वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन

वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन,PC-MONCHASHA
वर्षा जल संचयन एवं इसका बहुआयामी उपयोग तथा प्रबंधन,PC-MONCHASHA
प्रस्तावना

कृषि उत्पादन में जल की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिंचित स्थिति की तुलना में असिंचित स्थिति में उगाई गई फसलों की पैदावार लगभग आधी ही प्राप्त होती है जिससे किसानों को कृषि में भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। देश के उत्तरप्रदेश राज्य में औसतन वर्षा लगभग 1000 मिलीमीटर ही प्राप्त होती हैं जिसका अधिकांश भाग भूमि की ऊपरी सतह से बहकर नदी एवं नालों में बह जाता है। जिसका मुख्य कारण उचित जनसरंक्षण एवं प्रबंधन का ना होना है इसलिये, कृषि से अधिक आय प्राप्त करने तथा कृषि को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिये किसानों को जल की महत्ता को समझना अत्यन्त आवश्यक है।

तालिका 14
तालिका 14 वर्षा जल संचयन एवं इसके बहुआयामी उपयोग के परिणाम,विक्रय मूल्य थान ₹13.50/ विद्या, गेहूं- ₹14.50/ किग्रा, सरसों 35 किग्रा, चना 40 किग्रा, मटर- ₹25 किया, मछली- ₹ 100/- किया एवं अं₹60/दर्जन

उत्तरप्रदेश राज्य में लगभग 70 प्रतिशत कृषि वर्षा जल पर आधारित है जिसमें पूर्वी उत्तरप्रदेश में 67% तथा बहराइच, गोंडा एवं सिद्धार्थनगर जैसे जनपदों में 97.25 प्रतिशत कृषि वर्षा जल पर आधारित है। जहाँ कृषि वर्षा जल पर ही आधारित हैं वहाँ किसान वर्ष में केवल एक फसल या उसके साथ ऊटीरा (खरीफ मौसम की खड़ी फसल में रबी मौसम में उगने वाली मसूर या कम जल आवश्यकता वालो अन्य फसलें) की फसल प्राप्त की जाती है। अतः ऐसे क्षेत्रों में वर्षा जल का संचयन करके तथा उसका सिचाई के लिए उपयोग कर फसलों के उत्पादन में वृद्धि कर सकते है। इसके लिये गाँवों में ग्रामीणों के माध्यम से नए तालाबों का विकास और पुराने तालाबों का पुनः निर्माण किया जा सकता है।
वर्षा जल को तालाबों में उचित तरीके  से एकत्रित करने से मृदा क्षरण में कमी एवं मृदा की उबरा शक्ति में वृद्धि होती है। तालाबों में जल एकत्रित करने से पुनः भरण द्वारा भूजल में भी वृद्धि होती है जिससे भूजल में कमी होने पर पीने के जल की समस्या का सामना किया जा सकता है। तालाबों में वर्षा जल को एकत्रित कर अन्य कार्यों में जैसे मछली एवं बतख पालन करके माँस एवं अंडों के उत्पादन में वृद्धि कर किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है। इसके साथ ही साथ तालाबों के जल का रबी मौसम की फसलों में जीवन रक्षक सिंचाई के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिससे फसलों की पैदावार में वृद्धि होगी। तालाबों में वर्षों जल के अतिरिक्त जब नहरों में जल अधिक रहता है तब नहरों के जल को इन तालाबों में संचित कर सकते हैं।

विश्वविद्यालय द्वारा चाँदपुर रजवहा पर किसानों के खेतों पर सीडहीर एवं सरैया गाँवों में मनरेगा के माध्यम से पुराने तालाबों का पुनः निर्माण करवाया गया तथा वर्षा जल का संचयन कर तालाबों के नजदीकी क्षेत्रों में पारंपरिक पद्धति से धान-गेहूँ / सरसों फसल प्रणाली की जगह रबी में धान आधारित एकीकृत फसल प्रणाली के अंतर्गत मटरः सरसों ( 2:2),चना: सरसों ( 4:1) एवं गेहूँ: सरसों जैसी फसल पद्धतियों पर अनुसंधान करके इनको वहाँ पर अपनाने की सलाह दी गयी तथा नहर का जल उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में तालाब के जल से आवश्यकतानुसार एक या दो सिंचाई दी गयी। इसी के साथ तालाब में मछली एवं बतख पालन किया गया जिससे बहुत हो लाभकारी परिणाम प्राप्त हुये। इस अनुसंधान के परिणाम तालिका 14 में प्रस्तुत किए गए हैं।

उपरोक्त परिणामों से यह स्पष्ट है कि एक हेक्टेयर खेत में किसानों द्वारा उन्हीं के खेत पर परंपरागत एवं उनतशील तरीके ( एकीकृत कृषि प्रणाली) से फसलों का उत्पादन किया गया जिसके परिणामस्वरूप एकीकृत कृषि प्रणाली अधिक उत्पादक एवं लाभकारी पायी गयी। एकीकृत कृषि प्रणाली के साथ वर्षा जल संचयन कर मछली एवं बतख पालन से किसानों को ₹172982 / हेक्टयर वर्ष की कुल आय प्राप्त हुई जो पारंपरिक कृषि प्रणाली की तुलना में 37.68 प्रतिशत अधिक पायी गयी एवं किसानों को ₹ 122132/हेक्टयर / वर्ष का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ जो पारंपरिक कृषि प्रणाली को तुलना मेंर 44744 /हेक्टयर / वर्ष अधिक प्राप्त हुआ। इसके अलावा वर्षा जल का संचयन करने से पुनः भरण द्वारा पूजल के स्तर में भीवृद्धि हुई। इस प्रकार नहरी कमांड क्षेत्रों में केवल वर्षा जल का संचयन करके एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाने से किसानों की आय को लगभग 1.57 गुना बढ़ाया जा सकता है जो भारत / राज्य सरकार की मंशा किसानों को आग को दोगुना करने में सहायक साबित हो सकती है।

    
 

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