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हाड़ौती क्षेत्र में जल का इतिहास एवं महत्त्व (History and significance of water in the Hadoti region)
Posted on 03 Nov, 2017 01:06 PM

जल की उत्पत्ति


भारतीय संस्कृति की यह मान्यता सुविदित है कि मानव शरीर पाँच तत्वों का बना हुआ है। “पाँच तत्व का पींजरा तामे पंछी पौन” यह उक्ति प्रसिद्ध है। ये पाँच तत्व है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन्हें पंचभूत भी कहते हैं क्योंकि ये वे तत्व हैं जिनसे सारी सृष्टि की रचना हुई है।1

आसीदिद तमोभूतम प्रज्ञातमलक्षणम।
हाड़ौती का भूगोल एवं इतिहास (Geography and history of Hadoti)
Posted on 31 Oct, 2017 12:00 PM
चौहान राजपूतों की 24 शाखाओं में से सबसे महत्त्वपूर्ण हाड़ा चौहान शाखा रही है। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड को हासी के किले से एक शिलालेख मिला था, जिसमें हाड़ाओं को चन्द्रवंशी लिखा गया है।1 सोमेश्वर के बाद उसका पुत्र राय पिथौरा या पृथ्वीराज चौहान राजसिंहासन पर बैठा। पृथ्वीराज चौहान शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी के साथ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। तत्पश्चात चौहानों के हाथ से भारत-वर्ष का रा
राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में जल विरासत - 12वीं सदी से 18वीं सदी तक (Water heritage in Hadoti region of Rajasthan - 12th Century to 18th Century)
Posted on 25 Oct, 2017 10:25 AM

परिचय


जल विधाता की प्रथम सृष्टि है। विधाता ने सृष्टि की रचना करने से पहले जल बनाया फिर उसमें जीवन पैदा किया। मनुस्मृति कहती है ‘‘अप एवं सर्सजादो तासु बीज अवासृजन’’ जल में जीवन के बीज विधाता ने उगाये। जल प्रकृति का अलौकिक वरदान स्वरूप मानव, प्राणी तथा वनस्पति सभी के लिये अनिवार्य है।
इटावा जनपद का जल संसाधन प्रबंधन (Water resources management of Etawah district)
Posted on 24 Oct, 2017 11:45 AM

लघु सिंचाई परियोजनायें :


जनपद इटावा में वृहद सिंचाई योजनाओं की अपेक्षा यदि लघु सिंचाई योजनाओं का विकास किया जाये, तो इससे इस जनपद के कृषकों का अधिक हित होगा। लघु सिंचाई योजनाओं के स्थापन से पारिस्थितिकी असंतुलन की समस्या भी उत्पन्न नहीं होगी।
इटावा जनपद के जल संसाधन की समस्याएँ (Water Resource Problems of Etawah district)
Posted on 22 Oct, 2017 10:14 AM

जल संसाधन की समस्यायें
बाढ़ एवं जल जमाव :
बाढ़ :



‘‘Flood is a discharge which exceeds the natural channel capacity of a river and then spills on to the adjacent flood plain’’
इटावा जनपद का लघु बाँध सिंचाई (Lower dam irrigation of Etawah district)
Posted on 18 Oct, 2017 03:16 PM

प्रकृति ने प्राकृतिक संसाधन के रूप में अनेक निधियाँ प्रदान की हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों

इटावा जनपद के अध्ययन क्षेत्र में कूप एवं नलकूप सिंचाई (Well and tubewell irrigation in the study area of Etawah district)
Posted on 18 Oct, 2017 01:12 PM
जल जीवन का आधार है। जल का सर्वाधिक उपभोग कृषि क्षेत्र में होता है। जो उसे कृत्रिम एवं प्राकृतिक साधनों द्वारा प्राप्त होता है। वर्षा के अभाव में कृत्रिम साधनों द्वारा खेतों को जल उपलब्ध कराया जाता रहा है। भाराीय वर्षा पूर्णत: मानसून से प्राप्त होती है, जो अनिश्चित, अनियमित तथा असामयिक होने के साथ-साथ विषम भी है। अत: कृषि के लिये सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। भारत में प्राचीन काल से ही सिंचाई क
इटावा जनपद के अध्ययन क्षेत्र में नहर सिंचाई (Canal irrigation in the study area of Etawah district)
Posted on 18 Oct, 2017 09:43 AM
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सिंचाई की अत्याधिक आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि यहाँ मौसमी वर्षा होने के कारण वर्ष भर मिट्टी में नमी संचित नहीं रह पाती है। यहाँ वर्षा की अनिश्चितता पाई जाती है, तथा वर्षा का वितरण भी सर्वत्र एक समान नहीं होता है। उष्ण उपोष्ण कटिबंध में स्थित होने के कारण जल का वाष्पीकरण अधिक होता है। इन परिस्थितियों में बिना सिंचाई किये फसलों का अच्छा उत्पादन करना संभव नहीं हो पात
इटावा जनपद के अध्ययन क्षेत्र में कृषि आयाम (Agricultural dimensions in the study area of Etawah district)
Posted on 17 Oct, 2017 01:58 PM
भूमि उपयोग एवं जल संसाधन एक दूसरे के पूरक हैं, अत: जल संसाधन की उपलब्धता के अध्ययन के संबंध में भूमि उपयोग का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। भूमि उपयोग के प्रतिरूप का प्रभाव धरातलीय जल के पुनर्भरण पर पड़ता है। वन, झाड़ियों, उद्यानों, फसलों एवं घास के मैदानों द्वारा भूमि आच्छादित रहती है। भूमिगत जल के रिसाव को प्रभावित करने में वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। भूमि उपयोग क
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