आज बेंगलुरु सूखा, कल दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई . .

बेंगलुरु जलसंकट
बेंगलुरु जलसंकट

कुछ साल पहले जब हम बेंगलुरु में अपनी रिपोर्ट ‘एक्सरीटा मैटर्स’ का विमोचन कर रहे थे। उस वक्त मेरी शहर के पानी और सीवेज प्रबंधकों से एक उत्साही-रोचक चर्चा हुई। यह चर्चा शहर में जल प्रबंधन के बारे में थी। क्योंकि हमारे शोध से यह पता चला कि शहर में जल प्रबंधन और अवहनीय और अस्थिर था। हालांकि इस बात से अभियंता असहमत थे। उनके अनुसार भी लगभग 100 किलोमीटर दूर कावेरी से पाइप लाइनों के माध्यम से पानी पहुंचाने में कामयाब रहे थे। इसलिए चिंता का कोई कारण नहीं था। अब जबकि यह हाईटेक शहर गंभीर जल संकट की ओर बढ़ रहा है, तो हो सकता है। शायद यह बुद्धिमान लोग पुनर्विचार करेंगे और आगे बढ़ने के लिए अपने विकल्पों पर फिर से काम करेंगे।

सच तो है कि बेंगलुरु एक ऐसा शहर है जिसे आइना दिखाया जा रहा है, यहां पर ऊंची लागत वाले इंजीनियरिंग समाधान के जरिए उत्तम जलापूर्ति के सपने चकनाचूर हो चुके हैं, और यह सपना जलवायु जोखिम के उसे युग में टूट रहे हैं जहां वर्षा अधिक चरम और अधिक परिवर्तनशील होती जाएगी।

यदि अतीत को देखें तो बेंगलुरु को झीलों के विशाल नेटवर्क से पानी मिलता था, जिसे बारिश का पानी इकट्ठा करने और बाढ़ को कम करने के लिए डिजाइन किया गया था। फिर खोज का विस्तार हुआ इसकी पहली आधिकारिक जलापूर्ति शहर से 18-20 किलोमीटर दूर और अर्कावती नदी पर हेसरघट्टा झील से हुई। फिर 35-40 किलोमीटर दूर टीजीहल्ली जलाशय से जलापूर्ति हुई। लेकिन यह सब पर्याप्त नहीं था और 1974 के आसपास महत्वाकांक्षी कावेरी जलापूर्ति योजना की कल्पना की गई। जहां पानी को 490 मीटर की ऊंचाई तक पंप करके और 100 किलोमीटर दूर बेंगलुरु तक पहुंचाने की बात हुई।

शहर के अभियंताओं के साथ बातचीत के दौरान यह पता चला कि यह अपने इंजीनियरिंग चमत्कार के चौथे चरण में थे, और जैसा कि मैंने कहा कि उन्हें चिंता का कोई कारण नहीं दिख रहा था, लगभग एक दशक पहले मैंने लंबी दूरी तक पानी पहुंचाने की लागत के बारे में बात की थी। तब शहर को पानी पंप करने के लिए भारी बिजली की आवश्यकता होती थी, जो इसके पानी और सीवेज बोर्ड की नाजुक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे थी। इसके अलावा जैसे-जैसे दूरी बढ़ती गई वैसे-वैसे पानी का नुकसान भी बढ़ा जो आधिकारिक सूत्रों के अनुसार 40% तक है, इसका मतलब यह हुआ की जलापूर्ति की लागत बढ़ रही थी। 

मैंने यह भी बताया कि इंजीनियर आम तथ्यों को नजर अंदाज कर रहे थे। पहले तथ्य था कि शहर और उसके आसपास के क्षेत्र में भूजल का उपयोग बढ़ रहा था। जो यह बताता था कि पानी की आपूर्ति इतनी सही नहीं थी। दूसरा तथ्य था कि शहर का विस्तार हो रहा था और यह विस्तारित जल सीवरेज का बुनियादी ढांचा विकास के साथ गति नहीं बनाए रखेगा। तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह थे कि जिसमें उनकी अपनी स्वीकारोक्ति भी थी कि शहर में पैदा होने वाले अधिकांश सीवेज का उपचार नहीं किया जा रहा था। इसके परिणाम स्वरूप कई झीलें और जलधाराओँ में प्रदूषण का भार बढ़ रहा था। इसके बावजूद इंजीनियर भविष्य को लेकर आशान्वित थे। उन्होंने दावा किया कि हर उपलब्ध तकनीक का उपयोग करते हुए लगभग 720 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उपचार क्षमता पहले ही बना ली है। जो उत्पन्न लगभग सभी सीवेज का तकनीकी रूप से उपचार में सक्षम होगी। जब मैंने आधी से भी कम क्षमता का उपयोग किए जाने के बात अभियंताओं के सामने रखी, तो उन्होंने कहा कि बहुत जल्द पाइपलाइन नेटवर्क का विस्तार होगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा।

यदि वर्तमान की बात करें तो 2010 में शहर की पानी की आवश्यकता 1125 एमएलडी आंकी गई थी, जो अब दोगुनी से भी अधिक होकर 2600 एमएलडी हो गई है। जबकि कावेरी से अभी भी आधी जलापूर्ति होती है बाकी भूजल से आती है। दूसरे शब्दों में मांग पूरी नहीं हुई और लोगों के पास पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए गहरी खुदाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वर्षा की बढ़ती परिवर्तनशीलता के कारण यह स्रोत तेजी से सूख रहै हैं। लेकिन पाइप-ड्रीम विक्रेताओं ने संकट को नहीं समझा है। शहर के मुख्य जल प्रबंधन अब कावेरी परियोजना के चरण-V पर निर्भर हैं, उनका कहना है कि यह बहुत जल्दी शुरू हो जाएगा।

सीवेज की कहानी ही ऐसी ही है, उपचार के लिए नया हार्डवेयर बनाया गया है। ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड‘ की 2021 इन्वेंटरी के अनुसार शहर में अब 1157.5 एमएलडी सीवेज उपचार क्षमता है। क्षमता उपयोग भी कुछ हद तक सुधार कर 75% हो गई है। हालांकि सीवेज उत्पादन और उपचार क्षमता के बीच अंतर बढ़ गया है। वर्तमान में पानी की मांग के साथ सीवेज उत्पादन 2000 एमएलडी के करीब होगा। और इसलिए अनुपचारित सीवेज आधे से अधिक होगा। शहर गोल-गोल घूम गया लेकिन इस उसने पाया कि अब भी वहीं खड़ा है, जहां एक दशक पहले था।

यह हमारी जल योजना का वास्तविक संकट है जो परिवर्तन की आवश्यकता और अवसर को समझने में असमर्थता को जाहिर करता है। सच तो है कि बेंगलुरु में पर्याप्त बारिश होती है। इसमें झीले हैं जो इस बारिश के पानी का संचय कर सकती हैं, भूजल को रिचार्ज कर सकती हैं। ताकि अत्यधिक बारिश की घटनाओं के समय अमीर और शक्तिशाली निवासियों को बाढ़ में डूबने से बचने के लिए तैरना ना पड़े। हर बूंद का इस्तेमाल आने वाले अभावग्रस्त समय में किया जा सकता है। फिर वह अपने सीवेज का प्रबंधन अलग तरीके से कर सकता है। यह मानने के बजाए, कि पाइप लाइनों के माध्यम से सीवेज का परिवहन किया जा सकता है, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जल-मल की प्रत्येक बूंद को टैंकरों द्वारा एकत्रित किया जाए और फिर उपचारित और दोबारा उपयोग किया जाए। लेकिन इसके लिए जल अभियंताओं को धरातल पर उतरना होगा, दोबारा काम करना होगा, पुनर्विचार करना होगा। अन्यथा यह आज बेंगलुरु की कहानी है, कल आपके शहर की होने वाली है। 

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Post By: Kesar Singh
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