पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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मड़ाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 24 Mar, 2010 08:58 AM
गेहूँ जौ जब पछुवाँ पावै।
तब जल्दी से दायाँ जावै।।


भावार्थ- यदि पछुवा हवा चल रही है तो गेहूँ और जौ की मड़ाई जल्दी हो जाती है क्योंकि उसका डंठल जल्दी टूट जाता है।

सात सेवाती धान उपाठ
Posted on 24 Mar, 2010 08:56 AM
सात सेवाती धान उपाठ।।

भावार्थ- स्वाती नक्षत्र के सात दिन बाद धान पककर तैयार हो जाता है।

कटाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 24 Mar, 2010 08:53 AM
साठी होवै साठवें दिना।
जब दैव बरीसे रात दिना।।


भावार्थ- जब पानी रात दिन बरसता रहे तब साठी धान केवल साठ दिनों में ही तैयार हो जाता है।

खेती तो उनकी
Posted on 23 Mar, 2010 04:18 PM
खेती तो उनकी, जे करे अन्हान-अन्हान।
और उनकी क्या खेती, जो देखे साँझ-बिहान।।


शब्दार्थ- अन्हान- दिन।

भावार्थ- सच्चे अर्थों में खेती उस किसान की है जो दिन-दिन भर खेत में रहता है और जो उसकी ठीक से देखभाल करता है। जो साँझ सबेरे ही देखने जाता है उसकी खेती नष्ट हो जाती है।

खेत रक्षा सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 03:45 PM
खेती वह जो खड़ा रखावै।
सूनी खेती हरिना खावै।।


भावार्थ- खेती वही है जिसकी किसान खड़े होकर रखवाली करे। यदि सूना छोड़ देगा तो हिरन चर जाएँगे।

मघा में मक्कर पुरवा डाँस
Posted on 23 Mar, 2010 03:12 PM
मघा में मक्कर पुरवा डाँस।
उत्तरा में भई सबकी नास।।


भावार्थ- मघा नक्षत्र में मकड़ा-मकड़ी और पूर्वा में डँस नामक कीड़े पैदा होते हैं और उत्तरा में ये सब स्वतः नष्ट हो जाते हैं।

माघ पूस बहै पुरवाई
Posted on 23 Mar, 2010 03:04 PM
माघ पूस बहै पुरवाई।
तब सरसों का माहो खाई।।


शब्दार्थ- माहो- एक प्रकार का कीड़ा।

भावार्थ- पूस और माघ महीने में यदि पुरवा हवा चली तो सरसों में माहो लग जाता है और फसल नष्ट हो जाती है।

नीचे ओद ऊपर बदराई
Posted on 23 Mar, 2010 03:01 PM
नीचे ओद ऊपर बदराई,
घाघ कहै गेरुई अब धाई।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि जब खेत नीचे से गीला हो और ऊपर बादल कई दिनों तक छाये रहें तो समझो कि अनाज (गेंहूँ) में गेरुई नामक रोग लग जायेगा।

जेकरे ऊखर लगै लोहाई
Posted on 23 Mar, 2010 02:59 PM
जेकरे ऊखर लगै लोहाई।
तेहि पर आवै बड़ी तबाही।।


शब्दार्थ- लोहाई- लाही या सूखारोग।

भावार्थ- जिस किसान के ईख में सूखा रोग लग गया, उसकी फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है और किसान तबाह हो जाता है।

चना में सरदी बहुत समाई
Posted on 23 Mar, 2010 02:57 PM
चना में सरदी बहुत समाई।
ताको जान गधैला खाई।।


भावार्थ- चना अधिक पानी नहीं चाहता क्योंकि उसमें सर्दी अधिक लगती है और जब ऐसा हो तो समझो उसको गंधेला नामक कीड़ा खा जायेगा और पैदावार कम हो जायेगी।

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