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भारत सरकार के स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन मंत्रालय (एमओएसपीआई- Ministry of Statistics and Programme Implementation) की तरफ से जारी की गई स्वच्छता स्टेट्स रिपोर्ट 2016 के मुताबिक भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों का इस्तेमाल का आँकड़ा 95.6 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 98.8 प्रतिशत है।
नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ- National Sample Survey Office) द्वारा भारत में ये सर्वेक्षण मई-जून 2015 के दौरान किया गया जिसमें 73,176 ग्रामीण और 41,538 शहरी घरेलू आबादी को कवर किया गया। भारत के हर राज्य में जाकर लोगों से राय ली गई और आंकड़े जुटाए गए। सिर्फ अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य थे जहाँ समय और अन्य सुविधाओं की कमीं के चलते सर्वेक्षण नहीं किया जा सका। यह सर्वे मात्र दो माह में किया गया था हालाँकि विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रकार के किसी भी सर्वेक्षण के लिये यह समय काफी नहीं है क्योंकि इतने कम समय में सही आँकड़े देना सम्भव नहीं है।
सर्वेक्षण में यह भी खुलासा हुआ है कि ग्रामीण घरेलू शौचालयों में 42.5 प्रतिशत और शहरी घरेलू शौचालयों में 87.9 प्रतिशत ही पानी की उपलब्धता है। सर्वेक्षण में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े मुद्दे भी उठाए गए हैं। जिसमें ये पता चला कि 36 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में उचित तरल निपटान प्रणाली का प्रबंध है जबकि 36.7 ग्रामीण क्षेत्रों में पक्की नाली (सीवरेज व्यवस्था) है..19 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ आज भी (कच्ची नाली) उचित तरल निपटान प्रणाली का कोई प्रबंध नहीं है।
सर्वेक्षण में खुले में शौच जाने वाले लोगों से जुड़े आँकड़े भी सामने आए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लगभग 52.1 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं। झारखण्ड इनमें सबसे ऊपर है, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में खुले में शौच जाने वाले लोगों की संख्या बेहद ज्यादा बताई गई है। जबकि इसके ठीक उलट शहरी क्षेत्रों में खुले में शौच जाने वालों का प्रतिशत मात्र 7.5 है।
![Percentage of population practicing open defecation in rural areas](https://farm2.staticflickr.com/1464/26743918296_bc44a863f3.jpg)
-रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 से 2015 के दौरान देश में 58 लाख शौचालय बनाए गए जो तय किए गए ग्रामीण घरेलू शौचालयों के लक्ष्य से कहीं ज्यादा है।
![Individual rural household toilets constructed over the years](https://farm2.staticflickr.com/1468/26675696562_535c19cd1a.jpg)
![School and anganwadi toilets constructed over the years under SBM](https://farm2.staticflickr.com/1489/26675695972_10d4bab66c.jpg)
• ग्राफ 2 और 3 से यह स्पष्ट है कि पिछले कुछ सालों में जहाँ व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है वहीं विद्यालयों और आँगनवाड़ी केंद्रों में शौचालयों की संख्या में कमी आई है।
• शहरी क्षेत्रों में 31 मार्च 2015 तक केवल एक लाख शौचालयों का निर्माण किया गया जो तय किए गए लक्ष्य 4 लाख 50 हजार शौचालय के मुकाबले काफी कम है।
• नए मिशन के तहत निजी और सार्वजनिक कंपनियों की मदद से शौचालयों के निर्माण का जो उद्देश्य तय किया गया था उसे भी कहीं ना कहीं धक्का लगा। 31 मार्च 2015 तक कंपनियों द्वारा स्कूलों में 3466 शौचालयों का निर्माण कराया गया जबकि सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के द्वारा 1 लाख 41 हजार से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया।
मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme -MGNREGS) के तहत साल 2015-16 में लगभग 81,400 शौचालयों का निर्माण कराया गया जबकि 2014-15 में इसी योजना के तहत 672,000 शौचालयों का निर्माण हुआ था। शायद संख्या में कमीं आने की एक वजह यह भी हो सकती है कि सरकार ने मनरेगा को स्वच्छ भारत मिशन के साथ जोड़कर नहीं रखा। 2015 में कैग (Comptroller and Auditor General of India-CAG) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि 2009-2012 और 2012-2014 के दौरान की योजनाओं के बीच कोई जुड़ाव दिखाइ नहीं देता। स्वच्छता मिशन, मनरेगा और इंदिरा आवास योजना (ग्रामीण गरीबों के लिये आवास योजना) के बीच मात्र 6 फीसदी जुड़ाव देखा गया है।
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