50 साल से सैकड़ों एकड़ क्षेत्र में पाट पद्धति से हो रही है सिंचाई

पाट पद्धति सिंचाई के लिये बनाई गई नाली
पाट पद्धति सिंचाई के लिये बनाई गई नाली

धार। डही से 7 किमी दूर ग्राम करजवानी में 50 साल से पाट पद्धति द्वारा सौ एकड़ से अधिक क्षेत्र में बिना विद्युत पम्प से सिंचाई आज भी हो रही है। ग्राम कातरखेड़ा, छाछकुआँ, दसाणा, पन्हाल में भी कई गरीब किसान पाट पद्धति से वर्षों से बिना बिजली के सिंचाई कार्य करते आ रहे हैं। इसमें बिजली आने-जाने या बिजली नहीं होने का कोई झंझट नहीं है।

ग्राम करजवानी में मुख्य सड़क मार्ग से लगा नाला किसानों के लिये वरदान बना हुआ है। इसी नाले के सहारे किसानों का जीवन चलता है। खेतों में उम्मीदों की जो फसलें लहलहा रही हैं, वह इसी नाले की देन है। नाले में साल भर पानी रहता है और इसी से फसलों को जीवन मिलता है। प्रदेश ही नहीं देश भर में बिजली के माध्यम से ही खेतों में सिंचाई होती है, लेकिन यहाँ सिंचाई के लिये बिजली की जरूरत नहीं पड़ती। यह नाला ही इनके लिये सबसे मजबूत साधन है, जो 50 साल से खेतों में पानी पहुँचा रहा है।

ये किसान ले रहे पाट का लाभ


ग्राम करजवानी के तेरसिंह पिता सुरला, मेहताब पिता कनसिंह, रामसिंह पिता बिसन, अजय पिता सिकदार, सुनील पिता कालू आदि किसानों ने बताया कि पाट के कारण आज वे बिना किसी व्यय के अपनी भूमि पर सिंचाई कर पा रहे हैं।

गाँव के बुजुर्ग किसान नूरला बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने ही कुछ साथियों के साथ नाले का पानी पहाड़ी से पाट द्वारा निकालते हुए खेतों तक पहुँचाया था। उस समय बिजली नहीं थी। आज बिजली होने के बावजूद पाट द्वारा सिंचाई कार्य बदस्तूर कर रहे हैं। ग्राम करजवानी में नाले के पास पहाड़ी पर दो पाट वाले रास्ते बनाए गए हैं। इनमें से ऊपर वाले पाट से पुजारापुरा फलिये व नीचे वाले पाट पर गुराड़ियापुरा वाले क्षेत्र में खेतों तक पानी पहुँचता है।

पाट पद्धति से अपने फसल की सिंचाई करता किसान

निकाल रहे नाले में जमी गाद


वर्तमान में नाले में पानी कम होने से पाट पद्धति से बनी नालियों में बहाव कम हो गया है। इसके चलते नाले में जमी गाद को अजय पिता सिकदार व सुनील पिता कालू बाहर निकालने के कार्य में जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया कि यह नाला मार्च तक जिन्दा रहता है। इसके चलते गेहूँ और चने में सिंचाई हो जाती है।

क्या है पाट पद्धति


पहाड़ी क्षेत्र में खेतों के पास से बहने वाले नाले के पानी को किसान नाली बनाकर पहाड़ों व मैदानों से गुजारते हुए अपने खेतों तक ले जाते हैं। इस पाट से बारी-बारी पानी लेने के लिये इससे लाभांवित होने वाले किसान अपनी खेत में फसलों को कुछ अन्तराल से लगाते हैं। इसका कारण यह है कि बारी-बारी से सभी किसानों को उसकी आवश्यकतानुसार पानी मिलता रहे।

पाट के माध्यम से 5 से 6 किमी दूर तक के खेतों में पहुँचने वाला पानी आँखों को धोखा देता है, इससे हमें लगता है कि यह पानी नाले की सतह से ऊपर चढ़कर खेतों को सींच रहा है, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि जिस क्षेत्र में पाट से सिंचाई करनी होती है, वहाँ के किसान अपने खेत के पास से बहने वाले नाले के बहाव के ऊपर की तरफ सैकड़ों-हजारों मीटर दूर जाकर नाले के पानी को फावड़ा के माध्यम से नाली बनाते हुए अपने खेतों की तरफ चलते हैं।

इस प्रक्रिया में वे पहाड़ों के ऊपर व मैदानों में भी बहाव का सदैव ध्यान रखते हैं। इस दौरान यदि मार्ग में कंदरा या गहरा स्थान आ जाये, तो वे खजूर के तने को नाली के आकार में खोखला रखकर लेवल बनाते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ सौ मीटर दूरी पश्चात ही मुख्य नाला हमें पाट की स्थिति से नीचा नजर आने लगता है, जो निरन्तर दूरी बढ़ने के साथ व नीचा होता चला जाता है।

पाट पद्धति नाली का मरम्मत करते किसानइस प्रकार जब पानी खेतों तक पहुँचता है तो मुख्य नाले से कई मीटर ऊपर स्थित खेतों को सींचने लगता है, जिस कारण हमें ऐसा प्रतीत होता है कि वह नाले से कई मीटर ऊपर के खेतों को सींच रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि जिस खेत में पाट का पानी आ रहा है, वह पाट प्रारम्भ किये गए स्थान से कई मीटर नीचे होता है।

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