भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सिंचाई की अत्याधिक आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि यहाँ मौसमी वर्षा होने के कारण वर्ष भर मिट्टी में नमी संचित नहीं रह पाती है। यहाँ वर्षा की अनिश्चितता पाई जाती है, तथा वर्षा का वितरण भी सर्वत्र एक समान नहीं होता है। उष्ण उपोष्ण कटिबंध में स्थित होने के कारण जल का वाष्पीकरण अधिक होता है। इन परिस्थितियों में बिना सिंचाई किये फसलों का अच्छा उत्पादन करना संभव नहीं हो पाता है। यहाँ पर्याप्त मात्रा में जल बहुत थोड़े भाग को मिलता है, जबकि बहुत बड़ा क्षेत्र कम वर्षा से प्रभावित है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई किये अच्छा उत्पादन प्राप्त नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय में तेज गति से बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिये गहन कृषि की अत्यधिक आवश्यकता है। अत: गहन कृषि एवं जनपद के समुचित विकास के लिये सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य हो गयी है। सिंचाई स्रोतों में नहर सिंचाई सबसे सुलभ एवं सस्ता साधन है। अध्ययन क्षेत्र में सबसे अधिक क्षेत्र पर नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है।
नहरों का वितरण एवं उनमें जल की उपलब्धता :
नहरें कृत्रिम जलराशि संवर्ग के अंतर्गत आती है इनको जल चिरवाहिनी नदियों एवं जलाशयों से प्राप्त होता है। अध्ययन क्षेत्र मुख्यत: कृषि प्रधान क्षेत्र है। कृत्रिम सिंचाई साधनों में नहर सिंचाई प्रमुख जल संसाधन है। जनपद इटावा में नहर सिंचाई का शुभारंभ सन 1855 में हुआ जब सिंचाई हेतु हरिद्वार से गंगा नदी से नहरों को निकाला गया। हरिद्वार से निकली हुई शाखा मेरठ, बुलंदशहर, नानू, अलीगढ़ पहुँचती है। जो अलीगढ़ से दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है - कानपुर शाखा एवं इटावा शाखा। नरौरा (अलीगढ़) से इटावा शाखा पुन: दो भागों में विभक्त हो जाती है। उत्तर दिशा की ओर वाली शाखा को इटावा शाखा तथा दक्षिण की ओर वाली शाखा को भोगनीपुर शाखा के नाम से जाना जाता है। ये दोनों शाखायें सिरसा एवं सेंगर नदियों को पार करती हुई शिकोहाबाद एवं मैनपुरी होते हुए इटावा जनपद में प्रवेश करती है। यह पूरा नहर तंत्र निचली गंगा नहर तंत्र के अंतर्गत आता है। अध्ययन क्षेत्र में दो नहर शाखायें हैं -
(अ) भोगनीपुर शाखा
(ब) इटावा शाखा
(अ) भोगनीपुर शाखा
इस शाखा को निचली गंगा नहर से सिंचाई के लिये सन 1880 में निकाला गया। यह जनपद में जसवंतनगर, बसरेहर, महेबा, बढ़पुरा विकासखंडों में बहती हुई औरैया जनपद में प्रवेश करती है। जनपद में इस नहर शाखा की लंबाई 130.75 किमी (मुख्य शाखा एवं राजवाह) है। जिसके अंतर्गत शीर्ष निस्तारण की वास्तविक क्षमता 580.00 क्यूसेक है।
1. इटावा राजवाह :
इटवा राजवाह भोगनीपुर शाखा की सबसे बड़ी उपशाखा है। जनपद में इसकी लंबाई 24.33 किमी है, जो भोगनीपुर शाखा की कुल लंबाई का 16.61 प्रतिशत है। इस उपशाखा में शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 152 क्यूसेक है जो भोगनीपुर शाखा के कुल शीर्ष निस्तारण क्षमता का 26.12 प्रतिशत है। जनपद के यह उत्तर पश्चिम भाग में स्थित जसवंतनगर विकासखंड को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है।
2. रजमऊ राजवाह :
जनपद में इस शाखा की लंबाई 24.3 किमी है, जो भोगनीपुर शाखा की कुल लंबाई का 3.69 प्रतिशत है। इसकी कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 14 क्यूसेक है जो भोगनीपुर शाखा के शीर्ष निस्तारण का 2.42 प्रतिशत है। यह जनपद के उत्तरी भाग में जसवंतनगर एवं सैफई विकासखंडों में प्रवाहित होती है।
3. सरायभूपत राजवाह :
इस संपूर्ण राजवाह की लंबाई 6.02 किमी अर्थात संपूर्ण शाखा की लंबाई का 4.61 प्रतिशत है। इसमें कुल शीर्ष निस्तारण की वास्तविक क्षमता 14 क्यूसेक है, जो भोगनीपुर शाखा की जल निस्तारण क्षमता का 2.40 प्रतिशत है। यह शाखा जसवंतनगर एवं सैफई विकासखंडों के दक्षिणी भाग को जल सुविधा उपलब्ध कराती है।
4. लोकासई राजवाह :
जनपद में इस राजवाह की लंबाई 3.22 किमी है, जो कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 2.46 प्रतिशत है। इस उपशाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 10 क्यूसेक है जो भोगनीपुर शाखा की जल निस्तारण क्षमता का 1.72 प्रतिशत है। यह जनपद में बढ़पुरा विकासखंड के पश्चिमी दिशा अथवा सैफई के पूर्वी भाग को सिंचित करती है।
5. दतावली राजवाह :
इस संपूर्ण उपशाखा की लंबाई 3.87 किमी अर्थात कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 2.46 प्रतिशत है। इस उपशाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 06 क्यूसेक अर्थात संपूर्ण शाखा के कुल जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता का 1.03 प्रतिशत है।
6. सुंदरपुर राजवाह :
इस राजवाह की जनपद में कुल लंबाई 7.83 किमी है, जो जनपद में प्रवाहित भोगनीपुर शाखा की कुल लंबाई का 5.99 प्रतिशत है। इस उपशाखा की शीर्ष जल निष्तारण की वास्तविक क्षमता 06 क्यूसेक है, जो जनपद में भोगनीपुर शाखा के शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 1.03 प्रतिशत है। यह शाखा बढ़पुरा विकासखंड के उत्तरी भाग को जल सुविधा उपलब्ध कराती है।
7. नावली राजवाह :
इस उपशाखा की जनपद में कुल लंबाई 7.83 किमी है, जो कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 5.99 प्रतिशत है। इस उपशाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 36 क्यूसेक है, जो शाखा की (जनपद में) संपूर्ण शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 6.18 प्रतिशत है। यह मुख्य शाखा के उत्तर में जसवंतनगर विकासखंड को जल सुविधा प्रदान करती है।
8. विधिपुर राजवाह :
जनपद में इसकी लंबाई 19.02 किमी है जो कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 14.55 प्रतिशत है। इस उपशाखा की शीर्ष जल निस्तारण क्षमता 96 क्यूसेक है, जो संपूर्ण शाखा के शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 16.49 प्रतिशत है। यह जनपद के मध्यभाग एवं महेवा विकासखंड में (NH-2) के दक्षिणी भाग में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है।
9. देसरमऊ राजवाह :
इस राजवाह की कुल लंबाई 5.92 किलोमीटर है, जो कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 4.53 प्रतिशत है। इस उपशाखा की संपूर्ण शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 20 क्यूसेक है, जो कुल भोगनीपुर शाखा के शीर्ष जल निस्तारण का 3.44 प्रतिशत है। यह जनपद के मध्य भाग में भोगनीपुर शाखा के उत्तरी भाग को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराती है।
10. रीतौर राजवाह :
इस राजवाह की कुल लंबाई 14.27 किमी है, जो संपूर्ण शाखा की लंबाई का 10.91 प्रतिशत है। इस उपशाखा में शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 90 क्यूसेक अर्थात कुल भोगनीपुर शाखा के शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता का 12.03 प्रतिशत है। यह भोगनीपुर शाखा के उत्तरी भाग में बसरेहर विकासखंड को जल उपलब्ध कराती है।
11. इंगुर्री राजवाह :
इस राजवाह की जनपद में कुल लंबाई 12.87 किमी हैं, जो कुल भोगनीपुर शाखा की लंबाई का 9.84 प्रतिशत है। इस उपशाखा की शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 44 क्यूसेक है, जो संपूर्ण शाखा के जल निस्तारण का 7.86 प्रतिशत है। यह राजवाह जनपद में भर्थना एवं महेवा विकासखंडों को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है।
12. सुल्तानपुर राजवाह :
इस राजवाह की जनपद में कुल लंबाई 3.65 किमी है, जो भोगनीपुर शाखा की कुल लंबाई का 2.79 प्रतिशत है। इस उपशाखा की वास्तविक जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता का 12 क्यूसेक है, जो कुल शाखा के जल निस्तारण का 2.06 प्रतिशत है। जनपद में यह महेवा विकासखंड में नेशनल हाइवे के दोनों ओर सिंचाई सुविधा प्रदान करती है।
13. कुंडरिया राजवाह :
इस उपशाखा की कुल लंबाई 3.65 किमी है, जो भोगनीपुर शाखा की कुल लंबाई का 13.07 प्रतिशत है। इसकी कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 102 क्यूसेक अर्थात शाखा की वास्तविक क्षमता का 17.52 प्रतिशत है। शीर्ष जल निस्तारण की दृष्टि से यह भोगनीपुर शाखा की दूसरी सबसे बड़ी उपशाखा है। यह जनपद के महेवा विकासखंड में भोगनीपुर शाखा के उत्तरी भाग को जल सिंचन सुविधा उपलब्ध कराती है।
(ब) इटावा नहर शाखा :
जनपद में इटावा नहर शाखा का शुभारंभ भोगनीपुर शाखा के साथ सन 1855 में हुआ। यह शाखा भी निचली गंगा नहर तंत्र के अंतर्गत आती है। जनपद में इस शाखा की कुल लंबाई 219.29 किमी है। (मुख्य शाखा एवं राजवाह) इसकी शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 2290 क्यूसेक है।
जनपद में मुख्य शाखा से निकाले गये राजवाह की लंबाई एवं जल निस्तारण की क्षमता को निम्न सारणी द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है -
1. इटावा राजवाह :
जनपद में इस नहर शाखा की कुल लंबाई 37.6 किमी है, जो कुल इटावा शाखा की लंबाई का 17.15 प्रतिशत है। इसकी शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 75.2 क्यूसेक अर्थात कुल इटावा शाखा का 3.28 प्रतिशत है। जनपद में यह बसरेहर विकासखंड के दक्षिणी भाग को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है।
2. गंगसी राजवाह :
इस उपशाखा की जनपद में लंबाई 15.70 किमी है, जो संपूर्ण इटावा शाखा का 7.16 प्रतिशत है। जनपद में इस शाखा की शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 1231.40 क्यूसेक है, जो कुल इटावा के शीर्ष जल निस्तारण का 53.76 प्रतिशत है। जनपद में यह बसरेहर विकासखंड के उत्तरी भाग को एवं ताखा विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है।
3. करहल राजवाह :
अध्ययन क्षेत्र में इस संपूर्ण नहर शाखा की लंबाई 54.05 किमी है, जो संपूर्ण इटावा शाखा की लंबाई का 24.65 प्रतिशत है। जनपद में इसकी शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 224.00 क्यूसेक है, जो अध्ययन क्षेत्र में इटावा शाखा के कुल जल निस्तारण का 9.78 प्रतिशत है। यह जनपद में जसवंतनगर विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है।
4. बिलंदा राजवाह :
इस नहर शाखा की जनपद में लंबाई 25.14 किमी अर्थात कुल इटावा शाखा की लंबाई का 11.46 प्रतिशत है। इसकी कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 224.00 क्यूसेक है, जो इटावा शाखा के शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 9.78 प्रतिशत है। जनपद में बिलंद राजवाह सैफई एवं उत्तरी बसरेहर विकासखंड को जल सुविधा प्रदान करता है।
5. (अ) तखराऊ राजवाह (दायां) :
जनपद में तखराऊ राजवाह की लंबाई 4.84 किमी है, जो जनपद की इटावा शाखा का 2.21 प्रतिशत है। इस राजवाह की कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 60 क्यूसेक अर्थात कुल इटावा शाखा के शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 2.62 प्रतिशत है। यह जनपद में सैफई एवं बसरेहर विकासखंडों को सिंचन सुविधा प्रदान करता है।
(ब) तखराऊ राजवाह (बायां) :
इस राजवाह की जनपद में लंबाई 14.08 किमी अर्थात कुल इटावा शाखा की लंबाई का 6.42 प्रतिशत है। अध्ययन क्षेत्र में इस राजवाह की कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 130 क्यूसेक अर्थात शाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 5.68 प्रतिशत है। जनपद में तखराऊ राजवाह (बायां) उत्तरी सैफई एवं बसरेहर विकासखंडों को सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।
6. उमरसेंडा राजवाह :
लंबाई की दूष्टि से इटावा शाखा का यह तीसरा राजवाह है। जनपद में इसकी कुल लंबाई 33.60 किमी है, जो इटावा शाखा की कुल लंबाई का 15.33 प्रतिशत है। इसकी कुल शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 34.68 क्यूसेक अर्थात कुल इटावा शाखा के शीर्ष जल निस्तारण का 151 प्रतिशत है। जनपद में उमरसेंडा राजवाह दक्षिणी महेवा एवं भर्थना विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।
7. बांसक राजवाह :
जनपद में इसकी लंबाई 1.67 किमी है, जो इटावा शाखा की कुल लंबाई का 0.76 प्रतिशत है। जनपद में बांसक राजवाह की कुल शीर्ष जल निस्तारण क्षमता 77 क्यूसेक है, जो इटावा शाखा की कुल शीर्ष निस्तारण क्षमता का 3.36 प्रतिशत है। इस राजवाह द्वारा जनपद में ताखा विकासखंड को सिंचाई सुविधा मिलती है।
8. बहारपुर राजवाह :
जनपद में इस राजवाह की लंबाई 17.11 किमी है, जो इटावा शाखा की कुल लंबाई का 7.80 प्रतिशत है। इसकी कुल शीर्ष जल निस्तारण क्षमता 58.60 क्यूसेक है, जो इटावा शाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 2.55 प्रतिशत है। यह राजवाह भरथना विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।
9. कंधेसी राजवाह :
इस राजवाह की लंबाई अध्ययन क्षेत्र में 7.75 किमी है, जो कुल इटावा शाखा की लंबाई का 3.53 प्रतिशत है। इसकी जनपद में शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 88 क्यूसेक है, जो इटावा शाखा के कुल जल निस्तारण क्षमता का 3.84 प्रतिशत है। जनपद में यह भर्थना विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।
10. सैफई राजवाह :
जनपद में इस राजवाह की लंबाई 7.75 किमी है, जो इटावा शाखा की कुल लंबाई का 3.53 प्रतिशत है। इसकी जनपद में शीर्ष जल निस्तारण की वास्तविक क्षमता 88 क्यूसेक है, जो इटावा शाखा की कुल शीर्ष जल निस्तारण क्षमता का 3.84 प्रतिशत है। यह जनपद में सैफई विकासखंड को सिंचाई सुविधा प्रदान करता है।
जनपद इटावा में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र :
सिंचाई साधनों में नहरों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत में संपूर्ण सिंचित क्षेत्र का लगभग 31.47 प्रतिशत नहरों द्वारा सींचा जाता है। मैदानी भागों में नहरों के विकास के लिये अनुकूल दशायें जैसे - समतल भूमि सततवाही नदियाँ कृषि योग्य भूमि आदि पाई जाती है। फलत: उत्तर के विशाल मैदान में नहरों का अधिक विकास हुआ है। उत्तर प्रदेश में नहरों द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक भाग 17.72 प्रतिशत मिलता है।
अध्ययन क्षेत्र में नहरों द्वारा सिंचाई सन 1855 में प्रारंभ हुई, जब सिंचाई हेतु गंगा नदी से नहरें निकाली गयीं। नहरों के विकास के साथ-साथ सिंचित क्षेत्र में भी वृद्धि होती गयी। अध्ययन क्षेत्र में विगत 75 वर्षों में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र निम्नांकित तालिका से स्पष्ट हो जायेगा -
* जनपद का विभाजन हो गया है।
तालिका सं. 5.3 से स्पष्ट है कि जनपद इटावा में 1930-31 में नहरों द्वारा 57985 हे. क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 44.41 प्रतिशत था। सन 1950-51 में नहरों द्वारा 91147 हे. क्षेत्र में सिंचाई की गयी थी, जो कुल सिंचित क्षेत्र की 83.95 प्रतिशत थी। इसका मुख्य कारण जनपद में नहर सिंचाई का विकास तथा अन्य सिंचाई साधनों का कम विकास था। 1970-71 में नहरों द्वारा 96250 हे. क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी, जो कुल सिंचित क्षेत्र की 84.58 प्रतिशत थी। इस समय नहर सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत में बहुत अधिक परिवर्तन न होने का कारण नलकूपों का अधिक विकास न होना है। सन 1990-91 में नहर सिंचित क्षेत्र 122605 हे. था, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 54.77 प्रतिशत था। अत: स्पष्ट है कि इस काल में नहर सिंचित क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई, लेकिन नहर सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होने के बावजूद भी कुल सिंचित क्षेत्र में नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत में काफी कमी दिखाई दी। सन 2004-05 में नहरों द्वारा 58716 हे. क्षेत्र पर सिंचाई की गयी थी, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 49.95 प्रतिशत था।
आठवें और नौवें दशक में नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई है, परंतु जनपद के कुल सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत में ह्रास हुआ है। इस ह्रास का मुख्य कारण लघु सिंचाई योजनाओं का विकास रहा है। छठवें दशक में सिंचाई की बड़ी परियोजनाओं का विकास किया गया था। सातवें दशक में लघु सिंचाई परियोजनाओं के विकास को अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया जाने लगा था। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं से विस्थापन तथा पारिस्थितिकी असंतुलन की समस्याएं होने लगी थीं। दशवें दशक में नहरों की तली में अवसादीकरण तथा तटबंधों का क्षतिग्रस्त होना है।
निम्नांकित तालिका संख्या - 5.4 से स्पष्ट है कि जनपद इटावा में विकासखंड बढ़पुरा को छोड़कर सभी विकासखंडों में नहर सिंचित क्षेत्र में ह्रास हुआ है। इसका प्रमुख कारण नहरों का धरातल के नीचे होना, माइनर एवं गुल का अभाव सिंचाई हेतु अन्य बोये गये खेत से असमय पानी ले जाना, सामाजिक विवाद एवं सिंचाई के अन्य वैज्ञानिक साधनों का विकास है। सन 1993-95 के मध्य नहर सिंचित क्षेत्र 5469 हे. अर्थात शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 33.19 प्रतिशत था। उस समय क्षेत्र में सर्वाधिक नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र 70.79 प्रतिशत भर्थना विकासखंड में था। दूसरे स्थान पर ताखा विकासखंड आता है जहाँ पर नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र 69.18 प्रतिशत है। तीसरा स्थान बसरेहर विकासखंड का आता है जिसमें शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 66.97 प्रतिशत क्षेत्रफल नहर द्वारा सींचा जाता है। महेवा विकासखंड शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल का 63.11 प्रतिशत नहर सिंचित क्षेत्र रखता है। इसके अतिरिक्त सैफई 53.05 प्रतिशत, बढ़पुरा 38.03 प्रतिशत नहर सिंचित क्षेत्र रखते हैं। अध्ययन क्षेत्र में एकमात्र विकासखंड चकरनगर ऐसा विकासखंड है, जहाँ नहर सिंचाई का अभी तक विकास नहीं हो सकता है।
जनपद इटावा में विगत 10 वर्षों में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र निम्नांकित सारणी क्रमांक 5.4 से स्पष्ट हो जायेगा -
सन 2003-05 का अवलोकन करें तो पायेंगे कि नहर द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र 59594.67 हेक्टेयर है, जो शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 50.64 प्रतिशत है। सर्वाधिक नहर सिंचित क्षेत्र बसरेहर विकासखंड में 65.65 प्रतिशत है, इसके पश्चात 1993-95 की भांति भर्थना विकासखंड का नाम आता है जिसमें कुल सिंचित क्षेत्र का 65.08 प्रतिशत नहर सिंचित है। इसके बाद महेवा विकासखंड शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 55.68 प्रतिशत नहर सिंचित क्षेत्र रखता है। इसके बाद सैफई एवं जसवंतनगर विकासखंड का नाम आता है जिनमें क्रमश: शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 42.37 एवं 31.23 प्रतिशत क्षेत्र नहर सिंचित है। बढ़पुरा विकासखंड शुद्ध सिंचित क्षेत्र का सबसे कम नहर सिंचित क्षेत्र रखता है जो कुल सिंचित क्षेत्र का 29.56 प्रतिशत है। जनपद में चकरनगर विकासखंड एक मात्र ऐसा विकासखंड है जहाँ समतल भूमि के अभाव के कारण नहर सिंचाई का विकास नहीं हो सका है।
मानचित्र संख्या - 5.2 से स्पष्ट है कि सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत (60 प्रतिशत से अधिक) भर्थना, ताखा, बसरेहर, महेवा चार विकासखंड आते हैं। ये विकासखंड जनपद के पूर्व एवं उत्तर-पूर्व दिशा में अवस्थित हैं। इन विकासखंडों की भूमि समतल है जो नहर सिंचाई के विकास के लिये उत्तम मानी जाती है। 80 से 60 प्रतिशत वर्ग के अंतर्गत जनपद का एक मात्र विकासखंड सैफई आता है जिसमें कुल सिंचित क्षेत्र का 53.03 प्रतिशत नहर सिंचित क्षेत्र है जो जनपद के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है। 50 प्रतिशत से कम संवर्ग में जनपद के दो विकासखंड बढ़पुरा एवं जसवंतनगर का नाम आता है जो जनपद के उत्तर-पश्चिम एवं दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित हैं। दोनों विकासखंडों में बीहड़ क्षेत्र के अधिक विस्तार के कारण समतल भूमि कम है। परंतु जिन क्षेत्रों में समतल भूमि है वहाँ नहर सिंचाई का विकास हुआ है। चकरनगर विकासखंड एक मात्र ऐसा विकासखंड है जहाँ नहर सिंचाई का बिलकुल भी विकास नहीं हो सका है। इसका मुख्य कारण विकासखंड के अधिकतम क्षेत्र में बीहड़ होना है। परिणामत: नहर सिंचाई का विकास नहीं हो सकता है। मानचित्र संख्या - 5.3 के अवलोकन से स्पष्ट है कि 1993-95 की भांति 2003-05 में भी नहर सिंचित क्षेत्र (मध्य को छोड़कर) 60 प्रतिशत से अधिक संवर्ग के अंतर्गत तीन विकासखंड बसरेहर, भर्थना, ताखा आते हैं। ये तीनों विकासखंड जनपद में पूर्व एवं उत्तर-पूर्व भाग में स्थित हैं। 50 से 60 प्रतिशत संवर्ग के अंतर्गत मात्र एक विकासखंड महेवा आता है। जो जनपद के पूर्वी भाग में स्थित है। 50 प्रतिशत से कम संवर्ग के अंतर्गत तीन विकासखंड क्रमश: सैफई, जसवंतनगर एवं बढ़पुरा आते हैं, जो जनपद के पश्चिम एवं दक्षिण भाग में स्थित हैं। इन क्षेत्रों की भूमि पूर्णतः समतल नहीं है, इसलिये अन्य विकासखंडों की तरह यहाँ नहर सिंचाई का बहुत अधिक विकास नहीं हो सका है। पूर्व की भांति चकरनगर विकासखंड में भी नहर सिंचाई सुविधाओं का विकास नहीं हो सका है। यह विकासखंड जनपद के दक्षिण-पूर्वी कोने पर स्थित है।
नहर सिंचाई क्षेत्र में परिवर्तन :
तालिका संख्या - 5.4 से स्पष्ट है कि विगत दस वर्षों में जनपद के एक मात्र विकासखंड बढ़पुरा को छोड़कर सभी विकासखंडों में सिंचाई क्षेत्र में ह्रास हुआ है। 1993-95 तक जनपद में नहर सिंचाई क्षेत्र 68264 हे. था जो शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 54.25 प्रतिशत था, 2003-05 में नहर सिंचित क्षेत्र घटकर 59594.67 हे. अर्थात शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 50.64 प्रतिशत रह गया। इस प्रकार नहरी सिंचाई में 8661.33 हे. अर्थात 12.68 प्रतिशत का ह्रास हुआ है। नहर सिंचित क्षेत्र में सर्वाधिक ह्रास (25.13 प्रतिशत) बसरेहर विकासखंड में देखने को मिलता है। इसके बाद सैफई विकासखंड में 16.94 प्रतिशत ताखा विकासखंड में 15.66 प्रतिशत महेवा विकासखंड में 9.00 प्रतिशत, भर्थना में 3.66 प्रतिशत ह्रास हुआ है। नहर सिंचित क्षेत्र में सबसे कम ह्रास जसवंतनगर में (1.86 प्रतिशत) हुआ है। चकरनगर विकासखंड में असमतल एवं बीहड़ क्षेत्र का अधिक विकास होने के कारण नहर सिंचाई का विकास नहीं हो सका है।
मानचित्र संख्या - 5.4 के अध्ययन से स्पष्ट है कि सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र में वृद्धि (3.37 प्रतिशत) एक मात्र विकासखंड बढ़पुरा में हुई है। अन्य सभी विकासखंडों में नहर सिंचित क्षेत्र के प्रतिशत में ह्रास हुआ है। 10 प्रतिशत से कम संवर्ग वाले क्षेत्रफल के अंतर्गत जनपद के चार विकासखंडों को सम्मिलित किया जाता है। जो जनपद में पूर्व एवं उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है 10-20 प्रतिशत संवर्ग के अंतर्गत जनपद में दो विकासखंडों को सम्मिलित किया है। ये दोनों विकासखंड जनपद में क्रमश: उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा में अवस्थित हैं। अत: 6 विकासखंडों में नहर सिंचाई क्षेत्र में ह्रास हुआ है। एक विकासखंड ऐसा है, जहाँ नहर सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। चकरनगर विकासखंड नहर असिंचित विकासखंड है।
नहर सिंचाई का कृषि विकास में योगदान :
जनपद इटावा कृषि प्रधान क्षेत्र है, फलत: सिंचाई की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि यहाँ मौसमी वर्षा होने के कारण वर्ष भर मिट्टी में नमी संचित नहीं रह पाती है। यहाँ वर्षा की अनिश्चितता पाई जाती है, तथा कर्क रेखा के पास स्थित होने के कारण जल का वाष्पीकरण अधिक होता है। इन परिस्थितियों में बिना सिंचाई किए गहन कृषि की अत्यधिक आवश्यकता है। जो सिंचाई क्षमता में वृद्धि करके ही संभव है। सिंचाई साधनों में नहर सिंचाई का जनपद इटावा में अधिक विकास हुआ है। अध्ययन क्षेत्र में आधे से अधिक क्षेत्र (50.64 प्रतिशत) नहरों द्वारा सिंचित किया जाता है। नहरों द्वारा सिंचाई में किए गये योगदान को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
1. कृषि उपज में वृद्धि :
कृषि उत्पादन में असिंचित भूमि की अपेक्षा नहरों द्वारा सिंचित भूमि में प्रति हे. 100 से 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खाद उन्नत, बीज उन्नत तकनीकी आदि के उपयोग से 300 प्रतिशत तक फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
2. शुष्क क्षेत्रों का हरियाली में परिवर्तन :
जिन भागों में नहरों का विस्तार कर दिया जाता है वहाँ शुष्क क्षेत्र हरे-भरे खेतों के रूप में बदल जाते हैं। अध्ययन क्षेत्र में वर्षा कम एवं असामयिक होने के कारण वनस्पति का ठीक से विस्तार नहीं हो सका है। इसके विपरीत नहर सिंचित होने से बहुत बड़ी मात्रा में शुष्क क्षेत्र सिंचित कृषि क्षेत्रों में परिवर्तित हुए हैं।
3. अकाल की आशंका की समाप्ति :
जिन क्षेत्रों में नहरों का विकास कर दिया जाता है, वहाँ बहुत बड़ी सीमा तक अकाल की आशंका समाप्त हो जाती है। उन क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि भी बढ़ जाती है।
4. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि :
नहरें अपने साथ उपजाऊ मिट्टी भी लाती हैं। इन्हें वे अपने सिंचित क्षेत्रों में जमा कर देती हैं। इससे सिंचित क्षेत्र की उर्वरा शक्ति में और भी वृद्धि हो जाती है।
5. व्यापारिक फसलों के उत्पाद में वृद्धि :
अध्ययन क्षेत्र में गेहूँ, चावल, गन्ना, व्यापारिक फसलें हैं। नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा प्राप्त होने से इन फसलों के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
6. अकलाग्रस्त क्षेत्रां में नहरों के विकास से सरकारी व्यय में बचत :
सरकार को अकाल के समय भारी मात्रा में धन खर्च करना पड़ता है। लेकिन जब उन क्षेत्रों में नहरें निकाल दी जाती हैं। तब अकालग्रस्त क्षेत्र हरे भरे क्षेत्रों में बदल जाते हैं। अकाल की आशंका एक दम समाप्त हो जाती है। नहरों का विकास कर देने से उन क्षेत्रों में सरकारी धन के व्यय में भारी कमी हो जाती है।
7. नहरों से आय :
नहरों की खुदाई एवं रख-रखाव में सरकार को काफी धन व्यय करना पड़ता है। इस पूँजी विशेष से सरकार को 6 से 7 प्रतिशत तक की आय होती है।
8. खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता :
नहरों के विकास से सिंचित क्षेत्रों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। जिससे उन्नतशील कृषि का विकास हुआ है। परिणामस्वरूप देश में खाद्यान्न पर आत्मनिर्भरता बढ़ी है। किसानों की आर्थिक दशा में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
9. लघु सिंचाई योजना के क्रियान्वयन में सुविधा :
नहरों के विकास से क्षेत्र में जल उपलब्धता में वृद्धि हो जाती है। भूमिगत जल का भंडार बढ़ जाता है। तालाबों में पानी जमा रहता है। इससे लघु सिंचाई परियोजना, कुएँ, ट्यूबेल, तालाब आदि का उपयोग बहुत कम धनराशि खर्च करके किया जा सकता है।
नहर सिंचित क्षेत्र की समस्यायें एवं समाधान :
सिंचाई साधनों में नहर सिंचाई महत्त्वपूर्ण सिंचाई स्रोत है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु गहन कृषि आवश्यक है। जिसके लिये सिंचाई के ऐसे साधनों के विकास की आवश्यकता अनुभव हुई, जो सस्ते एवं सरल हों। परिणामत: नहर सिंचाई का विकास हुआ। नहर सिंचाई का तीव्र विकास सामान्यत: उन क्षेत्रों में हुआ, जहाँ समतल भूमि के साथ सतत वाहिनी नदियों को रोककर जल की उपलब्धता संभव थी। इसके लिये उत्तर का मैदानी भाग सर्वथा उपयुक्त था अध्ययन क्षेत्र भी इसी मैदानी भाग का अंग है। सतत वाहिनी नदियों से निकली नहरें एक बड़े भाग को सिंचित करती हैं। परंतु साथी ही यह नहरें अनेक अवसादों एवं लवणों को बहाकर लाती है। परिणामत: नहर सिंचाई से अध्ययन क्षेत्र में तत्संबधी समस्यायें भी उत्पन्न हुई हैं।
1. हानिकारक अवसादों का जमाव :
नहरें अपने साथ विभिन्न प्रकार के अवसादों को प्रवाहित करती हैं, और उन्हें सिंचित क्षेत्र में जमा करती हैं। उनमें से कुछ अवसाद हानिकारक होते हैं, जिनसे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है। नहरों में बहकर आने वाली महीन बालू सिंचित क्षेत्र में जमा जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट जाती है। अध्ययन क्षेत्र में उत्तर एवं उत्तरी-पूर्वी नहर सिंचित क्षेत्र में इस तरह की समस्यायें स्पष्ट दिखाई देती हैं।
2. भूमिगत जल स्तर में वृद्धि :
अध्ययन क्षेत्र में जहाँ-जहाँ नहर सिंचाई का विकास हुआ है, भूमिगत जल काफी ऊपर आ गया है। इसका सबसे अधिक एवं स्पष्ट प्रभाव भर्थना विकासखंड में देखने को मिलता है। भूमिगत जल स्तर के ऊपर आ जाने से उसका दुष्प्रभाव फसलों पर पड़ता है, भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है, तथा फसलों का विकास एवं उत्पादन प्रभावित होता है। उत्पादन में कमी आती है।
3. जल का अनियंत्रित उपयोग :
नहरों में समय से जल प्रवाहित होना आवश्यक है, लेकिन उचित प्रबंधन के अभाव में ऐसा नहीं हो पाता तथा अनिश्चितता की दशा में जब किसानों को नहरी जल मिलता है तब वह उसका सिंचाई में आवश्यकता से अधिक उपयोग कर देता है। ऐसा करने से एक ओर उसकी फसल क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो दूसरी तरफ भूमि की उर्वरा शक्ति में भी ह्रास संभव है। अत: नहरों के जलप्रवाह में तथा कृषकों द्वारा जल उपयोग में नियंत्रण एवं नियमितता आवश्यक है।
4. नहरों की जल प्रवाह क्षमता में कमी :
जनपद इटावा में नहरों के समुचित रख-रखाव का अभाव दिखाई देता है। फलत: अवसादीकरण एवं तटबंधों के क्षतिग्रस्त एवं क्षीण हो जाने से जल प्रवाही क्षमता कम होती जा रही है।
5. सिंचाई सुविधाओं की निरंतर बढ़ती मांग :
सीमित वित्तीय साधनों के कारण प्रारंभ में नहरों का निर्माण, सीमित क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये किया गया था, परंतु सिंचाई के प्रति कृषकों की जागृति तथा हरित क्रांति के प्रति आकर्षण के कारण सिंचाई सुविधाओं की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। वर्तमान नहरें सिंचाई सुविधाओं की इस मांग की पूर्ति करने में असमर्थ हैं।
6. दोषपूर्ण सिंचाई व्यवस्था :
जल संसाधन विभाग की नहर जल वितरण व्यवस्था भी दोषपूर्ण है। जल संसाधन विभाग, सिंचाई की ओसराबंदी एवं वाराबंदी व्यवस्था लागू नहीं कर पाया है। इससे सबल एवं प्रभावशाली कृषक, नहर सिंचाई सुविधाओं का अधिक लाभ उठाते हैं। जल संसाधन विभाग भी कृषकों को उचित समय पर वांछित मात्रा में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पाता है।
7. नहर के समीपस्थ क्षेत्रों में अधिक सिंचाई की प्रवृत्ति :
इस जनपद में नहर के समीपस्थ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक जल की उपलब्धता के कारण उन क्षेत्रों में कृषक अधिक सिंचाई करते हैं। नहर से दूरस्थ क्षेत्र, सिंचाई सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। इसका दुष्प्रभाव यह है कि नहर के समीपस्थ क्षेत्रों में अधिक सिंचाई के कारण क्षारीयता एवं अम्लीयता की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
8. मलेरिया एवं अन्य संक्रामक रोग :
जिन भागों में नहरों का विकास हुआ है, वहाँ उचित प्रबंधन के अभाव में नहरों का पानी यत्र-तत्र निचले भू-भागों में जमा हो जाता है। जिससे दलदल उत्पन्न हो जाते हैं। जो मलेरिया एवं अन्य संक्रामक रोगों के फैलने में सहायक हैं।
नहर से संबंधित सामान्य समस्याओं के समाधान निम्नलिखित हैं -
1. नहरों एवं वितरणिकाओं का जीर्णोंद्धार :
जनपद की नहरों तथा वितरणिकाओं के किनारों को ठीक कराया जाये तथा उनके मध्य खड़े झाड़-झंखाड़ों को कटवाया जाये। जहाँ पर बलुई मिट्टी के कारण नहर के किनारे अधिक कट गये हैं, उन्हें पक्का किया जाये। नदियों के खड्ड के कारण जहाँ पर नहरों के किनारों को ऊँचा उठाना पड़ा है, वहाँ पर इन किनारों को पक्का किया जाये।
2. नहर की तली की सफाई :
जनपद इटावा की नहरों में प्रतिवर्ष तलक्षट जमने के कारण नहरों की तली ऊपर उठ गयी है। जिससे नहरों की जल ग्रहण क्षमता कम हो गयी है। नहरों का सर्वेक्षण करवाकर उसकी तली की पुन: खुदाई कराई जाये।
3. कुलाबों का निर्माण :
इस क्षेत्र का कृषक मुख्य नहर से पाइप लगाकर अथवा लेजम द्वारा सायफन पद्धति से सिंचाई करता है, जो अवैधानिक है। कृषकों की इस अवैधानिक प्रकृति को नियंत्रित करने के लिये नहरों एवं वितरणिकाओं में उपयुक्त स्थलों पर कुलावे लगाये जायें। जिससे नहरों का तट भी क्षतिग्रस्त नहीं होगा तथा कृषकों को वैधानिक रीति से सिंचाई हेतु पर्याप्त जल मिलेगा।
4. प्रपातों का निर्माण :
जनपद इटावा में कई स्थलों पर वितरणिकाओं की ऊँचाई नहर के जल स्तर से अधिक है। इससे नहर का पानी वितरणिकाओं में प्रवाहित नहीं हो पाता अथवा स्वल्प प्रवाहित होता है। इस समस्या के समाधान हेतु वितरणिकाओं के उद्गम स्थल पर नहर में प्रपातों का निर्माण कराया जाये। जिससे नहर का जल स्तर ऊपर उठने से जल स्वत: ही वितरणिकाओं में प्रवाहित होने लगेगा।
5. पक्की कूलों का निर्माण :
अध्ययन क्षेत्र में दीर्घावधि से नहरों से सिंचाई होती आ रही है फिर भी कूलों का व्यवस्थित जाल नहीं बिछ पाया है। कृषकों ने अपनी सुविधानुसार कच्ची कूलों का निर्माण कर सिंचाई प्रारंभ कर दी है इसमें नहर जल का अधिक अपव्यय होता है। पानी के इस अपव्यय को नियंत्रित करने के लिये पक्की कूलों का निर्माण कराया जाये।
6. अनियमित सिंचाई की प्रवृत्ति पर नियंत्रण :
इस जनपद का कृषक, नहरों एवं वितरणकाओं के तटों को काटकर, स्वयं की सुविधानुसार सिंचाई करता है। इसमें नहर के पानी का अपव्यय होता है। जगह-जगह पानी खड्डों में भर जाता है। बहुत सा पानी निरर्थक नदी नालों में बहकर चला जाता है। इस अनियमित सिंचाई व्यवस्था को नियंत्रित किया जाये।
7. अधिक सिंचाई की प्रवृत्ति पर नियंत्रण :
इस क्षेत्र का कृषक नहर का वांछित एवं नियमित पानी न मिलने के कारण, नहर में जल आने पर अपने खेतों में आवश्यकता से अधिक सिंचाई कर देता है। इससे फसल को हानि होने के साथ उर्वरक तत्व जल के साथ मिट्टी के नीचे तल पर चले जाते हैं क्षारीय तत्व ऊपर आ जाते हैं। जिससे भूमि के ऊसर होने की संभावना बढ़ जाती है। जलाधिक के कारण मिट्टी के कण चिपक जाते हैं, पौधों की जड़ों की श्वसन प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। जिससे पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अत: इस क्षेत्र के कृषकों की अधिक सिंचाई करने के इस प्रवृत्ति को नियंत्रित किया जाये।
8. ओसरा बंदी एवं वाराबंदी संचाई को लागू किया जाये :
इस जनपद के कृषकों की स्वच्छंद प्रवृत्ति के कारण, जल संसाधन विभाग, सिंचाई की ओसराबंदी एवं वाराबंदी सिंचाई पद्धति लागू नहीं कर पाया है सिंचाई व्यवस्था को नियमित एवं व्यवस्थित करने के लिये ओसराबंदी एवं वाराबंदी की सिंचाई पद्धति लागू की जाये।
Reference :
1. चौहान, पीआर, सिंचाई, भारत का वृहत भूगोल, वसुंधरा प्रकाशन, गोरखपुर, पृ. – 213
2. Varun, D.P., Agriculture and Irrigation, Uttar Pradesh District Gazetteers, Page. 78.
1. Varun, D.P., Agriculture and Irrigation, Uttar Pradesh District Gazetteers, Page. 78.
1. Varun, D.P., Agriculture and Irrigation, Uttar Pradesh District Gazetteers, Page. 79.
इटावा जनपद में जल संसाधन की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रबंधन, शोध-प्रबंध 2008-09 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
1 | |
2 | |
3 | |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
10 |
Path Alias
/articles/itaavaa-janapada-kae-adhayayana-kasaetara-maen-nahara-saincaai-canal-irrigation-study-area
Post By: Hindi
Topic
Sub Categories
Regions