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वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन
जल हमारे जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग है। जल के बिना जीवन निर्वाह संभव नहीं है। जल की आवश्यकता जितनी मानव के लिए आवश्यक है उतनी ही पौधों के लिए भी आवश्यक है। फसलों एवं पौधों का लगभग 70-90 प्रतिशत भाग जल का ही बना होता है। पौधे सदैव अपना भोजन मृदा से घोल के रूप में जल के माध्यम से ही लेते हैं या ग्रहण करते हैं। Posted on 19 May, 2023 11:34 AM
प्रस्तावना

कृषि उत्पादन में जल की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिंचित स्थिति की तुलना में असिंचित स्थिति में उगाई गई फसलों की पैदावार लगभग आधी ही प्राप्त होती है जिससे किसानों को कृषि में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। देश के उत्तरप्रदेश राज्य में औसतन वर्षा लगभग 1000 मिलीमीटर ही प्राप्त होती हैं जिसका अधिकांश भाग भूमि की ऊपरी सतह से बहकर नदी एवं नालों

वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन,PC-MONCHASHA
जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल अनुक्रम की जल उत्पादकता में सुधार हेतु किसानों के खेतों में लेजर लेवलर तकनीक का प्रसार
कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। Posted on 18 May, 2023 03:09 PM
प्रासंगिकता

जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्रम के तहत कुल क्षेत्र 1.10 लाख हैक्टेयर आता है। इस क्षेत्र के कमांड क्षेत्रों में कृषि के लिये जल उपलब्धता में कमी के साथ साथ फसलों की पैदावार और इनपुट दक्षता में कमी मुख्य चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसलिये जल की कमी को देखते जम्मू के विभिन्न नहरी कमांड क्षेत्रों में चान गेहूँ फसल अनुक्

जम्मू व कश्मीर के नहरी कमांड क्षेत्रों में धान-गेहूँ फसल,PC-AT
पूर्वी भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनानास की खेती
ओडिसा राज्य एवं पूर्वी भारत के अन्य क्षेत्रों में सिचाई जल की कम आवश्यकता के कारण अनानास की खेती की अनुकूलनशीलता बहुत अधिक प्रचलित है। यह फसल कम से कम सिचाई जल पर भी जीवित रह सकती है या यूं कह सकते है कि इसमें सिचाई जल देना या प्रयोग करना भी जरूरी नहीं है। यह केवल वर्षा जल से ही अपनी सिंचाई की आवश्यकता को पूरी कर सकती है। अतः खरीफ धान के बाद रबी के मौसम में जो भूमि परती रहती है उसमें इस 12 महीने से अधिक अवधि वाली अनानास की फसल को विभिन्न उचित सस्य प्रबंधन विधियों के साथ अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मध्यम एवं ऊँची भूमि परिस्थितियों के तहत बहुत अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। Posted on 18 May, 2023 02:14 PM
प्रस्तावना

पूर्वी भारत में 12.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित धान की खेती के अंतर्गत है। इन वर्षा आधारित क्षेत्रों में अधिकांशतः भूमि वर्षा के बाद रबी मौसम में सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण मुख्य रूप से परती खंड दी जाती है। इस कारण इस भूमि का खेती के लिए उचित उपयोग नहीं हो पाता है। इसी प्रकार की समान परिस्थिति ओडिशा राज्य में भी मौजूद है। दूसरी तरफ धान

पूर्वी भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनानास की खेती,Pc-Advance Agriculture
ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मीठे जल की उपलब्धता में वृद्धि हेतु तकनीकी विकल्प
ओडिशा राज्य की तटीय रेखा बंगाल की खाड़ी के किनारे 480 किलोमीटर तक फैली हुई है और इस तट रेखा से 0 से 10 किमी की दूरी के तहत स्थित क्षेत्रों में भूजल को अधिक पम्पिंग के कारण लवणता की समस्या अधिक पायी जाती है। इसलिये वहाँ फसली क्षेत्र को बढ़ाने हेतु जल संसाधन विकसित करने के लिये बहुत ही सीमित विकल्प मौजूद है। Posted on 18 May, 2023 12:40 PM
प्रस्तावना

ओडिशा राज्य के तटीय क्षेत्रों में मानसून अवधि के दौरान अतिरिक्त जल का भराव और मानसून अवधि के बाद ताजा जल की अनुपलब्धता आदि जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है या करना पड़ रहा है। मौजूदा जल संसाधनों के लिये लवणीय जल का प्रवेश इस स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना देता है और यह आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से कृषि, मीठे जल के संसाधन, मछली पालन और जल

स्लूइस गेट तकनीक, PC- Wikimedia Commons
शारदा सहायक कमांड क्षेत्र में अधिकतम धान के उत्पादन एवं जल उत्पादकता हेतु जल प्रबंधन तकनीक
कृषि के लिये जल एक सीमित संसाधन है जिसकी फसलोत्पादन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जल की कमी ना अत्यधिक मात्रा के कारण फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है संसार के समस्त जल संसाधनों का केवल 2.6 प्रतिशत जल ही पीने एवं फसलों को सिंचाई के लिये उपलब्ध है। Posted on 18 May, 2023 11:58 AM

कृषि के लिये जल एक सीमित संसाधन है जिसकी फसलोत्पादन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जल की कमी ना अत्यधिक मात्रा के कारण फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है संसार के समस्त जल संसाधनों का केवल 2.6 प्रतिशत जल ही पीने एवं फसलों को सिंचाई के लिये उपलब्ध है। इसलिये कृषि में इसका उपयोग आवश्यकतानुसार संतुलित मात्रा में करना बहुत ही आवश्यक है अतः आज के इस जलवायु परिवर्तन के दौर में कृषि में जल क

शारदा सहायक कमांड क्षेत्र में अधिकतम धान के उत्पादन एवं जल उत्पादकता हेतु जल प्रबंधन तकनीक,Pc-The Third Pole
भारतीय कृषि में आधुनिक - उन्नत सिंचाई विधियां
भारत के कृषि पर निर्भर होने के कारण सिंचाई इसकी रीढ़ की हड्डी है। कृषि के उपयोग में आने वाली सामग्रियों (इनपुट) में बीज, उर्वरक, पादप संरक्षण, मशीनरी और ऋण के अतिरिक्त सिंचाई की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सिंचाई सूखी भूमि को वर्षा जल के पूरक के तौर पर जल की आपूर्ति की एक विधि है, इसका मुख्य लक्ष्य कृआप्लावन और बारहमासी
नहरों तथा बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के द्वारा की जाती है।
Posted on 17 May, 2023 03:21 PM

भारत के कृषि पर निर्भर होने के कारण सिंचाई इसकी रीढ़ की हड्डी है। कृषि के उपयोग में आने वाली सामग्रियों (इनपुट) में बीज,  उर्वरक, पादप संरक्षण, मशीनरी और ऋण के अतिरिक्त सिंचाई की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सिंचाई सूखी भूमि को वर्षा जल के पूरक के तौर पर जल की आपूर्ति की एक विधि है, इसका मुख्य लक्ष्य कृषि है। देश में सिंचाई कुओं, जलाशयों, आप्लावन और बारहमासी नहरों तथा बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजना

भारतीय कृषि में आधुनिक उन्नत सिंचाई विधियां, PC- Mid
टपक सिंचाई विधि
सिंचाई की उत्कृष्ट अथवा वैज्ञानिक विधि का अभिप्राय ऐसी सिंचाई व्यवस्था से होता है जिसमें सिंचाई जल के साथ उत्पादन के अन्य आवश्यक उपादानों का प्रभावकारी उपयोग एवम् फसलोत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित हो सकें। सिंचाई की सबसे उपयुक्त विधि वह होती है जिसमें जल का समान वितरण होने के साथ ही पानी का कम नुकसान हो तथा कम से कम पानी से अधिक क्षेत्र सींचा जा सके ।
Posted on 17 May, 2023 01:13 PM

साधारणतया किसी फसल अथवा खेत में पानी दिए जाने के ढंग को सिंचाई की विधि कहा जाता है। सिंचाई की उत्कृष्ट अथवा वैज्ञानिक विधि का अभिप्राय ऐसी सिंचाई व्यवस्था से होता है जिसमें सिंचाई जल के साथ उत्पादन के अन्य आवश्यक उपादानों का प्रभावकारी उपयोग एवम् फसलोत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित हो सकें। सिंचाई की सबसे उपयुक्त विधि वह होती है जिसमें जल का समान वितरण होने के साथ ही पानी का कम नुकसान हो तथा कम से

टपक सिंचाई विधि, Pc- Bhartvarsh
सिंचाई की प्रमुख विधियाँ
सिंचाई जल के साथ उत्पादन के अन्य आवश्यक लागतों का प्रभावकारी उपयोग एवं फलोत्पादन में वृद्धि हो सके। सिंचाई की सबसे उत्तम विधि वह होती है  जिसमें जल का एक समान वितरण होने के साथ ही साथ पानी का कम नुकसान होता है और अधिक से अधिक क्षेत्र सींचा जा सकता है।
Posted on 16 May, 2023 03:29 PM

आमतौर पर किसी फसल अथवा खेत में पानी दिये जाने के तरीके का सिंचाई की विधि कहा जाता है। सिंचाई की वैज्ञानिक विधि का मतलब ऐसी सिंचाई व्यवस्था से होता है जिसमें सिंचाई जल के साथ उत्पादन के अन्य आवश्यक लागतों का प्रभावकारी उपयोग एवं फलोत्पादन में वृद्धि हो सके। सिंचाई की सबसे उत्तम विधि वह होती है  जिसमें जल का एक समान वितरण होने के साथ ही साथ पानी का कम नुकसान होता है और अधिक से अधिक क्षेत्र सींचा

सिंचाई की प्रमुख विधियाँ, PC-IWPFlicker
भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई की सार्थकता: प्रगति एवं प्रभाव विश्लेषण
अर्थव्यवस्था के विभिन्‍न क्षेत्र पानी के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इससे कृषि क्षेत्र के लिए पानी की उपलब्धता में भारी कमी हो सकती है जोकि कृषि के सतत्‌ विकास के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। यद्यपि, त्रिवार्षिकी 2014-15 में विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में सबसे अधिक शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल (68.4 मिलियन हेक्टेयर) था फिर भी देश में शुद्ध बुवाई क्षेत्रफल का लगभग आधा हिस्सा (5.%) असिंचित है और इसके कारणों में प्रवाह विधि (Flood Method) से सिंचाई करना प्रमुख है। Posted on 15 May, 2023 04:33 PM

भारत में शुद्ध कृषित क्षेत्रफल का लगभग 48.9% हिस्सा ही सिंचित है एवं शेष क्षेत्रफल वर्षाजल पर आधारित है। देश में अभी तक उपलब्ध परियोजनागत सिंचाई क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका है और कृषि में माँग के अनुरूप सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए ई की नवीन तकनीक “सूक्ष्म सिंचाई” को व्यापक स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है। सरकार “प्रति बूँद अधिक फ़सल” मिशन के तहत फव्वारा तथा बूँद-बूँद विधियों को बढ़ाव

भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई की सार्थकता: प्रगति एवं प्रभाव विश्लेषण, PC- Home Depot
भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई प्रगति, प्रभावशीलता एवं संभावित क्षेत्रफल के आच्छादन हेतु सांकेतिक लागत का आंकलन
भारत में भूमिगत जल का स्तर इसके प्राकृतिक पुनर्भरण की अपेक्षा तेजी से गिर रहा है और यह स्थिति देश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में भयावह बनती जा रही है। देश की प्रमुख नीति निर्माण संस्था 'नीति आयोग' के एक हालिया प्रतिवेदन में भी जल उपलब्धता की भयावह स्थिति का वर्णन किया गया है Posted on 10 May, 2023 06:14 PM
सारांश :

भारतीय कृषि क्षेत्र देश में कुल उपलब्ध जल का सर्वाधिक उपभोक्ता है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की बढ़ती मांग, घटली आपूर्ति एवं बदलते मौसम के कारण खेती में पानी के उपयोग को 50 प्रतिशत से नीचे लाने का सुझाव दिया जा रहा है और इसके लिए नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों (सिंचाई विधियों और कम पानी चाहने वाली किस्मों) के अपनाने पर बल भी दिया जा रहा है। वर्तमान स

भारतीय कृषि में सूक्ष्म सिंचाई प्रगति ,Pc IWP
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