर्ग गजनूप सिंह के मुताबिक यह तालाब छाज्याण पाने (मोहल्ले) की शान था और छाज्याणों ने इसे गांव की ओर 10 मीटर से अधिक गहरा तक खोद दिया था।
बेरी का एक बड़ा हिस्सा काफी ऊंचाई पर बसा है लेकिन चारों ओर बने तालाबों के निर्माण में इस बात का खासा ध्यान रख गया था कि गांव में कभी बाढ़ का खतरा पैदा ही न हो। बकौल पीतांबर, इस तालाब को गहरा करने के पीछे बाढ़ से बचाव भी एक बड़ा कारण था। तालाब देखकर हम वापस मुख्य चौराहे की ओर लौटते हैं। यहां बोतलबंद पानी की बिक्री होते देख याद आती है कहावत, नदिया बिच मीन पियासी।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
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3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
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7 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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Post By: Shivendra