उल्लेखनीय है कि गंगामुक्ति का पहला संग्राम 1912 में तब शुरू हुआ था, जब हरिद्वार में गंगा पर भीमगौड़ा बांध का निर्माण शुरू हुआ। यह गंगामुक्ति संघर्ष का शताब्दी वर्ष है। तमाम खिलाफ वैज्ञानिक अध्ययन व कैग की रिपोर्ट के बावजूद गंगा का गला घोटने की नित नये दुष्प्रयासों को अंजाम देने का राजहठ बढ़ता ही जा रहा है। मलमूत्र व औद्योगिक जहर से मुक्ति के प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं।
आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल और वी.नारायण सामी के आश्वासन पर गंगा तपस्वी स्वामी सानंद ने इसी दिल्ली में जल ग्रहण किया था। किंतु 17 अप्रैल को गंगा सेवा अभियानम् के एजेंडे पर आहूत राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक स्वामी सानंद की अनुपस्थिति के कारण निर्णायक नहीं हो सकी। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने स्वामी सानंद से वार्ता के बाद ही किसी निर्णय की बात कही थी।वह वार्ता आज तक नहीं हो सकी। तपस्या आज भी जारी है। जलत्याग के बाद से तीन गंगा तपस्वी हर क्षण मौत की ओर अग्रसर हो रहे हैं: बाबा श्री नागनाथ, ब्रह्मचारी श्रीकृष्णप्रियानंद और श्री गंगा प्रेमी भिक्षु। स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद भी 7 मई को अन्न त्याग की घोषणा गंगा तपस्या पर बैठ गये हैं। समर्थन में गंगा भक्तों ने उपवास आरंभ कर दिया है। बावजूद इसके केन्द्र व संबधित राज्यों की सरकारें आज भी वैसी ही रुखी और संवेदना शून्य बनी हुई हैं।सरकार के इस रवैये को देखते हुए गंगा प्रेमियों ने निर्णय लिया गया है कि यदि 20 मई तक सरकार की ओर से कोई निर्णायक पहल नहीं होती, तो 21 मई से गंगामुक्ति के आह्वान हेतु सड़कों पर उतरा जायेगा। शुरुआत बनारस के ऐतिहासिक बेनियाबाग से होगी। गंगा यात्रा, संवाद, धरना-प्रदर्शन... आदि व एक्शन आधारित अभियानों के जरिए यह संग्राम पूरे देश को गंगा मुक्ति हेतु आंदोलित करने का प्रयास करेगा। इसके लिए सांगठनिक व रणनीतिक तैयारियां शुरू कर दी गईं हैं। प्रस्तावित गंगामुक्ति संग्राम को अनेक राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षिक संगठन, माननीय संतसमाज, गंगापुरोहित, मल्लाहों व मछुआरों का न सिर्फ समर्थन प्राप्त हैं, बल्कि वे इसमें सहभागी भी होंगे।
उल्लेखनीय है कि गंगामुक्ति का पहला संग्राम 1912 में तब शुरू हुआ था, जब हरिद्वार में गंगा पर भीमगौड़ा बांध का निर्माण शुरू हुआ। यह गंगामुक्ति संघर्ष का शताब्दी वर्ष है। तमाम खिलाफ वैज्ञानिक अध्ययन व कैग की रिपोर्ट के बावजूद गंगा का गला घोटने की नित नये दुष्प्रयासों को अंजाम देने का राजहठ बढ़ता ही जा रहा है। मलमूत्र व औद्योगिक जहर से मुक्ति के प्रयास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। अतः राजसत्ता से निराश संघर्ष अब जनसत्ता से गुहार करेगा। वही रास्ता निकाले। अब जरूरी हो गया है कि अब गंगा की मुक्ति का संघर्ष संगठनों के झंडे से आगे निकले। समाज इस का नेतृत्व संभाले। ऐसी ही कोशिश का सबब बनेगा गंगा मुक्ति का प्रस्तावित संग्राम। लक्ष्य वही है-अविरल गंगा, निर्मलगंगा।
गंगा मुक्ति की हुंकार। सुन लें सब बहरी सरकार।।
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जलपुरुष राजेन्द्र सिंह-09414066765,
आचार्यप्रमोद कृष्णम्-09811278149,
पंकज कुमार-9810781190
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