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गांवों में जो तालाब होते थे उनमें सुंदर और मनमोहक कमल खिला करते थे। ग्रामीणों को इस बात पर गर्व
यह बहुत जरूरी है कि जलवायु बदलाव व बढ़ती आपदाओं के दौर में समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यावरण व
पानी और पनिहारिन का बहुत पुराना नाता रहा है जो अब खत्म हो गया है। सच तो यह है कि तालाबों के कि
• 80 बरस बाद दोहराई गई परंपरा
• केरा गांव के लोगों का अनूठा कार्य
• तालाबों के अस्तित्व को बचाने की मुहिम
• जल संरक्षण की दिशा में ग्रामीणों का अहम योगदान
• ‘जल ही जीवन है’, ‘जल है तो कल है’ का संदेश
कभी रायपुर में करीब 181 तालाब थे और इसे तालाबों का शहर कहा जाता था लेकिन आज यहां अंगुलियों पर गिनने लायक तालाब बचे हैं और वे भी बेहद खस्ताहाल हैं।
रायपुर, छत्तीसगढ़ में 'बिन पानी सब सून' को ध्यान में रखते हुए बड़ी संख्या में ताल-तलैये खुदवाए गए, जो गर्मी के दिनों में भी लबालब रहते थे। राजधानी रायपुर तो 'तालाबों का शहर' कहलाता रहा है। लेकिन आज यहां के ताल-तलैयों पर उपेक्षा का ग्रहण लग गया है। आज स्थिति यह है कि जिस बूढ़े तालाब की खूबसूरती और उसके स्वच्छ जल के आमंत्रण को शहर में निजी काम से आए पृथ्वीराज कपूर ठुकरा नहीं सके थे उसमें आज डुबकी लगाने का मतलब त्वचा रोगों को आमंत्रित करना साबित होगा।