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सिंचाई
नहर के अंतिम छोर पर सिंचाई जल की कम उपलब्धता की स्थिति में अरहर के साथ उड़द / धान की उन्नत खेती
Posted on 08 Jun, 2023 05:45 PMप्रस्तावना
यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार से मनुष्य को अपनी शारीरिक आवश्यकता के हेतु जल की आवश्यकता पड़ती है वैसे ही पौधों को भी अपनी जरूरतें पूरी करने के लिये जल की आवश्यकता पड़ती है। पौधों के लिये कई प्रकार के खनिज तत्व एवं रासायनिक यौगिक मृदा में मौजूद रहते हैं। लेकिन पौधे उन्हें ठीक तरह से ग्रहण नहीं कर सकते हैं मृदा में उपस्थित जल इन तत्वों को घोल कर जड़ों
मृदा एवं जल उत्पादकता(वार्षिक रिपोर्ट्स-2019-20)
Posted on 07 Jun, 2023 12:12 PMचुनिंदा जिलों के लिए भूमि उपयोग नियोजन ब्लॉक स्तर पर भूमि उपयोग नियोजन पर कार्य करने हेतु भारत के 27 इच्छुक जिलों के लिए 1 :10,000 स्केल पर भूमि संसाधन इनवेन्ट्री (LRI) तैयार की गई असोम के बरपेटा दरांग, धुबरी, गोलपारा एवं बक्सा जिलों उत्तर प्रदेश के बहराइच, बलरामपुर, चित्रकूट श्रावस्ती तथा सोनभद्र जिलों बिहार के अररिया, बेगुसराय, कटिहार, सीतामडी तथा शेखपुरा जिलों ओडिशा के कालाहाण्डी एवं रायगढ़
घटते जल संसाधनों में फसलोत्पादन में वृद्धि के लिए वाषोत्सर्जन आधारित जल प्रबंधन एक उचित प्रौद्योगिकी
Posted on 02 Jun, 2023 01:42 PMपानी सबसे कीमती प्राकृतिक संसाधन है जो धीरे-धीरे दुनिया भर में सीमित संसाधन बनता जा रहा है। दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी को वर्ष 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के वर्षावन क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जो पहले से ही जनसंख्या का भारी सकेंद्रण कर रहे हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर है, जहां पानी की कमी पहले से ही अधिकांश आबादी को प्रभावित कर रही है। कृषि, भारत
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नहरी कमांड के तहत ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा कपास (सफेद सोना) की खेती से किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट
Posted on 01 Jun, 2023 12:45 PMराजस्थान के अर्द्ध शुष्क इलाकों में गंग भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) के नहरी कमांड क्षेत्रों में कपास की फसल अपने अधिक वाणिज्यिक मूल्य के कारण प्रचलित है जिसको वहाँ उसके लोकप्रिय नाम सफेद सोने के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा केवल 300 मिमी और इससे भी कम हो सकती हैं। वहाँ भूजल लवणीय है और सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है। अतः फसल उत्पादन के लिए
खरीफ धान के बाद फसल की उत्पादकता को बढाने और आय में वृद्धि के लिये कम से कम सिंचाई के साथ सूरजमुखी की खेती
Posted on 22 May, 2023 12:28 PMपृष्ठभूमि
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। किसी भी फसल की उपज की क्षमता और लाभप्रदता उचित सिंचाई की पद्धतियों और समय पर बुवाई
पैन वाष्पीकरण मीटर: सिंचाई के उपयुक्त समय के निर्धारण हेतु एक उपयोगी उपकरण
Posted on 19 May, 2023 02:40 PMप्रस्तावना
जब वर्षा और मृदा में संचित नमी फसलों की पैदावार बढ़ाने स्थिर करने के लिये पर्याप्त नहीं होती है तब फसलों की जल की माँग को पूरा करने के लिये सिंचाई बहुत ही आवश्यक है। कृषि उद्देश्यों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता तेजी से घट रही है क्योंकि अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पधायें दिन-प्रतिदिन बढ़ती हो जा रही है। हमारे देश में वर्ष 20025 और वर्ष 2050 तक सतह ज
गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई विधियों का प्रभाव
Posted on 19 May, 2023 01:52 PMप्रस्तावना
गुजरात राज्य भारत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह पश्चिम में अरब सागर, पूर्वोत्तर में राजस्थान राज्य, उत्तर में पाकिस्तान के साथ अंतराष्ट्रीय सीमा, पूर्व मैं मध्य प्रदेश राज्य और दक्षिण-पूर्व व दक्षिण में महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं से घिरा हुआ है। भारत में इस राज्य का 1600 किलोमीटर की लंबाई के साथ सबसे लंबा समुद्र तट है यह 20°01' से 24° उत्तरी अक्षा
जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल अनुक्रम की जल उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों के खेतों में लेजर लेवलर तकनीक का प्रसार
Posted on 18 May, 2023 03:09 PMप्रासंगिकता
जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। इस क्षेत्र के कमांड क्षेत्रों में कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्
पूर्वी भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनानास की खेती
Posted on 18 May, 2023 02:14 PMप्रस्तावना
पूर्वी भारत में 12.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित धान की खेती के अंतर्गत है। इन वर्षा आधारित क्षेत्रों में अधिकांशतः भूमि वर्षा के बाद रबी मौसम में सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण मुख्य रूप से परती खंड दी जाती है। इस कारण इस भूमि का खेती के लिए उचित उपयोग नहीं हो पाता है। इसी प्रकार की समान परिस्थिति ओडिशा राज्य में भी मौजूद है। दूसरी तरफ धान
ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मीठे जल की उपलब्धता में वृद्धि हेतु तकनीकी विकल्प
Posted on 18 May, 2023 12:40 PMप्रस्तावना
ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मानसून अवधि के दौरान अतिरिक्त जल का भराव और मानसून अवधि के बाद ताजा जल की अनुपलब्धता आदि जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है या करना पड़ रहा है। मौजूदा जल संसाधनों के लिये लवणीय जल का प्रवेश इस स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना देता है और यह आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से कृषि, मीठे जल के संसाधन, मछली पालन और जल