रासायनिक खेती के निरंतर परिलक्षित होते हानिकारक दुश्प्रभावों को समझकर प्राकृतिक खेती को अपनाने का आग्रह लगातार प्रबल हो रहा है। देश के कई राज्य प्राकृतिक खेती के विस्तार में निरंतर संलग्न हैं, वहीं पड़ोसी देशों में भी प्राकृतिक खेती को अपनाने की इच्छा प्रबल हो रही है। पिछले कुछ सप्ताह में हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित प्राकृतिक कृषि फार्म पर देश के पूर्व राष्ट्रपति, कई प्रदेशों के राज्यपालों सहित विदेशी प्रतिनिधिमंडल का आगमन हुआ। इन सभी ने प्राकृतिक कृषि की प्रभावोत्पादकता का स्वयं अनुभव करते हुए इसे अपनाने और प्रसारित करने का संकल्प लिया।
नेपाल भी रासायनिक खाद और पेस्टिसाइट्स का उपयोग बंद करके प्राकृतिक कृषि पद्धति अपनाने के लिए उत्सुक है। पिछले दिनों नेपाल के अर्थशास्त्री, प्रगतिशील किसान और नेपाल सरकार के कृषि एवं पशुधन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल प्राकृतिक कृषि पद्धति एवं इसके लाभों की जानकारी प्राप्त करने
के लिए हरियाणा कुरुक्षेत्र स्थित प्राकृतिक कृषि फार्म के प्रवास पर रहे।
कुछ समय पहले नेपाल के प्रधानमंत्री ने रासायनिक खाद की आपूर्ति के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उनको रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक कृषि पद्धति अपनाने का सुझाव दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने इसके लिए आवश्यक मार्गदर्शन देने की तैयारी भी दर्शायी थी। इस संदर्भ में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के माध्यम से नेपाल सरकार का 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल कुरुक्षेत्र प्राकृतिक कृषि फार्म पर प्राकृतिक कृषि पद्धति की विस्तृत जानकारी लेने आया। गुजरात के वर्तमान राज्यपाल एवं प्राकृतिक खेती के विस्तार में समर्पित आचार्य देवव्रत के दिशा निर्देशन में संचालित कुरुक्षेत्र स्थित प्राकृतिक कृषि फार्म में नेपाल के प्रतिनिधिमंडल को प्राकृतिक कृषि पद्धति के बारे में सिलसिलेवार जानकारी दी गई
'प्राकृतिक कृषि पद्धति केवल गाय के गोबर एवं गोमूत्र से बिना किसी लागत के खेती की जा सकती है। जैसे-जैसे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है, उत्पादन बढ़ता है। इतना ही नहीं, एक स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद प्राप्त होता है। पानी की जरूरत कम हो जाती है, जमीन की नमी ही फायदों से भरपूर होती है। एक साथ कई फसलें उगाई जा सकती हैं। यदि किसानों की आय दोगुनी करनी है और भारी बारिश, सूखा या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान से बचना है तो यह प्राकृतिक खेती पद्धति से ही संभव होगा'।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने सभी को तकनीकी जानकारी दी। नेपाल के विदेश मंत्रालय के अपर सचिव गोकुल के नेतृत्व में आये अधिकारियों के इस दल ने ३ दिनों तक रहकर प्राकृतिक खेती की बारीकियां और वैज्ञानिक पहलुओं को समझा।
सर्वविदित है कि रासायनिक खेती में यूरिया, डीएपी और कीटनाशक दवाओं का भारी मात्रा में उपयोग करना पड़ता है। यह खर्चीला भी है और जमीन को भी नुकसान करता हैं। जबकि प्राकृतिक खेती में मात्र गाय के गोबर और गौमूत्र द्वारा कम खर्च से खेती करके भारी उत्पादन लिया जा सकता है। प्राकृतिक खेती से कृषि उत्पादन में कमी नहीं आती बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ोतरी होती है। देश में जब अन्त की भारी आवश्यकता थी तब हरित क्रांति द्वारा हमने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खेती अपनाई यूरिया, डीएपी और कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग किया। इससे जमीन की कार्यक्षमता घटी। इतना ही नहीं, जमीन बंजर और अनुपजाऊ बन गई। रासायनिक खेती के कारण जमीन का ऑर्गेनिक कार्बन 0.5 से भी नीचे चला गया है। अब इस जमीन को पुनः कार्यक्षम बनाने के लिए प्राकृतिक कृषि ही एकमात्र विकल्प है।
यही कारण है कि प्राकृतिक खेती के प्रति आकर्षण निरंतर बढ़ रहा है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत के मार्गदर्शन एवं प्रयासों से गुजरात इसका प्रमुख केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। प्राकृतिक खेती मिशन में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल और राज्य सरकार द्वारा जनजागृति के महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इसी क्रम में बीते दिनोंपं चमहल जिले की हालोल तहसील के ताजपुरा स्थित श्री नारायण आरोग्य अन्नपूर्णा धाम और गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान युनिवर्सिटी के संयुक्त तत्वावधान में प्राकृतिक कृषि परिसंवाद और विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान करने का समारोह आयोजित किया गया। हालोल की धरती को विश्व की प्रथमः गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान युनिवर्सिटी की भेंट मिली, यह गौरव की बात है। पंचमहाल में किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि कि वर्तमान समय में प्राकृतिक कृषि की नितांत जरूरत है। देशभर में प्राकृतिक कृषि अपनाने का अभियान चल रहा है। यह एकमात्र खेती है जिससे जमीन उपजाऊ और नर्म बनती है।
बरसाती पानी ज्यादा मात्रा में जमीन में उतरता है। खेती में बरसाती जल से होने वाला व्यापक नुकसान रुकता है। खेती खर्च में कमी आती है और आय में वृद्धि होती है। अपने अनुभव साझा करते हुए आचार्य देवव्रत ने बताया कि मैंने स्वयं प्राकृतिक कृषि अपनाकर धरतीमाता को उपजाऊ बनाया है। उत्पादन में वृद्धि के साथ देश को पोषणयुक्त अनाज फसल मिले, किसानों को ज्यादा आय हो, लोग तंदुरुस्त बने, इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। गुजरात में पिछले चार वर्ष में प्राकृतिक खेती अभियान बहुत ही प्रभावी ढंग से चलाया जा रहा है। आजराज्य के 8.5 लाख से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। प्राकृतिक कृषि का दायरा बढ़ेगा तो मनुष्य और धरती का स्वास्थ्य सुधरेगा। पर्यावरण भी सुधरेगा और किसानों की आय दोगुनी होगी। गुजरात विधानसभा सदन के साथी पक्षों सहित तमाम सदस्यों ने प्रदेशहित में प्राकृतिक कृषि युनिवर्सिटी सुधार विधेयक को सहर्ष सर्वानुमति से पारित किया, इसके लिए सभी का अभिनन्दन है।
एक देशी गाय के गोबर- गौमूत्र से बिल्कुल कम कुछ समय पहले नेपाल के प्रधानमंत्री ने रासायनिक खाद की आपूर्ति के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उनको रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक कृषि पद्धति अपनाने का सुझाव दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने इसके लिए आवश्यक मार्गदर्शन देने की तैयारी भी दर्शायी थी। इस संदर्भ में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के माध्यम से नेपाल सरकार का 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल कुरुक्षेत्र प्राकृतिक कृषि फार्म पर प्राकृतिक कृषि पद्धति की विस्तृत जानकारी लेने आया खर्च पर होने वाली प्राकृतिक खेती से किसानों की आय तो दोगुनी होगी ही वरन् समाज का स्वास्थ्य भी सुधरेगा। जानलेवा रोगों से मुक्ति मिलेगी और पर्यावरण भी सुधरेगा। प्राकृतिक कृषि पद्धति का दायरा बढ़ेगा तो देश में सोने का सूर्योदय होगा, ऐसा कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है।
गुजरात में प्राकृतिक खेती को अधिकाधिक विस्तारित करने के उद्देश्य से प्राकृतिक खेती की सफलता और इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जानने के लिए गुजरात के सभी जिला विकास अधिकारी कुछ दिन पूर्व कुरूक्षेत्र पहुंचे। मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के अनुरोध पर राज्य के कलेक्टरों और जिला विकास अधिकारियों की प्राकृतिक कृषि फार्म की यात्रा की व्यवस्था की गई। यह यात्रा अगले दो वर्षों में गुजरात को पूर्ण प्राकृतिक खेती वाला राज्य बनाने के अभियान को और बढ़ावा देगी। इस दौरान जिला विकास अधिकारियों को प्राकृतिक कृषि फार्म की विस्तृत जानकारी देते हुए आचार्यन देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक कृषि पद्धति केवल गाय के गोबर एवं गौमूत्र से बिना किसी लागत के खेती की जा सकती है। जैसे-जैसे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है, उत्पादन बढ़ता है। इतना ही नहीं, एक स्वस्थ और अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद प्राप्त होता है। पानी की जरूरत कम हो जाती है, जमीन की नमी ही फायदों से भरपूर होती है। एक साथ कई फसलें उगाई जा सकती हैं। यदि किसानों की आय दोगुनी करनी है और भारी बारिश, सूखा या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान से बचना है तो यह प्राकृतिक खेती पद्धति से ही संभव होगा।
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से हम कृषि उपज के साथ धीमा जहर ले रहे हैं, जो बेहद हानिकारक है। प्राकृतिक खेती से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग खत्म हो जाएगा, जिससे हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ पृथ्वी का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा जा सकेगा। वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती अनेक समस्याओं का समाधान है। आचार्य देवव्रत का संकल्प है कि सभी के संयुक्त प्रयासों से गुजरात को जहरमुक्त बनाना है और किसानों की आय दोगुनी करनी है। प्राकृतिक कृषि पद्धति की सफलता निहारने और प्राकृतिक खेती की वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गुजरात के मुख्य सचिव श्री राजकुमार जी और राज्य के तमाम कलेक्टर्स ने हरियाणा कुरुक्षेत्र प्राकृतिक कृषि फार्म का भ्रमण किया।
गुजरात में प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। पिछले चार वर्ष के दौरान राज्य में 7.75 लाख किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनायी है। प्रति माह 3.30 लाख लोगों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी जाती है।;
कुरुक्षेत्र प्राकृतिक कृषि फार्म में गौमूत्र से जीवामृत बनाने का विशाल प्लांट है। इस प्लांट की जानकारी दी। कमलम फल के लिए हरियाणा की भूमि अनुकूल नहीं है, इसके बावजूद प्राकृतिक कृषि पद्धति से कमलम् फल का उत्पादन शुरु हुआ है। कम पानी में भी भारी उत्पादन सभी ने देखा। मिश्र फसल पद्धति, आच्छादन, वाप्सा की जानकारी और केंचुए जैसे मित्र जीव कैसे कार्य करते हैं, इसकी जानकारी दी। प्राकृतिक कृषि फार्म का आश्चर्य दिखलाए, इतने ऊंचे गन्ने की फसल भी दिखलायी। सिंगोड़ा और अमरूद जैसे फलों की फसल और मधुमक्खी पालन का दर्शन भी किया। कुरुक्षेत्र प्राकृतिक कृषि फार्म में ही गन्ने के रस से गुड़ बनाने की पद्धति समझायी गई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्राकृतिक खेती पद्धति के प्रबल पक्षधर हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि उनके किचन गार्डन में प्राकृतिक कृषि पद्धति से साग-सब्जियां उगाई जा रही है। प्रधानमंत्री जब भी गुजरात राजभवन आते हैं, प्राकृतिक खेती पर लम्बी चर्चा करते हैं। ऐसा ही देश के गृहमंत्री अमित शाह का भी विचार है। गुजरात के सभी जिला कलक्टर्स को गुरुकुल के दौरे हेतु भेजने का आग्रह गृहमंत्री और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल द्वारा किया गया ताकि अधिकारीगण गुरुकल के कषि फार्म पर प्राकृतिक खेती का साक्षात्कार कर सके।
गुजरात में अगस्त- 2023 तक 8,71,000 किसानों ने प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया है। अगले दो वर्षों में गुजरात को पूरी तरह से जहरमुक्त खेती वाला प्राकृतिक प्रदेश का अभियान पूरी गति से चल रहा है। प्रयास गुजरात को ऐसा राज्य बनाने का है कि पूरा देश गुजरात से प्रेरणा ले;
आचार्य देवव्रत का संकल्प है कि आगामी दो वर्ष में गुजरात को सम्पूर्ण प्राकृतिक कृषि करने वाला। राज्य बनाना है। गुजरात समग्र देश के लिए प्रेरणास्रोत बने, इस प्रकार के प्रयास और कार्य करने हैं। जैसे योग से समग्र विश्व में भारत ने अनोखी पहचान खड़ी की है, वैसे ही प्राकृतिक कृषि से भी भारत की विशेष पहचान खड़ी हो, और इसके लिए गुजरात नेतृत्व करे, यही आज समय की मांग है। गुजरात में अगस्त-2023 तक 871,000 किसानों ने प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाया है। अगले दो वर्षों में गुजरात को पूरी तरह से जहरमुक्त खेती वाला प्राकृतिक प्रदेश बनाने का अभियान पूरी गति से चल रहा है। प्रयास गुजरात को ऐसा राज्य बनाने का है कि पूरा देश गुजरात से प्रेरणा लें। जिस प्रकार योग से पूरे विश्व में भारत ने एक विशिष्ट पहचान बनाई है, उसी प्रकार प्राकृतिक खेती से भी विश्व स्तर पर भारत की एक विशिष्ट पहचान बनाने के लिए गुजरात दुनिया को संदेश देगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग पूर्णतया बंद होने को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल भी गुजरात को पूरी तरह से प्राकृतिक खेती वाला राज्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी का परिणाम है कि राज्य का डांग जिला पूरी तरह प्राकृतिक कृषि पर आधारित जिला बन गया है। गुजरात में घनी आदिवासी आबादी वाले अन्य जिलों को डांग जिले की तरह पूर्णतया प्राकृतिक खेती आधारित जिला बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। अधिकारियों को डांग जिले के प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के अनुभवों का लगातार अध्ययन करने और उन्हें प्रशिक्षण से अपडेट रखने का सुझाव दिया गया है।
गुजरात में प्राकृतिक खेती पद्धति का निरंतर विस्तार हो रहा है और 7.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है। कृषि विभाग द्वारा अधिक से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पिछले चार महीनों में 1264,000 किसानों को उनके घर पर ही प्रशिक्षण दिया गया है। अब तक 8,441 गांव ऐसे हैं जिनमें 75 से अधिक किसानों ने प्राकृतिक कृषि प्रणाली अपनाई है। गुजरात में प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। पिछले चार वर्ष के दौरान राज्य में 7.75 लाख किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनायी है। प्रति माह 3.30 लाख लोगों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी जाती है। गुजरात की भूमि को आने वाले दो वर्ष में जहरमुक्त करने का लक्ष्य है।
वर्तमान समय में प्राकृतिक कृषि के साथ जुड़कर पोषक अनाज फसल मिले, किसानों की आय बढ़े, लोग तंदुरुस्त बने, इसके लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं। बढ़ते जा रहे ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभाव को कम करने, कृषि उत्पादन बढ़ाने और स्वास्थ्यप्रद जीवन के लिए प्राकृतिक कृषि ही एकमात्र असरदार उपाय है। अगर रासायनिक खाद का उपयोग घटाया नहीं गया तो आगामी 50 वर्ष में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के कारण जमीन पूरी तरह से अनुपजाऊ बन जाएगी। जबकि प्राकृतिक कृषि से जमीन के पोषक तत्व बने रहते हैं और बरसाती जल के जमीन में उतरने के कारण जमीन का जलस्तर भी ऊपर आता है।
-लेखक श्रीकृष्ण चौधनी,लोक भारती के राष्ट्रीय संपर्क प्रमुख हैं।
लोक सम्मान
स्रोत :- प्राकृतिक कृषि फार्म गुरुकुल कुरुक्षेत्र, हरियाणा
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