क्या सूखी और बंजर जमीन में आम और काजू का उत्पादन हो सकता है? हाँ, अगर आप वर्षाजल संग्रहण करते हैं तो ऐसा संभव है। मुम्बई आधारित एक पारिस्थितिकीविद रविन्द्र पी सेठी ने महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के दहागांव में 60 एकड़ अनुपजाऊ पहाड़ी जमीन में वर्षा जल संग्रहण किया और इस क्षेत्र को आम तथा काजू के वृक्षों से हरा-भरा कर दिया और वह भी सिंचाई एवं बिजली की सुविधा के अभाव में। अशोका फाउंडेशन ने उनके इस सफल प्रयोग के लिए उन्हें जनवरी 2002 में अशोक पुरस्कार से सम्मानित किया।
सेठी ने पारिस्थितिकीय विज्ञान फ्लोरिडा, अमेरिका से डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की है। उनका प्रयोग 1992 में शुरू हुआ। उन्हें लगता है कि “अगर ज्ञान का प्रयोग नहीं किया जाए तो वह अनुपयोगी हो जाता है।“ उनका प्रयोग था बारिश के महीनों में वर्षाजल का संग्रहण और बाद के सूखे महीनों में इसका समुचित उपयोग। सेठी बताते हैं कि “जब हमने इसकी शुरुआत की, हमारा मुख्य ध्येय बेकार पड़ी जमीन की खेती के दायरे में लाना था। “उन्होंने मानसून के महीनों में वर्षा जल संग्रहण करके पानी की समस्या का समधान किया। वर्षाजल संग्रहण के लिए वृक्षारोपण के विभिन्न स्थलों पर 12,000 लीटर क्षमता वाले पत्थर के टैंक बनाए। इन टैंकों की कुल क्षमता लगभग 1.2 लाख लीटर की है। इन टैंकों में एकत्रित पानी का नवम्बर से मई तक के सूखे महीनों में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। परियोजना के प्रथम चरण में 60 एकड़ भूमि पर आम और काजू के पौधे लगाए गए। आज वहां करीब 5,000 काजू के पेड़ और 2,000 आम के पेड़ हैं। सन् 2001 में इन पेड़ों से 9 टन काजू और 2,000 टोकरी आम की पैदावार हुई।
सेठी अब अपने सफल प्रयोग को एक गैर सरकारी संगठन शोसियो-ईकॉनामिक इको डेवलप्मेंट (सीड) के माध्यम से क्षेत्र के चार जिलों- थाने, रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग तक ले जाने की योजना बना रहे हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : डॉ रविन्द्र पी सेठी शोसियो-ईकॉनामिक इको डेवलप्मेंट 10 अमित सीएचएस, वायर लेस रोड, जे बी नगर, अंधेरी (पूर्व) मुम्बई- 400059, महाराष्ट्र
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