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मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में एक संगठन अकेले दम पर फ्लोराइड के खिलाफ जंग छेड़े हुये है और उसे इसमें खासी सफलता भी मिल रही है।
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले का जिक्र आते ही दिमाग में एक छवि कौंधती है। तीर कमान थामे अल्पवस्त्रों में आधुनिक संस्कृति से दूर रहने वाले भील और भिलाला जनजाति के लोग। लेकिन झाबुआ जिला मुख्यालय पहुँचकर यह छवि काफी हद तक ध्वस्त हो चुकी होती है। आधुनिक संस्कृति अब इन दूरदराज गाँवों तक पहुँच चुकी है। लोगों की नैसर्गिक निश्छलता के सिवा कमोबेश सभी चीजें बदल चुकी हैं। नहीं बदली है तो स्वास्थ्य के मोर्चे पर बदहाली। सरकारी प्रयासों से संचार के साधन तो विकसित हो गये हैं लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जागरूकता की कमी ने राह रोक रखी है। खासतौर पर पानी में फ्लोराइड की अधिकता व उससे होने वाले नुकसान जैसी अपेक्षाकृत वैज्ञानिक समस्याओं को लेकर जागरूकता पैदा करना तो अवश्य टेढ़ी खीर रही होगी।
लगभग 4 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला उत्तर प्रदेश का आगरा चार जिलों धौलपुर, मथुरा, फिरोजाबाद और भरतपुर से घिरा हुआ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की आबादी लगभग 44 लाख है। यहाँ मुख्यतः ब्रजभाषा बोली जाती है। आगरा विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के साथ ही दूसरी तारीखी इमारतों के लिये मशहूर है लेकिन फ्लोराइड का कहर इसकी लोकप्रियता में सेंध लगा रहा है। हाल के कई सर्वेक्षणों में आगरा में फ्लोराइड के कहर पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की गई है। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) आगरा में फ्लोराइड के असर को लेकर विस्तृत कवरेज देने जा रहा है जिसमें हर पहलू पर रोशनी डाली जाएगी। पेश है इस कवरेज का पहला भाग...
उत्तर प्रदेश के आगरा का जिक्र आता है तो सबसे पहले सफेद मार्बल से बने 384 वर्ष पुराने ताजमहल की तस्वीर जेहन में उभरती है। रोज हजारों लोग प्रेम की निशानी इस ताजमहल का दीदार करने आते हैं।
मुगल वंश और लोधी वंश के कई शासकों ने आगरा को अपना घर बनाया। कहा जाता है कि आधुनिक आगरा की स्थापना लोधी वंश के शासक सिकंदर लोधी ने सोलहवीं शताब्दी में की थी। वैसे आगरा ताजमहल के अलावा दूसरी ऐतिहासिक इमारतों के लिये भी जाना जाता है। यहाँ के महलों, मकबरों और मस्जिदों की नक्काशी आकर्षण का केन्द्र है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार अकबर के दरबारी इतिहासकार अबु फजल ने अपनी किताब में लिखा था कि यहाँ 5000 से अधिक बंगाली और गुजराती स्थापत्य शैली की बिल्डिंगें थीं लेकिन अधिकांश बिल्डिंगों को जहाँगीर ने तोड़ दिया और सफेद मार्बल से महल बनवा दिये।
मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ ने लिखा है-
जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा (कपड़ा) है जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं।
फैज़ ने ये पंक्तियाँ किन हालातों में लिखी होंगी पता नहीं लेकिन ऐतिहासिक शहर आगरा से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर स्थित गाँव पचगाँय के लोगों की जिन्दगी सचमुच उस गरीब के कपड़ों जैसी है जिनमें हर पल दर्द के पैबन्द लगते हैं।
गाँव की आबादी तकरीबन 900-1000 होगी। गाँव पक्की सड़क से जुड़ा हुआ भी है। आमतौर पर पक्की सड़क से जुड़ाव विकास का पैमाना होता है। इस गाँव के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया खेती है पर कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं। कुल मिलाकर यहाँ समृद्ध और दरिद्र दोनों तरह के परिवार रहते हैं। इसी तथाकथित विकसित गाँव में दर्जनों लोगों को फ्लोराइड हर घड़ी दर्द दे रहा है। यह फ्लोराइड कहीं और से नहीं बल्कि जिन्दगी देने वाले पेयजल से उनके शरीर में जा रहा है।
दूषित भूजल वाले इलाके में लोगों को उनके दरवाजे पर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मोबाइल योजना बिहार सरकार प्रस्तुत करने वाली है। इसके लिये वह बीस मोबाइल वैन खरीदने जा रही है जो गाँवों में जाकर नदी, कुआँ या तालाब का पानी को साफ करके पीने योग्य बनाएगी और मामूली मूल्य लेकर ग्रामीणों को उपलब्ध कराएगी।
परिशोधित जल कई दिनों तक पीने योग्य बना रहेगा। इसमें एक मालवाहक वैन पर वाटर प्यूरीफायर मशीन लगी होगी जिसके संचालन के लिये बिजली की जरूरत नहीं होगी। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग सचिव अंशुली आर्या ने मोबाइल प्यूरीफायरों को खरीदने के लिये टेंडर निकालने आदि प्रक्रियाएँ शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया है।