लगभग 4 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला उत्तर प्रदेश का आगरा चार जिलों धौलपुर, मथुरा, फिरोजाबाद और भरतपुर से घिरा हुआ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की आबादी लगभग 44 लाख है। यहाँ मुख्यतः ब्रजभाषा बोली जाती है। आगरा विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के साथ ही दूसरी तारीखी इमारतों के लिये मशहूर है लेकिन फ्लोराइड का कहर इसकी लोकप्रियता में सेंध लगा रहा है। हाल के कई सर्वेक्षणों में आगरा में फ्लोराइड के कहर पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की गई है। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) आगरा में फ्लोराइड के असर को लेकर विस्तृत कवरेज देने जा रहा है जिसमें हर पहलू पर रोशनी डाली जाएगी। पेश है इस कवरेज का पहला भाग...
उत्तर प्रदेश के आगरा का जिक्र आता है तो सबसे पहले सफेद मार्बल से बने 384 वर्ष पुराने ताजमहल की तस्वीर जेहन में उभरती है। रोज हजारों लोग प्रेम की निशानी इस ताजमहल का दीदार करने आते हैं।
मुगल वंश और लोधी वंश के कई शासकों ने आगरा को अपना घर बनाया। कहा जाता है कि आधुनिक आगरा की स्थापना लोधी वंश के शासक सिकंदर लोधी ने सोलहवीं शताब्दी में की थी। वैसे आगरा ताजमहल के अलावा दूसरी ऐतिहासिक इमारतों के लिये भी जाना जाता है। यहाँ के महलों, मकबरों और मस्जिदों की नक्काशी आकर्षण का केन्द्र है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार अकबर के दरबारी इतिहासकार अबु फजल ने अपनी किताब में लिखा था कि यहाँ 5000 से अधिक बंगाली और गुजराती स्थापत्य शैली की बिल्डिंगें थीं लेकिन अधिकांश बिल्डिंगों को जहाँगीर ने तोड़ दिया और सफेद मार्बल से महल बनवा दिये।
आगरा का जिक्र महाभारतकाल में भी मिलता है। कहते हैं कि महाभारतकाल में आगरा को अग्रवन कहा जाता था। आर्य इस क्षेत्र को आर्य गृह कहते थे जो कालान्तर में आगरा हो गया।
तारीखी महलों और ताजमहल वाले इस आगरा की एक और तस्वीर है जो बेहद बदरंग है। यह तस्वीर इसकी ऐतिहासिक चकाचौंध को खत्म कर रही है। हालात यही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब आगरा का नाम आते ही लोगों के सामने यहाँ के गाँवों की घिसटती जिन्दगी की तस्वीर कौंधेगी।
आगरा के एक दर्जन से अधिक गाँव आज फ्लोराइड की चपेट में हैं। सबसे दयनीय सूरत आगरा जिले के बरौली अहिर ब्लॉक के गाँवों की है। बरौली अहिर ब्लॉक के कम-से-कम तीन गाँव पट्टी पचगांय, पचगांय खेरा और दिग्नेर के पानी में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक है।
आगरा जिले में कुल 15 ब्लॉक हैं जिनमें से बरौली अहिर के अलावा 5 और ब्लॉक के गाँव फ्लोराइड के निशाने पर हैं। पट्टी पचगांय के गाँव के किसी-किसी ट्यूबवेल के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 2.08 मिलीग्राम (प्रति लीटर) तक मिली है। दिग्नेर गाँव में तो कई ट्यूबवेल के पानी में 4 मिलीग्राम/प्रतिलीटर तक फ्लोराइड मिला है।
ये आँकड़े केन्द्र सरकार की ओर से इसी वर्ष की गई जाँच में सामने आये हैं। केन्द्र सरकार के पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय ने देश भर के फ्लोराइड प्रभावित राज्यों के गाँवों का वृहत सर्वेक्षण किया है। यह सर्वेक्षण वर्ष 2015 से मार्च 2016 के बीच हुअा है।
इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट में गाँव के उस व्यक्ति तक का जिक्र किया गया है जिसके ट्यूबवेल से पानी निकालकर लेबोरेटरी में जाँच की गई है। मसलन पट्टी पचगांय में रतन सिंह के घर के पास के ट्यूबवेल से लिये गए पानी की जाँच में प्रति लीटर फ्लोराइड की मात्रा 2.6 मिलीग्राम मिली है। वहीं, गाँव के ही एक जूनियर स्कूल के ट्यूबवेल से निकाले गए पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.58 मिलीग्राम पाई गई है जो खतरनाक है।
पट्टी पचगांय के पास के ही गाँव दिग्नेर के कम-से-कम एक दर्जन ट्यूबवेल से निकाले गए पानी में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से चार से पाँच गुना अधिक मिली है। कई जगहों पर तो प्रति लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 4.79 मिलीग्राम तक मिली है, जो जानलेवा है।
फ्लोराइड एक रसायन है जिसका इस्तेमाल हाइड्रोजन फ्लोराइड बनाने में किया जाता है। फ्लोराइड जमीन के भीतर के चट्टानों में विद्यमान है। ये चट्टानें जब पानी के सम्पर्क में आती हैं तो फ्लोराइड पानी में घुल जाता है और लोगों तक पहुँचता है।
पानी में फ्लोराइड की मात्रा अगर 1.5 मिलीग्राम (प्रतिलीटर) तक हो तो कोई नुकसान नहीं होता। इसकी मात्रा अगर इससे अधिक हो तो डेंटल फ्लोरोसिस और स्केलेटल फ्लोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, फ्लोराइड मानव शरीर में पहुँचकर मैग्निशियम, कैल्शियम और विटामिन-सी को सोख लेता है जिसके चलते ये बीमारियाँ होती हैं।
डेंटल फ्लोरोसिस में सामने के दाँतों में सफेद और पीले दाग पड़ जाते हैं। स्केलेटल फ्लोरोसिस में हाथ और पैरों की हडि्डयाँ टेढ़ी हो जाती हैं जिस कारण लोगों का चलना-फिरना मुहाल हो जाता है। इन बीमारियों का पता अगर शुरुआती दौर में चल जाये तो इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन जरा-सी देर होने पर बीमारी मौत के साथ ही जाती है।
भारत में पानी में फ्लोराइड की शिनाख्त सबसे पहले वर्ष 1937 में की गई थी जब तमिलनाडु के नेल्लोर में स्केलेटल फ्लोरोसिस के मरीज पाये गए थे।
इस रसायन का अपना कोई रंग नहीं होता है इसलिये लोगों के लिये पहचानना मुश्किल होता है कि पानी में फ्लोराइड है कि नहीं। फ्लोराइड पर व्यापक काम करने वाले इण्डिया नेशनल रिसोर्स इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट (इनरेम) फाउंडेशन के को-डायरेक्टर राजनारायण इंदु कहते हैं, “आम लोगों के लिये यह समझना सम्भव नहीं है कि पानी में फ्लोराइड है या नहीं। फ्लोराइड का न कोई रंग होता है और न ही कोई स्वाद। फ्लोराइड पानी के रंग और स्वाद को प्रभावित नहीं करता है इसलिये कोई भी व्यक्ति पानी पीकर समझ नहीं सकता है।”
राजनारायण इंदु ने कहा, “लेबोरेटरी टेस्ट से ही फ्लोराइड की मौजूदगी का पता चल सकता है। नए जलस्रोतों के पानी को इस्तेमाल करने से पहले उनकी जाँच की जानी चाहिए। इसके साथ ही मौजूदा जलस्रोतों की भी वर्ष में 2 बार जाँच करनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि पानी में फ्लोराइड फैला है कि नहीं।”
आगरा में फ्लोराइड की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2000 में केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्देश पर एनअाईसीडी की टीम ने आगरा के कुछ गाँवों का दौरा किया था। टीम ने आगरा जिले के तीन ब्लॉक बरौली अहिर, खैरागढ़ और अकोला के गाँवों का सर्वेक्षण किया था।
टीम के सदस्यों के अनुसार गाँवों के बच्चों में 10.2 से 66.7 प्रतिशत तक डेंटल फ्लोरोसिस था। वहीं, टीम की ओर से यह भी कहा गया था कि फ्लोरोसिस से सबसे बुरी तरह प्रभावित गाँव पट्टी पचगांय में लोगों में 21.2 प्रतिशत तक स्केलेटल फ्लोरोसिस मिला था। कुछ मामलों में लोगों में 30 प्रतिशत तक स्केलेटल फ्लोरोसिस पाया गया था।
पाँच वर्ष पहले इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड इनोवेशन में छपे एक अन्य शोध पत्र में भी आगरा में फ्लोराइड की मौजूदगी की बात कही गई थी। शोध पत्र के अनुसार आगरा जिले के विभिन्न गाँवों के 3500 भूजल स्रोतों के पानी के नमूने लिये गए थे। इन नमूनों की जाँच की गई तो पता चला कि कम-से-कम 35 प्रतिशत नमूनों में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक है। यह शोध करने वाली एमेटी इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लायड साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सीमा गर्ग ने इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) को बताया, “आगरा में उस वक्त कई इलाके फ्लोराइड से प्रभावित पाये गए थे। बहुत सारे लोग ऐसे मिले थे जो फ्लोरोसिस से ग्रस्त थे। कई बच्चों के दाँतों में दाग थे। आगरा में स्केलेटल फ्लोरोसिस के भी कई मरीज थे।”
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड इनवेंशन के वर्ष 2015 के अंक में छपे एक शोध पत्र में भी आगरा का जिक्र किया गया है। शोध पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के 30 से 50 प्रतिशत इलाके यानी कम-से-कम 10 जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं।
इस सम्बन्ध में आगरा जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों से सम्पर्क करने की कोशिश की गई जिनमें से कुछ अफसरों के फोन बन्द मिले तो कुछ अफसरों के पास जानकारियाँ उपलब्ध नहीं थीं।
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