A recent study finds that majority of the poor in India are likely to have open drains or no drainage systems to convey and treat their waste flows, threatening their health.
The budget allocation for the Department of Drinking Water and Sanitation reflects a steady upward trajectory, underscoring the importance of scaling financial commitments to meet the growing demands of the WASH sector.
A collective impact effort, the first of its type in India that provides informal waste pickers a chance to live safe and dignified lives, with particular emphasis on gender and equity.
Posted on 23 May, 2016 01:41 PM स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर उठाया कदम घर में शौचालय बनवाकर गाँव की ब्रांड एम्बेसडर बन रहीं महिलाएँ
एनसीआर में शामिल महाभारतकालीन शहर मेरठ में भले ही विकास की अन्धाधुन्ध दौड़ क्यों न चल रही हो। लेकिन तेज रफ्तार भरे इस शहर के कई गाँव ऐसे हैं जो आज भी जिन्दगी की बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गुजारने को मजबूर हैं। गंगा यमुना तहजीब की गवाह दोआबा भूमि कहलाने वाले मेरठ में गंगाजल से फसलें लहलहाती थीं।
विकास की दौड़ ने हवाईअड्डे, शॉपिंग मॉल और बहुमंजिला इमारतें तो शहर में खड़ी कर दीं। लेकिन इनके अन्धेरे में खेत-खलिहान खोते चले गए। खेतों में गेहूँ, गन्ने की जगह खड़ी होने वाली इमारतों, मॉल्स, फ्लाईओवर और सड़कों ने महज खाद्यान्न का संकट ही खड़ा नहीं किया, बल्कि उन तमाम ग्रामीण औरतों से शौचालय का वो अधिकार भी छीन लिया जो सवेरे चार बजे उठकर दिशा-मैदान के लिये सीधे इन खेतों की शरण में जाती थीं।
Posted on 02 May, 2016 04:08 PM भारत सरकार के स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन मंत्रालय (एमओएसपीआई- Ministry of Statistics and Programme Implementation) की तरफ से जारी की गई स्वच्छता स्टेट्स रिपोर्ट 2016 के मुताबिक भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों का इस्तेमाल का आँकड़ा 95.6 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 98.8 प्रतिशत है।
नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ- National Sample Survey Office) द्वारा भारत में ये सर्वेक्षण मई-जून 2015 के दौरान किया गया जिसमें 73,176 ग्रामीण और 41,538 शहरी घरेलू आबादी को कवर किया गया। भारत के हर राज्य में जाकर लोगों से राय ली गई और आंकड़े जुटाए गए। सिर्फ अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य थे जहाँ समय और अन्य सुविधाओं की कमीं के चलते सर्वेक्षण नहीं किया जा सका। यह सर्वे मात्र दो माह में किया गया था हालाँकि विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रकार के किसी भी सर्वेक्षण के लिये यह समय काफी नहीं है क्योंकि इतने कम समय में सही आँकड़े देना सम्भव नहीं है।