उगते सूरज का प्रदेश, सर्वाधिक क्षेत्रीय बोलियों वाला प्रदेश, भारत का तीसरा विशाल राष्ट्रीय पार्क (नाम्दाफा नेशनल पार्क) वाला प्रदेश जैसे भारतीय स्तर के कई विशेषण अरुणाचल प्रदेश के साथ जुड़े हैं, लेकिन अरुणाचल प्रदेश के लिये जो विशेषण सबसे खास और अनोखा है, वह है, यहाँ उपलब्ध सबसे अधिक आॅर्चिड विविधता।
आॅर्चिड - यानी एक ऐसी बूटी, जिसमें फूल भी दिखाई दें। इस नाते इन आॅर्चिड्स को हिन्दी में हम पुष्पबूटी कह सकते हैं। जीवों में जैसे इंसान, वैसे वनस्पतियों में सबसे ऊँचा रुतबा है पुष्पबूटियों का।......पुष्पबूटियों की यह दुनिया इतनी बड़ी है... इतनी विशाल! इतने रंग, इतने आकार, इतनी गन्ध, इतने उपयोग कि जानने, समझने-समझाने में ही सालों निकल जाएँ। मोनोकोलाइडिन्स में सबसे बड़ा परिवार पुष्पबूटियों का ही है।
अरुणाचल प्रदेश - भारत में सर्वाधिक पुष्पबूटी विविधता का कीर्तिमान
नेशनल रिसर्च सेंटर फाॅर आॅर्चिड, सिक्किम की एक रिसर्च के मुताबिक, हमारी पृथ्वी पर पुष्पबूटियों के करीब एक हजार वंश हैं और 25-30 हजार प्रजातियाँ। भिन्न ताजा शोधों के आँकड़े जरूर कुछ भिन्न हैं। ये कह रहे हैं कि बदलती जलवायु और मानवीय हस्तक्षेप के कारण पृथ्वी पर पुष्पबूटी प्रजातियों की संख्या घटी है। एक नया शोध पुष्पबूटी प्रजातियों की संख्या 20,000 बताता है। इसके हिसाब से भारत में मौजूदा पुष्पबूटी प्रजातियों की संख्या लगभग 1300 हैं। इनमें से 825 प्रजातियाँ अकेले पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों में पाई जाती हैं। इन 825 पुष्पबूटियों में से 622 पुष्पबूटियाँ अकेले अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती हैं। पूष्पबूटियों का पूरा खजाना है हमारा अरुणाचल प्रदेश।
एक ताजा शोध मानता है कि भारत में अब 1150 पुष्पबूटी प्रजातियाँ शेष बची हैं। अरुणाचल में इनकी ताजा संख्या 601 है; भारत में मौजूद पुष्प बूटियों की कुल संख्या का करीब 52 प्रतिशत। इस आँकड़े के हिसाब से भी भारत में सबसे अधिक पुष्पबूटी विविधता वाले प्रदेश का कीर्तिमान यदि किसी को हासिल है, तो वह है नाॅर्थ-ईस्ट स्थित अपना अरुणाचल प्रदेश - द आॅर्चिड पैराडाइज आॅफ इण्डिया। आप अरुणाचल को ‘द आॅर्चिड किंग्डम आॅफ इण्डिया’ भी कह सकते हैं।
कभी तिपि आइये
जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है कि आखिर क्या खास बात है, अपने अरुणाचल प्रदेश में कि पुष्पबूटियों को सबसे ज्यादा प्यार अरुणाचल प्रदेश से ही है? अरुणाचल की मिट्टी, तापमान, आर्द्रता, ऊँचाई या और कुछ? ये पुष्प बूटियाँ कौन सी हैं? कितनी व्यवसायिक हैं? कितनी सजावटी हैं? कितनी घरेलू अथवा औषधीय उपयोग की हैं? किसके नाम व नामकरण का आधार क्या है? यह जिज्ञासा भी होगी ही। मेरे मन में भी है। वैसे आप चाहें, तो जंगलों की सैर करते हुए भी पुष्पबूटियों की तलाश कर सकते हैं, किन्तु यदि हम उक्त सवालों का प्रमाणिक जवाब चाहते हैं, तो हमें अरुणाचल प्रदेश स्थित आॅर्चिड रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर अवश्य जाना चाहिए।
यह सेंटर अरुणाचल प्रदेश के जिला पश्चिमी कामेंग में तिपि नामक स्थान पर है। यह स्थान तेजपुर और बोमडिला के पास पड़ता है; गुवाहाटी से करीब 223 किलोमीटर दूर। तिपि से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर सेसा में स्थित आॅर्चिड सेंचुरी जाना भी न भूलें।
1972 में स्थापित तिपि स्थित आॅर्चिड रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर करीब 110 एकड़ में फैला है। इसमें 50 हजार से ज्यादा पुष्पबूटी पौधे हैं। इस केन्द्र में पुष्पबूटियों से सम्बन्धित कई अलग-अलग स्थान हैं: स्पेशिज हाउसेस, आॅर्चिड ग्लास हाउस, नेचुरल आॅर्चिडा, आॅर्चिड हारबेरियम, टिसु कल्चर लेबोरेट्री, हार्डनिंग यूनिट, आॅर्चिड म्यूजियम आदि। इस शोध एवं विकास केन्द्र के वैज्ञानिक अरुणाचल की इन 601 प्रजातियों को छह उप परिवारों में बाँटते हैं; सूक्ष्म स्तरीय वर्गीकरण करना हो, तो अरुणाचल की पुष्पबूटियों को 17 ट्राइब्स, 24 सब ट्राइब्स और 111 वंश में बाँटा जा सकता है।
पुष्पबूटी - तीन प्रमुख श्रेणियाँ
सुनहरी पीले आॅर्चिड को लें। यह ग्लेडिला स्पेशिज का आॅर्चिड है। इसके पौधे पर न पत्ती है, न क्लोरोफिल, मगर फूल हैं। ऐसे आॅर्चिड जैविक पदार्थों पर पैदा हो जाते हैं और जैविक पदार्थ से ही भोजन भी लेते हैं। ऐसे आॅर्चिड को हम जिस श्रेणी में रखते हैं, उसे 'सेप्रोफाइट्स कहते हैं।
खूब उपजाऊ मिट्टी में पैदा होने वाले करीब 132 आॅर्चिड्स को 'टेरेस्टरियल' श्रेणी में रखते हैं। इनकी एक खास पहचान यह है कि इन पर खूब पत्तियाँ होती हैं। जैसे अरुणदिना ग्रेमेनिफोलिया। अरुणदिना ग्रेमेनिफोलिया को आप बैम्बू आॅर्चिड कह सकते हैं।
'एपीफाइट्स' तीसरी श्रेणी है। पेड़ों के तने वाले उगने वाले आॅर्चिड.... वो क्या कहते हैं आप पुष्पबूटी... ओ यस, दूसरे आर्गेनिक मैटर पर उगने वाली पुष्पबूटियों को हम एपीफाइट्स कटेगरी मे रखते हैं। इनकी एक ही पहचान है कि इनकी जड़ें ऊपर की ओर निकली हुई होती हैं; जैसे सिम्बिडियम। इसकी खुशबू हवा में कुछ ऐसे फैल जाती है कि पता चल जाता है कि कहीं सिम्बिडियम का पौधा है। यहाँ के वांचू आदिवासी इन्हें रांगपु कहते हैं।
एपीफाइट्स श्रेणी में शामिल - वंदा कोरुलिया और रेंथारिया इम्सकूलटियाना नाम की पुष्पबूटियाँ भारत सरकार के वन्य जीव संरक्षण कानून की धारा चार के अन्तर्गत संरक्षित हैं। ये दोनों ही दुर्लभ और सजावटी श्रेणी की पुष्पबूटियाँ हैं। नीले रंग वाला वंदा कोरुलिया खासकर, त्योहार के मौके पर सजावट के काम आता है।
सबसे खास - लेडीज स्लीपर
अरुणाचल में एक से एक उपयोगी पुष्पबूटियाँ हैं। डेन्ड्रोबियम नोबिल का बीज रगड़कर ताजा घाव पर लगा लो, बहता खून रुक जाये। अरुणाचल के आदिवासी लिसोस्टोमा विलियमसोनी के पत्ते और तने का उपयोग हड्डी जोड़ने में करते हैं।
अरुणाचल की सबसे खास और पैतृक प्रजाति है -पेफियोपेउलमण महिलाओं की जूती के आकार की होने के कारण यह प्रजाति 'लेडीज स्लीपर' कहते हैं। यह प्रजाति अरुणाचल में भी सब जगह नहीं पाई जाती। दुर्लभ होने की वजह से लेडी स्लीपर को अरुणाचल से बाहर ले जाने पर रोक है।
अरुणाचल की पुष्पबूटियाँ भोजन भी हैं, सजावटी का सामान भी, दवा भी और गंध-सुगंध का खजाना भी। पुष्पबूटियों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने तिपि का केन्द्र आजकल छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाता है। कभी अरुणाचल आएँ, तो इस खुशबू खजाने से साक्षात्कार करना न भूलें।
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