अब ग्रामीण खुद ही करेंगे थपाना नदी की पहरेदारी

अंतरराष्ट्रीय नदी दिवस पर लिया था गोद, कहा-न खुद पानी को प्रदूषित करेंगे, न होने देंगे


थपाना प्राकृतिक धारा को गोद लेने के दौरान नदी मित्र मंडली व यमुना सेवा समिति कनालसी के सदस्य।थपाना प्राकृतिक धारा को गोद लेने के दौरान नदी मित्र मंडली व यमुना सेवा समिति कनालसी के सदस्य।नदी, अक्षर सिर्फ ढाई हैं लेकिन इसके मायने बहुत बड़े हैं। नदी सिर्फ पानी का रास्ता भर नहीं है। यह संस्कृति है...जीवन है...सभ्यता है। नदी से सब जुड़ा है। जाहिर है, नदी नहीं तो सब गड़बड़। फिर इससे हम कैसे अछूते रह सकते हैं। यह तथ्य ग्रामीण जानते हैं तभी तो वह अपनी नदी को बचाने के लिए एकजुट हुए हैं।

नदियों व नहरों का अस्तित्व बचाने व उन्हें साफ सुथरा रखने के लिए सरकारों के प्रयास गति नहीं पकड़ रहे हैं और करोड़ों खर्च करने के बाद भी परिणाम शून्य ही मिल रहा है। यमुना सेवा समिति द्वारा नदियों को बचाने के लिए कई बार कार्य किया गया है और इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री व जिला प्रशासन से भी सहयोग की अपील की है।समाज में फैल रही बुराइयों के प्रति तो यह संस्था शुरू से लड़ाई लड़ रही है लेकिन अब इस संस्था द्वारा थपाना नदी को बचाने का भी संकल्प लिया गया है और साथ ही आसपास क्षेत्र के सभी लोगों को भी इस दिशा में जागरूक किया गया है ताकि इस नदी को बचाया जा सके। इस संबंध में बच्चों को भी स्कूलों में जाकर जागरूक किया जा रहा है ताकि किसी प्रकार की कोई गंदगी नदी व किसी नहर में न बहाई जाए। छोटे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी इस दिशा में पोस्टर प्रतियोगिता आदि के माध्यम से जागरूक करने का काम किया गया। अब देखना यह है कि यमुना सेवा समिति अपने इस मकसद में किस हद तक कामयाब होती है।

रविवार को अंतरराष्ट्रीय नदी दिवस को थपाना नदी के तट पर रहने वाले ग्रामीणों ने थपाना दिवस का नाम दिया। फैसला लिया कि इस दिन को वह हर साल थपाना नदी के तौर पर मनाएंगे। मडौली, दमोपुरा, गादीपुर, कनालसी, भोगपुर, मेहरमाजरा, टापूमाजरी के ग्रामीणों व यमुना सेवा समिति ने बैठक कर कहा कि वह अपनी नदी को बचाकर रखेंगे क्योंकि नदी नहीं तो वह भी नहीं।

क्यों पड़ी जरूरत


मंडौली गांव के अरविंद कहते हैं, 'हम विस्थापित नहीं होना चाहते। जुड़े रहना चाहते हैं अपनी जड़ से। हमारी जड़ नदियां सींचती हैं। पानी के बिना कैसे रह पाएंगे। यमुना नदी का सारा पानी हथनी कुंड बैराज में रोक लिया है। नदी और वहां के लोग एक-दूसरे के पूरक होते हैं। ये बात कोई समझ नहीं रहा। यहीं वजह है कि आज नदियां मात्र दोहन के लिए रह गई। कोई नहीं सोचता एक बड़ी आबादी नदी के सहारे ही रोजी-रोटी जुटाती है। नदी मरती है तो उसके आसपास रहने वाले लोग भी मर जाते हैं।'

पहल तो करनी होगी


यमुना सेवा समिति कनालसी के अनिल शर्मा व किरण पाल राणा कहते हैं कि पहल तो करनी होगी। हमें अपना जल, जंगल और जमीन बचानी होगी क्योंकि इनमें से यदि एक भी चीज बिगड़ी है खमियाजा सबको भुगतना पड़ेगा। आज नदियां किसी के एजेंडे में नहीं है। कम से कम सरकार तो इस ओर ध्यान नहीं दे रही। यमुना का सारा पानी निचोड़ लिया लेकिन उस पर एक पैसा खर्च नहीं हो रहा। थपाना इस क्षेत्र की नदी है। इसका पानी साफ है। इसमें अनेक जलीय जीव है। थोड़ी-सी लापरवाही से यह नदी खत्म हो सकती है इसलिए इसको संरक्षण की जरुरत है।

पक्षियों की कई प्रजातियां हैं नदी पर आश्रित


थपाना नदी का पर्यावरण बेहद खास और दुर्लभ है। प्रवासी व देसी पक्षियों की कई प्रजातियां इस नदी पर आश्रित हैं। ये ही नहीं लुप्त हो रही महाशेर मछली जिसके शिकार पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है, भी पूरे हरियाणा में केवल थपाना नदी में ही मिलती है। यह नदी क्षेत्र में भू-जल को भी बनाए रखती है जिससे ग्रामीण और किसानों को बेहद लाभ होता है। यमुना सेवा समिति का कहना है कि वास्तव में थपाना नदी हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।

जनजागरण अभियान चलाएंगे


ग्रामीणों ने कहा है कि वह थपाना नदी में गंदगी नहीं डालेंगे। लोगों को इसके बारे में जागरूक करेंगे। नदी की मछलियों को शिकारियों से बचाने के लिए हर ग्रामीण नजर रखेगा। जनजागरण अभियान चलाएंगे। यदि कोई ऐसा तत्व नजर आये तो उससे सख्ती होगी।

प्रशासन के प्रयोगों से बचाना होगा


यमुना सेवा समिति कनालसी के सदस्य किरण पाल ने कहा कि हमारे सामने हमारी नदी बेगानी हो गई। उसे खत्म किया जा रहा है और हम कुछ बोल तक नहीं पाते। हमें थपाना को बचाना होगा। हम न सिर्फ बड़ों बल्कि अपने बच्चों को भी यही शिक्षा दे रहे हैं। भीम सिंह रावत ने बताया कि नदी में भारी मात्रा में प्रदूषण आ रहा है। यमुना हो या सोमनदी सभी प्रदूषित हो रही है। थपाना इसलिए अछूती है, क्योंकि अभी तक यह ग्रामीणों की देख-रेख में रही है। यदि इस ओर भी ध्यान नहीं दिया तो न जाने प्रशासन यहां भी क्या प्रयोग करना शुरू कर दें।

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