पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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रोहिनि माहीं रोहिनी
Posted on 20 Mar, 2010 01:16 PM
रोहिनि माहीं रोहिनी, एक घड़ी जो दीख।
हाथ में खपरा मेदिनी, घर-घर माँगै भीख।।


शब्दार्थ- खपरा – खप्पर-कटोरा।

भावार्थ- यदि रोहिणी नक्षत्र में एक घड़ी के लिए भी रोहणी रहे तो समझ लेना चाहिए कि भीषण अकाल पड़ने वाला है और लोग हाथ में खप्पर लेकर भीख माँगते फिरेगे।

रात्यो बोलै कागला
Posted on 20 Mar, 2010 01:11 PM
रात्यो बोलै कागला, दिन में बोलै स्याल।
कहै भड्डरी समुझि मन, निहचै परै अकाल।।


शब्दार्थ- कागला-कौआ। स्याल-गीदड़।

भावार्थ- यदि रात में कौआ बोले और दिन और दिन में गीदड़ तो भड्डरी के अनुसार निश्चित रूप से सूखा पड़ने वाला है।

माघे नौमी निरमली
Posted on 20 Mar, 2010 12:50 PM
माघे नौमी निरमली, बादर रेख न जोय।
तौ सरवर भी सूखहीं, महि में जल नहिं होय।।


शब्दार्थ- निरमली-स्वच्छ। महि-धरती।

भावार्थ- यदि माघ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को आकाश बिल्कुल स्वच्छ हो और आकाश में बादल की एक रेख तक न हो तो सारे तालाब सूख जायेंगे, पूरी धरती पर कहीं भी पानी नहीं मिलेगा अर्थात् बिना पानी के पैदावार नहीं होगी।

मंगल रथ आगे चलै
Posted on 20 Mar, 2010 12:41 PM
मंगल रथ आगे चलै, पीछे चले जो सूर।
मन्द वृष्टि तब जानिये, पड़सी सगलै झूर।।


शब्दार्थ- झूर- सूखा।

भावार्थ- मंगल ग्रह आगे और सूर्य उसके पीछे हो तो वर्षा कम होगी और समझो चारो तरफ सूखा पड़ने वाला है।

माघ सुदी पून्यो दिवस
Posted on 20 Mar, 2010 12:35 PM
माघ सुदी पून्यो दिवस, चन्द्र निर्मलो जोय।
पसु बेंचो कन संग्रहों, काल हलाहल होय।।


भावार्थ- यदि माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा स्वच्छ हो अर्थात् बादल न हों तो हे किसान! अपने जानवरों को बेचकर अन्न को इकट्ठा कर लो, क्योंकि भीषण अकाल पड़ने वाला है।

मंगल पड़े तो भू चलै
Posted on 20 Mar, 2010 12:30 PM
मंगल पड़े तो भू चलै, बुध को पड़े अकाल।
जो तिथि होय सनीचरी, निहचै पड़ै अकाल।।


भावार्थ- यदि फाल्गुन मास का अन्तिम दिन मंगलवार को पड़े तो भूकंप आयेगा और यदि बुधवार और शनिवार को पड़े तो निश्चय ही अकाल पड़ेगा।

माघ में गरमी जेठ में जाड़
Posted on 20 Mar, 2010 12:25 PM
माघ में गरमी जेठ में जाड़।
कहै घाघ हम होब उजाड़।।


भावार्थ- यदि माघ महीने में गर्मी पड़े और ज्येष्ठ में ठंड लगे तो घाघ कहते हैं कि निश्चित ही किसान उजड़ जायेंगे अर्थात सूखा पड़ने वाला है।

मृगसिर वायु न बादला
Posted on 20 Mar, 2010 12:15 PM
मृगसिर वायु न बादला, रोहिनि तपै न जेठ।
अद्रा जो बरसै नहीं, कौन सहै अलसेठ।।


शब्दार्थ- अलसेठ-झंझट।

भावार्थ- यदि मृगशिरा नक्षत्र में हवा चले और न ही बादल हों, ज्येष्ठ में गर्मी न पड़े और नहीं आर्द्रा में वर्षा हो तो खेती के झंझट में न पड़ों क्योंकि मौसम ठीक नहीं हैं। अर्थात् सूखा पड़ने वाला है।

मृगसिर वायु न बाजिया
Posted on 20 Mar, 2010 12:07 PM
मृगसिर वायु न बाजिया, रोहिनि तपै न जेठ।
गोरी बीनै काँकरा, खड़ी खेजड़ी हेठ।।


शब्दार्थ- खेजड़ी- एक प्रकार का वृक्ष। हेठ-नीचे।

भावार्थ- मृगशिरा नक्षत्र में यदि हवा न चले और ज्येष्ठ महीने में रोहिणी नक्षत्र न तपे तो निश्चय ही अकाल पड़ेगा और किसान की स्त्री खेजड़ी वृक्ष के नीचे कंकड़ चुनेगी।

मंगलवारी मावसी
Posted on 20 Mar, 2010 12:01 PM
मंगलवारी मावसी, फागुन चैती जोय।
पशु बेंचो कन संग्रहो, अवसि दुकाली होय।।


शब्दार्थ- मावसी-अमावस्या। कन-अनाज। अवसि-अवश्य। दुकाली- अकाल।

भावार्थ- यदि फागुन और चैत्र की अमावस्या को मंगल पड़े तो समझ लेना चाहिए कि अकाल पड़ने वाला है इसलिए पशुओं को बेचकर अन्न एकत्र करना शुरु कर दो।

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