सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृतिक जल स्रोतों को सुरक्षित रखने तथा उनके संर्वधन के निर्देश भले ही सरकार को दे रखे हैं, लेकिन जांजगीर-चांपा जिले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। प्रशासन की उदासीनता से जिले के ज्यादातर तालाब कचरे व गंदगी से पट चुके हैं, इसके अलावा लगातार औद्योगिक इकाईयां खुलने तथा उन उद्योगों में भूमिगत जल दोहन से जलस्तर में काफी गिरावट आई है। गर्मी की शुरूआत से ही कई तालाब पूरी तरह से सूखने की कगार पर हैं, वहीं अधिकतर तालाब गंदगी व जलकुंभी से पटे हुए हैं, जिसमें निस्तारी करना बीमारी को निमंत्रण देना है। इसके साथ ही कई गांवों में गंदे पानी के उपयोग से चिकनपाक्स फैलने लगा है। जांजगीर-चाम्पा जिले के शक्ति, मालखरौदा व डभरा विकासखंड का जलस्तर अभी से 100 फीट नीचे चला गया है। आगामी दिनों में यहां पानी के लिए हाहाकार मचेगा। जलस्तर में लगातार गिरावट आने से पंचायतों के पास भी तालाबों में पानी भरने के लिए कोई विकल्प नहीं है।
उल्लेखनीय है कि जिले में कुल 5727 तालाब है, जिसका जल क्षेत्र 7636.470 हेक्टेयर है। सरकारी रिकार्ड पर गौर करें तो 5174 तालाबों में मछली पालन किया जाना बताया जा रहा है, जबकि वास्तविक में इनमें से आधा से ज्यादा तालाब जलकुंभी, कचरे और गंदगी से पट चुके हैं, जिनके संरक्षण की चिंता न तो राज्य सरकार को है और न ही जिला प्रशासन को। कुछ वर्षों पहले स्थानीय निकायों ने जांजगीर, चांपा,शक्ति, अकलतरा व बाराद्वार के कई तालाबों को पाटकर अब वहां कॉम्पलेक्स और भवन का निर्माण करा दिया गया है। इससे स्थानीय निकायों को हर माह अच्छी खासी आमदनी हो रही है। जिला मुख्यालय के भीमा तालाब की ही बात करें तो 100 से अधिक एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस तालाब के संवर्धन के लिए नगरपालिका परिषद नैला-जांजगीर ने पांच वर्ष पूर्व 50 लाख रूपए से अधिक राशि खर्च किए। मगर इस तालाब की हालत आज भी यथावत है। इसी तरह जांजगीर के ही बोंगा तालाब की दशा संवारने सरोहर-धरोहर योजना के तहत 18 लाख रूपए खर्च किए गए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इन तालाबों में गिनती के ही लोग निस्तारी करते हैं, जबकि ज्यादातर ऐसे तालाबों का उपयोग मवेशियों को धोने तथा अन्य कार्यों में किया जाता है। मौजूदा हालात में जांजगीर क्षेत्र के कई तालाब सूख चुके हैं। वहीं आबादी क्षेत्र के तालाबों के हलक भी सूखने लगे हैं।
चांपा नगरपालिका क्षेत्र के ज्यादातर तालाब पट चुके हैं। इसके पीछे नगरपालिका की ही भूमिका रही है। इस वजह से यहां गर्मी की शुरूआत से ही हर वार्ड में पानी के लिए मारा-मारी शुरू हो जाती है तथा गर्मी में लोगों को पर्याप्त पानी मुहैया करा पाना पालिका के लिए चुनौती भरा काम रहता है। वहीं शक्ति नगर व आसपास में लगभग 100 से ज्यादा तालाब है, मगर एक भी तालाब काम का नहीं रह गया है। सारे तालाब जलकुंभी, कूड़े-करकट से पटकर डबरीनुमा हो गए है, जिसमें गंदगी के अलावा और कुछ नहीं दिखाई पड़ता। इसी तरह बाराद्वार के 50 से अधिक तालाब कचरे व गंदगी से पटकर समतल हो गए हैं। कुछेक तालाब की स्थिति अच्छी है, तो उसके संरक्षण पर नगरपालिका ध्यान नहीं दे रही है। जबकि अकलतरा में अब गिनती के ही तालाब रह गए है।
कुछ अर्सा पहले यहां 150 से ज्यादा तालाब थे, जिनसे लोगों की निस्तारी होती थी। मगर अब लगभग आधा दर्जन तालाब ही काम के हैं, जिसमें रोजी-मजदूरी करने वाले लोग निस्तारी करते हैं। नगर पंचायत अड़भार को तालाबों का नगर कहा जाता है। कुछ दशक पहले इस छोटे से कस्बे में डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब थे, लेकिन आज ज्यादातर तालाब अनुपयोगी हो चुके हैं। यहां बताना लाजिमी होगा कि जिले में वे तालाब ही बेहतर हैं, जिसका उपयोग मछली पालन व अन्य काम में किया जा रहा है। इन तालाबों की वजह से आमदनी इकट्ठी होने के कारण स्थानीय निकाय उनके संवर्धन के प्रति ध्यान दे रही है, जबकि जिन तालाबों से स्थानीय निकाय को कुछ नहीं मिल रहा, उसे संवारने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जिले में तालाबों का अस्तित्व संकट में है। घर में टेपनल व हैण्डपंप होने से आम लोग भी अब तालाब में निस्तारी करना मुनासिब नहीं समझते। इसका फायदा उठाकर स्थानीय प्रशासन द्वारा तालाबों को समतल कराया जा रहा है।
इंदिरा गांव गंगा योजना के तहत अप्रैल 2001 से मार्च 2002 तक जिले में कुल 235 बोर उत्खनित हुए थे। इसी तरह 2002-03 में 209, वर्ष 2003-04 में 44 व 76 बोर उत्खनन कराए गए। इस तरह अलग-अलग वर्षों में कुल 564 बोर खनन कराए गए। इन नलकूपों का कुछ समय तक उपयोग किया गया, लेकिन वर्तमान में कुछेक को छोड़कर गांव गंगा योजना के अधिकतर नलकूप बंद हो चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस संबंध में जिला व जनपद पंचायत के पास कोई जानकारी भी नहीं है। योजना बंद होने की बात कहकर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कुल मिलाकर नगरीय निकायों व ग्राम पंचायतों के पास सूखते तालाबों को भरने के लिए कोई संसाधन नहीं हैं। वर्तमान में दो हजार से भी अधिक तालाबों में जलस्तर एक डेढ़ फीट ही रह गया है। वहीं कुछ औद्योगिक इकाईयों द्वारा भूमिगत जल दोहन करने से आस-पास के गांवों में जलस्तर घटने लगा है।
उल्लेखनीय है कि जिले में कुल 5727 तालाब है, जिसका जल क्षेत्र 7636.470 हेक्टेयर है। सरकारी रिकार्ड पर गौर करें तो 5174 तालाबों में मछली पालन किया जाना बताया जा रहा है, जबकि वास्तविक में इनमें से आधा से ज्यादा तालाब जलकुंभी, कचरे और गंदगी से पट चुके हैं, जिनके संरक्षण की चिंता न तो राज्य सरकार को है और न ही जिला प्रशासन को। कुछ वर्षों पहले स्थानीय निकायों ने जांजगीर, चांपा,शक्ति, अकलतरा व बाराद्वार के कई तालाबों को पाटकर अब वहां कॉम्पलेक्स और भवन का निर्माण करा दिया गया है। इससे स्थानीय निकायों को हर माह अच्छी खासी आमदनी हो रही है। जिला मुख्यालय के भीमा तालाब की ही बात करें तो 100 से अधिक एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस तालाब के संवर्धन के लिए नगरपालिका परिषद नैला-जांजगीर ने पांच वर्ष पूर्व 50 लाख रूपए से अधिक राशि खर्च किए। मगर इस तालाब की हालत आज भी यथावत है। इसी तरह जांजगीर के ही बोंगा तालाब की दशा संवारने सरोहर-धरोहर योजना के तहत 18 लाख रूपए खर्च किए गए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इन तालाबों में गिनती के ही लोग निस्तारी करते हैं, जबकि ज्यादातर ऐसे तालाबों का उपयोग मवेशियों को धोने तथा अन्य कार्यों में किया जाता है। मौजूदा हालात में जांजगीर क्षेत्र के कई तालाब सूख चुके हैं। वहीं आबादी क्षेत्र के तालाबों के हलक भी सूखने लगे हैं।
चांपा नगरपालिका क्षेत्र के ज्यादातर तालाब पट चुके हैं। इसके पीछे नगरपालिका की ही भूमिका रही है। इस वजह से यहां गर्मी की शुरूआत से ही हर वार्ड में पानी के लिए मारा-मारी शुरू हो जाती है तथा गर्मी में लोगों को पर्याप्त पानी मुहैया करा पाना पालिका के लिए चुनौती भरा काम रहता है। वहीं शक्ति नगर व आसपास में लगभग 100 से ज्यादा तालाब है, मगर एक भी तालाब काम का नहीं रह गया है। सारे तालाब जलकुंभी, कूड़े-करकट से पटकर डबरीनुमा हो गए है, जिसमें गंदगी के अलावा और कुछ नहीं दिखाई पड़ता। इसी तरह बाराद्वार के 50 से अधिक तालाब कचरे व गंदगी से पटकर समतल हो गए हैं। कुछेक तालाब की स्थिति अच्छी है, तो उसके संरक्षण पर नगरपालिका ध्यान नहीं दे रही है। जबकि अकलतरा में अब गिनती के ही तालाब रह गए है।
कुछ अर्सा पहले यहां 150 से ज्यादा तालाब थे, जिनसे लोगों की निस्तारी होती थी। मगर अब लगभग आधा दर्जन तालाब ही काम के हैं, जिसमें रोजी-मजदूरी करने वाले लोग निस्तारी करते हैं। नगर पंचायत अड़भार को तालाबों का नगर कहा जाता है। कुछ दशक पहले इस छोटे से कस्बे में डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब थे, लेकिन आज ज्यादातर तालाब अनुपयोगी हो चुके हैं। यहां बताना लाजिमी होगा कि जिले में वे तालाब ही बेहतर हैं, जिसका उपयोग मछली पालन व अन्य काम में किया जा रहा है। इन तालाबों की वजह से आमदनी इकट्ठी होने के कारण स्थानीय निकाय उनके संवर्धन के प्रति ध्यान दे रही है, जबकि जिन तालाबों से स्थानीय निकाय को कुछ नहीं मिल रहा, उसे संवारने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जिले में तालाबों का अस्तित्व संकट में है। घर में टेपनल व हैण्डपंप होने से आम लोग भी अब तालाब में निस्तारी करना मुनासिब नहीं समझते। इसका फायदा उठाकर स्थानीय प्रशासन द्वारा तालाबों को समतल कराया जा रहा है।
इंदिरा गांव गंगा योजना के तहत अप्रैल 2001 से मार्च 2002 तक जिले में कुल 235 बोर उत्खनित हुए थे। इसी तरह 2002-03 में 209, वर्ष 2003-04 में 44 व 76 बोर उत्खनन कराए गए। इस तरह अलग-अलग वर्षों में कुल 564 बोर खनन कराए गए। इन नलकूपों का कुछ समय तक उपयोग किया गया, लेकिन वर्तमान में कुछेक को छोड़कर गांव गंगा योजना के अधिकतर नलकूप बंद हो चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस संबंध में जिला व जनपद पंचायत के पास कोई जानकारी भी नहीं है। योजना बंद होने की बात कहकर अधिकारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कुल मिलाकर नगरीय निकायों व ग्राम पंचायतों के पास सूखते तालाबों को भरने के लिए कोई संसाधन नहीं हैं। वर्तमान में दो हजार से भी अधिक तालाबों में जलस्तर एक डेढ़ फीट ही रह गया है। वहीं कुछ औद्योगिक इकाईयों द्वारा भूमिगत जल दोहन करने से आस-पास के गांवों में जलस्तर घटने लगा है।
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