17 सवालों के घेरे में श्रीश्री की श्री


जिसने दिया ज्यादा और लिया कम, हम इंसानों ने उसे देवता का दर्जा दिया। जिसने लिया ज्यादा, दिया कम, उसे हमने दानवों की श्रेणी में डाल दिया। स्पष्ट है कि हम इंसानों ने पहले प्रतिमान बनाए; फिर जिन्हें उन प्रतिमानों पर खरा माना, उनकी प्रतिमाएँ बनाईं। यह भी हुआ कि जब भी टूटे, पहले प्रतिमान टूटे और फिर प्रतिमाएँ। प्रतिमाओं के टूटने से देवता तो नहीं मरता, किन्तु प्रतिमा बनाने वालों की आस्था टूट जाती है। अतः आस्था की ऐसी प्रतिमाओं का टूट जाना, देश-काल की समग्र दृष्टि से कभी अच्छा नहीं होता।

सम्भवतः इसीलिये आर्यसमाज ने आस्था को तो अपनाया, किन्तु प्रतिमाओं से परहेज किया। असली तर्क मैं नहीं जानता, किन्तु आर्यसमाज की सन्तान श्री श्री और उनकी प्रतिमा बनाने वाला पॉश समाज.. दोनों यह बात अवश्य जानते होंगे; बावजूद, इसके यदि आज दिल्ली के यमुना किनारे संस्कृतियों को जोड़ने और विविधताओं का सम्मान करने के नाम पर नदी माँ के साथ सद्व्यवहार के अरमान टूट रहे हों और एक आध्यात्मिक पुरुष के लिये बनाए प्रतिमान भी, तो फिर भला प्रतिमा के टूटने की आशंका से हम कैसे मुक्त हो सकते हैं? प्रतिमा के दरकने के संकेत मिलने लगे हैं।

नाम के आगे लगी दो-दो श्री के बावजूद, आध्यात्मिक गुरू रविशंकर जी के बयानों के सच को झूठ बताने की हिम्मत कुछ लोगों ने दर्शा दी है; सात मार्च को मिली खबर के मुताबिक, मामले के विवादित होने के कारण महामहिम राष्ट्रपति जी ने आयोजन में आने से इनकार कर दिया है। परते उघड़ने लगी हैं और सवाल-पर-सवाल उठने लगे हैं। गौर कीजिए कि सिलसिला जारी है:

 

मलबे पर सवाल


सबसे पहला सवाल तब उठा, जब श्री श्री ने कहा कि उन्होंने यमुना में मलबा डालने की बजाय, पहले से पड़ा मलबा हटाया है; जबकि वीडियो और तस्वीरें स्पष्ट कह रहे थे कि मलबा डाला गया है।

 

एंजाइम पर सवाल


दूसरा उठा सवाल उस एंजाइम को लेकर, श्री श्री ने जिसे न सिर्फ पानी साफ करने की नई तकनीक बताया, बल्कि यह भी कहा कि लाखों लोग ऐसे एंजाइम लेकर आएँगे और दिल्ली के 17 नालों में डालेंगे। इससे यमुना नदी साफ होगी। प्रश्न उठा कि यह अनजान एंजाइम है क्या? यह जीवित प्राणी है अथवा कोई रासायनिक पदार्थ? क्या इस एंजाइम की प्रमाणिकता का कोई वैज्ञानिक आधार है? क्या इसे कहीं जाँचा गया है? क्या केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इसकी अनुमति दे दी है? यदि नहीं दी है, तो क्या यह अपराध नहीं है?

जवाब में श्री श्री ने ट्विट करके दिये धन्यवाद ज्ञापन के जरिए यह बताने की कोशिश की कि नालों को साफ करने हेतु पिछले तीन माह के दौरान एक लाख दिल्लवासियों ने एंजाइम तैयार किये हैं। उनके इस प्रयास से मीथेन गैस का उत्सर्जन कम हुआ है। कार्यकर्ताओं की प्रशंसा करते हुए श्री श्री ने ग्रामीणों के हवाले से कहा गया कि पहले जो भैंसे पानी के पास नहीं जाती थीं, वे भी अब पानी में जाने लगी हैं। उन्होंने भी पहचान लिया है कि पानी साफ हो गया है। इसका मतलब क्या? क्या यह कि आयोजन का विरोध करने वालों की समझ भैंसों से भी गई बीती है?

 

नदी पुनर्जीवन के दावे पर सवाल


श्री श्री ने स्वयं के द्वारा महाराष्ट्र में 11, कर्नाटक में चार और तमिलनाडु में एक नदी के पुनर्जीवन का दावा किया। इस दावे पर उठे सवालों के जवाब में न तो सभी पुनजीर्वित नदियों के नाम सामने आये और न ही पुनर्जीवन प्रक्रिया और दावे का कोई वैज्ञानिक अध्ययन सामने लाया गया।

 

स्थान चुनाव के तर्क पर सवाल


चौथा सवाल, श्री श्री के यह कहने पर उठा कि उन्होंने आयोजन के लिये यमुना नदी को इसलिये चुना है, ताकि नदी की स्थिति पर लोगों का ध्यान खींचा जा सके। पहले यमुना खादर को मलबा भरकर.. उसे समतल करने, उसकी जल संग्रहण क्षमता को नष्ट करने और फिर यमुना के प्रति ध्यानाकर्षण सम्बन्धी उक्त बयान के विरोधाभास को ‘एक क्रूर मज़ाक’ कहा गया।

 

आयोजन के मन्तव्य पर सवाल


होर्डिंग कह रहे हैं कि विश्व सांस्कृतिक उत्सव, सचमुच मानवता का उत्सव है; संस्कृतियों को जोड़ने का उत्सव है; विविधताओं के सम्मान का उत्सव है। श्री श्री का बयान आया कि यह पृथ्वी को संकट से उबारने के लिये अच्छे लोगों को एक साथ लाने का उत्सव है। प्रश्न यह है कि यदि उत्सव का उद्देश्य यही सब है, तो 35वीं सालगिरह पर 35 लाख दर्शक, एक मंच पर एक साथ कभी 35 हजार तो कभी आठ हजार कलाकार का आँकड़ा, दुनिया का सबसे बड़ा मंच बनाकर फिर ‘गिन्नीज वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस’ और फिर ‘नोबेल पीस प्राइज’ की दौड़ में शामिल श्री श्री के नाम की खबरें क्या हैं? क्या इनसे इस आयोजन का कोई लेना-देना नहीं हैं?

 

मंच की सुरक्षा पर सवाल


एक प्रश्न, आयोजन से पूर्व दिल्ली पुलिस से अनुमति न लेने को लेकर उठा था, तो अब दूसरा प्रश्न 1200 फीट लम्बे, 200 फीट चौड़े और 40 फीट ऊँचे मंच की सुरक्षा को लेकर उठ गया है। प्रश्न है कि क्या यह मंच एक साथ मंच पर आने वाले कलाकारों की बताई संख्या को एक समय में वहन करने की क्षमता रखता है? क्या मंच सुरक्षित है? लेख लिखे जाने तक ऐसी कोई जानकारी लेखक को नहीं है कि मंच को लेकर किसी सम्बन्धित विभाग ने सुरक्षा प्रमाण पत्र दे दिया हो।

 

कचरा निष्पादन पर सवाल


एक अन्य सवाल का आधार श्री श्री का वह बयान है, जिसमें श्री श्री ने कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे कि आयोजन की वजह से यमुना प्रदूषित न हो। सवाल उठा कि कैसे करेंगे? तीन दिन के दौरान आये 35 लाख लोग अपने मल-मूत्र का त्याग क्या कहीं और जाकर करेंगे? 650 मोबाइल शौचालयों को क्या नदी किनारे रखना उचित है? इन मोबाइल शौचालयों में जमा मल-मूत्र निष्पादन की क्या और कहाँ व्यवस्था होगी? आगन्तुक जो कुछ खाएँगे-पीएँगे; उसका और उसके कचरा निष्पादन का क्या इन्तजाम है?

 

‘आसुरी शक्ति’ कहने पर सवाल


सवाल तो श्री श्री द्वारा यमुना स्थल के चुनाव का विरोध करने वालों को ‘आसुरी शक्तियाँ’ कहने वाले बयान पर भी उठा। यमुना जिये अभियान ने ही सवाल उठाया कि यदि संविधान की धारा 51 ए (जी) स्वयं यह कहती हो कि वन, झील, नदी और वन्य जीव समेत प्राकृतिक पर्यावरण की संरक्षा और समृद्धि प्रत्येक भारतीय नागरिक का मूल कर्तव्य है, तो फिर यह यमुना खादर संरक्षण के लिये आवाज उठाना ‘आसुरी शक्तियों’ का कार्य कैसे हो गया? प्रश्न वाजिब है कि क्या भारतीय संविधान ने आसुरी कार्यों को हम नागरिकों का मूल कर्तव्य बनाया है?

 

निजी आयोजन: सरकारी मदद’ पर सवाल


गौरतलब है कि गौतम बुद्ध नगर के लोकनिर्माण विभाग ने यहाँ करीब चार करोड़ रुपए की लागत से 400 मीटर लम्बा एक पन्टून पुल बनाया है। मुख्य अभियन्ता श्री एक के गुप्ता ने यह बात मंजूर की है कि इसे केन्द्र सरकार के अनुरोध पर राज्य सरकार द्वारा बनाया गया है। दूसरा पुल भारतीय सेना ने बनाया है। लागत आदि को लेकर सैन्य विभाग से जवाब का इन्तजार जारी है। दिल्ली लोक निर्माण विभाग ने जो निर्माण करने में मदद की है, उसका हिसाब-किताब भी अभी भले ही सामने न आया हो, किन्तु जनता द्वारा दिये टैक्स से आई कमाई को यूँ किसी के निजी उत्सव में उड़ाने की अनुमति को लेकर सवाल तो रहेगा ही।

टेलीग्राफ अखबार में छपी एक रिपोर्ट में ने सवाल उठाया है कि इस निजी आयोजन से लोक निर्माण विभाग और सैन्य बलों का क्या लेना-देना है? आयोजन के लिये किये जा रहे निर्माण में लोक निर्माण विभाग और सैन्य बल, किस आधिकारिक प्रावधान के तहत मदद कर रहे हैं?

 

‘चेहरा कोई और, मोहरा कोई और’ पर सवाल


दिल्ली विकास प्राधिकरण अनुमति पत्र से स्पष्ट एक दिलचस्प तथ्य यह है ‘आर्ट आॅफ लिविंग फाउंडेशन’ न तो इस उत्सव का आयोजक है और न ही उसने उत्सव के लिये ज़मीन उपयोग की अनुमति का कोई आवेदन किया है। आयोजक है एक अन्य ट्रस्ट - व्यक्ति विकास केन्द्र। अनुमति हेतु आवेदनकर्ता हैं, ‘व्यक्ति विकास केन्द्र’ (बी 182 ए, सेक्टर 48, नोएडा) की ट्रस्टी-तृप्ति धवन।

क्या आपने कहीं पढ़ा या किसी होर्डिंग में देखा कि इस उत्सव का आयोजन ‘व्यक्ति विकास केन्द्र’ द्वारा किया जा रहा है? व्यक्ति विकास केन्द्र, आमंत्रण पत्र से गायब है। आमंत्रण पत्रों में दो ही सम्पर्क दर्ज हैं: आर्ट आॅफ लिविंग अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र (उदयपुरा, बैंगलौर) और विश्व सांस्कृतिक महोत्सव दफ्तर (पीतमपुरा, नई दिल्ली)। इस भेद का मतलब और मकसद क्या? ‘व्यक्ति विकास केन्द्र’ का ऐसा कल्याणकारी इतिहास है कि आज दो राज्य और केन्द्र सरकार के विभाग उसके आयोजन की सहयोगी भूमिका में सहर्ष प्रस्तुत दिखाई दे रहे हैं?

 

अनुमति पर सवाल


सूचना है कि जब पहली बार दिल्ली विकास प्राधिकरण से सम्पर्क साधा गया था, तो प्राधिकरण ने अनुमति देने से मना कर दिया था। फिर 15 दिसम्बर, 2016 को मुख्य अभियंता श्री डी पी सिंह ने तमाम सावधानियों का हवाला देते हुए आवेदक को सूचित किया कि माननीय उपराज्यपाल ने आयोजन के लिये अस्थायी तौर पर भूमि आवंटन को मंजूरी दे दी है। यहाँ उठाया गया प्रश्न यह है कि अनुमति न देने के क्या आधार थे और आखिर ऐसा क्या हो गया कि अनुमति दे दी गई?

 

शर्त उल्लंघन पर अनुमति रद्द न करने पर सवाल


गौरतलब है कि अनुमति देते हुए प्राधिकरण ने कहा था कि आयोजक सभी सम्बन्धित मंजूरियाँ/ अनापत्तियाँ लेगा। आयोजक, मंजूरी न लेने की दशा में हुए नुकसान की भरपाई करेगा। शौच आदि को नदी में नहीं बहाएगा। जमा राशि के तौर पर 15 लाख रुपए जमा किये गए थे। पत्र में लिखा है कि उत्सव के बाद स्थान की स्वच्छता की यथास्थिति बनाए रखने की जिम्मेदारी व्यक्ति विकास केन्द्र की होगी। शर्त थी कि आयोजन के स्थान पर वह कोई मलबा नहीं डालेगा। कोई कंक्रीट निर्माण नहीं करेगा। नदी से सुरक्षित और पर्याप्त दूरी बनाकर रखेगा। यदि सावधानियाँ नहीं बरती गई, तो अनुमति रद्द कर दी जाएगी। क्या आयोजक ने ये सभी सावधानियाँ बरती?

मलबा डालने की एक शर्त को ही सामने रखें, तो जवाब है कि नहीं, आयोजक ने शर्त की पालना नहीं की; तो फिर दिल्ली विकास प्राधिकरण ने अनुमति रद्द क्यों नहीं की? क्या इसीलिये कि श्री श्री बड़ा नाम हैं? क्या इसीलिये कि उत्सव के आयोजन की स्वागत समिति में स्वयं श्री लालकृष्ण आडवाणी, संस्कृति मंत्री श्री महेश शर्मा, कांग्रेस नेता श्री कर्ण सिंह और दिल्ली के संस्कृति मंत्री श्री कपिल मिश्रा शामिल हैं? क्या यह आयोजन इसीलिये अनुमति जारी रहने का हकदार है कि प्रधानमंत्री महोदय समेत 155 देशों की नामचीन हस्तियाँ इसमें मेहमान के रूप में आने वाली हैं?

 

अनुमति दाता पर सवाल


चिल्ला गाँव के महेन्द्र सिंह द्वारा किया यह सवाल भी यहाँ मौजूं है कि जब जमीन उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग की है, तो दिल्ली विकास प्राधिकरण अनुमति कैसे दे सकता है?

 

किसानों के सवाल


‘द वायर’ की एक रिपोर्ट में दर्ज बयान के जरिए राजकुमार ने कहा है कि उनसे बिना पूछे उनकी खेती नष्ट कर दी गई। बाबूराम का बयान है कि 28 फरवरी को श्री श्री स्वयं मौके पर आये और कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि उनकी फसल बर्बाद कर दी गई है। उन्होंने वादा किया कि उन्हें हर्जाना दिया जाएगा, किन्तु कोई नहीं आया। मेल टुडे की रिपोर्ट का दावा है इस आयोजन से करीब 100 एकड़ फसल और 200 किसान सीधे-सीधे दुष्प्रभावित हुए हैं।

‘दिल्ली पीजेंट कॉपरेटिव मल्टीपरपज सोसाइटी’ के महासचिव मास्टर बलजीत सिंह कहते हैं कि जब देश को खाद्यान्न की जरूरत थी, तब यह जमीन हमें दी गई थी। अपनी आजीविका के लिये हम तब से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा करके हम अपनी आजीविका से ज्यादा तो यमुना की चौकीदारी कर रहे हैं। आर्ट का लिविंग का आयोजन तो खेती और यमुना.. दोनों का बर्बाद करेगा। इस जमीन पर अगले कम-से-कम एक साल कोई खेती नहीं हो सकेगी। इसकी भरपाई कौन करेगा?

 

वृक्षारोपण पर सवाल


श्री श्री ने आयोजन के बाद यमुना खादर में वृक्षारोपण की बात की है। यह कवायद अच्छी हो, तो भी कब्जे की कवायद की आशंका से परे नहीं। आशंका प्रकट की जा रही है कि कामनवेल्थ खेलों के दौरान अस्थायी तौर पर एक हजार बसों को खड़ा करने के नाम पर यमुना की जो 60 एकड़ जमीन कब्जाई गई थी, छह वर्षों बाद वह आज भी मिलेनियम बस डिपो के रूप में वहीं-का-वहीं है। उत्सव के नाम पर जो आज अस्थायी है, वह कल को स्थायी नहीं हो जाएगा; इस बात की क्या गारंटी है? क्या गारंटी है कि किसी आयोजक द्वारा यमुना खादर की भूमि का यह इस्तेमाल आखिरी होगा? क्या किसी ने यह लिखकर दिया है?

 

कमाई और खर्च पर सवाल


एक साहब ने तो इस विश्व सांस्कृतिक उत्सव के जरिए फंड उगाही में लगे संगठनों की कमाई और उत्सव खर्च की जाँच की माँग कर दी है। कह रहे हैं कि एक ओर पोस्टर लगे हैं कि प्रवेश निशुल्क हैं और दूसरी ऑनलाइन टिकट बुकिंग हो रही है। यह कैसा दोहरा राग है? कोई पूछ रहा है कि जैसे-जैसे आयोजन का समय नजदीक आता जा रहा है श्री श्री आयुर्वेद के टेलीविजन विज्ञापन और होर्डिग्ंस बढ़ते जा रहे हैं। क्यों? इनका क्या मकसद है? कोई ताज्जुब नहीं कोई सवाल श्री श्री से जुड़े ट्रस्ट और पूर्व में हुए भूमि आवंटनों को लेकर भी उठ जाये? क्या यह अच्छा होगा??

 

तारीख-दर-तारीख पर सवाल


प्रश्न यह भी है कि जब राष्ट्रीय हरित पंचाट की समिति ने स्वयं माना है कि आयोजन ने कुछ दिन में ही यमुना खादर बर्बाद कर दिया है, तो फिर समिति की रिपोर्ट आने के तुरन्त बाद ही आयोजन काम रोकने का आदेश क्यों नहीं दिया गया?

तारीख-पे-तारीख देकर यह क्यों सुनिश्चित किया जा रहा है कि नदी सुरक्षा की माँग करने वालों के पास कोई विकल्प शेष ही न रहे, सिवाय असंवैधानिक हो जाने के?

 

यमुना को इंतजार है रचनात्मक जवाब का


सवाल सिर्फ आयोजन को लेकर नहीं उठ रहे; सवालों के तीर आयोजन स्थल चुनाव का विरोध करने वालों को लेकर भी छूट रहे हैं। उठ रहे सवाल तर्कपूर्ण हों या बेतुके? इनके यहाँ उल्लेख का मकसद सिर्फ यह समझना और समझाना है कि सवाल उठते हैं तो उठते ही चले जाते हैं। अक्स दरकता है, तो फिर दरकता ही चला जाता है। उसे रोकना फिर सहज नहीं होता। मनोज मिश्र, आनंद आर्य, केतन बजाज, विमलेन्दु झा, रवि अग्रवाल, भारती चतुर्वेदी, रमेश शर्मा, ओंकार मित्तल.. सवाल उठाने वालों की फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है।

इसी मसले से सम्बद्ध एक अन्य याचिका में हस्ताक्षरकर्ताओं की संख्या तीन दिन में दो हजार पार कर गई। जरूरी है कि इन सवालों का उठना अब बन्द हो और रचनात्मक उत्तर आने शुरू हों। यह काम अब आयोजकों का कोई संजीदा पश्चाताप भी कर सकता है और विरोध करने वालों के रचनात्मक प्रतिरोध भी। यमुना को इन्तजार है।

 

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