(अरहर व बाजरा की मिश्रित खेती)
अरहर के साथ बाजरे की खेती दलहन के साथ जानवरों को चारा भी देती है। वैस तो अरहर की फसल लंबी अवधि की होती है, फिर भी बारिश की बाट जोहते किसान के लिए यह फसल लाभप्रद है।
सूखाग्रस्त कानपुर देहात जनपद का विकास खंड अमरौधा अत्यंत पिछड़ा इलाक़ा है, जहां सरकार की योजनाएं अपने असली स्वरूप में नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में वर्ष-दर-वर्ष बनती सूखा की स्थितियों ने इसे दुर्गम बना दिया है। यहां की मुख्य फसल धान, गेहूं होने के बाद भी लोगों की नाजुकता बनी रही, क्योंकि इन दोनों के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में लोगों ने अरहर के साथ बाजरे की मिश्रित खेती करने का मन बनाया, क्योंकि एक तो यह कम लागत वाली फसल होती है, जिसमें पानी की आवश्यकता न के बराबर होती है। दूसरे अरहर के साथ बाजरे की खेती करने से दलहन के साथ-साथ जानवरों का चारा भी मिल जाएगा। हालांकि अरहर लंबी अवधि की फसल होने के कारण मात्र एक ही फसल ली जा सकेगी, फिर भी सूखे की स्थिति में जबकि किसान वर्षा की बाट जोहता बैठा रहता है, ऐसे में यह फसल लाभप्रद सिद्ध होती है।
खेत की तैयारी
मई माह में सूखी जुताई करके खेत को छोड़ दिया जाता है। इससे उसके अनावश्यक खर-पतवार सूख जाते हैं। जुलाई माह में पहली वर्षा के पश्चात् दो बार जुताई की जाती है और उसमें एक ट्राली गोबर खाद डालकर खेत तैयार किया जाता है।
अरहर व बाजरा की खेती।
मुख्यतः देशी बीजों का ही उपयोग किया जाता है।
एक एकड़ खेत 2 किग्रा. अरहर एवं 500 ग्राम बाजरा का बीज आवश्यक होता है।
अरहर की बुवाई लाइनवार की जाती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी एक मीटर रखी जाती हैं और इनके बीच में दो कतार में बाजरा की बुवाई की जाती है, जिनकी आपस में दूरी 1.5 फीट होती है।
एक माह पश्चात् खेत की निराई की जाती है। निराई के समय जो पौधे कमजोर होते हैं, उन्हें निकाल कर पौध से पौध की दूरी 1.5 मीटर कर दी जाती है। इससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। बिरलीकरण के दौरान निकाले गए ये पौधे हरे चारे के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं।
बुवाई के 33-34 दिन बाद खेत में खाद डाली जाती है। एक एकड़ खेत में 25 किग्रा. यूरिया, 10 किग्रा. डी.ए.पी. मिलाकर डाली जाती है।
बाजरा तीन माह पश्चात् कट जाता है। जबकि अरहर की कटाई मार्च के अंत से शुरू हो जाती है।
एक एकड़ खेत से 2.18 कुन्तल बाजरा एवं 3.22 कुन्तल अरहर की प्राप्ति होती है। जबकि 4 कुन्तल हरा चारा एवं 3.31 कुं. जलौनी लकड़ी भी मिल जाती है।
अरहर के साथ बाजरे की खेती दलहन के साथ जानवरों को चारा भी देती है। वैस तो अरहर की फसल लंबी अवधि की होती है, फिर भी बारिश की बाट जोहते किसान के लिए यह फसल लाभप्रद है।
संदर्भ
सूखाग्रस्त कानपुर देहात जनपद का विकास खंड अमरौधा अत्यंत पिछड़ा इलाक़ा है, जहां सरकार की योजनाएं अपने असली स्वरूप में नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में वर्ष-दर-वर्ष बनती सूखा की स्थितियों ने इसे दुर्गम बना दिया है। यहां की मुख्य फसल धान, गेहूं होने के बाद भी लोगों की नाजुकता बनी रही, क्योंकि इन दोनों के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में लोगों ने अरहर के साथ बाजरे की मिश्रित खेती करने का मन बनाया, क्योंकि एक तो यह कम लागत वाली फसल होती है, जिसमें पानी की आवश्यकता न के बराबर होती है। दूसरे अरहर के साथ बाजरे की खेती करने से दलहन के साथ-साथ जानवरों का चारा भी मिल जाएगा। हालांकि अरहर लंबी अवधि की फसल होने के कारण मात्र एक ही फसल ली जा सकेगी, फिर भी सूखे की स्थिति में जबकि किसान वर्षा की बाट जोहता बैठा रहता है, ऐसे में यह फसल लाभप्रद सिद्ध होती है।
प्रक्रिया
खेत की तैयारी
मई माह में सूखी जुताई करके खेत को छोड़ दिया जाता है। इससे उसके अनावश्यक खर-पतवार सूख जाते हैं। जुलाई माह में पहली वर्षा के पश्चात् दो बार जुताई की जाती है और उसमें एक ट्राली गोबर खाद डालकर खेत तैयार किया जाता है।
फसल चयन
अरहर व बाजरा की खेती।
बीज की प्रजाति
मुख्यतः देशी बीजों का ही उपयोग किया जाता है।
बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत 2 किग्रा. अरहर एवं 500 ग्राम बाजरा का बीज आवश्यक होता है।
बुवाई का समय व विधि
अरहर की बुवाई लाइनवार की जाती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी एक मीटर रखी जाती हैं और इनके बीच में दो कतार में बाजरा की बुवाई की जाती है, जिनकी आपस में दूरी 1.5 फीट होती है।
निराई व विरलीकरण
एक माह पश्चात् खेत की निराई की जाती है। निराई के समय जो पौधे कमजोर होते हैं, उन्हें निकाल कर पौध से पौध की दूरी 1.5 मीटर कर दी जाती है। इससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। बिरलीकरण के दौरान निकाले गए ये पौधे हरे चारे के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं।
खाद
बुवाई के 33-34 दिन बाद खेत में खाद डाली जाती है। एक एकड़ खेत में 25 किग्रा. यूरिया, 10 किग्रा. डी.ए.पी. मिलाकर डाली जाती है।
तैयार होने की अवधि व कटाई
बाजरा तीन माह पश्चात् कट जाता है। जबकि अरहर की कटाई मार्च के अंत से शुरू हो जाती है।
उपज
एक एकड़ खेत से 2.18 कुन्तल बाजरा एवं 3.22 कुन्तल अरहर की प्राप्ति होती है। जबकि 4 कुन्तल हरा चारा एवं 3.31 कुं. जलौनी लकड़ी भी मिल जाती है।
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