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छोटी नदियों के कायाकल्प में उपग्रह डेटा की भूमिका
Satellite Image of Choti Saryu River.
भूविज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, (सीयूएसबी) गया
पिछले कुछ दशकों के दौरान यह देखा गया है कि अधिकांश छोटी नदी और उनकी सहायक नदियाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अधिक आबादी एवं अतिरिक्त भूजल शोषण और नदी मार्ग या इसके जल-ग्रहण क्षेत्र के साथ निर्मित भूमि की बड़ी मात्रा में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। जलविज्ञानी योजनाकारों पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे निर्णय निर्माताओं के बीच जल संसाधन को समझना और प्रबंधित करना और छोटी नदियों की पारिस्थितिकी और प्रवाह को बनाए रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है।
Posted on 31 May, 2023 05:01 PM

नदी चैनल की पहचान परिसीमन और प्रबंधन से तात्पर्य नदियों, तालाब, झीलों की आर्द्रभूमि फसल पैटर्न भूमि उपयोग प्रथाओं भू आकृति विज्ञान और क्षेत्र के भूविज्ञान सहित इलाके की सभी सतह विशेषताओं के आकलन से है।क्योंकि वे बड़ी नदियों को जिन्दा रखती हैं। इस बहुमूल्य स्रोत की रक्षा और छोटी नदियों के कायाकल्प और पैलियो चैनलों की पहचान के लिए वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में अनुसंधान और जल प्रबंधन पहल चल रही

छोटी नदियों के कायाकल्प में उपग्रह डेटा की भूमिका Pc-सरजू विकिपीडिया
फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग
देश में बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण, गहन कृषि और शहरीकरण आदि हमारे विशाल लेकिन सीमित जल संसाधनों पर भारी दबाव डालते हैं। इसके परिणाम स्वरूप, भारत में वर्ष 2050 तक जल की माँग 32 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जिसमें औद्योगिक और घरेलू क्षेत्र में ही इस पूरी माँग का 85 प्रतिशत हिस्सा होगा। अनियंत्रित शहरीकरण के कारण भूजल का अधिकाधिक दोहन, जलभृतों को पुनः भरित करने में असफलता एवं जलग्रहण (कैचमेंट) क्षमता में कमी आदि जल संतुलन में अनिश्चित दबाव के कई मुख्य कारण हैं। Posted on 22 May, 2023 03:33 PM
प्रस्तावना

वर्तमान में बढ़ती वैश्विक आबादी के साथ जल की आपूर्ति और माँग के बीच का अंतर बहुत बढ़ता ही जा रहा है और यह एक ऐसे खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है। कि दुनिया के कुछ हिस्सों में यह मानव अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर रहा है दुनिया भर में बहुत से वैज्ञानिक जल संरक्षण के नये और आधुनिक तरीकों पर अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन अभी भी इसमें उतनी प्रगति प्राप्त नहीं हु

फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग, PC-organicawater
नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प   
वर्तमान में भारत के लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर के बुआई क्षेत्र में से 68% क्षेत्र सूखे की स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील है और लगभग 50% ऐसे क्षेत्र को 'गंभीर' श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है जहाँ सूखे की आवृत्ति लगभग नियमित रूप से घटित होती रहती है। Posted on 22 May, 2023 02:39 PM

प्रस्तावना

ऐसे कृषि क्षेत्र जो प्रायः सूखे की समस्या से प्रभावित रहते हैं वो सभी क्षेत्र सूखे के कारण 50% तक या इससे भी अधिक फसल उपज में हानि का अनुभव कर सकते हैं। दुनिया की 35% से अधिक कृषि भूमि की सतह को शुष्क या अर्ध शुष्क माना जाता है जो अधिकांशतः कृषि उपयोग के लिये अपर्याप्त वर्षा प्राप्त करती हैं। भारत के लगभग दो तिहाई भौगोलिक क्षेत्र में 1000 मिमी से कम

नमी तनावः सब्जी वर्गीय फसलों पर इसका प्रभाव एवं संभावित प्रबंधन विकल्प,PC-VikasPedia
फसल एवं जल की उत्पादकता तथा आय में वृद्धि हेतु कुसुम - मटर अंतरसस्य फसल पद्धति
अंतरसस्य फसल पद्धति में एक ही स्थान पर एक ही भूमि के टुकड़े में एक साथ दो या इससे भी अधिक फसलों की खेती की जाती है अंतरसस्य फसल पद्धति को अपनाकर फसल की समान तुल्य उपज और अर्थिकी को इसमें संसाधनों की उपयोग दक्षता में वृद्धि और मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की वजह से मृदा की उर्वरता में सुधार द्वारा बढाया जा सकता है क्योंकि दलहन फसलें मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
Posted on 22 May, 2023 02:28 PM
पृष्ठभूमि 

 मटर के साथ

 मटर की वैज्ञानिक खेती, Pc- krishakjagat
खरीफ धान के बाद फसल की उत्पादकता को बढाने और आय में वृद्धि के लिये कम से कम सिंचाई के साथ सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। Posted on 22 May, 2023 12:28 PM

पृष्ठभूमि 

सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल है जिसमें खरीफ धान की फसल के बाद एक आपातकालीन (Contingent ) फसल के रूप में समायोजित होने की अनुकूलन क्षमता है या यूं कह सकते हैं कि यह फसल नीची भूमि के पारिस्थितिक तंत्र में अधिक जल आवश्यकता वाली धान की फसल का एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। किसी भी फसल की उपज की क्षमता और लाभप्रदता उचित सिंचाई की पद्धतियों और समय पर बुवाई

सूरजमुखी एक उभरती हुई तिलहन फसल,Pc-Jagran
जल मृदा-पौधे भोजन शृंखला के द्वारा मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन
महाद्वीपीय परत में आर्सेनिक की औसत सांद्रता 1-5 मिलीग्राम / किग्रा होती है जो यह दोनों एंथ्रोपोजेनिक और भूजनिक स्रोतों से आती है। यद्यपि, आर्सेनिक प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हाल ही के प्रकरण में यहाँ यह भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि गंगा- मेघना ब्रह्मपुत्र (GMB) नदियों के मैदानी क्षेत्रों में भूजल का आर्सेनिक प्रदूषण भूजनिक प्रवृति का है











Posted on 20 May, 2023 12:27 PM

प्रस्तावना

आर्सेनिक एक सर्वव्यापी तत्व हैं, जो पृथ्वी की ऊपर की सतह (पपड़ी) में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसका तत्वों में 20 वां स्थान है तथा यह पिरियोडिक तालिका के समूह-15 से संबंधित धातु के रूप में रासायनिक रूप से वर्गीकृत है। आर्सेनिक की सबसे मुख्य ऑक्सीडेशन अवस्थाएं है (i) -3 (आर्सेनाइड), (ii) +3 (आर्सेनाइट्स) और (ii) +5 (आर्सेनेट्स) आदि। यह अकार्बनिक

मनुष्यों में आर्सेनिक का एक्सपोजर एक मूल्यांकन,Pc-N18
मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण 
विभिन्न जल संसाधनों में से भूजल हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन की क्रियाओं में अधिकतम योगदान देता है। विश्व के कुल 3% ताजा जल संसाधनों में से अधिकतर जल ध्रुवीय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पाया जाता है, वैश्विक जल का केवल 1% भाग ही तरल अवस्था में मौजूद है। जबकि, कुल 98% ताजा भूजल तरल अवस्था में पाया जाता है, इसलिये, यह पृथ्वी का सबसे मूल्यवान ताजा जल संसाधन है। भूजल की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य और खाद्यान की मात्रा एवं गुणवत्ता के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, फसलों और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।



Posted on 20 May, 2023 11:56 AM

प्रस्तावना

भारत एक विकासशील देश है जहां जनसंख्या घनत्व विश्व के औसत जनसंख्या घनत्व से कहीं अधिक है। हर जगह मानव हस्तक्षेप ध्यान देने योग्य बात है, जो पीड़ित व्यक्ति से शुरू होकर मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति तक मौजूद है। देश की प्रकृति भी इनके साथ प्रभावित हो गई है। देश में जैसे-जैसे जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है वैसे-वैसे खाद्य की माँग भी एक साथ बढ़ रही है। यह अनु

मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूजल प्रदूषण,Pc-Indiatimes
मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प
कृषि उत्पादन के लिये जल सबसे महत्वपूर्ण इनपुट है। हमारे देश में मानसून की अनियमितता और अति भूजल दोहन के कारण इसके स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप कृषि के उपयोग के लिये ताजे जल को आपूर्ति की कमी हो रही है। अतः आने वाले समय में इस अमूल्य संसाधन हेतु दक्ष उपयोग की आवश्यकता है मानव आबादी द्वारा जल उपयोग की बढ़ती माँग और बेहतर पर्यावरणीय गुणवत्ता की वजह से फसलों की जल उपयोग की दक्षता में वृद्धि वर्तमान में चिंता का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा उभर कर सामने आ रहा है। Posted on 19 May, 2023 03:22 PM
प्रस्तावना

जल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिये जल के प्रभावी प्रबंधन के दक्ष दृष्टिकोणों को अपनाना बहुत ही आवश्यक हो गया है। जहाँ सिंचाई जल संसाधन सीमित है या कम ही रहे है और जहाँ वर्षा एक सीमित कारक है वहाँ फसलों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि करना एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है। वैसे कुछ महत्त्वपूर्ण मृदा प्रबंधन पद्

मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता  में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प,PC-
पैन वाष्पीकरण मीटर: सिंचाई के उपयुक्त समय के निर्धारण हेतु एक उपयोगी उपकरण
सिंचाई के जल की कमी पौधों में जल और पोषक तत्व तनाव के द्वारा उपन पर प्रभाव डालती है। इस संदर्भ में उपलब्ध जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग करने के लिये वैज्ञानिक सिचाई के समय का निर्धारण किसानों को बहुत सहायता कर सकता है एक ऐसा उपकरण जो वाष्पीकरण को मापने के साथ-साथ मौसम के कारकों के प्रभाव को भी एकीकृत करता हो सिंचाई समय के निर्धारण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। Posted on 19 May, 2023 02:40 PM
प्रस्तावना

जब वर्षा और मृदा में संचित नमी फसलों की पैदावार बढ़ाने स्थिर करने के लिये पर्याप्त नहीं होती है तब फसलों की जल की माँग को पूरा करने के लिये सिंचाई बहुत ही आवश्यक है। कृषि उद्देश्यों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता तेजी से घट रही है क्योंकि अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पधायें दिन-प्रतिदिन बढ़ती हो जा रही है। हमारे देश में वर्ष 20025 और वर्ष 2050 तक सतह ज

पैन वाष्पीकरण मीटर, Pc-constructor
गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव
गुजरात राज्य में जल संसाधन बहुत ही सीमित है। वहाँ की प्रमुख नदियां जैसे तापी (उकाई काकरापार), माही (माहौ कदाना), साबरमती (घरोई) आदि के जल का उपयोग करने के लिये पहले से ही पर्याप्त कदम उठाए गए हैं। आगे भी नर्मदा नदी के जल संसाधनों का उपयोग करने के लिये प्रयास पूरी गति से उठाए जा रहे हैं। राज्य के प्रमुख हिस्सों में कम वर्षा और मुख्य रूप से मृदा की जलोड़ प्रकृति के कारण यहाँ अन्य छोटी छोटी नदियों की जल क्षमता सीमित ही नहीं है Posted on 19 May, 2023 01:52 PM
प्रस्तावना

गुजरात राज्य भारत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह पश्चिम में अरब सागर, पूर्वोत्तर में राजस्थान राज्य, उत्तर में पाकिस्तान के साथ अंतराष्ट्रीय सीमा, पूर्व मैं मध्य प्रदेश राज्य और दक्षिण-पूर्व व दक्षिण में महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं से  घिरा हुआ है। भारत में इस राज्य का 1600 किलोमीटर की लंबाई के साथ सबसे लंबा समुद्र तट है यह 20°01' से 24° उत्तरी अक्षा

गुजरात के जल संसाधनों पर सिंचाई  विधियों का प्रभाव,Pc-vivacepanorama
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