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जल संचयन के रंग-ढंग (Types Of Water harvesting in Hindi)
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति पायी जाती हैं जैसे उच्च ढलान, मध्यम ढलान और अल्प ढलान तथा समतल भूमियाँ । उच्च ढलान, अल्प मिट्टी उर्वरा और मिट्टी की कम गहराई वाली जगहों में कृषि वानिकी और वनीकरण उचित रहता है। Posted on 18 Nov, 2023 12:39 PM

जैसे कि पहले बताया गया है कि जितनी वर्षा होती है उसका एक भाग सतही प्रवाह के रूप में जलग्रहण क्षेत्र से बाहर निकल कर नालों और नदियों के माध्यम से बहते हुए धीरे-धीरे अंततः समुद्र में मिल जाता है। एक भाग वाष्पोत्सर्जन के द्वारा वातावरण में चला जाता है और बाकी मृदा में रिसता हुआ भूजल में मिल जाता है। वर्षा जल सतही और भूजल के माध्यम से उपयोग किया जाता है। जल की प्रकृति उच्च ढलान से निम्न ढलान की ओर

जल संचयन क्या है(What is water harvesting In hindi)
जल गुणवत्ता का तात्पर्य जल की शुद्धता (अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल) से है। अधिक उपलब्ध जल संसाधन, औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित होती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल में भी वृद्धि हो रही है। Posted on 18 Nov, 2023 11:35 AM

परिचय

पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल और एक तिहाई भाग थल है। यद्यपि जल इस ग्रह का सर्वाधिक उपलब्ध संसाधन हैं परन्तु मानव उपयोग के लिये यह तीव्र गति से दुर्लभ होता जा रहा है। इस अपार जल राशि का लगभग 97.5% भाग खारा है और 2.5% भाग मीठा है। इस मीठे जल का भी 75% भाग हिमखण्डों के रूप में, 24.5% भूजल, 0.03% नदियों, 0.34% झीलों एवं 0.06% वायुमण्डल में विद्यमान है। ज्यों-ज्यो

जल संचयन
ताजी हवा उगाने के नुस्खे बताती किताब
ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है Posted on 18 Nov, 2023 11:29 AM

जब दिल्ली सहित देश का बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण से जूझ रहा है तब एक किताब इस समस्या के समाधान की बात करने के लिए आई है। गुरुवार को वायु प्रदूषण से जूझने के लिए वाणी पृथ्वी कड़ी के तहत वाणी प्रकाशन की पुस्तक 'ताजी हवा कैसे उगाएं' का लोकार्पण हुआ। लेखक, कमल मीतल और वरुण अग्रवाल  मिलकर 'ताजी हवा कैसे उगाएं' में पर्यावरण समस्याओं और वायु गुणवत्ता के प्रति सहज, सरल भाषा में संवाद किया है।

ताजी हवा उगाने के नुस्खे बताती किताब
सुरंगों में हिमालय का भविष्य 
हिमालय की नदियां अस्तित्व के संकट से जूझेंगी। बिजली परियोजनाओं में जो संयंत्र (रन-ऑफ-द-रिवर) लग रहे हैं, उनके लिए हिमालय को खोखला किया जा रहा है। सड़कों आदि के लिए आधुनिक औद्योगिक विकास का ही परिणाम है कि आज हिमालय दरकने लगा है। जिन पर हजारों सालों से बसे लोग अपनी ज्ञान-परंपरा के बूते जीवन-यापन करते चले आ रहे हैं।  Posted on 17 Nov, 2023 01:25 PM

ऑल वेदर रोड की एक सुरंग धंसी

ऑल वेदर रोड के तहत धरासू-यमुनोत्री हाईवे पर सिल्क्यारा से डंडालगांव के बीच साढ़े चार किमी लंबी सुरंग का निर्माणाधीन है। यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव तक निर्माणाधीन सुरंग के अंदर भूस्खलन हुआ है। इस सुरंग का एक हिस्सा 150 मीटर खंड ढह गया है। यह चारधाम परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण झटका है। इसके बन जाने के बाद

सुरंगों में हिमालय का भविष्य 
मध्य गंगा घाटी में घटता भू-जल विकास स्तर : समस्याएं एवं समाधान
भारत भू-जल का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जो कुल वैश्विक भू-जल निर्यात का 12 प्रतिशत है। विश्व में प्राप्त कुल भू-जल का 24 प्रतिशत अकेले भारत उपयोग करता है। इस प्रकार भू-जल उपयोग में विश्व में भारत का प्रथम स्थान है अपने देश के लगभग 1 अरब लोग पानी से कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 60 करोड़ लोग तो गम्भीर संकट वाले क्षेत्रों में हैं। उनके लिए 88 प्रतिशत घरों के निकट स्वच्छ जल प्राप्त नहीं है, जबकि 75 प्रतिशत घरों के परिसर में पीने का पानी नहीं है। 70 प्रतिशत पीने का पानी दूषित है और तय मात्रा से 70 प्रतिशत अधिक जल का उपयोग किया जा रहा है। सन् 2030 तक 21 नगर डेन्जर जोन में आ जायेंगे अपने देश में 1170 मिलीमीटर औसत वर्षा होती है, जिसमें से 6 प्रतिशत ही हम संचित कर पाते हैं और 91 प्रमुख जलाशयों में क्षमता का 25 प्रतिशत ही जल बचा है। Posted on 17 Nov, 2023 12:53 PM

सारांश

पृथ्वी तल के नीचे स्थित किसी भूगर्भिक स्तर की सभी रिक्तियों में विद्यमान जल को भू-जल कहा जाता है। अपने देश में लगभग 300 लाख हेक्टोमीटर भू-जल उपलब्ध है, जिसका लगभग 80 प्रतिशत हम उपयोग कर चुके हैं। यदि भू-जल विकास स्तर की दृष्टि से देखा जाए तो अपना देश घूमिल सम्भावना क्षेत्र से गुजर रहा है, जो शीघ्र ही सम्भावनाविहीन क्षेत्र के अन्तर्गत आ जायेगा। यही स्थिति

मध्य गंगा घाटी में घटता भू-जल विकास स्तर : समस्याएं एवं समाधान
नदियों को जोड़ने की खामख्याली
देश की सारी प्रमुख नदियों को जोड़ने के वाजपेयी सरकार के संकल्प पर यदि अमल किया गया, तो यह इतिहास में सहस्राब्दि की सनक के रूप में दर्ज होगा। ऐसा इसलिए कि यह योजना सारी इकॉलॉजिकल, राजनैतिक, आर्थिक व मानवीय लागत को अनदेखा करती है और इसका आकार अभूतपूर्व है। दुनिया में कहीं भी आज तक इतने बड़े पैमाने की और इतनी पेचीदगियों से भरी परियोजना नहीं उठाई गई है। Posted on 16 Nov, 2023 04:59 PM

प्रधानमंत्री तथा उनकी इस घोषणा पर मेजें थपथपाने वाले सांसद शायद सोचते हैं कि जब सड़कों का नेटवर्क बन सकता है, तो नदियों का क्यों नहीं? इस सोच में देश के बुनियादी संसाधनों मिट्टियों, नदियों, सागर संगमों, पहाड़ों और जंगलों के प्रति और जलवायु की तमाम विविधताओं के प्रति नासमझी ही झलकती है।

नदियों को जोड़ने की खामख्याली
फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
फ्लोराइड हमारे आस-पास उभरती समस्याओं में से एक है, जो दांतों की संरचना, कंकाल की संरचना को प्रभावित करती है साथ ही हमारे शरीर में गैर कंकाल संरचनाएं (नरम ऊतक या गैर कैल्सीफाइड ऊतक) जो स्वास्थ्य में विविधता का कारण बनती हैं। Posted on 16 Nov, 2023 02:53 PM

सार -

डेंटल फ्लोरोसिस, जो फीके काले धब्बेदार या चाकलेट-सफेद दांतों की विशेषता है.

फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जल भंडारण का कार्य प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। प्राचीन समय में जब तकनीक इतनी विकसित भी नहीं हुई थी, तब भी लोग तालाब एवं बावड़ी इत्यादि का प्रयोग वर्षा जल के भण्डारण के लिए करते थे। उस समय आबादी कम होने के कारण सीमित जल संसाधनों के होने पर भी मानव के कई दैनिक एवं व्यावसायिक कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाते थे। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई अन्न की माँग भी बढ़ी इस बढ़ी हुई माँग की पूर्ति हेतु खेती के भू-भाग में बढ़ोत्तरी हुई। इस बढ़ी हुई खेती के भू-भाग की सिंचाई के लिए जल की मांग बढ़ने लगी जल की इस मांग ने बाँध जैसी जल भण्डारण वाली अवसंरचनाओं को जन्म दिया। Posted on 16 Nov, 2023 01:13 PM

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जल संरक्षण के प्रति हमारी चेतना का उदाहरण है। कुमाऊँ हिमालय के अंतर्गत जल स्रोतों का पुनर्वेदभवन ही गैरहिमानी नदियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है। अतः जल स्रोतों के संवर्धन, संरक्षण एवम् पुनउदभवन के प्रयास आवश्यक हो गये हैं Posted on 16 Nov, 2023 12:33 PM

पूरे विश्व में जल संरक्षण व संवर्धन की मूल समस्या का समाधान तभी हो पायेगा जब हम जल के ह्रास व पेय जल की कमी की समस्या की और विस्तृत व सम्पूर्ण पहलूओं को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाएं क्योंकि स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण व संवर्धन उतना ही आवश्यक है जितना जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ऋतु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को हल करने के प्रयास।

जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जलाभाव की त्रासदी  
एक समय था जब हमारे देश में जल की कोई कमी नहीं थीं। हमारे देश की नदियां जलाप्लावित रहती थी। जगह-जगह पर कुएं, बावड़ी, पाताल तोड़ कुएं तथा ट्यूबवेल हुआ करते थे जिनसे पीने का शुद्ध जल आसानी से प्राप्त हो जाता था। पशुओं तथा फसलों के लिए भी जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता था। पृथ्वी पर जल स्तर भी पर्याप्त ऊंचाई पर था। हमारी प्राचीन सभ्यताएं भी नदियों के किनारे पर ही विकसित हुई क्योंकि प्राचीन काल में हमारे पूर्वजों ने अपने निवास स्थान अधिकतर नदियों के किनारे पर ही बनाए ताकि उन्हें पानी आसानी से उपलब्ध हो सके। जल की पवित्रता एवं शुद्धता के कारण ही नदियों को भारत में मां की तरह पूजा जाता है।' Posted on 16 Nov, 2023 11:29 AM

जलाभाव की समस्या मात्र भारत की ही नहीं अपितु विश्व की सबसे जवलंत समस्या है जब 21वीं सदी के प्रारंभ में ही इस समस्या ने इतना विकराल रूप 'धारण कर लिया है तो आगे आने वाले वर्षों में इसका रूप कितना भयानक होगा यह सोचकर भी दिल दहल जाता है। जन जीवन का पर्याय है। जब पृथ्वी पर पीने योग्य जल ही नहीं होगा तो मानव जीवन की कल्पना करना ही व्यथ है।

जलाभाव की त्रासदी ,Pc-जल चेतना
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