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झीलें, तालाब और आर्द्रभूमि
धरती की प्यास बुझाते हैं तालाब
Posted on 03 Mar, 2010 07:30 AMछत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान हैं। तालाब छत्तीसगढ़ में स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के बृहत्तर सांस्कृतिक संबंध के संदर्भयुक्त बिन्दु हैं। अहिमन रानी और रेवा रानी की गाथा तालाब स्नान से आरंभ होती है। नौ लाख ओडिय़ा, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख सहित दसमत कइना की गाथा में तालाब
जम्मू के लुप्त होते ताल
Posted on 07 Feb, 2010 11:52 PMजम्मू एवं कश्मीर राज्य का जम्मू क्षेत्र आज पानी के संकट से जूझ रहा है। समुद्र तल से करीब 300 से 1000 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस क्षेत्र में किसी समय सैकड़ो तालाब व जलाशय मौजूद थे। इस क्षेत्र के अंतर्गत जम्मू, सांबा, कठुआ एवं उधमपुर जिले शामिल हैं, जो कि कण्डी बेल्ट के नाम से जाना जाता है। कभी भरे पूरे ताल तलैयों के क्षेत्र के तौर पर मशहूर
शहडोल - तालाब ने बदल दी तकदीर
Posted on 11 Sep, 2009 07:02 AMअनेक काश्तकार बलराम तालाब योजना की ओर आकर्षित हुए हैं । बलराम तालाब रामनारायण के पांच एकड़ खेतों की प्यास बुझाता है और साल में तीन फसलें होती हैं। रामनारायण डीजल पंप से अपने खेतों में सिंचाई करते हैं । खास बात यह है कि तालाब को नीचाई पर इस तरह बनाया गया है कि खेतों में दिया गया पानी अन्तत: बहकर वापस तालाब में ही जमा हो जाता है, जिससे तालाब खाली नहीं हो पाता । बलराम तालाब से पनपे खेतों से आज रामनारायण और उनके दो भाईयों यानि तीन परिवारों की बड़े मजे में आजीविका चल रही है । शहडोल, सितम्बर 09, जब पैंतीस वर्षीय रामनारायण कुशवाहा ने तमाम प्रयासों के बाद नौकरी नहीं मिलने पर दो वर्ष पूर्व शहडोल जिले के खेतौली गांव में अपने परिवार की पांच एकड़ जमीन के खेतों के बीच कृषि विभाग के अनुदान की सहायता से तालाब खुदवाने का फैसला किया, तो उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि वे बहुत जल्द लखपति बन जाएंगे । लेकिन बारवीं पास श्री रामनारायण की दो साल में उस तालाब ने तकदीर बदल दी ।
रामनारायण ने जब भी खेतों से अपना भविष्य बनाने की कल्पना की, वह परवान नहीं चढ़ सकी । सिंचाई की कमी उनके मार्ग में बाधा थी । सिंचाई के लिए खेत पूरी तरह वर्षा पर निर्भर होने के कारण खेती की ओर बढ़ते उनके कदम हमेशा डगमगाने लगते थे ।
वर्षा जल का कमाल
Posted on 18 Apr, 2009 06:59 AMबैंको से मोटे-मोटे कर्ज लेकर किसानों ने पास के गांवों में सैंकड़ों बोरवैल लगाए। लेकिन इससे समस्या खत्म होने के बजाए और ज्यादा बढ़ गई। बोरवैल की संख्या तो बढ़ रही थी लेकिन पानी.... और घट रहा था। जिन किसानों के कुएं में पानी था वे दूसरे किसानों को सिंचाई के लिए 40-50 रु. प्रति घंटा पर पानी बेचकर पैसा बनाने लगे थे। परिणाम हुआ कि अब किसी के पास पानी नहीं था ...।
झिलमिल झील : झिलमिलाती रहे
Posted on 10 Mar, 2009 08:38 AMउत्तराखंड के झिलमिल झील आरक्षित वन क्षेत्र में प्राकृतिक वन संपदा के अन्वेषण के दौरान विभिन्न प्राकृतिक वानस्पतिक प्रजातियां चिह्नित की गई हैं। यह क्षेत्र एक नवसृजित संरक्षित क्षेत्र है और इसके बारे में अभी कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है। रचना तिवारी अपने इस लेख में राज्य के तराई क्षेत्र की जैव-विविधता के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता बता रही हैंप्राचीन जल अभियांत्रिकी का बेजोड़ नमूना है, भोपाल ताल
Posted on 08 Mar, 2009 08:10 AMदेवेन्द्र जोशी/ हिन्दी मी़डिया.इन
ताल नहीं सूख रहा है भोपाल
Posted on 08 Mar, 2009 07:39 AMउमाशंकर मिश्र/भोपाल
`जब तक भोपाल ताल में पानी है, तब तक जियो।´ आशीर्वाद देते समय इन शब्दों का प्रयोग बड़े-बूढे करते रहे हैं। क़रीब एक हज़ार साल पुराने `भोपाल ताल´ का जिक्र लोगों की इस मान्यता का गवाह है कि बूढ़ा तालाब कभी सूख नहीं सकता। लेकिन शहर की गंदगी, कचरे और मिट्टी जमाव के कारण बूढ़ा तालाब 31 वर्ग किलोमीटर के विशाल दायरे से सिमटकर महज 7 वर्ग किलोमीटर में रह गया है। आज भोपाल ताल के सूखने से मानों हर भोपाली सूख रहा है।
पढ़ने या सुन भर लेने से किसी बात के मर्म तक नहीं पहुंचा जा सकता, जब तक कि वस्तुस्थिति से स्वयं साक्षात्कार न हो जाये। `ताल तो भोपाल ताल, और सब तलैया।´ भोपाल ताल के बारे में यह कहावत तो बचपन से