रवि शंकर

रवि शंकर
स्वच्छता की भारतीय परम्परा
Posted on 01 Mar, 2017 03:27 PM

स्वच्छता की भारत में एक प्राचीन परम्परा रही है। इस परम्परा के अनुरूप ही देश में ऐसी व्यवस्थाएँ विकसित की गई थीं जो न केवल भारतीय समाज के अनुकूल थी, बल्कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिये भी लाभकारी थी।
सरकार के साथ-साथ समाज भी समझे अपनी जिम्मेदारी
Posted on 06 Nov, 2016 03:15 PM

वर्षों पहले प्रदूषणकारी उद्योगों को दिल्ली से हटाकर गुड़गाँव,
पाक का पानी रोकना आसान नहीं
Posted on 07 Oct, 2016 09:52 AM

सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। हालांकि
निर्मल संकल्प से बनेगा घर-घर शौचालय
Posted on 28 May, 2016 11:02 AM

‘स्वच्छ भारत अभियान’ भारत में खुले में शौच समस्या के समाधान क
वैकल्पिक ऊर्जा, पर्यावरण और विकास
Posted on 22 Jan, 2016 02:30 PM

भारत सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन के लिये पर्याप

पेयजल संरक्षण के परम्परागत प्रयास
Posted on 02 Jul, 2015 10:15 AM
‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।’ कविवर रहीम ने भी अपने स
पानी की जंग
Posted on 26 Jun, 2014 09:35 AM
संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त है, वहीं पानी, खाद्य और ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियां का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं। नतीजा सामने आ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का संकट गहराने लगा है। पेयजल संकट से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जूझ रहा है। औद्योगीकरण की राह पर चलती दुनिया में साफ पानी का संकट कोने-कोने में पसर चुका है, जिससे पूरी दुनिया में पानी का संकट विकराल रूप ले चुका है। भले दुनिया विकास कर रही है, लेकिन साफ पानी मिलना कठिन हो रहा है। एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथियोपिया और सूडान जैसे देश साफ पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

तीसरी दुनिया के देशों की खराब हालत के पीछे एक बड़ी वजह साफ पानी की कमी भी है। जब से जल संकट के बारे में विश्व में चर्चा शुरू हुई, एक जुमला चल निकला कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। सचमुच, अब पानी संबंधी चुनौतियां गंभीर हो गई हैं।

मतलब साफ है कि जिस तरह दुनिया लोगों और उनकी जरूरतों से भरती जा रही है, पानी के स्रोत खाली होते जा रहे हैं।
खतरे की चेतावनी
Posted on 27 Apr, 2014 01:00 PM
आज हमारे सामने विकास बनाम पर्यावरण का मुद्दा है और दोनों में से किसी को भी त्यागना संभव नहीं इसलिए समन्वित दृष्टिकोण के साथ वैश्विक हितों को साझा किया जाना चाहिए। यह ठीक है कि विकासशील देश चाहते थे कि उनको वह पूंजी और तकनीकी मिले ताकि वे पर्यावरण बचाने के साथ साथ अपने विकास को भी बनाए रख सकें। क्योंकि पर्यावरण की चिंताओं के बीच भी वे विकास को पर्यावरण के आगे क़ुर्बान करने के लिए तैयार नहीं थे और न होंगे। हाल में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति ने भारी-भरकम रिपोर्ट जारी करते हुए यह आगाह किया है कि अगर दुनिया के देश गर्म होने वाली गैसों के प्रदूषण में कमी नहीं लाते तो ग्लोबल वार्मिंग से होने वाला नुकसान बेकाबू हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग से सिर्फ ग्लेशियर ही नहीं पिघल रहे, बल्कि इससे लोगों की खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और रहन-सहन भी प्रभावित होने लगा है।

रिपोर्ट में आहार सुरक्षा की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है। पर्यावरण परिवर्तन के अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अत्यधिक तापमान के कारण आने वाले समय में धान और मक्के की फसलों की बर्बादी का अंदेशा है। मछलियां बहुत बड़ी आबादी का आहार हैं। उन्हें भी क्षति होगी। बड़ी चुनौती है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कैसे कम किया जाए।
सृजनशीलता का खजाना
Posted on 24 Sep, 2011 02:17 PM

महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी पर गणपति की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है और इस अवसर पर लाखों मूर्

Murti Visarjan
जैविक खेती का खेल
Posted on 12 Aug, 2011 01:41 PM

गाय को जैविक खेती का आधार बनाने से खेती में किसान की लागत भी शून्य हो जाती है और उसे अच्छी फसल

×