जम्मू के लुप्त होते ताल


जम्मू एवं कश्मीर राज्य का जम्मू क्षेत्र आज पानी के संकट से जूझ रहा है। समुद्र तल से करीब 300 से 1000 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस क्षेत्र में किसी समय सैकड़ो तालाब व जलाशय मौजूद थे। इस क्षेत्र के अंतर्गत जम्मू, सांबा, कठुआ एवं उधमपुर जिले शामिल हैं, जो कि कण्डी बेल्ट के नाम से जाना जाता है। कभी भरे पूरे ताल तलैयों के क्षेत्र के तौर पर मशहूर इस क्षेत्र में आज तमाम ताल सूखने के कागार में हैं, तो कईयों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। जो थोड़े बहुत तालाब बचे हैं वे डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं। कुछ निहित स्वार्थी लोगों ने तालाब के चारों ओर पक्का निर्माण करवाकर उनके जलग्रहण क्षेत्र को ही समाप्त कर दिया है।

प्रमुख मृदा वैज्ञानिक प्रोफेसर आर डी गुप्ता ने महत्वपूर्ण शोध के आधार पर जम्मू क्षेत्र के तालाबों के बारे में काफी जानकारियां जुटाई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जम्मू क्षेत्र के कण्डी बेल्ट में 336 तालाब हैं जिनका औसत आकार 2 से 5 कनाल है। इनमें से सबसे ज्यादा 180 तालाब जम्मू और सांबा जिलों में है। चूंकि सांबा पहले जम्मू जिले का ही एक तहसील था, जो कि अब अलग जिला बन चुका है। जबकि कठुआ जिले में 98 और उधमपुर में 58 तालाब हैं। आज से करीब 50 साल पहले तक इस क्षेत्र की आबादी के लिए यही तालाब पेयजल के मुख्य स्रोत थे, जबकि उस समय क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था। अखनूर तहसील के बुजुर्ग बताते हैं कि स्थानीय किसान इन तालाबों से आम के बागों की सिंचाई किया करते थे। इस बेल्ट के लोग इन तालाबों से पेयजल एवं सिंचाई के अलावा पालतू पशुओं के इस्तेमाल एवं कपड़ों की धुलाई भी किया करते थे। मौजूदा उपलब्ध तथ्य यह बताते हैं कि जम्मू क्षेत्र के कण्डी बेल्ट के लोग बारिश द्वारा संरक्षित किए जाने वाले इन्हीं तालाबों से अपनी सभी आवश्यकता पूरी करते थे। लेकिन आज इनमें से कई तालाब तो सूख चुके हैं, कुछ समाप्त हो चुके हैं जबकि कुछ नवीनीकरण की बाट जोह रहे हैं। ये तालाब हाथों से खुदाई करके और चिकनी मिट्टी के द्वारा पत्थर लगाकर और/या चूने के गारे से बनाए गए थे। डोगरा शासन काल (1846 से 1947 के बीच) में बने इन तालाबों में कुछ तो करीब एक एकड़ के क्षेत्र में फैले हैं। जबकि जम्मू क्षेत्र में कण्डी बेल्ट के अधिकांश तालाब महाराजा रणबीर सिंह (1856 से 1885 तक) और उनके पुत्र महाराजा प्रताप सिंह (1885 से 1925 तक) के शासन काल के दौरान बने हैं। क्षेत्र में बड़े तालाबों के बारे में मौजूद प्रमाण बताते हैं कि सांबा में ये तालाब 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी के पुत्र आलम सूरी द्वारा बनवाए गए थे, जो कि लाहौर के गर्वनर थे। ये तालाब उस समय शाही परिवार और सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति किया करते थे।

जम्मू शहर, रामनगर एवं उधमपुर में और महत्वपूर्ण सड़कों के किनारे भी कई तालाब बनाए गए थे। जम्मू शहर में बने पक्के तालाब उस समय काफी महत्वपपूर्ण भूमिका अदा करते थे जब नलों द्वारा आपूर्ति किन्हीं कारणों से प्रभावित होती थी। उस दौरान उन तालाबों का उपयोग न सिर्फ धुलाई के लिए किया जाता था बल्कि नहाने एवं पेयजल के लिए भी किया जाता था। जम्मू के रघुनाथ मंदिर के निकट बने तालाब को अब पाट कर कलीथ नगर पार्क बना दिया गया है। इसी तरह लक्ष्मी नारायण मंदिर के निकट स्थित रानी का तालाब को पाट कर रानी पार्क बना दिया गया है। जहां पहले अजायबघर नामक तालाब हुआ करता था वहां आज सचिवालय का निर्माण कर दिया गया है। इनसे स्थानीय प्रशासन की तालाबों के प्रति उदासीन नजरिया जाहिर होता है। जबकि इस क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग 1-ए के निकट जानीपुर और चिनोर के बीच स्थित बनतालाब एवं नंदिनी टनल के निकट स्थित जनाखी तालाब आज भी उपयोग में आ रहे हैं। इनके अलावा क्षेत्र में बहुत सारे छिछले तालाब मौजूद हैं जो कि जानवरों की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, इन्हें स्थानीय स्तर पर ‘‘छपरी’’ कहा जाता है। कण्डी बेल्ट में ऐसी छपरियां बहुतायत में पाये जाते हैं। आज क्षेत्र के जानीपुर, रूपनगर, केरन, रायपुर, मादल, कटवाल्स आदि इलाकों में बहुतायत में छपरियां पाये जाते हैं। सामान्यतया ये छपरियां गर्मी के मौसम में सूख जाते हैं और बरसात के दौरान फिर से भर जाते हैं। इनमें से बहुत से तालाबों का रखरखाव स्थावी ग्रामीणों द्वारा किया जाता है, जिनका उपयोग वे नहाने एवं पशुओं को पिलाने के लिए करते हैं।

रूड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान द्वार किए गए एक अध्ययन के अनुसार, ‘‘कण्डी क्षेत्र में आज भी बहुतायत में तालाबों का अस्तित्व मौजूद है। जबकि अधिकांश तालाब सक्रिय इस्तेमाल में नहीं हैं और वे उपेक्षा के शिकार हैं। इनमें वर्षाजल संरक्षण की काफी संभावना मौजूद है।’’ आज राज्य की सरकार ताल और तलैयों के प्रति उदासीन है, साथ ही पिछले कुछ सालों से अनियमित वर्षा से भी इन तालों पर काफी असर पड़ा है। इनके अलावा तालाबों के निकट बहुतायत में लगे नलकूपों की वजह से ये तालाब सूख रहे हैं। जबकि मौजूदा छपरियों की उपयोगिता को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह तालाबों के रखरखाव एवं नवीनीकरण पर ध्यान दे। वास्तव में इन तालाबों में वर्षा जल संरक्षण की अच्छी संभावना मौजूद है। यदि आज इन पर ध्यान न दिया गया तो जिन तालाबों का अस्तित्व बचा हुआ है वे भी धीरे-धीरे लुप्त हो सकते हैं। थोड़ी संतोष वाली बात है कि प्रशासन ने जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के तहत 20 तालाबों के नवीनीकरण की योजना बनायी है। इस तरह सरकार ने देर से ही सही लेकिन तालाबों पर ध्यान देना शुरू किया है। तो इस तरह स्थानीय लोगों को यह उम्मीद जगी है कि जम्मू क्षेत्र के तालाबों में फिर से रौनक लौट सकती है। यदि मौजूदा बचे सभी तालाबों को संरक्षित किया जाता है तो वे निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में पानी की समस्या को सुलझाने में मददगार साबित होंगे।

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