केंद्रीय ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री जयराम रमेश गांवों को स्वच्छ बनाने के अभियान में जोर-शोर से जुटे हैं। वे लगातार लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक लोग खुले में शौच करते रहेंगे, देश कुपोषण और दूसरी बड़ी बीमारियों से मुक्त नहीं हो पायेगा। इस संदर्भ में 3 अक्टूबर को वर्धा से निर्मल भारत यात्रा का शुभारंभ किया गया है। पेश है अंजनी कुमार सिंह से उनकी बातचीत के मुख्य अंश :
स्वच्छता अभियान को आप किस रूप में देखते हैं?
स्वच्छता महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। स्वच्छता महिलाओं के आत्म सम्मान और गरिमा से जुड़ा हुआ है। और सबसे महत्वपूर्ण बात हमारे देश में है, जिसे हमलोगों ने पूरी तरह पहचाना नहीं है, क्योंकि स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य और कुपोषण से भी जुड़ा हुआ है। आज हम कहते हैं कि हमारे देश में कुपोषण भारी मात्रा में है और कुपोषण होने का एक महत्वपूर्ण कारण, जहां तक मैं समझता हूं वह स्वच्छता से जुड़ा हुआ है। जहां स्वच्छता नहीं है, स्वच्छ वातावरण नहीं है, वहां के बच्चों की जो क्षमता है, वह घट जाती है। न्यूट्रिशन को प्राप्त करने की क्षमता कम हो जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वच्छता हाइजिन न्यूट्रिशन का सबसे बड़ा कारण है। जहां स्वच्छता नहीं होगी, वहां तरह-तरह के बीमारियां फैलेगी, और इसका खामियाजा हम सभी को भुगतना होगा।
तो क्या इसका कारण जागरूकता का अभाव है?
भारत में स्वच्छता के प्रति लोगों के भीतर कितनी जागरूकता है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व् का 60 फीसदी खुले में शौच करने वाले भारत में है। जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियों से माताओं और बच्चों को शिकार होना पड़ता है। यह अफसोस की बात है कि देश में पांच साल से कम उम्र के लगभग चार से पांच लाख बच्चे कई तरह के बीमारी से मरते हैं। और इसमें खुले में शौच जाना एक महत्वपूर्ण कारण है। सरकार प्रत्येक घर, सार्वजनिक स्थान, स्कूल, कॉलेज आदि को शौचालय उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है। सेनिटेशन के प्रति लोगों की जागरूकता का अभाव इसी से समझा जा सकता है कि कुल 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ग्राम पंचायत ही निर्मल ग्राम पंचायत है।
इस लक्ष्य को किस प्रकार से पूरा किया जा सकता है?
साठ साल बाद भी हम शौचालय के मामले में पीछे है। यह हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक है कि साठ फीसदी से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती है। दुनिया में खुले में जितना शौच किया जाता है, उतना अकेले हमारे देश में होता है। इसीलिए ऐसा निर्णय लिया गया है कि अगले 10 साल में खुले में शौच को पूरी तरह से खत्म किया जाये। लेकिन इसके लिए उसी जुनून के साथ राज्य सरकार को काम करना होगा। स्वच्छता को आत्मसम्मान से जोड़े बिना इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा।
केंद्र सरकार इसको लेकर कितना गंभीर है?
केंद्र सरकार इस काम को गंभीरता से ले रही है। जिसके तहत देश भर में स्वच्छता अभियान को पूरा करने के लिए तीन अक्तूबर से वर्धा से सेनिटेशन कंपेन शुरू किया गया है। 56 दिनों तक चलने वाले इस कंपेन द्वारा लोगों को खुले में शौच न करने के प्रति जागरूक किया जायेगा। यह अभियान पांच राज्यों से होकर गुजरेगा और लगभग दो हजार किलोमीटर की यात्रा तय करेगा। वर्धा से शुरू होने वाली इस यात्रा का समापन बिहार के बेतिया में होगा। यह काम लोगों के बीच जागरूकता लाने के लिए किया जा रहा है। जिसे सोशल मिशन नाम दिया गया है। जिसके तहत नौ करोड़ लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य रखा गया है। इतना ही नहीं सेनिटेशन के लिए सरकार ने फंड में वृद्धि की है तथा इस मद में राज्य सरकार की ओर से जो भी राशि की मांग आती है, उसे नियत समय में केंद्र पूरा करता है। इसे पूरा करने के लिए गाईडलाइन को भी लचीला बनाया गया है।
बिहार-झारखंड में स्वच्छता की स्थिति पर आप क्या कहना चाहेंगे?
बिहार-झारखंड में चुनौती काफी गंभीर है। यदि दस साल में खुले में शौच मुक्त घोषित होता है, तो यह दोनों राज्यों के लिए एक करिश्मा होगा। हम उम्मीद करते हैं कि यह काम दस सालों में पूरा कर लिया जायेगा। राज्यों ने दस वर्षों का समय दिया है। इससे पहले भी राज्यों के मंत्रियों की बैठक में इस पर विस्तार से चर्चा की गयी थी और राज्यों ने तब आश्वातसन दिया था कि अगले 10 सालों में इस लक्ष्य को वह पूरा कर लेंगे। इसे पूरा करने के लिए एक पागलपन की भांति काम करना होगा। अपने मन से यह बात हटाना होगा कि यह कोई सरकारी काम है। यदि स्वच्छता के प्रति हमारे मन में जुनून नहीं है, नाराजगी नहीं है, शर्मिंदगी नहीं है, गुस्सा और क्रोध नहीं आता है, तो इस लक्ष्य को निर्धारित समय में पूरा करना मुश्किल होगा। बिहार और झारखंड के राजनीतिक हस्तियों को जो नेता है। एमओयू साईन करते रहते हैं। उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि अभी एमओयू छोड़िये और असली बात पर ध्यान दीजिये। स्वच्छता अभियान को पूरा करने की दिशा में सार्थक और ठोस कदम उठाइये, जिससे दस सालों में खुले में शौच की प्रथा को समाप्त किया जा सके।
किन राज्यों ने यह लक्ष्य हासिल कर लिया है?
पांच राज्यों में हमने बहुत तरक्की देखी है। सिक्किम खुले में शौच मुक्त हो गया है। दिसंबर में केरल भी दूसरा राज्य हो जायेगा। मार्च 13 में हरियाणा तीसरा राज्य बनेगा। वहीं 2014 में हिमाचल प्रदेश चौथा तथा तमिलनाडु पांचवा राज्य बनेगा। महाराष्ट्र भी इस दिशा में अग्रसर है।बिहार-झारखंड में चुनौती काफी गंभीर है। यदि दस साल में खुले में शौच मुक्त घोषित होता है, तो यह दोनों राज्यों के लिए एक करिश्मा होगा। हम उम्मीद करते हैं कि यह काम दस सालों में पूरा कर लिया जायेगा। राज्यों ने दस वर्षों का समय दिया है। केंद्र सरकार इस काम को गंभीरता से ले रही है। जिसके तहत देश भर में स्वच्छता अभियान को पूरा करने के लिए तीन अक्तूबर से वर्धा से सेनिटेशन कंपेन शुरू किया गया है। 56 दिनों तक चलने वाले इस कंपेन द्वारा लोगों को खुले में शौच न करने के प्रति जागरूक किया जायेगा।
स्वच्छता अभियान को आप किस रूप में देखते हैं?
स्वच्छता महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। स्वच्छता महिलाओं के आत्म सम्मान और गरिमा से जुड़ा हुआ है। और सबसे महत्वपूर्ण बात हमारे देश में है, जिसे हमलोगों ने पूरी तरह पहचाना नहीं है, क्योंकि स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य और कुपोषण से भी जुड़ा हुआ है। आज हम कहते हैं कि हमारे देश में कुपोषण भारी मात्रा में है और कुपोषण होने का एक महत्वपूर्ण कारण, जहां तक मैं समझता हूं वह स्वच्छता से जुड़ा हुआ है। जहां स्वच्छता नहीं है, स्वच्छ वातावरण नहीं है, वहां के बच्चों की जो क्षमता है, वह घट जाती है। न्यूट्रिशन को प्राप्त करने की क्षमता कम हो जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वच्छता हाइजिन न्यूट्रिशन का सबसे बड़ा कारण है। जहां स्वच्छता नहीं होगी, वहां तरह-तरह के बीमारियां फैलेगी, और इसका खामियाजा हम सभी को भुगतना होगा।
तो क्या इसका कारण जागरूकता का अभाव है?
भारत में स्वच्छता के प्रति लोगों के भीतर कितनी जागरूकता है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व् का 60 फीसदी खुले में शौच करने वाले भारत में है। जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियों से माताओं और बच्चों को शिकार होना पड़ता है। यह अफसोस की बात है कि देश में पांच साल से कम उम्र के लगभग चार से पांच लाख बच्चे कई तरह के बीमारी से मरते हैं। और इसमें खुले में शौच जाना एक महत्वपूर्ण कारण है। सरकार प्रत्येक घर, सार्वजनिक स्थान, स्कूल, कॉलेज आदि को शौचालय उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है। सेनिटेशन के प्रति लोगों की जागरूकता का अभाव इसी से समझा जा सकता है कि कुल 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ग्राम पंचायत ही निर्मल ग्राम पंचायत है।
इस लक्ष्य को किस प्रकार से पूरा किया जा सकता है?
साठ साल बाद भी हम शौचालय के मामले में पीछे है। यह हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक है कि साठ फीसदी से ज्यादा आबादी खुले में शौच करती है। दुनिया में खुले में जितना शौच किया जाता है, उतना अकेले हमारे देश में होता है। इसीलिए ऐसा निर्णय लिया गया है कि अगले 10 साल में खुले में शौच को पूरी तरह से खत्म किया जाये। लेकिन इसके लिए उसी जुनून के साथ राज्य सरकार को काम करना होगा। स्वच्छता को आत्मसम्मान से जोड़े बिना इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा।
केंद्र सरकार इसको लेकर कितना गंभीर है?
केंद्र सरकार इस काम को गंभीरता से ले रही है। जिसके तहत देश भर में स्वच्छता अभियान को पूरा करने के लिए तीन अक्तूबर से वर्धा से सेनिटेशन कंपेन शुरू किया गया है। 56 दिनों तक चलने वाले इस कंपेन द्वारा लोगों को खुले में शौच न करने के प्रति जागरूक किया जायेगा। यह अभियान पांच राज्यों से होकर गुजरेगा और लगभग दो हजार किलोमीटर की यात्रा तय करेगा। वर्धा से शुरू होने वाली इस यात्रा का समापन बिहार के बेतिया में होगा। यह काम लोगों के बीच जागरूकता लाने के लिए किया जा रहा है। जिसे सोशल मिशन नाम दिया गया है। जिसके तहत नौ करोड़ लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य रखा गया है। इतना ही नहीं सेनिटेशन के लिए सरकार ने फंड में वृद्धि की है तथा इस मद में राज्य सरकार की ओर से जो भी राशि की मांग आती है, उसे नियत समय में केंद्र पूरा करता है। इसे पूरा करने के लिए गाईडलाइन को भी लचीला बनाया गया है।
बिहार-झारखंड में स्वच्छता की स्थिति पर आप क्या कहना चाहेंगे?
बिहार-झारखंड में चुनौती काफी गंभीर है। यदि दस साल में खुले में शौच मुक्त घोषित होता है, तो यह दोनों राज्यों के लिए एक करिश्मा होगा। हम उम्मीद करते हैं कि यह काम दस सालों में पूरा कर लिया जायेगा। राज्यों ने दस वर्षों का समय दिया है। इससे पहले भी राज्यों के मंत्रियों की बैठक में इस पर विस्तार से चर्चा की गयी थी और राज्यों ने तब आश्वातसन दिया था कि अगले 10 सालों में इस लक्ष्य को वह पूरा कर लेंगे। इसे पूरा करने के लिए एक पागलपन की भांति काम करना होगा। अपने मन से यह बात हटाना होगा कि यह कोई सरकारी काम है। यदि स्वच्छता के प्रति हमारे मन में जुनून नहीं है, नाराजगी नहीं है, शर्मिंदगी नहीं है, गुस्सा और क्रोध नहीं आता है, तो इस लक्ष्य को निर्धारित समय में पूरा करना मुश्किल होगा। बिहार और झारखंड के राजनीतिक हस्तियों को जो नेता है। एमओयू साईन करते रहते हैं। उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि अभी एमओयू छोड़िये और असली बात पर ध्यान दीजिये। स्वच्छता अभियान को पूरा करने की दिशा में सार्थक और ठोस कदम उठाइये, जिससे दस सालों में खुले में शौच की प्रथा को समाप्त किया जा सके।
किन राज्यों ने यह लक्ष्य हासिल कर लिया है?
पांच राज्यों में हमने बहुत तरक्की देखी है। सिक्किम खुले में शौच मुक्त हो गया है। दिसंबर में केरल भी दूसरा राज्य हो जायेगा। मार्च 13 में हरियाणा तीसरा राज्य बनेगा। वहीं 2014 में हिमाचल प्रदेश चौथा तथा तमिलनाडु पांचवा राज्य बनेगा। महाराष्ट्र भी इस दिशा में अग्रसर है।बिहार-झारखंड में चुनौती काफी गंभीर है। यदि दस साल में खुले में शौच मुक्त घोषित होता है, तो यह दोनों राज्यों के लिए एक करिश्मा होगा। हम उम्मीद करते हैं कि यह काम दस सालों में पूरा कर लिया जायेगा। राज्यों ने दस वर्षों का समय दिया है। केंद्र सरकार इस काम को गंभीरता से ले रही है। जिसके तहत देश भर में स्वच्छता अभियान को पूरा करने के लिए तीन अक्तूबर से वर्धा से सेनिटेशन कंपेन शुरू किया गया है। 56 दिनों तक चलने वाले इस कंपेन द्वारा लोगों को खुले में शौच न करने के प्रति जागरूक किया जायेगा।
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