1. वाणसागर नहर परियोजना क्या है?
2. परियोजना का उद्देश्य क्या है?
3. अब तक खर्च धन व तमाम बाधाएं, जिसकी वजह से यह परियोजना निकट भविष्य में पूरी होती नहीं दिख रही।
यह पहले बताया जा चुका है कि वाणसागर डैम मध्य प्रदेश में शहडोल जिले के देवलोंद में सोन नदी पर बनाया गया है। इस डैम में एकत्रित पानी को एक बड़ी नहर, जिसे वाणसागर पोषक नहर कहते हैं के द्वारा उ.प्र. के मिर्जापुर जनपद में स्थित ‘मेजा जलाशय’ और ‘अदवा जलाशय’ में लाया जाना है। इन जलाशयों में पानी स्टोर करने के बाद बेलन नहर व इससे संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण नहरों द्वारा-
1. जनपद मिर्जापुर में 74823 हे. एवं जनपद इलाहाबाद में 75309 हे0 अतिरिक्त सिंचन क्षमता का सृजन किया जायेगा।
2. परियोजना को सन् 1990-91 में प्राप्त पहली धनराशि- 53.99452 करोड़ से 2010-11 तक प्राप्त 110.4000 करोड़ रु. को मिलाकर अब तक कुल 2,842.82 करोड़ धनराशि खर्च की जा चुकी है।
3. परियोजना जून 2013 तक पूर्ण की जानी प्रस्तावित है, जिसकी स्वीकृत लागत रु0 3,148.90 करोड़ आ रही है।
वाणसागर नहर परियोजना को सफल तरीके से क्रियान्वित करने के लिए एक मुख्य अभियंता, जिसका कार्यालय गोविन्दपुर इलाहाबाद में है तथा इसके अंतर्गत कुल 13 नहर निर्माण खंडों में सैकड़ों की संख्या में अधीक्षण, अधिशाषी/सहायक एवं जूनियर अभियंता कार्यरत हैं। इनके अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में क्लर्क यानि बाबू, टाइपिस्ट व चपरासी हैं। इन सभी पर ही मसलन, अधिष्ठान मद व अन्य सुविधाओं को मिलाकर,, परियोजना प्रारंभ होने से लेकर अब तक कई सौ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
प्रारंभिक काल से लेकर अब तक परियोजना को पूरा करने के लिये तीन हजार करोड़ रुपए सरकार ने दिये हैं। परियोजना के निर्माण कार्य के लिये मशीनरी पर्याप्त है, जिम्मेदार अभियंताओं को पर्याप्त सरकारी सुविधाएँ मिली हुई हैं-फिर भी यह परियोजना इतनी भ्रमपूर्ण और दुरूह क्यों है? इसका कार्य पूरा होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है? आखिर क्या लगातार सूखे व कर्ज की मार झेल रहे किसानों के बर्बादी के बाद ही यह परियोजना पूरी हो पायेगी।
इस प्रश्न पर यथासंभव वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने के लिए आवश्यक है कि परियोजना के पूर्ण होने में आ रही कुछ ऐसी बाधाओं पर कम से कम एक सरसरी नजर डाली जाए जिससे कि सरकारी योजनाओं की हकीक़त पर सही-सही ढंग से गौर करने की आदत पड़ जाए और हम किसी राजनीतिक, सत्ताधारी या चालाक अफ़सर या अभियंता द्वारा दिये जा रहे व्योरे अथवा परस्पर विरोधी बयानों के भारी भूल-भुलाया में न खो जाएं।
1-वाणसागर डैम से निकलने वाली मुख्य पोषक नहर के कि.मी. 10.965 पर नेशनल हाइवे 75 (मध्य प्रदेश के सीधी जिले में मोहिया घाटी के पास) पड़ रहा है जिस पर एक पुल यानि पी.आर.बी बनना है, इसके लिए एन.एच.ए.आई. को कई साल पहले 190 लाख रुपए दिये जा चुके हैं, लेकिन यह पुल कब बनकर तैयार होगा इस बारे में वाणसागर नहर परियोजना के मुख्य अभियंता को कोई जानकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि जब तक यह पुल बनकर तैयार नहीं हो जायेगा उ.प्र. में एक बूंद भी पानी नहीं आ सकता। विभाग इस सबसे महत्वपूर्ण अधूरे कार्य पर खामोश है। आरटीआई के माध्यम से विभाग ने जो सूचना दी गई है, वह सूचना ही झूठी है।
पत्रांक-435/बा0सा0/आई-11/16/01/2012
2-वाणसागर नहर परियोजना के लिए 180.79 हे. वन विभाग की भूमि अधिग्रहीत की जानी है । लेकिन वन विभाग ने परियोजना को भूमि देने से इनकार कर दिया है। प्रकरण मा0 सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। प्रकरण में वादी सिंचाई विभाग है तथा प्रतिवादी वन एवं पर्यावरण विभाग है। जब तक सर्वोच्च न्यायालय से कोई फैसला नहीं आता यहां पर कार्य ठप रहेगा।
पत्रांक-1064/बासाननिख-30, मी0/जनसूचना/राजीव/02/09/11
3-वाणसागर नहर परियोजना में 13 गाँवों को हटाना है, लेकिन यह मामला अभी अधर में लटका हुआ है। भारतीय वन्य जीव परिषद की संस्तुतियों के अनुसार अदवा मेजा लिंक चैनल के समरेखन में पड़ने वाले 13 ग्रामों को विस्थापन हेतु चयनित किया गया है जो निम्नानुसार हैं--औरा, बरूआ, कटाई, सरई, धमौली, पोखरौर, हर्रा, सगरा, मटिहरा, मगरदहा, परसिया, मतवरिया एवं खम्भवा-टोला नन्दना। लेकिन विस्थापन हेतु ग्रामीण सहमत नहीं हैं, इसलिए राहत एवं पुनर्वास की योजना नहीं बनायी गयी है।
पत्रांक-1064/बासाननिख-30, मी0/जनसूचना/राजीव/02/09/11
उपरोक्त तीनों बाधाओं को जानने के बाद भी कैसे मान लिया जाय कि परियोजना जून 2013 में पूरी हो जायेगी और सूखे खेतों तक वाणसागर का पानी पहुंच जायेगा। मुख्य अभियंता व उनके नीचे के सभी जिम्मेदार अधिकारी/अभियंता, राजनीतिज्ञों को जो कुछ बता देते हैं वही नेता बयान देता है। हाल के वर्षों में कई बार कुछ स्थानीय प्रतिनिधियों द्वारा बयान दिया गया कि 2013 में वाणसागर डैम से पानी मिलेगा, जो अभी एक दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है। मिर्जापुर के कुछ हिस्से से लेकर कोरांव व मेजा के इलाके में सूखे की मार से बेहाल किसान वाणसागर के पानी का आस लगाए बैठे हैं, लेकिन वास्तव में पानी मिलेगा कब ? यह बताने वाला कोई नहीं। इन इलाकों में सिचाईं एक बहुत बड़ा मुद्दा है। सिंचाई के अभाव में बहुत सारे किसान खेती छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर हो गये हैं। 10 से 30 बीघे तक खेती-बाड़ी करने वाले किसान अब उसे भगवान भरोसे छोड़कर महानगरों में दिन-रात कड़ी मेहनत कर परिवार का पेट पाल रहे हैं, जबकि वाणसागर नहर परियोजना समय पर पूरी कर ली गई होती तो इन्हीं खेतों में सोना लहलहाता और तब हमारे किसानों को बाहर जाकर प्राइवेट कंपनियों में नौकरी के नाम पर ऐसी जलालत न झेलनी पड़ती।
ऐसी स्थिति में हमारा क्षेत्र व उसकी मेहनतकश जनता आगे कैसे बढ़ेगी, उसका विकास कैसे होगा? गाँवों में 90 प्रतिशत से ज्यादा जनता खेती पर निर्भर है। हमारे यहां प्रचुर मात्रा में जल स्रोत हैं। बेहद उपजाऊ चार फसली ज़मीन का बड़ा इलाक़ा है। कड़ी मेहनत करने वाले किसान हैं। सिंचाई की सुविधा हो तो क्षेत्र में खेती का विकास होगा, किसानों की आमदनी बढ़ेगी। स्थानीय बाजार भी विकसित होंगे और अपने इलाके के लाखों किसानों, मज़दूरों, मध्यवर्ग, दुकानदारों आदि का विकास होगा। वाणसागर नहर परियोजना को शुरू कराने के लिए जन संघर्ष मोर्चा पिछले दो सालों से आन्दोलन कर रहा है। मोर्चा के प्रभारी राजीव कहते हैं-‘‘यह हम सबको अच्छी तरह पता है कि किसानों/मजदूरों का साथ देने वाला कोई नहीं। किसानों ने सारी लड़ाईयां अपनी एकता और संघर्ष के दम पर जीती है। बड़ी पार्टी के नेताओं ने कभी भी कारपोरेट कंपनियों, सामंती गुन्डों, दलालों तथा भ्रष्ट अफसरों का विरोध नहीं किया है। ये उन्हीं के दम पर राज करते हैं। लेकिन किसान एकताबद्ध होकर संघर्ष करेंगे, इलाके के लोगों को सच्चाई से अवगत कराएंगे और गोलबंद होकर भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे तो निश्चित रूप से परियोजना का भ्रष्टाचार उजागर होगा।
1-वाण सागर नहर परियोजना अब अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। जहां पहले इस परियोजना से मिर्जापुर व इलाहाबाद में करीब 1,50,000 हेक्टेयर भूमि पर अतिरिक्त सिंचन क्षमता विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था वहीं इसके समय से पूरा न हो पाने की वजह से अब मात्र कुछ क्षेत्र में पानी देने की कवायद चल रही है, जिससे किसानों के बीच वाणसागर नहर परियोजना को पूरा किये जाने का दावा किया जा सके। यह जांच का विषय है कि आनन-फानन में ऐसा क्यों किया जा रहा है।
2-इस परियोजना से मिर्जापुर व इलाहाबाद के सूखे इलाके में पीने के लिये पानी उपलब्ध कराने की भी योजना थी, जिसके बारे में अब कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। परियोजना में पेयजल उपलब्ध कराने को लेकर क्या कार्य हो रहा है, यह बताने वाला कोई नहीं।
3-परियोजना में जो 71 कि0मी0 लंबी नहर बनायी जा रही है उसके 60 प्रतिशत कार्य अभी भी अधूरे हैं, जिससे जल्दबाजी व दबाव में कराया जा रहा है, जिससे कार्य की गुणवत्ता समाप्त हो रही है। इस 71 किमी0 नहर निर्माण में लगे ठेकेदारों का बार-बार अनुबंध बढ़ाये जाने से सरकार को कई सौ करोड़ रुपये का घाटा लग चुका है। जांच करने पर इस हकीक़त से पर्दा उठेगा।
4-परियोजना की इंजीनियरिंग के मुताबिक संपूर्ण कार्य उपर से पूरी करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन वाणसागर नहर परियोजना का कोई भी कार्य क्रमबद्ध तरीके से नहीं हो रहा है।
अधिक जानकारी के लिए संलग्नक देखें।
2. परियोजना का उद्देश्य क्या है?
3. अब तक खर्च धन व तमाम बाधाएं, जिसकी वजह से यह परियोजना निकट भविष्य में पूरी होती नहीं दिख रही।
यह पहले बताया जा चुका है कि वाणसागर डैम मध्य प्रदेश में शहडोल जिले के देवलोंद में सोन नदी पर बनाया गया है। इस डैम में एकत्रित पानी को एक बड़ी नहर, जिसे वाणसागर पोषक नहर कहते हैं के द्वारा उ.प्र. के मिर्जापुर जनपद में स्थित ‘मेजा जलाशय’ और ‘अदवा जलाशय’ में लाया जाना है। इन जलाशयों में पानी स्टोर करने के बाद बेलन नहर व इससे संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण नहरों द्वारा-
1. जनपद मिर्जापुर में 74823 हे. एवं जनपद इलाहाबाद में 75309 हे0 अतिरिक्त सिंचन क्षमता का सृजन किया जायेगा।
2. परियोजना को सन् 1990-91 में प्राप्त पहली धनराशि- 53.99452 करोड़ से 2010-11 तक प्राप्त 110.4000 करोड़ रु. को मिलाकर अब तक कुल 2,842.82 करोड़ धनराशि खर्च की जा चुकी है।
3. परियोजना जून 2013 तक पूर्ण की जानी प्रस्तावित है, जिसकी स्वीकृत लागत रु0 3,148.90 करोड़ आ रही है।
वाणसागर नहर परियोजना को सफल तरीके से क्रियान्वित करने के लिए एक मुख्य अभियंता, जिसका कार्यालय गोविन्दपुर इलाहाबाद में है तथा इसके अंतर्गत कुल 13 नहर निर्माण खंडों में सैकड़ों की संख्या में अधीक्षण, अधिशाषी/सहायक एवं जूनियर अभियंता कार्यरत हैं। इनके अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में क्लर्क यानि बाबू, टाइपिस्ट व चपरासी हैं। इन सभी पर ही मसलन, अधिष्ठान मद व अन्य सुविधाओं को मिलाकर,, परियोजना प्रारंभ होने से लेकर अब तक कई सौ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
प्रारंभिक काल से लेकर अब तक परियोजना को पूरा करने के लिये तीन हजार करोड़ रुपए सरकार ने दिये हैं। परियोजना के निर्माण कार्य के लिये मशीनरी पर्याप्त है, जिम्मेदार अभियंताओं को पर्याप्त सरकारी सुविधाएँ मिली हुई हैं-फिर भी यह परियोजना इतनी भ्रमपूर्ण और दुरूह क्यों है? इसका कार्य पूरा होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है? आखिर क्या लगातार सूखे व कर्ज की मार झेल रहे किसानों के बर्बादी के बाद ही यह परियोजना पूरी हो पायेगी।
इस प्रश्न पर यथासंभव वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने के लिए आवश्यक है कि परियोजना के पूर्ण होने में आ रही कुछ ऐसी बाधाओं पर कम से कम एक सरसरी नजर डाली जाए जिससे कि सरकारी योजनाओं की हकीक़त पर सही-सही ढंग से गौर करने की आदत पड़ जाए और हम किसी राजनीतिक, सत्ताधारी या चालाक अफ़सर या अभियंता द्वारा दिये जा रहे व्योरे अथवा परस्पर विरोधी बयानों के भारी भूल-भुलाया में न खो जाएं।
हर पहलू की जांच पड़ताल इन बातों को सामने रखकर की जाय!
1-वाणसागर डैम से निकलने वाली मुख्य पोषक नहर के कि.मी. 10.965 पर नेशनल हाइवे 75 (मध्य प्रदेश के सीधी जिले में मोहिया घाटी के पास) पड़ रहा है जिस पर एक पुल यानि पी.आर.बी बनना है, इसके लिए एन.एच.ए.आई. को कई साल पहले 190 लाख रुपए दिये जा चुके हैं, लेकिन यह पुल कब बनकर तैयार होगा इस बारे में वाणसागर नहर परियोजना के मुख्य अभियंता को कोई जानकारी नहीं है। उल्लेखनीय है कि जब तक यह पुल बनकर तैयार नहीं हो जायेगा उ.प्र. में एक बूंद भी पानी नहीं आ सकता। विभाग इस सबसे महत्वपूर्ण अधूरे कार्य पर खामोश है। आरटीआई के माध्यम से विभाग ने जो सूचना दी गई है, वह सूचना ही झूठी है।
पत्रांक-435/बा0सा0/आई-11/16/01/2012
2-वाणसागर नहर परियोजना के लिए 180.79 हे. वन विभाग की भूमि अधिग्रहीत की जानी है । लेकिन वन विभाग ने परियोजना को भूमि देने से इनकार कर दिया है। प्रकरण मा0 सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। प्रकरण में वादी सिंचाई विभाग है तथा प्रतिवादी वन एवं पर्यावरण विभाग है। जब तक सर्वोच्च न्यायालय से कोई फैसला नहीं आता यहां पर कार्य ठप रहेगा।
पत्रांक-1064/बासाननिख-30, मी0/जनसूचना/राजीव/02/09/11
3-वाणसागर नहर परियोजना में 13 गाँवों को हटाना है, लेकिन यह मामला अभी अधर में लटका हुआ है। भारतीय वन्य जीव परिषद की संस्तुतियों के अनुसार अदवा मेजा लिंक चैनल के समरेखन में पड़ने वाले 13 ग्रामों को विस्थापन हेतु चयनित किया गया है जो निम्नानुसार हैं--औरा, बरूआ, कटाई, सरई, धमौली, पोखरौर, हर्रा, सगरा, मटिहरा, मगरदहा, परसिया, मतवरिया एवं खम्भवा-टोला नन्दना। लेकिन विस्थापन हेतु ग्रामीण सहमत नहीं हैं, इसलिए राहत एवं पुनर्वास की योजना नहीं बनायी गयी है।
पत्रांक-1064/बासाननिख-30, मी0/जनसूचना/राजीव/02/09/11
उपरोक्त तीनों बाधाओं को जानने के बाद भी कैसे मान लिया जाय कि परियोजना जून 2013 में पूरी हो जायेगी और सूखे खेतों तक वाणसागर का पानी पहुंच जायेगा। मुख्य अभियंता व उनके नीचे के सभी जिम्मेदार अधिकारी/अभियंता, राजनीतिज्ञों को जो कुछ बता देते हैं वही नेता बयान देता है। हाल के वर्षों में कई बार कुछ स्थानीय प्रतिनिधियों द्वारा बयान दिया गया कि 2013 में वाणसागर डैम से पानी मिलेगा, जो अभी एक दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है। मिर्जापुर के कुछ हिस्से से लेकर कोरांव व मेजा के इलाके में सूखे की मार से बेहाल किसान वाणसागर के पानी का आस लगाए बैठे हैं, लेकिन वास्तव में पानी मिलेगा कब ? यह बताने वाला कोई नहीं। इन इलाकों में सिचाईं एक बहुत बड़ा मुद्दा है। सिंचाई के अभाव में बहुत सारे किसान खेती छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर हो गये हैं। 10 से 30 बीघे तक खेती-बाड़ी करने वाले किसान अब उसे भगवान भरोसे छोड़कर महानगरों में दिन-रात कड़ी मेहनत कर परिवार का पेट पाल रहे हैं, जबकि वाणसागर नहर परियोजना समय पर पूरी कर ली गई होती तो इन्हीं खेतों में सोना लहलहाता और तब हमारे किसानों को बाहर जाकर प्राइवेट कंपनियों में नौकरी के नाम पर ऐसी जलालत न झेलनी पड़ती।
ऐसी स्थिति में हमारा क्षेत्र व उसकी मेहनतकश जनता आगे कैसे बढ़ेगी, उसका विकास कैसे होगा? गाँवों में 90 प्रतिशत से ज्यादा जनता खेती पर निर्भर है। हमारे यहां प्रचुर मात्रा में जल स्रोत हैं। बेहद उपजाऊ चार फसली ज़मीन का बड़ा इलाक़ा है। कड़ी मेहनत करने वाले किसान हैं। सिंचाई की सुविधा हो तो क्षेत्र में खेती का विकास होगा, किसानों की आमदनी बढ़ेगी। स्थानीय बाजार भी विकसित होंगे और अपने इलाके के लाखों किसानों, मज़दूरों, मध्यवर्ग, दुकानदारों आदि का विकास होगा। वाणसागर नहर परियोजना को शुरू कराने के लिए जन संघर्ष मोर्चा पिछले दो सालों से आन्दोलन कर रहा है। मोर्चा के प्रभारी राजीव कहते हैं-‘‘यह हम सबको अच्छी तरह पता है कि किसानों/मजदूरों का साथ देने वाला कोई नहीं। किसानों ने सारी लड़ाईयां अपनी एकता और संघर्ष के दम पर जीती है। बड़ी पार्टी के नेताओं ने कभी भी कारपोरेट कंपनियों, सामंती गुन्डों, दलालों तथा भ्रष्ट अफसरों का विरोध नहीं किया है। ये उन्हीं के दम पर राज करते हैं। लेकिन किसान एकताबद्ध होकर संघर्ष करेंगे, इलाके के लोगों को सच्चाई से अवगत कराएंगे और गोलबंद होकर भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे तो निश्चित रूप से परियोजना का भ्रष्टाचार उजागर होगा।
महत्वपूर्ण विचारणीय बिन्दु!
1-वाण सागर नहर परियोजना अब अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। जहां पहले इस परियोजना से मिर्जापुर व इलाहाबाद में करीब 1,50,000 हेक्टेयर भूमि पर अतिरिक्त सिंचन क्षमता विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था वहीं इसके समय से पूरा न हो पाने की वजह से अब मात्र कुछ क्षेत्र में पानी देने की कवायद चल रही है, जिससे किसानों के बीच वाणसागर नहर परियोजना को पूरा किये जाने का दावा किया जा सके। यह जांच का विषय है कि आनन-फानन में ऐसा क्यों किया जा रहा है।
2-इस परियोजना से मिर्जापुर व इलाहाबाद के सूखे इलाके में पीने के लिये पानी उपलब्ध कराने की भी योजना थी, जिसके बारे में अब कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। परियोजना में पेयजल उपलब्ध कराने को लेकर क्या कार्य हो रहा है, यह बताने वाला कोई नहीं।
3-परियोजना में जो 71 कि0मी0 लंबी नहर बनायी जा रही है उसके 60 प्रतिशत कार्य अभी भी अधूरे हैं, जिससे जल्दबाजी व दबाव में कराया जा रहा है, जिससे कार्य की गुणवत्ता समाप्त हो रही है। इस 71 किमी0 नहर निर्माण में लगे ठेकेदारों का बार-बार अनुबंध बढ़ाये जाने से सरकार को कई सौ करोड़ रुपये का घाटा लग चुका है। जांच करने पर इस हकीक़त से पर्दा उठेगा।
4-परियोजना की इंजीनियरिंग के मुताबिक संपूर्ण कार्य उपर से पूरी करते हुए आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन वाणसागर नहर परियोजना का कोई भी कार्य क्रमबद्ध तरीके से नहीं हो रहा है।
अधिक जानकारी के लिए संलग्नक देखें।
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