मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प

मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता  में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प,PC-
मृदा प्रबंधन द्वारा जल उपयोग दक्षता में सुधार हेतु तकनीकी विकल्प,PC-
प्रस्तावना

जल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिये जल के प्रभावी प्रबंधन के दक्ष दृष्टिकोणों को अपनाना बहुत ही आवश्यक हो गया है। जहाँ सिंचाई जल संसाधन सीमित है या कम ही रहे है और जहाँ वर्षा एक सीमित कारक है वहाँ फसलों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि करना एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है। वैसे कुछ महत्त्वपूर्ण मृदा प्रबंधन पद्धतियाँ उपलब्ध हैं जो उपलब्ध ऊर्जा, मृदा को प्रोफाइल में उपलब्ध जल या मृदा और वातावरण के बीच की विनिमय दर को संशोधित करके वाष्पीकरण की प्रक्रियाओं को प्रभावित करती है। कृषि साहित्य के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि जलवायु, फसल और मृदा प्रबंधन उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला के अनुसार मापी गयी जल उपयोग दक्षता में काफी बदलाव देखे गए है। मृदा प्रबंधन उपायों के जरिये जल उपयोग दक्षता में 25 से 40% तक की वृद्धि संभव हो सकती है। इसके अलावा, ऊर्जा की कीमतों में हाल ही में हुई बढ़ोतरी से कई सिंचित उत्पादक पूछने लग गये है कि उनके जल संसाधनों की दक्षता को अधिकतम प्राप्त करने के लिये इस अमूल्य इनपुट का दक्ष प्रबंधन कैसे किया जाये ? अतः इस तकनीकी लेख में मुदा प्रबंधन के उपायों द्वारा जल उपयोग दक्षता मैं वृद्धि हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये गये है।

जल उपयोग दक्षता

जल उपयोग दक्षता एक निश्चित बायोमास स्तर को बताती है जो सिंचित और वर्षा आधारित कृषि दोनों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता के बारे में प्रतिदिन की चिंता  का विषय है। इसलिये, फसलों द्वारा उपयोग किये गये जल की मात्रा को जल उपयोग दक्षता के रूप में मूल्यांकित किया जाता है। इस जल उपयोग दक्षता को निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-फसल की जल उपयोग दक्षता : इसको फसल की पैदावार एवं फसल को वाष्पोत्सर्जन (ऊ) आवश्यकता को पूरा करने के लिये उपयोग में लिये गये जल की मात्रा के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

  • फसल की  जल उपयोग दक्षता पैदावार / वाष्पोत्सर्जन (ET)
  • खेत की जल उपयोग दक्षता यह फसल की पैदावार एवं खेत में उपयोग किये जाने वाले जल की कुल मात्रा का अनुपात होता है
  • खेत की जल उपयोग दक्षता पैदावार / जल आवश्यकता
  • फिजियोलोजिकल जल उपयोग दक्षता: इसको प्रति इकाई वाष्पोत्सर्जित जल के साथ कार्बन डाईऑक्साइड के स्थिरीकरण की मात्रा के रूप में आकलित किया जाता है।

फिजियोलोजिकल जल उपयोग दक्षता प्रकाश संश्लेषण की दर वाष्पोत्सर्जन की दर

मृदा में नमी के संरक्षण के लिये जुताई का महत्व

पौधों के लिये उपलब्ध मृदा जल की मात्रा मृदा  की गहराई से नियंत्रित होती है जो पौधों की जड़ों के लिये आवश्यक है। इसके अलावा यह उपलब्ध जल मृदा पदार्थ की प्रकृति से भी नियंत्रित होता है। क्योंकि कुल और उपलब्ध नमी भंडारण क्षमता, वाचन, कण आकार (बनावट) और कणों की व्यवस्था (संरचना) के साथ जुड़ी हुई होती है जो ये सभी महत्वपूर्ण कारक है। कार्बनिक पदार्थ, कार्बोनेट का स्तर और पत्थर की सामग्री आदि भी मृदा में नमी के संग्रहण को प्रभावित करते हैं। खराब संरचना, कम कार्बनिक पदार्थ, कम कार्बोनेट सामग्री और पत्थरों को उपस्थिति आदि किसी भी बनावट की वर्ग वाली मृदा में नमी भंडारण क्षमता को कम करते हैं। चिकनी मृदा बड़ी मात्रा में जल को ग्रहण करती है क्योंकि इसमें अधिक विल्टिंग पॉइंट्स होते हैं तो इन्हें पौधों को जल की आपूर्ति करने में सक्षम होने के लिये वर्षों की आवश्यकता होती है। दूसरी तरफ, रेतीली मुदा में जल को भंडारण क्षमता सीमित होती है, लेकिन क्योंकि इनमें अधिकतर जल उपलब्ध रहता है जिसके कारण पौधे हल्की वर्षा का भी अच्छे से उपयोग कर लेते हैं चाहे वे वर्षा होने के पहले कितने भी शुष्क हो पौधे आम तौर पर रेतीली मृदा एक अच्छी प्रकार की जड़ प्रणाली रखते है ताकि रेतीली मृदा के सूखने से पहले जल्दी से जल इनकी जड़ों तक पहुँच सकें।

मृदा के स्वास्थ्य पौधों की वृद्धि और पर्यावरण की देखभाल करने के लिये सरंक्षित जुताई सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सरंक्षित जुताई के तहत मृदा की नमी की अधिक मात्रा मृदा को संरचना में सुधार और निरंतर फसल के अवशेषों के तहत वाष्पीकरण के नुकसान में कमी के कारण होती है।  सरंक्षित  जुताई के संरक्षित तहत उपलब्ध नमी की मात्रा में वृद्धि विशेष रूप से सतहों मृदा में फसलों द्वारा जल के उपभोगित उपयोग में वृद्धि करती है जिसके परिणामस्वरूप जल उपयोग दक्षता में सुधार प्राप्त होता है।

मृदा में नमी के संरक्षण के विभिन्न तकनीकी विकल्प

किसानों द्वारा कृषि के तहत अपने खेतों की मृदा में नमी का संरक्षण विभिन्न आधुनिक एवं उन्नत तकनीकों के विकल्पों को अपनाकर किया जा सकता है जिनका विवरण विस्तार से नीचे प्रस्तुत किया गया है।

स्ट्रिपखेती

इसमें वैकल्पिक स्ट्रिप्स के तहत क्षरण प्रतिरोधी फसलों एवं क्षरण को बढावा देने वाली फसलों की कुछ पंक्तियों को भूमि के लंबे और खड़े ढलानों को तोड़ने के उद्देश्य से समोच्च (ढलान पार) पर उगाया जाता है। इस तकनीक के तहत बहुत कम दूरी पर बुआई वाली क्षरण प्रतिरोधी फसलें वर्षा अपवाह में बाधा डालकर एवं छनित तलछट या अवसादों को खेत में ही छोड़कर मृदा की संवहन एवं क्षरणक्षमता को कम कर देती है। क्षरण को बढ़ावा देने एवं क्षरण प्रतिरोधी फसलों की चौड़ाई अलग अलग क्षेत्रों के ढलान के अनुसार बदलती रहती है। स्ट्रिप खेती एक तरह से फसलों के अंतरसस्य जैसे दिखाई देती है।

कंटूरखेती

इस विधि में ऊपर और नीचे के ढलान के बजाय भूमि के एक ही ढलान के सहारे खेती की गतिविधियां (जुताई, रोपण, खेती एवं फसल कटाई) शामिल होती है। कंटूर तटबंध वर्षा अपवाह को रोकने के लिये एक छोटी बाधा के रूप में कार्य करते है जिससे मृदा में वर्षा जल के इंफील्ट्रेसन के लिये अवसर समय बढ़ जाता है और मृदा की ऊपरी प्रोफाइल में वर्षा जल के इंफील्ट्रेसन में वृद्धि हो जाती है। कंटूर बंध 1.5 से 2 मीटर चौड़ाई वाले मृदा के बाँध होते है जिनको 10 से 20 मीटर के अंतराल पर बफर स्ट्रिप्स के रूप में बनाया जाता है। जल और मृदा संरक्षण के लिये कंटूर खेती की प्रभावशीलता इस प्रणाली की डिजाइन पर निर्भर करती है लेकिन इसके अलावा यह मृदा के प्रकार, जलवायु ढलान और भूमि उपयोग पर भी निर्भर करती है। कंटूर खेती को  2 से 7% तक के मध्यम ढलान वाली भूमि पर सबसे अधिक प्रभावी पाया गया है।

शून्य या रासायनिक जुताई

मृदा में नमी सरंक्षण के इस दृष्टिकोण में भूमि की बिल्कुल भी जुताई नहीं की जाती है मृदा की जुताई की जरूरत से बचने हेतु रासायनिक जुताई में फसलों के खेत से खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिये शाकनाशियों का उपयोग किया जाता है। यह जुताई की तकनीक मृदा को प्रोफाइल मैं जल को संरक्षित करती है क्योंकि इसमें मृदा खुली नहीं रहती है और भूमि की मृदा वातावरण के सुखाने (वाष्पीकरण) वाले तत्वों के संपर्क में भी नहीं रहती है। इससे नमी मृदा की प्रोफाइल में ही बनी रहती है। इस तकनीक के तहत नई फसल की बुआई को आम तौर पर पिछली फसल के अवशेषों में ही किया जाता है

पलवार

मृदा की सतह से जल के वाष्पीकरण को कम करने, मृदा में नमी को बनाये रखने, मृदा के क्षरण को कम करने, खरपतवारों की वृद्धि को कम करने और पौधों को पौषक तत्वों को उपलब्ध करवाने के लिये मृदा की सतह पर रखे जाने वाले कोई भी पदार्थ या सामग्री को पलवार कहा जाता है। पलवार मुदा की नमी को बाहर निकलने से बचाने के लिये एक बाधा के रूप में कार्य करती है ये पलवार या ती जैविक (जैसे पुआल, लकड़ी के चिप्स,पीट) या मानव निर्मित (जैसे पारदर्शी या अपारदर्शी प्लास्टिक) दोनों प्रकार की हो सकती है। पलवार मृदा की जल तापीय व्यवस्था को प्रभावित करके फसलों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि करती है जिससे पौधों की जड़ पद्धति और वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा यह मुदा की सतह से वाष्पीकरण घटक को भी कम करने में मदद करती है। नमी तनाव की स्थिति में पलवार के प्रयोग से मृदा में नमी को थोड़े समय के लिये बनाये रखा जा सकता है या बाद में फसल की वृद्धि के लिये भी संरक्षित किया जा सकता है। इसलिये पलवार का प्रयोग फसलों की बेहत्तर उपज को प्राप्त करने में काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।

कम और न्यूनतम जुताई

यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें कुछ हद तक ही मृदा की जुताई की जाती है लेकिन पूरी तरह मुद्रा को उल्टा या जोता नहीं जाता है। इसमें हल के साथ डिस्क या चीजल  हैरो का उपयोग किया जा सकता है। और संकरी स्ट्रिप्स में भूमि को जुताई की जाती है जो पंक्ति में फसलों को दूरी के साथ मिलती है और इनके अन्तर्निहित स्थान को ऐसे ही  छोड़ दिया जाता है। कम जुताई का मतलब है कि मृदा को बहुत कम मात्रा को क्षरण एवं वाष्पीकरण द्वारा नमी में होने वाली हानि को रोकने के लिये थोड़ा ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसलिये, मृदा में नमी का संरक्षण होता है। कम जुताई की इस तकनीक को डबल स्टिक रोपण भी कहा जाता है जहाँ फसलों के अवशेष के साथ बिना जुताई वाले खेत में पौधों के रोपण के लिये छड़ी या मैचेटे का उपयोग छिद्र बनाने के द्वारा किया जा सकता है।

शून्य जुताई और मृदा आवरण

इस विधि में आम तौर पर पिछली फसल की कटाई के बाद मृदा को बिना छेड़े पौधों की बुआई की जाती है, और इसी रूप में परिभाषित किया जाता है। संरक्षण जुताई में कब और कैसे जुताई की जाये यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। यहाँ कब मूल रूप से मृदा में नमी की अवस्था को संदर्भित करता है इस प्रणाली में एक संकीर्ण स्लॉट शामिल होता है जो केवल चौड़ा और गहराई पर उचित बीज कवरेज को प्राप्त करने के लिए खोदा जाता है और इसमें कम से कम 30% पलवार का भूमि पर आवरण  रहता है। इस तकनीक के तहत फसलों की बुआई के बाद पिछली फसल के अवशेषों को बिना कोई छेड़छाड़ किये मुदा की सतह पर ही रखना चाहिये जो कृषि भूमि की मृदा में नमी के सरंक्षण के लिये बहुत ही आवश्यक है।

मृदासुधारक

असल में किसी भी कार्बनिक या अकार्बनिक सामग्री को मृदा मैं मिलाया जाता है तो उसकी गुणवत्ता में सुधार प्राप्त होता है इनकी मृदा सुधारक के रूप में जाना जाता है (तालिका 15) मृदा में मृदा सुधारक को मिलाने या प्रयोग का प्रमुख कारण पौधों की जड़ों और इसकी वृद्धि एवं विकास के लिये बेहतर वातावरण को प्रदान करवाना है जिसमें मृदा की संरचना और जल धारण क्षमता व पौषक तत्वों की उपलब्धता और मृदा में जीवाणुओं के रहने की स्थिति में सुधार आदि शामिल है जो पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है। जब मृदा में जैविक सुधारकों का प्रयोग किया जाता है (जैसे खाद) तो यह पौषक तत्व चक्र में भी सुधार करते है जिससे मुदा में नमी का संरक्षण होता है।

मृदा में पौषक तत्वों की स्थिति

आजकल, कृषि में जल के उपयोग की दक्षता को बढ़ाने के लिये और फसलों के पौधों में जल के तनाव के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिये कई तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रबंधन प्रणाली के घटकों में से एक घटक जो जल उपयोग दक्षता को प्रभावित करता है वह मृदा की उर्वरता है। एक पूर्ण और संतुलित उर्वरता कार्यक्रम अच्छी जड़ों के साथ जो बहुत कम समय में जल और पोषक तत्वों की उपलब्धता के लिये एक अच्छी मात्रा के मृदा आयतन से फसलों की पैदावार प्राप्त करने में मदद करता है। फसलों के पौधों में जल के उपयोग की दक्षता और उत्पादकता को बढ़ाने के लिये पौधों का उचित पोषण करना एक बहुत ही अच्छी रणनीति है। सीमित जल की आपूर्ति के तहत जल के उपयोग की दक्षता को बढ़ाने में पौधों के आवश्यक पोषक तत्व बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। मृदा में पौषक तत्वों का प्रयोग पौधों के जड़ विकास में अच्छी वृद्धि करता है जो मुदा  की नमी को गहरी परतों से भी अवशोषित कर सकती हैं। इसके अलावा, उर्वरकों का प्रयोग पौधों की पत्तियों के प्रारंभिक विकास को भी बढ़ाता है जो मृदा को ढके रखती है और यह पत्तियाँ अधिक विकिरण को भी ग्रहण करती है जिससे वाष्पीकरण कम हो जाता है। देश के विभिन्न भागों में दबाब सिंचाई प्रणाली द्वारा सिंचाई जल एवं उर्वरकों के एक साथ प्रयोग से दोनों संसाधनों के दक्ष उपयोग के परिणाम प्राप्त हुए है। इससे जल की बचत भी होगी और साथ ही साथ पोषक तत्वों के नुकसान में भी कमी आएगी जिसके परिणामस्वरूप जल उपयोग दक्षता एवं पोषक उपयोग दक्षता में भी वृद्धि होगी।

तालिका 15
तालिका 15. विभिन्न मृदा सुधारकों के उदाहरण 

निष्कर्ष

वर्तमान में हमारे सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है कि हमें जल उपयोग दक्षता में वृद्धि के लक्ष्य के साथ साथ मृदा प्रबंधन उपायों की विकसित करना जारी रखना है। इसके अलावा फसल पद्धतियों की एक श्रृंखला के लिये जल एवं पौषक तत्वों की प्रतिक्रिया को समझना भी शोध के लिये प्रमुख चुनौती है और इस जानकारी को उन उपकरणों में शामिल करना है जो उत्पादकों या किसानों को मृदा प्रबंधन संबंधी उपायों के निर्णय लेने में सहायता प्रदान कर सके जिससे उनके खेतों में फसलों की जल उपयोग दक्षता एवं पोषक तत्वों उपयोग दक्षता में वृद्धि हो सके।

 

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