सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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पानी रोकने का सरल और सस्ता उपाय
Posted on 31 Dec, 2009 07:01 PM

अगर बरसात के बाद नदी-नालों से बहने वाले पानी का प्रभावी तरीके से संग्रहण किया जाय तो पानी कई गुना और ज्यादा मिलने लगेगा।

rainwater harvesting
वर्षा जल संग्रहण : एक मूल्यांकन
Posted on 31 Dec, 2009 06:46 PM

लगातार तीन वर्षों के अकाल के बावजूद राजस्थान के उदयपुर जिले में जिन गाँवों ने वर्षा जल संग्रहण के ढांचे बनाए थे उनकी स्थिति उतनी बुरी नहीं थी। जिले में ग्रामीण विकास के लिए कार्यरत एक गैर सरकारी संगठन, सेवा मंदिर, 1987 से समुदाय आधारित जल संग्रहण एवं प्रबंधन को प्रोत्साहित कर रही है। संस्था के सहयोग से जिले के विभिन्न गांवों में लोगों ने अब तक 29 एनिकट (छोटे डैम) बनाए हैं। एनिकट निर्माण कार्यक्

rain water harvesting
बंधाओं से भूजल स्तर उठा
Posted on 31 Dec, 2009 06:42 PM

“गुजरात में पिछले दो वर्षों के दौरान 15,000 बंधाओं का निर्माण किया गया, जिससे यहां का तेजी से घटता भूजल स्तर काफी ऊपर आ गया है”, यह गुजरात के सिंचाई मंत्री बाबूभाई बोखिरिया का कहना था। वे और 5,500 बंधाओं का निर्माण करने के लिए आगे आए हैं, जिससे 7.78 करोड़ घन मीटर अतिरिक्त वर्षा जल संचित होगी।

check dam
कोंकण में हरियाली छाई
Posted on 31 Dec, 2009 06:38 PM

क्या सूखी और बंजर जमीन में आम और काजू का उत्पादन हो सकता है?

पाँच प्रतिशत मॉडल
Posted on 31 Dec, 2009 06:10 PM

भारतवर्ष में सिर्फ 32 प्रतिशत कृषि जमीन सिंचित कोटि में है और बाकी 68 प्रतिशत जमीन शुष्क/बारानी अथवा वर्षा पर निर्भर खेती के अंतर्गत आती है। अत: अगर वर्षा पर निर्भर खेतों में जल संग्रहण का प्रयास किया जाए तो इस जमीन से काफी कृषि का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसी सोच के तहत मध्य प्रदेश के ऊबड़-खाबड़ और ढालू जमीन में खेती के लिए जल संग्रहण के लिए एक विधि का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे पाँच प्रतिशत क

पानी की गुफाएँ
Posted on 31 Dec, 2009 06:02 PM

हिमाचल प्रदेश स्थित हमीरपुर और इसके आसपास के जिलों के लोग पानी संकट से निपटने के लिए फिर से पारंपरिक वर्षा जल ढांचों को पुनर्जीवित करने और नए ढांचों के निर्माण में जुट गए हैं। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में ऐसे जल संग्रहण ढांचों को खत्री के नाम से पुकारा जाता है।

थाती सेनुआ का प्रयास
Posted on 31 Dec, 2009 05:51 PM

सुजानपुर प्रखण्ड में एक थाती सेनुआ गांव है, जहां के गांववाले हिमाचल प्रदेश के हमरीरपुर जिले के पारंपरिक वर्षाजल संग्रहण के लिए आगे आए हैं, जिससे वे छत से वर्षाजल संग्रहण कर सकें। गांव वालों ने अपने प्रयास से अपने-अपने घरों के लए फेरोसीमेंट की टंकियों का निर्माण किया, जिसमें उनकी छत का पानी जमा होता है। छत से पाइप को नीचे टैंक के साथ जोड़ा जाता है। यह गांव पूरी तरह से खत्रियों पारंपरिक जल सुझाओं

‘आहार’ पाईन से खुशहाली
Posted on 31 Dec, 2009 05:37 PM

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। करीब 40 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद कृषि से उपजता है। अत: जब तक कि गांव की कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार कर पाना असंभव होगा। अत: स्थानीय समुदायों को जोड़ते हुए जल पंढाल विकास और जल प्रबंधन करने से हमारी कृषि व्यवस्था टिकाऊ विकास की ओर अग्रसर होगी।

बर्फ के कुएं
Posted on 31 Dec, 2009 05:36 PM

हिमाचल प्रदेश के ऊँचाई पर स्थित शिमला जैसे शहरों में बर्फ के कुएं होना एक आम बात थी, जिसमें लोग बर्फ को जमा करते थे। आज इन ढांचों का कोई उपयोग नहीं होता है, जैसे: शिमला मेडिकल कॉलेज के समीप एक बेकार पड़ा हुआ बर्फ का कुआँ है जो कलई की हुई शीट की एक छतरी से ढका हुआ है, जिससे इस कुएं को गर्मी से बचाया जाता था। इसे एक सकरे रास्ते से सड़क के साथ जोड़ा गया था। इसकी गहराई 15 फीट के करीब थी और व्यास कर

स्वामी शिवकुमार और उनके मंत्र का जादू
Posted on 07 Nov, 2009 01:02 PM

कर्नाटक के 70,000 एकड़ में फ़ैली कपोटागिरि पहाड़ियां धातुओं के अवैध खनन और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की वजह से बंजर और वीरान हो चुकी थीं, लेकिन वन अधिकारियों के साथ मिलकर सिध्दगंगा मठ के 100 वर्ष के स्वामी शिवकुमार और उनके “ॐ जलाय नमः' मंत्र ने कमाल का जादू किया, नंगी पहाड़ियां पर हरियाली की चादर ओढ़ा दी। इस अनोखे प्रयास के बारे में बता रहे हैं शिवराम पेल्लूर।

स्वामी शिवकुमार
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