इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायर्नमेंट एंड डेवलपमेंट ने विश्व बैंक के लिए गुजरात के लकड़ी बाजार का एक अध्ययन किया था। वर्तमान बाजार की मांग अगर निकट भविष्य में पूरी हो जाती है तो इस स्थिति का असर किसानों की वन-खेती पर उलटा पड़ सकता है। इस आशंका से परेशान विश्व बैंक ने अपना सारा ध्यान व्यापारिक लकड़ी की मांग बनाए रखने के लिए नए बाजार ढूंढने पर लगाया है। जैसे शहरी ईंधन की मांग, निर्माण कार्य में लगने वाले शहतीर, मोटे लाट, लुगदी के योग्य लकड़ी और दूसरे भी कई लकड़ी के उत्पाद जैसे कोयला, खैर (चमड़ा पकाने के काम आने वाला अर्क) और कत्था। लेकिन उस अध्ययन में गरीब के उपयोग में आने वाला गैर-व्यापारिक लकड़ी के बारे में जिक्र तक नहीं है मानो गुजरात की सामाजिक वानिकी के उद्देश्यों में वह कभी था ही नहीं।
चूंकि विश्व बैंक को इसी अध्ययन के आधार पर दूसरे राज्यों में भी सामाजिक वानिकी की योजना तैयार करनी है, इसलिए इसमें सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देने के लिए व्यापारिक लकड़ी के बाजार के विस्तार के बारे में बड़ी तफसील से चर्चा की गई है। अध्ययन के आखिर में कहा गया है, “हिंदुस्तान में लकड़ी के सामान की मांग बहुत ज्यादा है। पर पर्याप्त कच्चे माल के अभाव में इसका बाजार नहीं पनप पा रहा।” अगर कच्चा माल सामाजिक वानिकी के जरिये मिलने लगे तो आशा की जा सकती है कि नये वन उत्पाद आधारित उद्योग पनप सकते हैं, खासकर कागज और लुगदी उद्योग, लकड़ी के सामान, लकड़ी चीरने के उद्योग आदि।
अध्ययन में गुजरात के लक्कड़ बाजार के विस्तार के अनेक नए अवसरों की भी चर्चा है मिसाल के तौर पर, इसमें जानकारी दी गई है कि अनेक किसान छोटे आकार की ग्रामीण यांत्रिक लुगदी कारखाने में खोले जाने के बारे में भी सोच रहे हैं ताकि सफेदे का उपयोग वहीं-का-वहीं हो सके। वे कृषि उद्योग बोर्ड तथा गुजरात ऊर्जा विकास प्राधिकरण के साथ इस पर भी चर्चा कर रहे हैं ताकि सफेदे का उपयोग वहीं-का-वहीं हो सके। वे कृषि उद्योग बोर्ड तथा गुजरात ऊर्जा विकास प्राधिकरण के साथ इस पर भी चर्चा कर रहे हैं कि लकड़ी पर आधारित बिजली उत्पादन संयंत्र लगाए जाएं जिनमें पैदा होने वाली बिजली को राज्य खरीद ले और उसे केंद्रीय ग्रिड शामिल कर ले।
इस तरह के वृक्ष ताप बिजलीघर के बारे में ज्योति लिमिटेड नामक कंपनी भी प्रयास कर रही है। इस कंपनी ने लकड़ी जलाकर चलने वाले एक सिंचाई पंप का डिजाइन तैयार किया है। एक और कंपनी लकड़ी जलाकर भावनगर इलाके में हार्डबोर्ड का कारखाना लगाने की कोशिश में हैं। अच्छी किस्म के सफेदे का उपयोग तटवर्ती जहाज निर्माण उद्योग में भी हो सकता है। इन सबके कारण लकड़ी के उत्पादन, बिक्री और विकास योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन जो आज लकड़ी की कमी से तंग है, उनकी तंगी तो और भी बढ़ जाएगी।
चूंकि विश्व बैंक को इसी अध्ययन के आधार पर दूसरे राज्यों में भी सामाजिक वानिकी की योजना तैयार करनी है, इसलिए इसमें सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देने के लिए व्यापारिक लकड़ी के बाजार के विस्तार के बारे में बड़ी तफसील से चर्चा की गई है। अध्ययन के आखिर में कहा गया है, “हिंदुस्तान में लकड़ी के सामान की मांग बहुत ज्यादा है। पर पर्याप्त कच्चे माल के अभाव में इसका बाजार नहीं पनप पा रहा।” अगर कच्चा माल सामाजिक वानिकी के जरिये मिलने लगे तो आशा की जा सकती है कि नये वन उत्पाद आधारित उद्योग पनप सकते हैं, खासकर कागज और लुगदी उद्योग, लकड़ी के सामान, लकड़ी चीरने के उद्योग आदि।
अध्ययन में गुजरात के लक्कड़ बाजार के विस्तार के अनेक नए अवसरों की भी चर्चा है मिसाल के तौर पर, इसमें जानकारी दी गई है कि अनेक किसान छोटे आकार की ग्रामीण यांत्रिक लुगदी कारखाने में खोले जाने के बारे में भी सोच रहे हैं ताकि सफेदे का उपयोग वहीं-का-वहीं हो सके। वे कृषि उद्योग बोर्ड तथा गुजरात ऊर्जा विकास प्राधिकरण के साथ इस पर भी चर्चा कर रहे हैं ताकि सफेदे का उपयोग वहीं-का-वहीं हो सके। वे कृषि उद्योग बोर्ड तथा गुजरात ऊर्जा विकास प्राधिकरण के साथ इस पर भी चर्चा कर रहे हैं कि लकड़ी पर आधारित बिजली उत्पादन संयंत्र लगाए जाएं जिनमें पैदा होने वाली बिजली को राज्य खरीद ले और उसे केंद्रीय ग्रिड शामिल कर ले।
इस तरह के वृक्ष ताप बिजलीघर के बारे में ज्योति लिमिटेड नामक कंपनी भी प्रयास कर रही है। इस कंपनी ने लकड़ी जलाकर चलने वाले एक सिंचाई पंप का डिजाइन तैयार किया है। एक और कंपनी लकड़ी जलाकर भावनगर इलाके में हार्डबोर्ड का कारखाना लगाने की कोशिश में हैं। अच्छी किस्म के सफेदे का उपयोग तटवर्ती जहाज निर्माण उद्योग में भी हो सकता है। इन सबके कारण लकड़ी के उत्पादन, बिक्री और विकास योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन जो आज लकड़ी की कमी से तंग है, उनकी तंगी तो और भी बढ़ जाएगी।
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