रिपोर्ट के अनुसार गंगा बेसिन में 12000 एमएलडी घरेलू सीवेज है जबकि एसटीपी क्षमता 3750 एमएलडी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार अब भी प्रथम और द्वितीय श्रेणी के शहरों से हर दिन 38254 मिलीयन लीटर एमएलडी सीवेज निकल रहा है जबकि एसटीपी क्षमता महज 11787 एमएलडी है।
पूरी दुनिया सहित भारत में पानी की कमी बड़े पैमाने पर होने वाली है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘विश्व जल विकास रिपोर्ट’ तो यही तस्वीर दिखा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के कई हिस्सों में पानी की गंभीर समस्या है और हर तरफ इसकी फिजूलखर्ची रोकनी ही होगी, क्योंकि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी के नौ अरब के आंकड़े तक पहुंचने का अनुमान है। जनसंख्या के दबाव में कृषि की बढ़ती जरूरतों, अनाज की ऊपज, ऊर्जा खपत, प्रदूषण और जल प्रबंधन की कमजोरियों की वजह से साफ पानी की उपलब्धता कम होती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में दुनिया के मात्र चार फीसद नए जलस्रोत हैं जबकि जनसंख्या विश्व की कुल आबादी की 17 फीसद है। राष्ट्रीय जलनीति प्रारूप 2012 के मुताबिक देश में 4000 अरब घनमीटर (बीसीएम) वर्षा होती है। लेकिन इसमें से 1123 बीसीएम जल ही उपयोग में लाया जा रहा है। देश के दो तिहाई भूजल भंडार खाली हो चुके हैं। जो बचे हैं, वे प्रदूषित होते जा रहे हैं। हालत यह है कि नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है।
गंगा की त्रासदी : यूपी में 12 फीसद रोगों की जननी
देश की लगभग 50 फीसद आबादी की निर्भरता व उत्तर भारत की जीवन रेखा गंगा नदी का अस्तित्व भी खतरे में है। भारत में कुल 2,071 किमी के बहाव और 10 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल का व्यापक उपजाऊ मैदान तैयार करने वाली यह नदी कई तरह की त्रासदी की शिकार है। गंगा के पानी में बैक्टिरियोफेज विषाणु की मौजूदगी के कारण गंगा अब काफी मैली हो चुकी है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार यूपी में 12 फीसद बीमारियों की वजह ‘गंगा का पानी’ है। औद्योगिक और घरेलू कचरे की बहुतायत ने इसे इस कदर प्रदूषित किया है कि इसका बायोलाजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री सामान्य से बढ़कर दोगुनी छह डिग्री हो गया है। इसकी वजह, रोज उसमें दो करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरे का गिरना है। हालांकि गंगा के पानी को साफ करने के लिए काफी सरकारी पैसा बहाया जा चुका है।
डेढ़ दशक में 39 फीसद लक्ष्य हासिल हुआ
दरअसल, गंगा के संरक्षण का सरकारी प्रयास दिसम्बर 1984 में शुरू हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती पर पर्यावरण मंत्रालय ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने हेतु ‘गंगा एक्शन प्लान’ (गैप) बनाया। योजना का प्रथम चरण 1985 में शुरू किया गया, जिसे 1990 तक पूरा कर लेना था पर उसे 2000 तक बढ़ाया गया। गैप का दूसरा चरण 1993 से शुरू हुआ। 1996 में गैप को राष्ट्रीय नदी संरक्षण परियोजना (एनआरसीपी) में शामिल कर दिया गया। जो 20 राज्यों के 164 शहरों की 35 गंदी नदियों के संरक्षण के लिए बनी है। एमसी मेहता बनाम भारत सरकार के मामले में 2009 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर योजना आयोग के जल संसाधन अनुभाग ने गैप पर हुए खर्च की फंड यूटीलिटी रिपोर्ट दाखिल किया जिसके अनुसार गंगा एक्शन प्लान के तहत सबसे पहले 247.5 करोड़ रुपये मंजूर किए गए। पहले चरण में 1097.9 एमएलडी की क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) तैयार करने के लक्ष्य के बदले 228.3 करोड़ रुपये खर्च करके 1016.6 एमएलडी की एसटीपी बनाते हुए 92.6 फीसद लक्ष्य पूरा कर लिया गया। 11वीं पंचवर्षीय योजना में भी गैप के लिए 2100 करोड़ रुपया का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत 2007 से 2010 तीन साल तक 782.93 करोड़ और अगले दो साल में 1317 करोड़ खर्च हुए। रिपोर्ट के अनुसार गंगा बेसिन में 12000 एमएलडी घरेलू सीवेज है जबकि एसटीपी क्षमता 3750 एमएलडी है। गौरतलब तो यह है कि गंगा की सफाई संबंधी योजना आयोग द्वारा 92 फीसद लक्ष्य पूरे होने के उक्त दावों की पोल कैग उस रिपोर्ट से खुल जाती है जिसके मुताबिक गैप के पहले चरण में 901.71 करोड़ खर्च हुए और 15 सालों में सीएपी का लक्ष्य महज 39 फीसद रहा।
संसद में पेश किए गए केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार गत वित्तीय वर्ष तक गंगा एक्शन प्लान के तहत उप्र में 1107.82, बिहार में 92.07, प. बंगाल में 656.22, उत्तराखंड में 81.20 और झारखंड में 4.45 मिलाकर कुल 1941.76 करोड़ गंगा की सफाई पर खर्च किए जा चुके हैं। फिर भी गंगा मैली की मैली ही है और दिनोदिन और गंदी होती जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार अब भी प्रथम और द्वितीय श्रेणी के शहरों से हर दिन 38254 मिलीयन लीटर एमएलडी सीवेज निकल रहा है जबकि एसटीपी क्षमता महज 11787 एमएलडी है।
योजना ही योजनाएं सफाई की
गंगा की सफाई में फेल हो चुकी चौतरफा घिरी सरकार ने नए सिरे से कदम उठाते हुए आजादी के 62 सालों बाद गंगा नदी को नवम्बर 2008 में राष्ट्रीय नदी और इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किमी) की धारा को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया। इसी क्रम में 2009 में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) का गठन किया गया। इसके तहत विश्व बैंक की मदद से गंगा नदी को साफ करने के लिए 7,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। जिसमें 5100 करोड़ रुपये केंद्र सरकार और शेष 1900 करोड़ रुपये का इंतजाम उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारें करेंगी। इसका मुख्य उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण और उसके पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है। एनजीआरबीए गंगा सफाई अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विशेष संस्थान गठित करेगा। साथ ही उसे स्थानीय संस्थानों को भी मजबूत बनाना है ताकि वे गंगा की सफाई में लंबी अवधि में अपनी भूमिका निभा सकें। एनजीआरबीए के माध्यम से गंगा ज्ञान केंद्र भी स्थापित किए जाने हैं और इसकी मदद से प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड को भी ज्यादा सशक्त बनाया जाएगा जिससे गंगा की सफाई के लिए हर संस्थान अपनी भूमिका निभा सकें। गंगा के किनारे बसने वाले शहरों में निकासी व्यवस्था सुधारने और इन शहरों में औद्योगिक प्रदूषण को दूर करने की जिम्मेदारी भी एनजीआरबीए पर है। दुर्भाग्य है कि दो साल से भी अधिक समय बीतने के बाद भी एनजीआरबीए की सक्रियता दिखाई नहीं पड़ती। अलबत्ता गंगा में शुद्ध पानी के बजाय पानी की तरह पैसा जरूर बह रहा है। लेकिन गंगा का खनन, क्षरण और बर्बादी अनवरत है और जारी है स्वामी निगमानंद और जीडी अग्रवाल जैसे गंगा पुत्रों का संघर्ष भी।
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